चैप्टर 4 दिलेर मुज़रिम इब्ने सफ़ी का उपन्यास जासूसी दुनिया सीरीज़

Chapter 4 Diler Mujrim Novel By Ibne Safi

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क़ातिल की नयी चाल

इंस्पेक्टर फ़रीदी को अफ़सोस था कि सरकारी तौर पर वह इस केस का इंचार्ज नहीं हो सकता था। अभी उसकी छुट्टी खत्म होने में दो महीने बाकी थे। उसे इस बात का भी ख़याल था कि दूसरे कत्ल के बाद से इस मामले में उसकी दखलअंदाजी का हाल अफसरों को ज़रूर मालूम हो जाएगा, जो किसी तरह मुनासिब नहीं था। लेकिन उसे इसकी परवाह न थी। नौकरी की परवाह उसे न पहले कभी थी और न ही अब थी। यह नौकरी वह शौकिया कर रहा था, वरना वह इतना दौलतमंद था कि उसके बगैर भी अमीरों की सी जिंदगी गुज़ार सकता था।

दूसरी वारदात के अगले दिन सुबह जब वह सो कर उठा, तो उसे मालूम हुआ कि चीफ इंस्पेक्टर साहब का अर्दली बहुत देर से उसका इंतज़ार कर रहा है। पूछने पर पता चला कि चीफ साहब अपने बंगले पर बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं और पुलिस कमिश्नर साहब ही वहाँ मौजूद हैं। फ़रीदी का माथा ठनका। फौरन ही उसने बेकार के ख़यालों को अपने ज़ेहन से निकाल फेंका और नाश्ता करने के बाद चीफ साहब के बंगले की तरफ निकल पड़ा।

“हेलो फ़रीदी!” चीफ साहब ने उसको देखते ही तपाक से कहा, “हम लोग तुम्हारा इंतज़ार कर रहे थे।”

“मुझे ज़रा देर हो गई।” फ़रीदी ने कहा।

“इस वक़्त एक अहम मामले पर बातचीत करने के लिए आपको तकलीफ दी गई है।” पुलिस कमिश्नर ने अपना सिगार केस उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा।

“शुक्रिया!” फ़रीदी ने सिगार केस लेते हुए कहा, “फ़रमाइए!”

“मिस्टर फ़रीदी.. चौबीस घंटे के अंदर से इस इलाके में दो वारदातें हुई हैं। उनसे आप बखूबी वाकिफ़ हैं।” पुलिस कमिश्नर साहब ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, “और आप यह भी जानते हैं कि ट्रांसफर होकर यहाँ आए हुए मुझे सिर्फ दस दिन हुए हैं। ऐसी सूरत में मेरी बहुत बदनामी होगी। सिविल पुलिस तो बिल्कुल नाकारा है और मामला बहुत पेचीदा है। क्या ऐसा हो सकता है कि आप अपनी बाकी की छुट्टियाँ फिलहाल कैंसिल करा दें? और इसका जिम्मा मैं लेता हूँ कि कातिल का पता लग जाने के बाद मैं आपको दो के बजाय चार महीने की छुट्टी दिला दूंगा। यह मेरी दोस्ताना राय है। इससे अफसरी और महकमें का कोई ताल्लुक नहीं।”

“जी, मैं हर वक्त और हर खिदमत के लिए हाजिर हूँ।” फ़रीदी ने अपनी आरजू पूरी होते देख कर कहा।

“बहुत-बहुत शुक्रिया!” पुलिस कमिश्नर साहब इत्मीनान की सांस लेकर बोले, “कल रात आप अपना बयान देकर चले आए थे। इसके बाद नेपाली तंबू की तलाशी लेने पर चालीस हजार के नोट बरामद हुए, जो उसकी हैसियत से कहीं ज्यादा थे। इन रुपयों के अलावा कोई और चीज ऐसी न मिल सकी, जिससे उसके कातिल का पता लग सकता। बहरहाल सविता देवी के कातिल का सुराग का सेहरा तो आप ही के सिर है। लेकिन अब उसके कातिल के कातिल का पता लगाना बहुत ज़रूरी है और यह काम सिवा आपके और कोई नहीं कर सकता। मैंने कल रात ही यह दोनों केस डिपार्टमेंट ऑफ इनविटेशन के जिम्मे कर दिए हैं। अब इसके आगे का प्रोग्राम आपको चीफ इंस्पेक्टर बतायेंगे।”

“और मैं तुमको इस केस का इंचार्ज बनाता हूँ।” चीफ इंस्पेक्टर साहब ने, जो अब तक दोनों की बातें गौर से सुन रहे थे आगे कहा, “इसके कागज़ात दस बजे तक तुम्हें मिल जायेंगे।”

“यह तो आप जानते हैं कि मैं शुरू ही से केस की तफ्तीश कर रहा हूँ।” फ़रीदी ने कहा, “और मैंने इस सिलसिले में अपना काम करने का तरीका भी ढूंढ लिया है। लेकिन आप से गुज़ारिश है कि आप यही जाहिर होने दें कि मैं छुट्टी पर हूँ और यह मामला अभी तक डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टिगेशन तक नहीं पहुँचा है।”

“तो इस केस में भी तुम अपनी पुरानी आदत के मुताबिक अकेले ही काम करोगे।” चीफ इंस्पेक्टर पुलिस ने कहा, “यह आदत ख़तरनाक है।”

“मुझे अफसोस है कि कुछ कारणों के चलते मैं यह ज़ाहिर नहीं करना चाहता हूँ और मुझे यही तरीका अपनाना पड़ेगा। अच्छा आप इजाज़त चाहता हूँ।”

इंस्पेक्टर फ़रीदी के घर पर सार्जेंट हमीद उसका इंतज़ार कर रहा था। उसकी आँखों से मालूम हो रहा था, जैसे वो रात भर ना सोया हो। फरीदी के घर पहुँचते ही वह बेताबी से उसकी तरफ बढ़ा।

“कहो…खैरियत तो है?” फ़रीदी ने कहा, “तुम कुछ परेशान से मालूम होते हो।”

“कुछ क्या…मैं बहुत परेशान हूँ।” हमीद ने कहा।

“आखिर बात क्या है?”

“कल रात तकरीबन एक बजे मैं आपके घर से रवाना हुआ। थोड़ी दूर चलने के बाद मैंने महसूस किया कि कोई मेरा पीछा कर रहा है। पहले तो ख़याल हुआ कि कोई राहगीर होगा। लेकिन जब मैंने अपना शक दूर करने के लिए यूं ही बेमतलब गलियों में घुसना शुरू किया, तो मेरा शक यकीन की हद तक पहुँच गया, क्योंकि वह अब भी मेरा पीछा कर रहा था। खैर मैंने घर पहुँचकर ताला खोला और किवाड़ बंद करके उसकी झिरी से झांकता रहा। मेरा पीछा करने वाला मेरे मकान के सामने खड़ा दरवाजे की तरफ देख रहा था। फिर वह आगे बढ़ गया। मैं बाहर निकला और अब मैं उसका पीछा कर रहा था। इस किस्म का पीछा कम से कम मेरे लिए नया तजुर्बा था, क्योंकि पीछा करते-करते पांच बज गए। मालूम होता था जैसे वह यों ही आवारागर्दी कर रहा है।”

“मुझे अफसोस है कि मैं उसका चेहरा न देख सका क्योंकि उसने अपने चेस्टर का कॉलर चढ़ा रखा था और उसकी नाइटकैप उसके चेहरे पर झुकी हुई थी। तकरीबन पांच बजे वह बॉटम रोड और बेली रोड के चौराहे पर रुक गया। वहाँ एक कार खड़ी थी। वह उसमें बैठा और कार तेजी से उत्तर की तरफ रवाना हो गई। वहाँ उस वक़्त मुझे कोई सवारी न मिल सकी। इसलिए तीन मील पैदल चलकर आ रहा हूँ। रात से अब तक मैंने शायद पंद्रह मील का चक्कर लगाया होगा।”

“तुम्हारी नई कहानी तो बहुत दिलचस्प रही।” फ़रीदी कुछ सोचते हुए बोलाम फिर बात थोड़ी देर तक तो चुप रहा। उसकी आँखें इस तरह धुंधला गई, जैसे उसे नींद आ रही हो। फिर अचानक उसमें एक तरह की वहशियाना चमक पैदा हो गई और उसने ज़ोरदार कहकहा लगाया।

“क्या कहा तुमने?” फ़रीदी बोला, “वह बॉटम रोड के चौराहे से उत्तर की तरफ चला गया।”

“जी हाँ!”

“और तुम्हें शायद मालूम ना होगा कि उसी चौराहे से अगर तुम दक्षिण की तरफ चलो, तो पंद्रह मील चलने के बाद तुम राज रुपनगर पहुँच जाओगे। अब मुझे यकीन हो गया है कि कातिल का सुराग राज रूपनगर ही में मिल सकेगा। देखो अगर वह सच में तुम्हारा पीछा कर रहा होता, तो तुम्हें इसका एहसास तक न होने देता। उसने जानबूझकर ऐसा किया था कि तुम उसके पीछे लग जाओ और वह उसी चौराहे से दक्षिण की तरफ जाने की वजह उत्तर की तरफ जाकर मेरे दिल से उस खयाल को निकाल दे कि असली मुजरिम राज रूप नगर का रहने वाला है। ओह मेरे ख़ुदा, तो इसका मतलब है कि वह नेपाली के कत्ल के पहले से हम लोगों के करीब रहा और उसने मैनेजर के दफ्तर में भी हमारी बातचीत सुनी; वही राजरूप नगर की बात आई थी। अखबार में तो इसका कोई हवाला नहीं था। मुजरिम मामूली दिमाग का आदमी नहीं मालूम होता। क्या तुम उसका हुलिया बता सकते हो?”

“यह तो मैं पहले ही बता चुका था कि मैं उसका चेहरा नहीं देख सका।” हमीद ने कुछ सोचकर कहा, “लेकिन ठहरिये! उसमें ख़ास बात थी, जिसके बिना परवाह पहचाना जा सकता है। उसकी पीठ पर बड़ा सा कूबड़ था।”

“अमां छोड़ो भी! ऊपरकोट के नीचे बहुत सा कपड़ा ठूंस कर भी बनाया जा सकता है। अगर वह सच कुबड़ा होता, तो तुम्हें पीछे आने की दावत थी ना देता।”

“वल्लाह, आपने तो जेम्स बॉन्ड के भी कान काट दिए।” हमीद हँसकर बोला।

“तुमने फिर वही जासूसी नॉवेलों के जासूसों के हवाले देने शुरू कर दिए।” फ़रीदी ने बुरा सा मुँह बना कर कहा।

“सच! मैं मज़ाक नहीं उड़ा रहा हूँ।”

“खैर हटाओ…मैं इस वक्त राज रूप नगर जा रहा हूँ।”

“यह आपने बहुत अच्छा किया कि आप अकेले राजरूप नगर जा रहे हैं। मैं रात भर नहीं सोया।”

“अगर तुम सोते भी होते, तो भी मैं तुम्हें अपने साथ में ले जाता क्योंकि तुम छुट्टी पर हो और मैंने अपनी छुट्टियाँ कैंसिल करा दी है और यह केस सरकारी तौर पर मुझे दिया गया है।”

“कब से?” हमीद ने हैरान होकर पूछा।

“अभी-अभी!” फ़रीदी ने जवाब दिया और सारी बात बता दी।

“तो फिर वाकईआप अकेले जायेंगे।” हमीद ने कहा, “अच्छा यह तो बताइए कि आपने अपने काम करने का तरीका सोच लिया है।”

“बिल्कुल!” फ़रीदी ने जवाब दिया, “कल रात मैंने तुम्हारे जाने के बाद ही राजरूप नगर के सिलसिले में बहुत ही जानकारी हासिल की है। जैसे कि राजरूप नगर नवाब वज़ाहत मिर्ज़ा की जागीर है और नवाब साहब बहुत ज्यादा दिमागी तौर पर बीमार हैं। मुझे यह भी मालूम हुआ है कि वह तकरीबन पंद्रह रोज से दिन रात सो रहे हैं या दूसरे शब्दों में या कहना चाहिए कि बेहोश हैं। उनके फैमिली डॉक्टर की राय है कि सिर का ऑपरेशन कराया जाए। लेकिन उनका इलाज किस समय कर्नल तिवारी कर रहे हैं, जो पुलिस अस्पताल के इंचार्ज है और वे ऑपरेशन के खिलाफ हैं। इस सिलसिले में जो दूसरी बात मालूम हुई है वह यह है कि नवाब साहब की कोई औलाद नहीं है; उनके साथ उनका सोतेला भतीजा और उनकी बेवा बहन अपनी जवान लड़की के साथ रहती है। मुझे जहाँ तक पता चला है कि नवाब साहब ने अपनी जागीर के सिलसिले में अभी तक किसी प्रकार का कोई वसीयतनामा नहीं लिखा है। क्या यह मुमकिन नहीं कि उनकी बेवा बहन या सौतेले भतीजे में से कोई भी जायदाद के लालच में यह ख्वाहिश नहीं रख सकता कि नवाब साहब होश में आने से पहले ही मर जायें? हो सकता है कि उसी मकसद के तहत दिमागी बीमारियों के मशहूर डॉक्टर शौकत को कत्ल करा देने की कोशिश की गई हो। महज उस डर से कि कहीं नवाब साहब उसे इलाज न करवाने लगे क्योंकि उनका फैमिली डॉक्टर ऑपरेशन पर ज़ोर दे रहा था।” फ़रीदी इतना कहकर ख़ामोश हो गया।

“आपकी दलील में दम है।” हमीद बोला, “लेकिन आपका वहाँ अकेला जाना ठीक नहीं है!”

“तुम मुझे अच्छी तरह जानते हो कि मैं अपने तरीके से काम करने का आदी हूँ। वह भी बिल्कुल अकेला।” फ़रीदी ने हँसकर कहा, “और तुमने अभी हाल ही में एक इश्क किया है। मैं तुम्हारे इश्क में गड़बड़ नहीं पैदा करना चाहताम वापसी में तुम्हारी महबूबा के लिए अंगूठी ज़रूर लेता आऊंगा। अच्छा अब तुम नाश्ता कर के यहाँ सो रहो और मैं चला।”

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