चैप्टर 32 मैला आँचल फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास, Chapter 32 Maila Anchal Phanishwar Nath Renu Novel, Maila Anchal Phanishwar Nath Renu Ka Upanyas
Chapter 32 Maila Anchal Phanishwar Nath Renu
बैशाख और जेठ महीने में शाम को ‘तड़बन्ना’ में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है।
चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !… खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी के स्वाद अलग-अलग होते हैं। बसन्ती पीकर बिरले पियक्कड़ ही होश दुरुस्त रख सकते हैं। जिसको गर्मी की शिकायत है, वह पहर-रतिया पीकर देखे। कलेजा ठंडा हो जाएगा, पेशाब में जरा भी जलन नहीं रहेगी। कफ प्रकृतिवालों को संझा पीनी चाहिए; रात-भर देह गर्म रहता है।
साल-भर के झगड़ों के फैसले तड़बन्ना की बैठक में ही होते हैं और मिट्टी के चुक्कड़ों की तरह दिल भी यहीं टूटते हैं। शादी-ब्याह के लिए दूल्हे-दुलहिन की जोड़ियाँ भी यहीं बैठकर मिलाई जाती हैं और किसी की बीवी को भग ले जाने का प्रोग्राम भी यहीं बनता है।
जगदेवा पासमान, दुलारे, सनिच्चर और सुनरा ताड़ी पी रहे हैं। सोमा जट आज आनेवाला है। रौतहट के हाट में उसने कहा था, एतबार को तड़बन्ना में आएँगे। सोमा जट हाल ही में जेल से रिहा हुआ है। नामी डकैत है, लेकिन अब सोशलिस्ट पार्टी का । मेंबर बनना चाहता है। सुनरा ने कालीचरन से पूछा और कालीचरन ने जिला सिक्रेटरी साहब से पूछा। सिक्रेटरी साहब ने कहा, “साल-भर तक उनके चाल-चलन को देखकर तब पार्टी का मेंबर बनाया जाएगा। उस पर नजर रखना होगा।”
नजर क्या रखना होगा, बीच-बीच में सिकरेटरी साहब को जाकर कहना होगासोमा का चाल-चलन एकदम सुधर गया है। कालीचरन को वासुदेव समझा होगा।… सोमा यदि पाटी में आ जाए तो सारे इलाके के बड़े लोग ठीक हो जाएँ। पाटी में आ जाने से थाना-पुलिस क्या करेगा ! सिकरेटरी साहब क्या दारोगा साहब से कम हैं ? देखते हो नहीं, जब भाखन देने लगते हैं तो जमाहिरलाल को भी पानी-पानी कर देते हैं। मजाल है दारोगा-निसपिट्टर की कि पाटी के खिलाफ मुँह खोले ? खेल है ! ‘लाल पताका’ अखबार में तुरत ‘गजट छापी’ हो जाएगा…’दारोगा का जुलम !’
…चलित्तर करमकार को तो पाटी से निकाल दिया है। सीमेंट में बहुत पैसा गोलमाल कर दिया। हिसाब-पत्तर कुछ भी नहीं दिया तो उसको निकालेगा नहीं ? पाटी का बन्दूक-पेस्तौल भी नहीं दिया।…लेकिन सिकरेटरी साहब कालीचरन जी से प्रायविट में बोले हैं, किसी तरह उससे बन्दूक-पेस्तौल ऊपर करो। सरकार को जमा देना है। इसीलिए कालीचरन जी उससे हेल-मेल कर रहे हैं।…वह बात एकदम गुपुत है। खबरदार, कहीं बोलना नहीं सनिचरा ! हाँ, नहीं तो जानते हो ? किरांती पाटी की बात खोलने की क्या सजा मिलती है ?…ढाएँ ! लोग पूछे तो कहना चाहिए कि…
“क्या पाटी को अब बन्दक-पेस्तौल का काम नहीं है?”
“नहीं।” सुन्दर मुस्कराता है। अर्थात् इतनी जल्दी तुम लोग सभी बातों को जान लेना चाहते हो ? अभी कुछ दिन और मेंबरी करो। जब तुम्हारा कानफारम’ हो जाएगा तब सारी बातें जानोगे। नए मेंबरों का कान कच्चा होता है। यहाँ सुना और वहाँ उगल दिया। कानफारम (कन्फर्म) होने दो…।
“कामरेड सोमा ? आओ ! तुम्हारी ही बात हो रही थी ? आसरा में बैठे-बैठे दो लबनी ताड़ी खतम हो गई।” सुन्दर हँसता है।
सुन्दर आजकल हमेशा खद्दर का पंजाबी कुर्ता पहने रहता है। पंजाबी कुर्ते के गले में दो इंच की ऊँची पट्टी लगी हुई है। इसको ‘सोशलिट-काट’ कुर्ता कहते हैं; सोशलिट को छोड़कर और कोई नहीं पहन सकता। गाँव के मेंबरों में सिर्फ तीन मेंबर ही ऐसा कुर्ता पहनते हैं-काली, बासुदेव और सुन्दर। बाकी मेंबरों ने जीवन में कभी गंजी भी नहीं पहनी है। लेकिन बिना सोशलिट-काट कुर्ता पहने कोई कैसे जानेगा कि सोशलिट है, किरांती है ! एक कुर्ते में सात रुपए खर्च होते हैं । …बासुदेव आजकल बीड़ी नहीं पीता, मोटरमार-सिकरेट पीता है ।सिक्रेटरी साहब सैनिक जी, चिनगारी जी, मास्टर साहब, सभी बड़े-बड़े लीडर सिकरेट पीते हैं। सोशलिट पाटी के मेंबर को बीडी नहीं, सिकरेट पीना चाहिए।
आज की बैठकी का पूरा खर्चा सोमा ही देगा। इसलिए हाथ खींचकर चुक्कड़ भरने की जरूरत नहीं | ढाले चलो | एक लबनी, दो लबनी, तीन लबनी ! चरखा सेंटर वाले कह रहे हैं, अगले साल से ताड़ी का गुड़ बनेगा। कोई ताड़ी नहीं पी सकेगा। इस साल पी लो, जितना जी चाहे ।
सोमा का शरीर कालीचरन से भी ज्यादा बुलद है। पुलिस-दारोगा की मार से हड्डिाँ टूटकर गिरहा (गाँठदार हो जाना) गई हैं | गिरहवाली हड्डी बहुत मजबूत होती है । कालीचरन की देह में हाथीदाँत का कड़ापन है और सोमा के चेहरे पर लोहे की कठोरता। कालीचरन की आँखो मे पानी है और सोमा की आँखे बिल्ली की तरह चमकती हैं ।
“कौन हरगौरी ? शिवशंक्करसिंह का बेटा ? तहसीलदार हुआ है ? कालीचरन जी हुकुम दे तो एक ही रात में उसकी हड्डी-पसली एक कर दें।” सोमा मूँछ में लगी हुई ताड़ी की झाग को पोंछते हुए कहता है।
“कामरेड ! अब मूँछ कटाना होगा। पार्टी का मेंबर होने से मूँछ नही रखना होगा ।” सुंदर कहता है।
“कटा लेंगे, लेकिन कालीचरन जी हुकुम दे तो !”
“अच्छा अच्छा, कामरेड अभी ठहरो। संघर्ख होने वाला है। परसताब पास हो गया है। तब देखेंगे तुम्हारी बहादुरी !”
“बलदेवा को गाँव से भगा नही सकते हो तुम लोग ? सुनते हैं कि मठ की कोठारिन से खूब हेल मेल हो गया है। कालीचरन जी हुकुम दे तो एक ही दिन में उसको चन्ननपट्टी का रास्ता दिखला दें।”
“अरे, बालदेव जी तो मुर्दा हो गए, मुर्दा! अब उनको कौन पूछता है | उनको एक बच्चा भी अब मुँह नहीं लगाता है। केंगरेस में भी उनकी बदनामी हो गई है। वह तो हम लोगो के बल पर ही कूदते थे। कोठारिन तो सत्तर चूहा खाई हुई है। बालदेव जी को उसके फेर में पडने तो दो। हम लोग यही चाहते हैं। हाँ समझे ? चरखा-सेंटर पर भी अब अपना ही कब्जा समझो । मास्टरनी जी बिना कालीचरन के पूछे पानी भी नहीं पीती हैं। कुछ दिन में वह भी कामरेड हो जाएँगी। एक बौनदास है, सो डेढ बित्ते का आदमी कर ही क्या सकता है ?”
चार लबनी सझा ताड़ी खत्म हो रही है। सूरज डूबने के समय जो लबनी पेड़ से उतारी जाती है, उसकी लाली तुरत ही आँख में उतर आती है। नशा के माने है और भी थोड़ा पीने की ख्वाहिश ? और एक लबनी |
“अरे, बेचारे डाक्टर के पास पैसा कहाँ ? मुफ्त में तो इलाज करता है। एक पैसा भी तो नही छूता है।”
“डाक्टर के पास पैसा नहीं ? क्या कहते हो, लांचनपुर के डाक्टर ने पोख्ता मकान बना लिया है। जीवनगंज के डाक्टर ने तीन सौ बीखे की पतनी खरीदी है। सिझवा गरैया का डाक्टर डकैती करता है, सरदार है डकैती का। कैसा डाक्टर है तुम्हारे गाँव का ?”
“हसलगॉँव के हरखू तेली ने अलबत्त पैसा जमाया है। पैसा मेंहकता है।”
“महमदिया के तालुकचंद को बंदूक का लैसन मिल गया है और लोहा का बक्सा कलकत्ते से ले आया है।”
“अरे, कितने बंदूक और तिजोरीवालों को देखा है ! ‘बल्लम-बर्छा से ही तो सारे इलाके को हम मछली की तरह भूनकर खाते रहे। यदि एक नाल भी बंदूक हाथ लग जाए तो साले भूपतसिंह की कचहरी के नेपाली पहरेदारों को भी देख लें।”
जो कभी नहीं गाता है, वह भी नशा होने पर गाने लगता है और सुंदर तो कीर्तनियाँ हैं, सुराजी कीर्तन भी गाता है और किरांती-गीत भी। नशा होने पर किरांती-गीत खूब जमता है !
अरे जिंदगी है किरांती से, किरांती मे बिताए जा ।
दुनिया के पूँजीवाद को दुनियां से मिटाए जा ।
सनिचरा लबनी को औंधा कर तबला बजाता है, और मुँह से बोल बोलता है :
चके के चकधुम मके के लावा”‘
दुनियों के गरीबों का पैसा जिसने चूस लिया,
अरे हाँ, पैसा जितने चूस लिया,
हाँ जी, पैसा जिसने चूस लिया,
उसकी हड्डी-हड्डी से पैसा फिर चुकाए जा
हँस के गोली दागे जा
हँस के गोली खाए जा !
“वाह-वाह ! क्या बात है ! इन्किलाब है, जिंदाबाद है। जरा खड़ा होकर बतौना बताके (दिखलाकर) कमर लचका के सुंदर भाई !”
सुंदर खड़ा होकर नाचने लगता है-“जिंदगी है किरांती से, किरांती मे ।”
चके के चकधुम मके के लावा”
कालीचरन ने आज शाम को बैठक बुलाई थी। ऊपर से सबसे बड़े लीडर आ रहे हैं पुरैनियाँ। थैली के लिए चंदा वसूलना है। सिक्रेटटी साहब कह रहे थे सबसे बड़े लीडर जी पुरैनियाँ आने के लिए एकदम तैयार नहीं हो रहे थे। बहुत कहने-सुनने पर, सारे जिले से दस हजार रुपए की थैली पर राजी हुए है। कालीचरन को तीन सौ रुपए वसूलकर देना है। “इस बार की रसीद-बही पर सबसे बड़े लीडर की छापी है।
“लेकिन तुम लोग कहाँ गए थे ? ओ ! आसमान-बाग । बड़ी देर हो गई।
ऐसा करने से पार्टी का काम कैसे चलेगा ? बोलो, कौन कितना रुपैया वसूल करेगा ? तीस सौ रुपैया दस दिन में ही वसूल कर देना है।”
“बस तीन सौ ? कोई बात नहीं, हो जाएगा ।”
“दस दिन क्या, पाँच ही दिन में हो जाएगा।”
“तीन सौ रुपए की क्या बात है ?”
“इनकिलाब, जिंदाबाद है ।”
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