Chapter 37 Zindagi Gulzar Hai Novel In Hindi

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09 नवंबर – ज़ारून
सो आखिर में मैंने कशफ़ मुर्तज़ा को पा ही लिया और आज मेरी शादी को तीन दिन गुज़र चुके हैं. वो अपने घर जा चुकी है और मैं डायरी लिख रहा हूँ. बहुत सी बातें हैं, जो मुझे लिखना है, क्योंकि तीन दिन पहले मैं अपनी ज़िन्दगी के सबसे ख़ूबसूरत दौर में दाखिल हुआ था.
जब कॉलेज में मैंने उसे पहली बार देखा, तो मेरे वाहिम-वा-गुमां (कल्पना) में भी ये बात नहीं आई थी कि मामूली शक्ल-वा-सूरत की उस लड़की के लिए कभी मैं इतनी दीवानगी में मुब्तला (मुग्ध) हो जाऊंगा कि उससे शादी कर लूंगा.
शादी की रस्मात के दौरान में उसे ठीक तरह नहीं देख सका, लेकिन घर आने के बाद जब मैंने उसे देखा, तो वो क़यामत लग रही थी. मैं बहुत देर तक उसे चेहरे से नज़र नहीं हटा पाया. शायद पहली बार मैंने उसे इतना सजा-संवरा देखा था, इसलिए ऐसा हुआ था. फिर रात को जब मैं अपने कमरे में गया, तो वो दुल्हनों वाली रिवायती (दस्तूरी) अंदाज़ में बेड पर बैठी हुई थी. मैं सीधा ड्रेसिंग रूम में गया और जब कपड़े बदल कर आया, तो वो तब भी उसी तरह बैठी थी. एक लम्हे के लिए मुझे उस पर तरस आया था. क्या महसूस कर रही होगी उस वक़्त? वो तो मुझे अपने सामने बात नहीं करने देती थी और अब वो ख़ामोशी से सिर झुकाए बैठी थी. मैं ड्रेसिंग रूम से आकर भी उसके पास नहीं गया था, बल्कि कमरे में एयर फ्रेशनर का स्प्रे करने लगा. फिर मैंने ड्रेसिंग टेबल से परफ्यूम उठा कर अपनी नाईट शर्ट पर उसका स्प्रे किया. फिर मैं फ्रिज से चॉकलेट और कोल्ड ड्रिंक केन निकालकर पीने लगा. सोफ़े पर बैठे हुए मैं इत्मिनान से उसे देखता रहा. उसका चेहरा घूंघट में छुपा हुआ था, इसलिए मैं उसके चेहरे के तासुरात (expression) नहीं देख पाया, लेकिन मुझे यकीन है, उस वक़्त वो मुझे दिल में गालियाँ दे रही होगी और अब मुझे ये ख़याल आ रहा है कि उस रात साढ़े बारह बजे ये कोल्ड ड्रिंक मेरे लिए काफी नुकसानदेह साबित हो सकता है. आफ्टर ऑल ये है भी नवम्बर का महिना, लेकिन बस मैं उसे काफ़ी इंतजार करवाना चाहता था.
चॉकलेट ख़त्म करने के बाद मैंने वाशरूम जाकर ब्रश किया. वापस आने के बाद मैं उसके क़रीब बेड पर बैठ गया और अहिस्ता से उसका घूंघट उल्ट दिया. ज़िन्दगी में पहली बार वो मेरे इस क़दर क़रीब बैठी थी. अपने हाथों पर नज़रें जमाये वो बहुत अच्छी लग रही थी. कुछ देर तक मैं ख़ामोशी से उसे देखता रहा, फिर मैंने कहा –
“अगर मैं कोई अना-परस्त (अहंकारी) आदमी होता, तो आज तुम्हारे साथ मेरा सुलूक किसी और तरह का होता, लेकिन तुम्हारी ख़ुशकिस्मती है कि मैं ऐसा नहीं हूँ.”
उसने मेरी बात पर नज़रें नहीं उठायी. मैंने साइड टेबल की दराज़ से डायमंड रिंग निकाल ली.
‘अपना हाथ दो” मैंने अंगूठी निकालकर कहा.
उसने अपना हाथ बढ़ा दिया. मैंने देखा कि उसके हाथ में लर्ज़िश थी. मुझे बे-इख़्तियार उस पर प्यार आया. क्या वो मुझसे खौफ़ज़दा थी, हालांकि वो तो हमेशा मुझे डराया करती थी. मैंने उसके हाथ में अंगूठी पहनाई. अंगूठी पहनने के बाद उसने अपना हाथ खींचना चाहा, मगर मैंने उसका हाथ पकड़े रखा.
“कैसा लग रहा है यहाँ आकर?” मैंने उसे बोलने पर उकसाया, लेकिन वो चुप रही.
“कुछ बोलोगी नहीं? क्या हाथ नहीं छुड़ाओगी? मेरी तरफ़ देखोगी भी नहीं? आर यू ऑल राईट?” मैंने उसे छेड़ा.
“अगर दूसरा हाथ पकड़ लूं, तब भी कुछ नहीं कहोगी?”
मेरी बात पर उसने बे-इख़्तियार अपना दूसरा हाथ पीछे कर लिया. मैं खिलखिला कर हँस पड़ा. वो बेहद कंफ्यूज़ लग रही थी और मुझे उसकी कंफ्यूज़न मज़ा दे रही थी.
“तुम थक गयी होगी. कपड़े चेंज कर लो.”
मैं नरमी से कहते हुए उठ खड़ा हुआ. वो भी अपना लिबास समेटते हुए उठ खड़ी हुई. जब वो ड्रेसिंग रूम से बाहर आयी, तो नाईटी में मलबूस थी. जब वो बेड पर बैठी तो मैंने उससे कहा –
“कशफ़! पहले तुम मुझसे मोहब्बत नहीं करती थी. क्या अब करोगी?” वो कुछ देर की ख़ामोशी के बाद बोली –
“हाँ”
उसका सिर्फ़ एक लफ्ज़ मेरे अंदर जलती हुई ज़िल्लत की उस आग को बुझा गया, जो वो अपनी बातों से लगाती रही थी. मैंने पहले कभी ख़ुद को इस क़दर मुतमइन (संतुष्ट) और पुरसुकून (शांतिमय) महसूस नहीं किया. मैं वालिहाना (पागलों की तरह) अंदाज़ में उससे मोहब्बत का इज़हार करता रहा, लेकिन वो पहले की तरह थी, संजीदा और शर्मायी शर्मायी.
सुबह जब मैं सोकर उठा, तो वो पहले ही उठ चुकी थी और खिड़की के सामने खड़ी थी. मैं गाउन की डोरी बंद करता हुआ उसके पास चला गया.
“गुड मॉर्निंग!” मैंने हौले से उसके बालों को छुआ.
“मॉर्निंग”
“तुम रोज़ इतनी ही जल्दी उठती हो?”
“हाँ” वो मेरी तरफ़ मुतवज्जह (रुख/मुँह करना) नहीं थी.
“कशफ़! क्या ये बेहतर नहीं है कि तुक एक नज़र मुझे भी देख लो. बाहर का नज़ारा एक औरत की दुल्हन के लिए उसके नये-नवेले शौहर से ज्यादा पुर-कशिश नहीं हो सकता.”
मैंने उसे कंधों से पकड़कर अपनी तरफ़ घुमा लिया.
“म्यूजिक सुनती हो?” मैंने उससे पूछा था.
“हाँ थोडा बहुत.” वो मुझसे बात करते हुए नज़र चुरा रही थी और मैं इस इंकिलाब (तब्दीली) पर हैरान था.
“ठीक है, तुम ये रिकॉर्ड सुनो, मैं थोड़ी देर में आता हूँ.”
मैं उसे ये कह कर बाथरूम में चला गया. आधा घंटा के बाद जब मैं नहा कर तैयार होकर आया, तो वो सोफ़े पर बैठी हुई थी. नाश्ता हमने कमरे में ही किया. वो मेरी बातों पर मुस्कुराती रही, मगर ज्यादा नहीं बोली. मगर मेरे लिए इतना ही काफ़ी था कि वो मेरे पास मौजूद थी.
फिर वो भाभी और सारा के साथ ग्यारह बजे ब्यूटी पार्लर चली गयी थी. दोबारा मैंने उसे रात को देखा था और मुझे वो बहुत पुर-सुकून और ख़ुश नज़र आयी. ओसामा और फ़ारूक़ की छेड़-छाड़ पर वो मुस्कुराती रही और मुझे बेचैन करती रही.
आज सुबह वो अपने घर चली गई है और अब जब मैं डायरी लिख रहा हूँ, तो बेहद तन्हाई महसूस कर रहा हूँ. उसके साथ गुजारी हुई दो रातें मुझे इस क़दर बदल सकती हैं. मैंने कभी नहीं सोचा था. मुझे यूं लग रहा है, जैसे मीमेरे बेडरूम की सबसे कीमती चीज़ गायब हो गयी है. इस वक़्त मैं उसे बहुत शिद्दत से मिस कर रहां हूँ और अब थोड़ी देर तक मैं उसे फ़ोन करूँगा. उसे मिल नहीं सकता, मगर बातें तो कर सकता हूँ.
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