चैप्टर 33 मैला आँचल फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास | Chapter 33 Maila Anchal Phanishwar Nath Renu Novel, Maila Anchal Phanishwar Nath Renu Ka Upanyas
Chapter 33 Maila Anchal Phanishwar Nath Renu
अमंगल !
“गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।”
हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो। सब सालों से जमीन छुड़ा लेने के लिए कहा है मैनेजर साहब ने। लो जमीन ! राम नाम का लूट है !…अरे, काँगरेसी राज है तो क्या जमींदारों को घोलकर पी जाएगा ?”
सुमरितदास बेतार की जीभ थकती नहीं। सुबह से ही बक-बक करता जा रहा है ! ततमाटोली में, पासवानटोली में और कोयरीटोले में घूम-घूमकर वह लोगों को सुना रहा है-“मैनेजरसाहब ने परवाना में क्या लिखा है मालूम ? नया तहसीलदार तो एकदम घबड़ा गया था। मैंने कितना समझाया-तहसीलदार, आप एकदम चुपचाप रहिए। जिन लोगों को दरखास देना है, देने दीजिए। जिस दिन मुकदमे की तारीख होगी, उससे एक दिन पहले हम आपको एक नोक्स बता देंगे। वही हुआ। जमींदार वकील तो सुनकर उछलने लगा। चाहे जो भी कहो, तहसीलदार बिस्नाथपरसाद ने कभी कोई नोक्स हमसे छिपाकर नहीं रखा।…मैनेजर साहब ने क्या लिखा है, मालूम है ? सुमरितदास को एक बार सरकिल कचहरी में भेज दो। सुस्लिंग-मुस्लिग क्या करेगा ?”
“सुमरितदास ! बुढ़ापे में यदि इज्जत बचानी है तो जरा होस-हवास दुरुस रखकर बोला करो। समझे ?” कालीचरन की आँखें लाल-लाल हैं। सुबह से ही वह सुमरितदास को खोज रहा है। सोसलिस्ट पाटी के खिलाफ बूढ़ा कल से ही अटर-पटर (अलूल-जलूल) परोपगण्डा कर रहा है।
“समझे ? हाँ।…पीछे यह मत कहना कि सोसलिस्ट पाटी के लौंडों को बड़े-छोटे का विचार नहीं।”
“हम क्या बोले हैं ? पूछो, लोगों से पूछो ! बोलो जी गुलचरन ! सुस्लिंग पाटी…”
“सुस्लिंग मत कहिए, सोसलिस्ट कहिए।…बात तो सही मुँह से निकलती ही नहीं है और मुन्सियाती बघारते हैं।…जमींदार के तहसीलदार से और अपने मैनेजर से भी जाकर कह दो, रैयतों से जमीन छुड़ाना हँसी-ठट्ठा नहीं। पाटी के एजकूटी में परसताब पास हो गया है संघर्ख होगा संघर्ख ! समझे ?”
कालीचरन गर्दन ऐंठता हुआ चला गया। करैत साँप को गुस्से में ऐंठते देखा है न, ठीक उसी तरह ! सुमरितदास को कँपकँपी लग जाती है। आस-पास बैठे हुए लोगों की भी धुकधुकी तेज हो जाती है। अभी तो ऐसा लगता था कि जुलुम हो जाएगा।…अलबत्त देह बनाया है कलिया…कालीचरन ने। देखकर डर लगता है। सुस्लि…सुस्लि…सोसलिस्ट पाटी में जाकर तो और भी तेजी से जल-जल कर रहा है। संघर्ख क्या होगा ?…
डा डिग्गा, डा डिग्गा !
सन्थालटोली में दो दिनों से दिन-रात मादल बजता रहता है। डा डिग्गा, डा डिग्गा ! औरतें गाती हैं। नाचती हैं-झुमुर-झुमुर !…दरखास्त नामंजूर हो गई ! जमींदार जमीन छीन लेगा। कोठी के जंगल में, जामुन और गूलर में बहुत फल लगे हैं इस बार । जंगली सूअर के बच्चे भी किलबिल कर रहे हैं। हल के फाल को तोड़कर तीर बनाओ। लोहा महँगा है। रे ! हाय रे हाय ! डा डिग्गा, डा डिग्गा… !
कालीचरन ने कहा है-संघर्ख करेंगे। संघर्ख क्या ? परसताब क्या ?
रिंग-रिंग-ता-धिन-ता!
डा डिग्गा, डा डिग्गा !
….खेत में पाट के लाल पौधों को देखकर जी ललच रहा है। धान की हरी-हरी सूई खेत में निकल आई है। माटी का मोह नहीं टूटता। बधना पर्व (संथालों का एक प्रसिद्ध पर्व) की रात में तूने जो जूड़े में फूल लगाया था, उसे नहीं भूला हूँ। धरती का मोह भी नहीं टूट रहा। प्यारी, हमारे दादा, परदादा पुरैनियाँ के जेल में मर-खप गए। मकई के बाल की तरह उनके बाल भूरे हो गए होंगे। हमारे बच्चों के दाँत दूधिया मकई के दानों की तरह चमकेंगे। उनसे कहना, धरती माता के प्यार की जंजीर में हम बँध गए। रे ! हाय रे हाय ! रिंग-रिंग-ता-धिन-ता ! डा डिग्गा, डा डिग्गा !…
“यदि जमीन पर कोई आवे तो गर्दन काट लो !”
तहसीलदार हरगौरीसिंह ने रैयतों के साथ जमीन बन्दोबस्ती का ऐलान कर दिया है।…बस, एक सौ रुपए बीघा सलामी देकर कोई भी रैयत जमीन की बन्दोबस्ती के लिए दर्खास्त दे सकता है।…अरे, तुम लोग बेकूफ़ हो। ये जमीन एक साल पहले ही नीलाम होकर खास हो गई हैं। पुराने तहसीलदार ने ही सारी कार्रवाई की थी। नीलाम होकर खास हुई जमीन पर दफा 40 की दर्खास्त करने से नकदी कैसे होगी ?…हाँ, नए बन्दोस्त लेनेवालों को जमा बाँध देंगे। यह तो हमारे हाथ की बात है। इसके लिए कचहरी को दौड़-धूप करने की क्या जरूरत ?…अरे सूखानूदास, मुकदमा में कितना खर्च हुआ तुम लोगों का, जरा इन लोगों को बता दो।…हाँ, कँगरेसी और सोसलिस्ट पाटीवालों की खुराकी भी जोड़ना।…सुना ? हरेक तारीख में चन्दा वसूलकर पैरवीकार नेताजी लोगों को देना पड़ता था-दस रुपए नकद; सिकरेट और पान की बात तो छोड़ ही दीजिए। यही पेशा है भाई, इन लोगों का।…हाँ, जिसकी जमीन नीलाम हो गई है, वह यदि जमीन पर आवे तो उसकी गर्दन उड़ा दो। राज से मदद मिलेगी।
राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट !
गाय-बैल, बाछा-बाछी और भैंस के पाड़ा की बिक्री धड़ाधड़ हो रही है। दूने सूद पर भी रुपया कर्ज लेकर जमीन मिल जाए तो फ़ायदा ही है। पाट का भाव पन्द्रह रुपया है; ऊपर पचास भी जा सकता है। सौ भी हो सकता है। धान सोने के भाव बिक रहा है। जमीन ! जिसके पास जमीन नहीं, वह आदमी नहीं, जानवर है। जानवर घास खाता है, लेकिन आदमी तो घास खाकर नहीं रह सकता ! अरे ! छोड़ो जी कँगरेसी और सुशलिट पाटी की बात को।…दरखास नामंजूर हो गई। जमीन बन्दोबस्ती…
गाँव के मंगल की अब कोई उम्मीद नहीं।
हर टोले के लोग आपस में ही लड़ेंगे क्या ? कोयरीटोले के भजू महतो की जमीन उसी का भगिना सरूप महतो बन्दोबस्ती ले रहा है। सोबरन की जमीन पर उसका चचा रामेसर नजर लगाए बैठा है। सोबरन की जमीन सोना उगलती है। यादवटोली के सभी रैयतों की नीलाम हुई जमीन खेलावनसिंह यादव ले रहे हैं। संथालों की जमीन राजपूत टोल के लोग ले रहे हैं। “सुमरितदास कहते हैं, यह बात गुपुत है। किसी से कहना मत कि संथालों की जमीन खुद तहसीलदार साहब ले रहे हैं। लेकिन, अपने नाम से तो नहीं ले सकते। इसलिए दूसरों के नाम से लिया है।
गाँव के मंगल की अब कोई उम्मीद नहीं। तहसीलदार विश्वनाथ प्रसाद जी बालदेव और बावनदास को पंचायत बुलाने को कहते हैं। -“पंचायत तुम्हीं लोग बुलाओ | मेरे बुलाने से ठीक नहीं होगा ।”
कालीचरन की पाटी के सबसे बड़े लीडर पुरैनियाँ आ रहे हैं। कामरेडों ने पाँच ही दिनों में तीन सौ रुपए वसूल किए हैं। अकेले सोमा ने दो सौ पचास रुपए दिए हैं। सबसे बड़े लीडर से कहना होगा। गाँव में इस तरह फूट रहने से तो संघर्ख नहीं होगा। फिर एक बार सैनिक जी और चिनगारी जी को लाना होगा। बहुत दिनों से सभा नहीं हुई है। खेत में कोड़-कमान नहीं करने से जिस तरह जंगल-झाड़ हो जाता है, उसी तरह इलाके में सभा मीटिंग नहीं करने से इलाका भी खराब हो जाता है। सिक्रेटरी साहब को भी इस बार लाना होगा। इस बार लौडपीसर भी लाना होगा।
चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी और मास्टर जी लोगों में झगड़ा हो गया है।
करघा-मास्टर टुनटुन जी को मंगलादेवी का सोशलिस्ट आफिस में रहना बड़ा बुरा लगता है। जब तक बीमार थीं, वहाँ थीं, तो थीं। अब अच्छी हो गईं तो वहाँ रहने की क्या आवश्यकता ! और मंगलादेवी को पटना से ही जानते हैं टुनटुनजी । गाँव तरक्की सेंटर में जब ट्रेनिंग लेती थीं तभी से उड़ती थीं। व्यवस्थापिका जी इनके मिलने वालों से परेशान रहती थीं | रोज नए-नए लोग ! बहुत बार मंगलादेवी को चेतावनी भी दी गई-लेकिन इनके मिलनेवालों, में कालेज के विद्यार्थी, एम. एल. ए., साहित्य-गोष्ठी के मंत्री जी, चरखा-संघ के कार्यकर्ता तथा कई हिंदी दैनिकों के सहायक संपादक भी थे। व्यवस्थापिका जी हार मानकर चुप हो गईं। मंगलादेवी की स्वतंत्रता पर आघात करके यह एक दर्जन से ज्यादा व्यक्तियों का कोप-भाजन नहीं बनना चाहती थी। इसीलिए व्यवस्थापिकाजी ने मंगलादेवी को इस पिछड़े हुए गाँव में भेजा था। लेकिन यहाँ भी ?
मंगलादेवी बात करने में मर्दों के भी कान काटती हैं; पाजामा और कुर्ता पहनती हैं, बाहर निकलते समय खद्दर का दुपट्टा भी डाल लेती हैं। कद नाटा, रंग साँवला और शरीर गठा हुआ है। आँखें बड़ी अच्छी, खास तिरहुत की आँखें ! करघा-मास्टर को वह ताँत-मास्टर कहती हैं और चरखा-मास्ट्र को धुनिया मास्टर | जोलाहा-धुनिया मंगलादेवी से क्या बात करेंगे ? – जब बीमार पड़ीं तो झाँकी मारकर भी देखने के लिए नहीं आते थे और आज नैतिकता पर प्रवचन दे रहे हैं ! मंगलादेवी इन लोगों को खूब पहचानती हैं | व्यवस्थापिका जी को लिखेंगे तो लिखें। क्या करेंगी व्यवस्थापिका जी ? ऐसी धमकियों से मंगलादेवी नही डरतीं। टुनटुन जी जो चाहते हैं, सो वह जानती हैं। पटना से आते समय समस्तीपुर में उसे लेकर उतर गए | बोले, गाड़ी बदलनी होगी। बाद में मालूम हुआ कि वही गाड़ी सीघे कटिहार जाती है। दूसरी गाड़ी फिर सुबह आठ बजे। रात को बारह बजे धर्मशाला में ले गए।
टुन॒टुन जी का परिचय और कहना नहीं होगा !
बालदेव जी को खेलावनसिंह यादव ने साफ जवाब दे दिया है। सकलदीप का गौना होनेवाला है। नई दुलहिन ससुराल में बसने के लिए आ रही है। बाहरी आदमी का परिवार में रहना अच्छा नहीं। चंपापुर के आसिनबाबू की बेटी है। जरा भी इधर-उधर होने से बाप को चिट्ठी लिख देगी। बड़े आदमी की बेटी है!
बालदेव जी ने झोली-झंडा खेलावन के यहाँ से हटा लिया है। बालदेव की मौसी गाँव में घूम-घूमकर शिकायत कर रही है। लेकिन बालदेव जी साधु आदमी हैं; मान-अपमान से परे हैं। वे चुप हैं।
लछमी उन्हें कंठी लेने के लिए जिद कर रही है। पुपड़ी मठ के महंत रामसरूप गुंसाई आए हुए हैं। बालदेव जी कण्ठी ले लें तो मठ पर रहने में कोई असुविधा नहीं हो।
बावनदास का मन बड़ा अविश्वासी हो गया है। किसी पर विश्वास करने को जी नहीं करता है। गाँधी जी को छोड़कर अब किसी पर विश्वास नहीं होता । वह गाँधी जी को एक खत लिखवाना चाहता है। गंगुली जी जरूर लिख देंगे। बराबर लिख देते हैं ! उसके मन में बहुत-सी शंकाएँ उठ रही हैं।
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