चैप्टर 3 प्यासा सावन गुलशन नंदा का उपन्यास | Chapter 3 Pyasa Sawan Gulshan Nanda Novel
Chapter 3 Pyasa Sawan Gulshan Nanda Novel
मेंडोलिन उठाए हुए झूमते हुए कमला जी लाल गुलाबों के फूल दान के पास आई। खिला फूल उठाकर उन्होंने गालों से छुआ, सूंघा और फिर छाती से लगा लिया। सहसा उनकी दृष्टि फूलदान में जा पड़ी। झट हाथ डाल कर उन्होंने टाइपिंग निकाला और आश्चर्य से देखने लगी। धीरे-धीरे उनके माथे पर सिलवटें उभर आईं। वह सोचने लगी कि टाइपिन इस कमरे में कैसे आया? क्या उसके अनुपस्थिति में इस कमरे का प्रयोग किया जाता है? किसके लिए? कौन आता है यहां? कमला जी की आंखें क्रोध से भर उठी। टाइपिन हाथ में उठाया उन्होंने घूरकर अर्चना को देखा।
“शायद किसी कस्टमर का है। गैलरी में पड़ा था। मैंने उठाकर फूलदान में डाल दिया।” मालकिन के मुख पर आए भावों को पढ़ते हुए अर्चना झट बोल उठी।
कमला जी मुस्कुराई। फिर कुछ सोचकर उन्होंने सोने का टाइपिन अपने बालों में लगा लिया।
बैरों ने राकेश वाली अलमारी को नीचे स्टोररूम में रखकर स्टोर की बत्ती बुझा दी और बाहर का द्वार बंद कर दिया।
ऊपर गैलरी से आकर अर्चना ने स्टोर रूम का द्वार खोला, फिर उसे सावधानी से भीतर से बंद किया, बत्ती जलाई और धीरे से राकेश वाली अलमारी का ताला खोल दिया। पट खुलते ही वह आश्चर्य से खड़ी रह गई। सामने राकेश मूर्ति मान, बिना हिले डुले, आंखें बंद किए खड़ा था।
अर्चना ने धीरे से राकेश को पुकारा। कोई उत्तर ना मिलने पर घबराकर उसने राकेश के कंधे पर हाथ रख दिया और उसे झंझोड़ने लगी। उसने तनिक उसे हिलाया ही था कि राकेश आगे को झुका और अर्चना की बाहों में झूल गया। सास घुटने से वह बेसुध हो गया था। यदि अर्चना झट अलमारी को थामकर संभल न जाती, तो राकेश समेत धड़ाम से गिर पड़ती। उसने कठिनाई से राकेश के बोझ को संभाला और बाहों का सहारा देकर धीरे से फर्श पर लिटा दिया। झट बाथरूम से वह पानी का जग लाई और राकेश के मुंह पर छींटे देने लगी। थोड़ी देर के बाद राकेश के शरीर में हलचल हुई और वह बड़बड़ाया, ” मैं कहां हूं?”
“मेरे पास! होटल के स्टोर में आप सुरक्षित स्थान पर है। यहां आपके आराम में कोई बाधा ना डालेगा। आप यहां निश्चिंत होकर पूरी रात बिता सकते हैं।”
राकेश बौखला कर खड़ा हो गया और बोला, ” नहीं नहीं ! मैं क्या कोई चादर, तौलिया या नेपकिन हूं, जो मुझे यहां फेंक दिया गया है। मैं एक क्षण भी अब यहां नहीं रुकूंगा।” यह कहकर वह द्वार की ओर बढ़ा।
“सुनिए सुनिए! आप समझ नहीं रहे हैं कि मैं किस मुसीबत में हूं। आप नहीं जानते कि मैं किस कठिनाई से आपको मालकिन के कमरे से निकाल कर लाई हूं।” यह कहकर वह राकेश को रोकने के लिए उसकी ओर मुड़ी।
“मुसीबत में तो आपने मुझे डाले रखा है और वह भी व्यर्थm यदि आप थोड़ा सा बुद्धि का प्रयोग करती तो यह स्थिति ना आती। मेरी यह दुर्दशा भी ना होती।”
“वह कैसे ?” अर्चना ने कुछ झुंझलाकर पूछा।
“आप उसी समय चुपके से मुझे अलमारी से निकाल देती, जब आपके मालकिन कपड़े बदलने बाथरूम में गई थी।”
“ओह! आई एम सॉरी! घबराहट में यह सूझा ही नहीं मुझे।” अर्चना ने अपनी आंखों में से क्षमा मांग ली।
राकेश का क्रोध क्षण भर में लुप्त हो गया। वह अर्चना की बड़ी-बड़ी आंखों में झांकने लगा। उसे बेचारी की बेबसी पर तरस आ रहा था, किंतु वह उसके आग्रह पर भी शेष रात स्टोर में गुजारने को तैयार नहीं हुआ। कुछ देर तक वह उसे यूं ही देखता रहा, फिर अपना सूट और ओवर कोट उठा कर चुपचाप बाहर निकल गया।
अर्चना की समझ में कुछ न आयाम वह बस उसे धुंधले प्रकाश में बाहर जाते हुए देखती रही। शायद उसके व्यवहार से रूठ गया था। पर अब वह क्या करती? परिस्थितियां कुछ ऐसी बन गई थी कि वह घबरा गई थी। इन्हीं सोचो में अर्चना काउंटर पर लौट आई।
अभी रिसेप्शन काउंटर पर आकर वह खड़ी हुई थी कि उसकी दृष्टि सामने सोफे पर बैठे हुए राकेश पर पड़ी। आंखें मिली और अर्चना ने दृष्टि झुका ली। बाहर अभी तक तूफान पूरे जोरों पर था। बादलों की गर्जना से घाटी गूंज रही थी।
सुबह हुई तो सूर्य की किरणें खिड़कियों से छन कर रिसेप्शन रूम में आने लगी। राकेश सोफे पर सोया पड़ा था। शीत से ठिठुरे और थकान से चूर उसके शरीर में गर्मी की लहर दौड़ गई। बाहर पेड़ों पर पक्षी चहचहा रहे थे। राकेश हड़बड़ा कर उठ बैठा। उसने ओवर कोट को एक ओर फेंका और सूट की सलवटें दूर करने का प्रयत्न करने लगा। उसने दृष्टि काउंटर पर डाली। अर्चना वहां न थी। शायद उसकी ड्यूटी समाप्त हो गई थी। उसके स्थान पर काउंटर पर अब एक युवक खड़ा था। कुछ लोग सामान उठवाये होटल से जा रहे थे। राकेश के मन में आशा का संचार हुआ।
“रात वाली मैडम कहां है ?” काउंटर के पीछे खड़े युवक से राकेश ने पूछा।
“मिस अर्चना! इस समय उनकी ड्यूटी नहीं है।” युवक ने उत्तर में कहा।
“जरा देखिए तो, वेटिंग लिस्ट में मेरा नाम होगा। मिस अर्चना ने वचन दिया था कि प्रात: ही मुझे कमरा मिल जाएगा।
युवक ने उसका नाम पूछा और सामने रखी लिस्ट पर दृष्टि डालते हुए कहा, ” आपके लिए कमरा नंबर 303 रिजर्व करा दिया गया है। कमरा दूसरी मंजिल पर है और आपका सामान वहां पहुंचा दिया गया है।
युवक ने रिजर्वेशन के रजिस्टर पर राकेश के हस्ताक्षर कराएं और उसके हाथ में तीन सौ तीन नंबर कमरे की चाबी थमा दी। राकेश ने धन्यवाद दिया और झट सीढ़ियां चढ़ने लगा। कमरा मिल जाने की खुशी में वह उतावला सा हो रहा था। ध्यान मग्न ऊपरी मंजिल पर सीढ़ियां चढ़ते हुए अचानक वह नीचे उतरती महिला से टकरा गया। राकेश ने क्षमा याचना के लिए उस महिला की ओर देखा, किंतु ठिठक गया। उसी का सोने का टाइपिन महिला की साड़ी पर ब्रोच के स्थान पर लगा था। राकेश भूल गया कि उसे क्षमा मांगने थी। उसकी दृष्टि महिला के वक्ष पर शोभायमान अपने टाइपिन पर जमकर रह गई। महिला एक अजनबी युवक को इस प्रकार अपने यौवन को निहारते देखकर तिलमिला उठी और गर्दन झटक कर नीचे उतर गई। राकेश चुपचाप अपने कमरे की ओर बढ़ गया।
303 नंबर कमरे का द्वार खोलकर राकेश ने भीतर प्रवेश किया। कमरा सुरुचि पूर्वक सजाया गया था। वह खिड़की के पास जा खड़ा हुआ और उसमें से नीचे झांककर डल झील के नीले निखरे हुए पानी को देखने लगा। खिड़की से हटकर उसने बाथरूम का निरीक्षण किया और फिर पलंग के पास दीवार से लगी तिपाई पर सफेद गुलाब देखकर चकित रह गया। कमाते में आते हुए उसकी दृष्टि फूलों पर नहीं पड़ी थी। गुलदस्ते के पास ही एक कार्ड रखा हुआ था, जिस पर लिखा था – “होटल स्नो लैंड और उसके कर्मचारी आपका स्वागत करते हैं। आशा करती हूं, इस कमरे का मोहक वातावरण रात की कटुता कम कर देगा।”
नीचे लिखने वाले का नाम न होते हुए भी राकेश ने मुस्कुराकर कार्ड को चूम लिया। उसे यूं लगा जैसे वह इन शब्दों की लेखिका को युगों युगों से जानता हो। उसे इन शब्दों में गुलाब के फूलों की महक आने लगी। इस महक ने उसकी धमनियों को उसके रोएं को गुदगुदा दिया। वह सोचने लगा, क्या उस खिले हुए गुलाब से उसकी भेंट होगी? फूलों के साथ इस कार्ड ने रात के सब शिकवे दूर कर दिए थे।
जब उसने अपनी कार होटल से बाहर निकाली, सुबह जवान हो रही थी। बाहर निकलने से पूर्व उसने दो एक बार रिसेप्शन रूम में दृष्टि दौड़ाई, परंतु भोला भाला मुख कहीं दिखाई नहीं दिया। उसके विषय में पूछ कर वह अपने आपको लोगों की दृष्टि में संदेहास्पद नहीं बनाना चाहता था।
अभी उसकी कार स्नोलैंड होटल की बाहरी सड़क का पहला मोड़ ही मुड़ी थी कि वह सहसा चौंक पड़ा। उसके पैर एकाएक ब्रेक पर जा लगे। उसके दृष्टि धुंधले वातावरण से गुजरकर उस लड़की पर जा टिकी, जो धीरे-धीरे पग उठाती सड़क के किनारे पटरी पर चली जा रही थी। यह अर्चना ही थी।
ब्रेक की चरमराहट से वह लड़की चौंक पड़ी और पलट कर देखने लगी। कार के शीशे के पीछे राकेश का मुस्कुराता चेहरा देखकर वह झेंप सी गई। दो चार क्षण तो वह निष्चेष्ट सी खड़ी रही, जैसे किसी अनहोनी बात को होते देखकर आश्चर्यचकित रह गई हो। फिर लजाई सी वह कार के पास आ गई। इस समय उसके गालों में लाल गुलाब का रंग निखार आया था।
“हेलो!”
“गुड मॉर्निंग!” राकेश ने मुस्कुराते हुए कहा।
“गुड मॉर्निंग!” अर्चना लजाती हुई बोली।
“अरे सुबह सवेरे कहां जा रही हैं आप? जेड
“मार्केट! मुझे कुछ शॉपिंग करनी है आज मेरा वीकली ऑफ है।”
“तो आइए मैं ले चलूं।”
अर्चना कुछ हिचकिचाई।
राकेश ने कहा कि आप अपने उपकार का इतना सा बदला चुकाने का अवसर भी ना देंगी।”
“कैसा उपकार? वह तो मेरा कर्तव्य था।”
“तो इसे मेरा कर्तव्य समझ लीजिएगा। आइए ना!” यह कहकर राकेश ने कार का द्वार खोल दिया। अर्चना इस आग्रह पर इंकार न कर सकी और राकेश के साथ आकर बैठ गई।
“कल की अशिष्टता के लिए मुझे क्षमा कर दीजिएगा।” राकेश ने कार चलाते हुए धीरे से कहा।
“कैसी अशिष्टता? मैं क्या जानती थी कि मेरी सहानुभूति आपके लिए मुसीबत बन जाएगी। परिस्थिति ऐसी हो गई कि समस्या बन गई।” अर्चना के होठों पर मुस्कान बिखर गई।
“और मुझे भी क्या मालूम था कि मेरा यह अनुभव एक सुंदर घटना बन जाएगी।” राकेश हंस पड़ा, “सच पूछिए, बड़ा आनंद आया।”
अर्चना लजा गई। अनायास ही उसकी पलकें झुक गईm राकेशने अनुभव किया कि अर्चना शिष्ट, मधुर भाषिणी और सुंदर विचारों की युवती थी। वह उसकी लजीली मुद्रा से आनंदित होते हुए बोला, “आप इस होटल में कब से हैं?”
“जब से होश संभाला।”
“अर्थात?”
“मेरा इस दुनिया में कोई भी अपना नहीं… सिवाय कमला जी के। उन्होंने मुझे बचपन से पाल पोस कर बड़ा किया है। मेरे प्रति उनके मन में बहुत ही सहानुभूति और स्नेह है और मेरे मन में उनके प्रति अगाध श्रद्धा है।”
“तो आप बिल्कुल अकेली हैं?जेड
“जी! न मां बाप न कोई भाई बहन… बस मैं हूं, जो स्वयं को हर समय किसी काम में व्यस्त रखती हूं इसी वातावरण में। यही मेरा जीवन है।जेड
” यह जीवन तो बड़ा मनोरंजक है। आए दिन नए नए कैरेक्टर्स मिलते होंगे। नए चेहरे, नए स्वभाव नई समस्याएं।”
“जी! किंतु आप जैसे कम और रात जैसी समस्याएं भी नहीं हैं।” यह कहकर अर्चना हंस पड़ी।
राकेश भी हंसने लगा। एक अज्ञात उल्लास मधु की भांति उसके मन में घुलता जा रहा था। कार बड़ी धीमी गति से चल रही थी। उसका मनचाहा काश ये यात्रा बहुत ही लंबी हो और वह अर्चना से इसी प्रकार मधुर बात करता चला जाए… बस चले जाए दोनों… अनंत तक चले जाएं।
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