चैप्टर 30 वैशाली की नगरवधु आचार्य चतुरसेन शास्त्री का उपन्यास | Chapter 30 Vaishali Ki Nagarvadhu Acharya Chatursen Shastri Novel

चैप्टर 30 वैशाली की नगरवधु आचार्य चतुरसेन शास्त्री का उपन्यास | Chapter 30 Vaishali Ki Nagarvadhu Acharya Chatursen Shastri Novel

Chapter 30 Vaishali Ki Nagarvadhu Acharya Chatursen Shastri Novel

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असुर भोज : वैशाली की नगरवधू

दुर्ग के बीचोंबीच जो मैदान था, उसी में भोज की बड़ी भारी तैयारियां हुई थीं। बीचोंबीच एक बड़े भारी अग्निकुण्ड में महाचिता के समान आग जल रही थी और उस पर एक समूचा भैंसा भूना जा रहा था। बहुत-से असुर-बालक, बालिका, तरुणियां, वृद्धाएं और वृद्ध असुर शोर करते आग के इधर-उधर घूम रहे थे। ज्योंही कुण्डनी ने सोमप्रभ का हाथ पकड़कर रंगभूमि में प्रवेश किया, चारों ओर कोलाहल मच गया। मंच पर बीचोंबीच एक ऊंचे शिलाखण्ड पर व्याघ्रचर्म बिछा था। यह सम्भवतः शम्बर के लिए था। परन्तु कुण्डनी असीम साहस करके सोम का हाथ पकड़ उसी शिलाखंड पर जा बैठी। असुर सुन्दरियां और मन्त्रीगण घबरा गए। शम्बर क्या यह सहन कर सकेगा? असुर अपने राजा का बल और क्रोध जानते थे, पर कुण्डनी उसकी दुर्बलता जान गई थी।

उसने सोम से कहा—”असुरों से कहो सोम, सुरा-भाण्ड यहां ले आएं।”

सोम के कहने पर कई असुर तरुण सुरा-भाण्ड वहीं ले आए। इसी बीच ज़ोर से बाजे बजने लगे। असुरों ने भीत होकर देखा, शम्बर खूब ठाठ का शृंगार किए चला आ रहा है। उसने स्वर्ण का मुकुट धारण किया था। उसका सम्पूर्ण वक्ष नाभि-प्रदेश तक स्वर्ण से ढका था। कमर में नया चर्म लपेटे था और भुजदण्डों पर भी स्वर्ण-वलय पहने था। कण्ठ में बड़े-बड़े मोती और मूंगों की लड़ें पड़ी थीं। मुकुट के दोनों ओर स्वर्णमण्डित दो पशुओं के तीक्ष्ण सींग लगे हुए थे।

सोम ने कहा—”कुण्डनी, असुरराज का सिंहासन छोड़ दे।”

कुण्डनी ने सोम की बात पर ध्यान न दे, उसे एक वाक्य आसुरी भाषा में झटपट सीखकर, ज्योंही शम्बर सीढ़ी चढ़ रंगभूमि में प्रविष्ट हुआ, शिलाखण्ड पर खड़ी हो चिल्लाकर कहा—”महासामर्थ्यवान् शम्बर के स्वास्थ्य और दीर्घायु के नाम पर और उसने प्याले भर-भरकर असुरों को देने प्रारम्भ किए। तरुण और वृद्ध असुर इस अनिन्द्य सुन्दरी मानुषी बाला के हाथ से मद्य पी-पीकर उच्च स्वर में चिल्लाने लगे—”महासामर्थ्यवान् शम्बर के दीर्घ जीवन के नाम पर!”

क्षण-भर खड़े रहकर असुरराज ने यह दृश्य देखा और फिर वह मुस्कराकर अपना स्वर्णदण्ड ऊंचा उठाए आगे बढ़ा। उसने दोनों हाथ फैलाकर कहा—”मुझे भी दे मानुषी, एक भाण्ड मद्य। मुझे भी अपने हाथों से दे।”

कुण्डनी खट्-से शिलाखण्ड से कूद पड़ी। उसके हाथ में मद्य-भरा पात्र था। उसने नृत्य करके, नेत्रों से लीला-विस्तार करते और भांति-भांति की भावभंगी दिखाते हुए शम्बर के चारों ओर घूम-घूमकर नृत्य करना प्रारम्भ किया। उसका वह मद-भरा यौवन, वह उज्ज्वल-मोहक रूप, उसकी वह अद्भुत भावभंगी, इन सबको देख शम्बर काम-विमोहित हो गया। उसने कहा—”दे मानुषी, मुझे भी एक भाण्ड दे।”

पर कुण्डनी ने और भी विलास प्रकट किया। वह मद्य-भाण्ड को शम्बर के ओठों तक ले गई और फिर बिजली की तरह तड़पकर वह भाण्ड बूढ़े असुर सचिव के मुंह से लगा दिया। बूढ़ा असुर चपचप करके सब मद्य पी गया और ही-ही करके हंसने लगा। कुण्डनी का संकेत पाकर सोम ने दूसरा भाण्ड कुण्डनी के हाथ में दिया। शम्बर उसके लिए विह्वल हो जीभ चटकारता हुआ आगे बढ़ा। पर कुण्डनी ने फिर वही कौशल किया और भाण्ड एक तरुण असुर के ओठों से लगा दिया। सब असुर कुण्डनी को घेरकर नाचने लगे। शम्बर अत्यन्त विमोहित हो उसके चारों ओर नाचने और बार-बार मद्य मांगने लगा। कुण्डनी ने इस बार एक पूरा घड़ा मद्य का हाथ में उठा लिया। उसे कभी सिर और कभी कन्धे तथा कभी वक्ष पर लगाकर उसने ऐसा अद्भुत नृत्य-कौशल दिखाया कि असुरमण्डल उन्मत्त हो गया। फिर उसने सोम के कान में कहा—”इन मूर्खों से चिल्लाकर कहो—खूब मद्य पियो मित्रो, स्वयं ढालकर सामर्थ्यवान् शम्बर के नाम पर!”

सोम के यह कहते ही—सामर्थ्यवान् शम्बर के नाम पर यही शब्द उच्चारण करके सारे असुरदल ने सुरा-भाण्डों में मुंह लगा दिया। कोई चषक में ढालकर और कोई भाण्ड ही में मुंह लगाकर गटागट मद्य पीने लगे। कुण्डनी ने हंसते-हंसते सुरा-भाण्ड शम्बर के मुंह से लगा दिया। उसे दोनों हाथों से पकड़कर शम्बर गटा-गट पूरा घड़ा मद्य कण्ठ से उतार गया।

कुण्डनी ने संतोष की दृष्टि से सोम की ओर देखकर कहा—”अब ठीक हुआ। पिलाओ इन मूर्खों को। आज ये सब मरेंगे सोम।”

“तुम अद्भुत हो कुण्डनी!”—सोम ने कहा और वह असुरों को मद्य पीने को उत्साहित करने लगा।

मद्य असुरों के मस्तिष्क में जाकर अपना प्रभाव दिखाने लगा। वे खूब हंसने और आपस में हंसी-दिल्लगी करने लगे। स्त्रियों और बालकों ने खूब मद्य पिया। बहुत-से तो वहीं लोट गए, पर सोमप्रभ उन्हें और भी मद्य पीने को उत्साहित कर रहे थे। बुद्धिहीन मूर्ख अन्धाधुन्ध पी रहे थे। शम्बर का हाल बहुत बुरा था। वह सीधा खड़ा नहीं रह सकता था, पर कुण्डनी उसे नचा रही थी। वह हंसता था, नाचता था और असुरी भाषा में न जाने क्या-क्या अण्ड-बण्ड बक रहा था। सिर्फ बीच में मानुषी-मानुषी शब्द ही वह समझ पाती थी। अवसर पाकर उसने सोम से कहा—”क्या कह रहा है यह असुर?”

“प्रणय निवेदन कर रहा है कुण्डनी, तुझे अपनी असुर राजमहिषी बनाना चाहता है।”

कुण्डनी ने हंसकर कहा—”कुछ-कुछ समझ रही हूं सोम। यह असुरराज मेरे सुपुर्द रहा। उन सब असुरों को तुम आकण्ठ पिला दो। एक भी सावधान रहने न पावे। भाण्डों में एक बूंद मद्य न रहे।”

“उन असुरों से निश्चिन्त रह कुण्डनी, वे तेरे हास्य से ही अधमरे हो गए हैं।”

“मरें वे सब।” कुण्डनी ने हंसकर कहा।

शम्बर ने कुण्डनी की कमर में हाथ डालकर कहा—”मानुषी मेरे और निकट आ।”

कुण्डनी ने कहा—”अभागे असुर, तू मृत्यु को आलिंगन करने जा रहा है।”

शम्बर ने सोम से कहा—”वह क्या कहती है रे मानुष?”

सोम ने कहा—”वह कहती है, आज आनन्दोत्सव में सब योद्धाओं को महाशक्तिशाली शम्बर के नाम छककर मद्य पीने की आज्ञा होनी चाहिए।

“पिएं वे सब! शम्बर ने हंसते-हंसते कहा और कुण्डनी ने और एक घड़ा शम्बर के मुंह से लगा दिया। उसे पीने पर शम्बर के पांव डगमगाने लगे।”

कुछ असुरों ने आकर कहा—”भोज, भोज, अब भोज होगा।”

शम्बर ने यथासंभव संयत होकर हिचकियां लेते हुए कहा—”मेरी इस मानुषी हिकू–सुन्दरी के सम्मान में सब कोई खूब खाओ, पियो, हिक्-अनुमति देता हूं—हिक्—खूब खाओ, पियो। मुझे सहारा दे,—मानुषी हिक्—और मागध मानव, तू भी स्वच्छन्द खा-पी—हिक्।” फिर वह कुण्डनी पर झुक गया।

सोम से असुर का अभिप्राय समझकर कुण्डनी ने असुर को उसी शिलाखण्ड पर बैठाया। उसकी एक बगल में आप बैठी और दूसरी बगल में सोम को बैठने का संकेत किया। समूचा भैंसा, जो आग पर भूना जा रहा था, खण्ड-खण्ड किया गया। सबसे प्रथम उसका सिर एक बड़े थाल में लेकर पचास-साठ तरुणियों ने शम्बर के चारों ओर घूम-घूमकर नृत्य करना और चिल्ला-चिल्लाकर गाना आरम्भ कर दिया। भैंसे के सिर का वह थाल एक-से दूसरी के हाथों हस्तान्तरित होता—जिसके हाथ में वह थाल जाता, वह तरुणी गीत की नई कड़ी गाती, फिर उसे सब दुहारकर चारों ओर घूम-घूमकर नृत्य करतीं। अन्ततः एक सुसज्जित तरुणी असुर सुन्दरी ने घुटनों के बल बैठकर वह थाल शम्बर को अर्पण कर दिया।

शम्बर ने छुरा उठाया, भैंसे की जीभ काट ली और उसे स्वर्ण के एक पात्र में रख खड़े होकर उसे कुण्डनी को पेश करके कुछ कहा। कुण्डनी ने सोम से पूछा—”क्या कह रहा है यह?”

“तेरा सर्वाधिक सम्मान कर रहा है। जीभ का निवेदन सम्मान का चिह्न है।”

“तो उसे मेरी ओर से धन्यवाद दे दो सोम।”

सोम ने आसुरी भाषा में पुकारकर कहा—”महान् शम्बर को मागध सुन्दरी अपना हार्दिक धन्यवाद निवेदन करती है। पियो मित्रो, इस मागध सुन्दरी के नाम पर एक पात्र।”

“मागध सुन्दरी, मागध सुन्दरी,” कहकर शम्बर एक बड़ा मद्यपात्र लेकर नाचने लगा। अन्य असुर भी पात्र भरकर नाचने लगे।

असुरों की हालत अब बहुत खराब हो रही थी। उनके नाक तक शराब ठुंस गई थी और उनमें से किसी के पैर सीधे न पड़ते थे। अब उन्होंने भैंसे का मांस हबर-हबर करके खाना प्रारम्भ किया। कुण्डनी ने कहा, “भाण्डों में अभी सुरा बहुत है सोम, यह सब इन नीच असुरों की उदरदारी में उंड़ेल दो।” सोम ने फिर सुरा ढालकर असुरों को देना प्रारम्भ किया और कुण्डनी शम्बर को पिलाने लगी।

शम्बर ने हकलाकर कहा—”मानुषी, अब-तू-नाच।”

उसका अभिप्राय समझकर कुण्डनी ने संकेत से सोम से कहा कि अब समय है, अपना मतलब साधो।”

सोम ने कहा—”महान् शम्बर ने मागध बिम्बसार की मैत्री स्वीकार कर ली है। क्या इसके लिए सब कोई एक-एक पात्र न पिएंगे?”

“क्यों नहीं। किन्तु सेनिय बिम्बसार क्या ऐसी सौ तरुणी देगा?”

“अवश्य, परन्तु असुर उन्हें भोग-छू नहीं सकेंगे। वे सब विद्युत्प्रभ हैं?”

इसी समय कुण्डनी ने मोहक भावभंगी से नृत्य आरम्भ कर दिया। वह प्रत्येक असुर के निकट जाकर लीला-विलास करने लगी। मदिरा से उन्मत्त असुरों के मस्तिष्क उसका रूप-यौवन, लीला-विलास और भाव-भंगी, देखकर बेकाबू हो गए। सब कोई कुण्डनी को पकड़ने को लपकने लगे। किसी में संयत भाव नहीं रह गया।

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