चैप्टर 3 गुनाहों का देवता : धर्मवीर भारती का उपन्यास | Chapter 3 Gunahon Ka Devta Novel By Dharmveer Bharti Read Online

Chapter 3 Gunahon Ka Devta Novel By Dharmveer Bharti

Chapter 3 Gunahon Ka Devta Novel By Dharmveer Bharti

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सिविल लाइन्स के एक उजाड़ हिस्से एक पुराने से बंगले के सामने आकर मोटर रुकी। बंगले का नाम था – ‘रोजलान’, लेकिन सामने के कम्पाउंड में जंगली घास उग रही थी और गुलाब के फूलों के बजाय अहाते में मुर्गी के पंख बिखरे पड़े थे। रास्ते पर भी घास उग आयी थी और फाटक पर, जिसके एक खम्भे की कार्निस टूट चुकी थी, बजाय लोहे के दरवाजे के दो आड़े बाँस लगे हुए थे। फाटक के एक ओर एक छोटा-सा लकड़ी का नामपटल लगा था, कभी काला रहा होगा, लेकिन जिसे धूल, बरसात और हवा ने चितकबरा बना दिया था। चंदर मोटर से उतरकर उस बोर्ड पर लिखे हुए अधमिटे सफेद अक्षरों को पढ़ने की कोशिश करने लगा, वह जाने किसका मुँह देख कर सुबह उठा था कि उसे सफलता भी मिल गयी । उस पर लिखा था ‘ए०एफ० डिक्रूज’। उसने जेब से लिफाफ़ा निकाला और पता मिलाया। लिफ़ाफे पर लिखा पा ‘मिस पी० डिक्रूज’।यही बंगला है, उसे संतोष हुआ।

“हॉर्न दो।” उसने ड्राइवर से कहा। ड्राइवर ने हॉर्न दिया। लेकिन किसी का बाहर आना तो दूर, एक मुर्गा जो अहाते में कुड़कुड़ा रहा था, उसने मुड़कर बड़े संदेह और त्रास मे चंदर की ओर देखा और उसके बाद पंख फड़फड़ाते हुए, चीखते हुए, जान छोड़कर भागा।

“बड़ा मनहूस बंगला है, यहाँ आदमी रहते हैं या प्रेत ?” कपूर ने ऊबकर कहा और ड्राइवर मे बोला “जाओ तुम, हम अंदर जाकर देखते हैं।”

“अच्छा हुजूर, सुधा बीबी से क्या कह देंगे!”

“कह देना पहुँचा दिया।”

कार मुड़ी और कपूर बाँस फांदकर अंदर घुसा। आगे का पोर्टिको खाली पड़ा था और नीचे की जमीन ऐसी थी, जैसे कई साल से उस बंगले में कोई सवारी गाड़ी न आयी हो। वह बरामदे में गया। दरवाजे बंद थे और उन पर धूल जमी थी। एक जगह चोट और दरवाज़े के बीच में मकड़ी ने जाला बुन रखा था ।

‘ये बंगला खाली है क्या?’ कपूर ने सोचा।

सुबह साढ़े आठ बजे ही वहाँ ऐसा सन्नाटा छाया था कि दिल घबरा जाये। आस-पास चारों ओर कई फर्लांग तक कोई बंगला नहीं था। उसने सोचा बंगले के पीछे की ओर शायद नौकरों की झोपड़ियाँ हो। वह दायें बाजू से मुड़ा और खुशबू का एक तेज़ झोंका उसे चूमता हुआ निकल गया।

“ताज्जुब है, यह सन्नाटा, यह मनहूसी और इतनी खुशबू कपूर ने कहा और आगे बढ़ा, तो देखा कि बंगले के पिछवाड़े गुलाब का एक बहुत खूबसूरत बाग है। कच्ची रविशें और बड़े-बड़े गुलाब, हर रंग के। वह सचमुच ‘रोजलान’ था।

वह बाग में पहुँचा। उधर से भी बंगले के दरवाजे बंद थे। उसने खटखटाया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। वह बाग में घुसा कि शायद कोई माली काम कर रहा हो। बीच-बीच में ऊँचे- ऊँचे जंगली चमेली के झाड़ थे और कहें-कहीं लोहे की छड़ों के कटघरे। बेगमबेलिया भी फूल रही थी। लेकिन चारों ओर एक अजब-सा सन्नाटा था और हर फूल पर किसी खामोशी के फरिश्ते की छाँह थी। फूलों में रंग था, हवा में ताजगी थी, पेड़ों में हरियाली थी, झोंकों में खुशबू थी, लेकिन फिर भी सारा बाग एक ऐसे सितारों का गुलदस्ता लग रहा था, जिनकी चमक, जिनकी रोशनी और जिनकी ऊँचाई लुट चुकी हो। लगता था जैसे बाग का मालिक मौसमी रंगीनी भूल चुका हो, क्योंकि नैस्टर्शियम या स्वीटपी या फ्लाक्स, कोई भी मौसमी फूल न था। सिर्फ गुलाब थे और जंगली चमेली थी और बेगमवेलिया थी, जो सालों पहले बोये गये थे। उसके बाद उन्हीं की कांट-छांट पर बाग चल रहा था। बागवानी में कोई नवीनता और मौसमों का उल्लास न था।

चंदर फूलो का बेहद शौकीन था। सुबह घूमने के लिए भी उसने दरिया किनारे के बजाय अल्फ्रेड पार्क चुना था क्योंकि पानी की लहरों के बजाय उसे फूलों के बाग की रंग और सौरभ की लहरों से बेहद प्यार था। और उसे दूसरा शौक था कि फूलों के पौधों के पास से गुजरते हुए हर फूल को समझने की कोशिश करना। अपनी नाजुक टहनियों पर हँसते-मुस्कुराते हुए ये फूल जैसे अपने रंगों की बोली में आदमी से ज़िन्दगी का जाने कौन-सा राज कहना चाहते हैं। और ऐसा लगता है कि जैसे हर फूल के पास अपना व्यक्तिगत संदेश जिसे वह अपने दिल की पाँखुरियों में आहिस्ते से सहेज कर रखे हुए हैं कि कोई सुनने वाला मिले और वह अपनी दास्तां कह जाये। पौधे की ऊपरी फुलगी पर मुस्कुराता हुआ आसमान की तरफ़ मुँह किये हुए यह गुलाब, जो रात भर सितारों की मुस्कुराट चुप-चाप पीता रहा है, यह अपनी मोतिया पाँखुरियों के होठों के जाने क्यों खिलखिलाता ही जा रहा है। जाने इसे कौन-सा रहस्य मिल गया है और वह एक नीचे वाली टहनी में आधा झुका हुआ गुलाब, झुकी हुई पलकों सी पाँखुरियाँ और दोहरे मखमली तार-सी उसकी डण्डी, यह गुलाब जाने क्यों उदास है? और यह दुबली-पतली लंबी-सी नाजुक कली जो बहुत सावधानी से हरा आँचल लपेटे है और प्रथम ज्ञात यौवना की तरह लाज में जो सिमटी तो सिमटी ही चली जा रही है, लेकिन जिसके यौवन की गुलाबी लपटें सात हरे परदों में से झलकी ही पड़ती है, झलकी ही पड़ती हैं। और फारस के शाहजादे जैसा शान से खिला हुआ यह पीला गुलाब! उस पीले गुलाब के पास आकर चंदर रुक गया और झुक कर देखने लगा। कार्तिक पूर्णिमा की चांद से झरने वाले अमृत को पीने के लिए व्याकुल किसी सुकुमार, भावुक परी को फैली हुई अंजलि के बराबर बड़ा-सा वह फूल जैसे रोशनी बिखेर रहा था। बेगमबेलिया के कुंज से छनकर आने वाली तपती धूप ने जैसे उस पर धान-पान की तरह खुशनुमा हरियाली बिखेर दी थी। चंदर ने सोचा उसे तोड़ ले, लेकिन हिम्मत न पड़ी। वह झुका कि उसे सूंघ ही ले। सूंघने के इरादे से उस ने हाथ बढ़ाया ही था कि किसी ने पीछे से गरज कर कहा, “हीयर यू आर, माई हैव काट रेड हैण्डेड टुडे!” (तुम हो, आज तुम्हें मौक़े पर पकड़ पाया हूँ) और उके बाद किसी ने अपने दोनों हाथों से जकड़ लिया और उस की गरदन पर सवार हो गया। वह उछल पड़ा और अपने को छुड़ाने की कोशिश करने लगा। पहले तो वह कुछ समझ नहीं पाया। अजब रहस्यमय है यह बंगला। एक अव्यक्त भय और एक सिहरन में उस के हाथ-पाँव ढीले हो गये। लेकिन उसने हिम्मत कर अपना एक हाथ छुड़ा लिया और मुड़कर देखा, तो एक बहुत कमजोर, बीमार-सा, पीली आँखों वाला गोरा उसे पकड़े हुए था।

चंदर के दूसरे हाथ को फिर पकड़ने की कोशिश करता हुआ वह हांफता हुआ बोला  अंग्रेजी में बोला – “रोज-रोज यहाँ से फूल गायब होते थे। मैं कहता था, कहता था कौन ले जाता है। हो… हो…” वह हाँफता जा रहा था – “आज मैंने पकड़ा, तुम्हें रोज चुपके से चले जाते थे।”

वह चंदर को कस कर पकड़े था, लेकिन उस बीमार गोरे की सांस जैसे छूटी जा रही थी। चंदर ने उसे झटका दे कर ढकेल दिया और डांट कर बोला – “क्या मतलब है तुम्हारा? पागल है क्या? खबरदार जो हाथ बढ़ाया, अभी ढेर कर दूंगा तुझे! गोरा सूअर!” भय उसने अपनी आस्तीनें चढ़ाई।

वह धक्के से गिर गया था, वह धूल झाड़ते उठ बैठा और बड़ी ही रोनी आवाज में बोला – “कितना जुल्म है, कितना जुल्म है। मेरे फूल भी तुम चुरा ले गये और मुझे इतना हक भी नहीं कि तुम्हें धमकाऊं। अब तुम मुझसे लड़ोगे, तुम जवान हो, मैं बूढा हूँ। हाय रे मैं!” और सचमुच वह जैसे रोने लगा हो।

चंदर ने उसका रोना देखा और उसका सारा गुस्सा हवा हो गया और हँसी रोक कर बोला – “गलतफ़हमी है जनाब! मैं तो बहुत दूर रहता हूँ। मैं चिट्ठी लेकर मिस डिक्रूज से मिलने आया था।”

उस का रोना नहीं रुका’ – “तुम बहाना बनाते हो, बहाना बनाते हो और अगर मैं विश्वास नहीं करता, तो तुम मारने की धमकी देते हो? अगर मैं कमजोर न होता, तो तुम्हें पीकर खा जाता और तुम्हारी खोपड़ी कुचलकर फेंक देता, जैसे तुमने मेरे फूल फेंके होंगे?”

फिर तुमने गाली द! मैं उठाकर तुम्हें अभी नाले में फेंक दूंगा!”

“अरे बाप रे! दौड़ो दौड़ो, मुझे मार डाला, पॉपी टॉमी…अरे दोनों कुत्ते मर गये।” उसने डर के मारे चीखना शुरू किया।

“क्या है बर्टी? क्यों चिल्ला रहे हो?” बाथरूम के अंदर से किसी ने चिल्ला कर कहा।

“अरे मार डाला इसने दौड़ो दौड़ो।”

झटके से बाथरूम का दरवाजा खुला और वेडिंग गाउन पहने हुए एक लड़की दौड़ती हुई आयी और चंदर को देख कर रुक गयी।

“क्या है?” उसने डांट कर पूछा।

“कुछ नहीं, शायद पागल मालूम देता है।”

“जबान संभाल कर बोलो, वह मेरा भाई है!”

“ओह! कोई भी ह। मैं मिस डिक्रूज से मिलने आया था। मैंने आवाज दी, तो कोई नहीं बोला। मैं बाग में घूमने लगा। इतने में इसने मेरी गरदन पकड़ ली। यह बीमार और कमजोर है, वरना अभी गरदन दबा देता।”

गोरा उस लड़की के आते ही फिर तन कर खड़ा हो गया, और दांत पीसकर बोला – “अरे मैं तुम्हारे दांत तोड़ दूंगा। बदमाश कहीं का, चुपके-चुपके आया और गुलाब तोड़ने लगा। में चमेली के झाड़ के पीछे छिपा देख रहा था!”

“अभी मैं पुलिस बुलाती हूँ, तुम देखते रहो बर्टी इसे। मैं फोन करती हूँ।” लड़की ने डांटते हुए कहा।

“अरे भाई मैं मिस डिक्रूज से मिलने आया हूँ।”

“मैं तुम्हें नहीं जानती, झूठा कहीं का। मैं मिस डिक्रूज़ हूँ।”

” देखिए तो यह खत।”

लड़की ने खत खोला और पढ़ा और एकदम उसने आवाज बदल दी – “छि: बर्टी, तुम किसी दिन पागलखाने जाओगे। आप को डॉ० शुक्ला ने भेजा है। तुम तो मुझे बदनाम करा डालोगे!”

उसकी शक्ल और भी रोनी हो गयी — “मैं नहीं जानता था, मैं जानता नहीं था।” उसने और भी घबरा कर कहा।

“माफ कीजियेगा!” लड़की ने बड़े मीठे स्वर में साफ़ हिन्दुस्तानी में कहा – “मेरे भाई का दिमाग जरा ठीक नहीं रहता, जबसे इनकी पत्नी की मौत हो गयी।”

“इसका मतलब ये नहीं कि ये किसी भले आदमी की इज्जत उतार ले।” चंदर ने बिगड़कर कहा |

“देखिए बुरा मत मानिये। मैं इनकी ओर से माफ़ी मांगती हूँ, आइए अंदर चलिए।”

उसने चंदर का हाथ पकड़ लिया। उसका हाथ बेहद ठण्डा था। वह नहाकर आ रही थी।

उसके हाथ के तुषार स्पर्श से चंदर सिहर उठा और उसने हाथ झटक कर कहा, “अफ़सोस, आपका हाथ तो बर्फ़ है?”

लड़की चौंक गयी। वह सहसा सचेत हो गयी और बोली – “अरे शैतान तुम्हें ले जाये, बर्टी। तुम्हारे पीछे मैं वेडिंग गाउन में भाग आई।” और वेडिंग गाउन के दोनों कॉलर पकड़कर उसने अपनी खुली गरदन ढंकने का प्रयास किया और फिर अपनी पोशाक पर लज्जित होकर भागी।

अभी तक गुस्से के मारे चंदर ने उस पर ध्यान ही नहीं दिया था। लेकिन उसने देखा कि वह तेईस बरस की दुबली-पतली तरुणी है। लहराता हुआ बदन, गले तक कटे हुए बाल। एंग्लों-इण्डियन होने के बावजूद गोरी नहीं है। चाय की तरह वह हल्की, पतली, भूरी और तुर्श थी। भागते वक़्त ऐसी लग रही थी, जैसे छलकती हुई चाय।

इतने में वह गोरा उठा और चंदर का कंधा छूकर बोला – “माफ करना भाई! उससे मेरी शिकायत मत करना। असल में ये गुलाब मेरी मृत पत्नी की यादगार हैं। जब इन का पहला पेड़ आया था, तब मैं इतना ही जवान था जितने तुम, और मेरी पत्नी उतनी ही अच्छी थी जितनी पम्मी।”

“कौन पम्मी।“

यही मेरी बहन प्रमिला डिक्रूज!”

“ओह! कब मरी आपकी पत्नी! माफ़ कीजिएगा मुझे भी मालूम नहीं था!”

“मैं बड़ा अभागा हूँ। मेरा दिमाग कुछ खराब है, देखिये!” कहकर उस झुक कर अपनी खोपड़ी चंदर के सामने कर दी और बहुत गिड़गिड़ा कर बोला –  “पता नहीं कौन मेरे फूल चुरा ले जाता है। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद पांच साल से मैं इन फूलो को संभाल रहा हूँ। हाय रे मैं! जाइए पम्मी बुला रही हैं।”

पिछवाड़े के सहन का बीच का दरवाजा खुल गया था और पम्मी कपड़े पहन कर बाहर झांक रही थ। चंदर आगे बढ़ा और गोरा मुड़कर अपने गुलाब और चमेली की झाड़ी में खो गया। चंदर अंदर गया और कमरे में पड़े हुए एक सोफ़ा पर बैठ गया। पम्मी ट्वायलेट कर चुकी थ और एक हलकी फ्रांसीसी खुशबू से महक रही थी। शैम्पू से धुले हुए रूखे बाल जो मचले पड़ रहे थे, खुशनुमा आसमानी रंग का एक पतला चिपका हुआ झीना ब्लाउज़ और ब्लाउज़ पर एक फ्लैनेल का फुलपेंट, जिस के दो गेलिस कमर, छाती और कंधे पर चिपके हुए थे। होंठों पर एक हल्की लिपस्टिक की झलक मात्र थी, और गले तक बहुत हल्का पाउडर जो बहुत नजदीक से ही मालूम होता था। लंबे नाखूनों पर हल्का गुलाबी पेंट। वह आयी, नि:संकोच भाव से उसी सोफे पर कपूर के बगल में बैठ गयी और बड़ी ही मुलायम आवाज़ में बोली – “मुझे बड़ा दुख है मिस्टर कपूर। आपको बहुत तकलीफ उठानी पड़ी। चोट तो नहीं आयी?”

“नहीं, नहीं, कोई बात नही!” कपूर का सारा गुस्सा हवा हो गया। कोई भी लड़की नि:संकोच भाव से, इतनी अपनायत से सहानुभूति दिखाये, और माफ़ी मांगे, तो उके सामने कौन पानी पानी नहीं हो जायेगा, और फिर वह भी तब जब कि उस के होंठों पर न केवल बोली अच्छी लगती हो, वरन् लिपस्टिक भी इतनी प्यारी हो। लेकिन चंदर की एक आदत थी। और चाहे कुछ न हो, कम से कम वह यह अच्छी तरह जानता था कि नारी जाति से व्यवहार करते समय कहाँ पर कितनी ढील देनी चाहिए, कितना कसना चाहिए, कब सहानुभूति से उन्हें झुकाया जा सकता है, जब अकड़कर। इस वक्त जानता था कि इस लड़की से वह जितनी सहानुभूति चाहे ले सकता है, अपने अपमान के हर्जाने के तौर पर। इसलिए कपूर साहव बोले – “लेकिन मिस डिक्रूज, आप के भाई बीमार होने के बावजूद बहुत मजबूत है। उफ़ गरदन पर जैसे अभी तक जलन हो रही है।“

“ओहो! सचमुच में बहुत शर्मिंदा हूँ। देखूं!” और कॉलर हटाकर उसने गरदन पर अपनी बर्फीली उंगलियाँ रख दी, “लाइए लोशन मल ददूं मैं!”

“धन्यवाद, धन्यवाद, इतना कष्ट न कीजिए। आपकी उंगलियाँ गंदी हो जायेंगी।” कपूर ने बड़ी शालीनता से कहा।

पम्मी के होंठों पर एक हल्की सी मुस्कराहट, आँखो में हलकी-सी लाज और वक्ष में एक हल्का-सा कंपन दौड़ गया। यह वाक्य कपूर ने चाहे शरारत में ही कहा हो, लेकिन कहा इतने शांत और संयत स्वरों में कि पम्मी कुछ प्रतिवाद भी न कर सकी। और फिर छह बरस से साठ बरस तक की कौन ऐसी स्त्री है, जो अपने रूप की प्रशंसा पर बेहोश न हो जाये।

“अच्छा लाइए, वह स्पीच कहाँ है, जो मुझे टाइप करनी है!” उसने विषय बदलते हुए कहा।

“यह लीजिए।” कपूर ने दिया ।

“यह तो मुश्किल से तीन-चार घण्टे का काम है।” और पम्मी स्पीच को उलट-पुलट कर देखने लगी।”

“माफ़ कीजिएगा, अगर मैं कुछ व्यक्तिगत सवाल पूछूं, क्या आप टाइपिस्ट हैं?” कपूर ने बहुत शिष्टता से पूछा।

“जी नहीं,” पम्मी ने उन्हीं कागजों में नज़र गड़ाते हुए कहा, “मैंने कभी टाइपिंग और शार्टहैण्ड सीखी थी, और तब मैं सीनियर कैम्ब्रिज पास करके युनिवर्सिटी गयी थी। युनिवर्सिटी मुझे छोड़नी पड़ी क्योंकि मैंने अपनी शादी कर ली।”

“अच्छा, आपके पति कहाँ है?”

“रावलपिण्डी में, आर्मी में।”

“लेकिन फिर आप डिक्रूज क्यों लिखती हैं, और फिर मिस?”

“क्योंकि हम लोग अलग हो गये हैं।” और स्कीच के कागज को फिर तह करती हुई बोली, “मिस्टर कपूर, आप अविवाहित हैं?”

“जी हाँ!”

“और विवाह करने का इरादा तो नहीं रखते?”

“नहीं!”

“बहुत अच्छे! तब तो हम लोगो में निभ जायेगी। मैं शादी से बहुत नफ़रत करती हूँ। शादी अपने को दिया जाने वाला सबसे बड़ा धोखा है। देखिए ये मेरे भाई हैं न, कैसे पीले और बीमार से हैं ये। पहले बड़े तन्दुरुस्त और टेनिस में प्रांत के अच्छे खिलाडियों में से थे। एक बिशप की दुबली-पतली भावुक लड़की से इन्होंने शादी कर ली, और उसे बेहद प्यार करते थे। सुबह-शाम, दोपहर, रात, कभी उसे अलग नहीं होने देते थे। हनीमून के लिए उसे लेकर सीलोन गये थे। वह लड़की बहुत कलाप्रिय थी। बहुत अच्छा नाचती थी, बहुत अच्छा गाती थी और खुद गीत लिखती थी। यह गुलाब का बाग़ उसी ने बनवाया था और इन्हीं के बीच में दोनो बैठ कर घंटो गुज़ार देते थे।

“कुछ दिनों बाद दोनों में झगड़ा हुआ। क्लब में बॉल डांस था और उस दिन वह लड़की बहुत अच्छी लग रही थ। बहुत अच्छी। डांस के वक़्त इन का ध्यान डांस की तरफ़ कम था, अपनी पत्नी की तरफ़ ज्यादा। इन्होंने आवेश में उसकी अंगुलियाँ जोर से दबा दी। वह चीख पड़ी और सभी लोग इन लोगों की ओर देख कर हँस पड़े।

“वह घर पर आयी ओर बहुत बिगड़ी, बोली – “आप नाच रहे या टेनिस का मैच खेल रहे थे, मेरा हाथ था या टेनिस का रैक?” उस बात पर बर्टी भी बिगड़ गया, और उस दिन से जो उन लोगों में खटकी, तो फिर कभी भी न बनी। धीरे-धीरे वह लड़की एक सार्जेण्ट को प्यार करने लगी। बर्टी को इतना सदमा हुआ कि वह बीमार पड़ गया। लेकिन बर्टी ने तलाक़ नहीं दिया, उस लड़की से कुछ कहा भी नहीं, और उस लड़की ने सार्जेण्ट से प्यार जारी रखा, लेकिन बीमारी में बर्टी की बहुत सेवा की। बर्टी अच्छा हो गया। उस बाद उको एक बच्ची हुई और उसी में वह मर गई। हालांकि हम लोग सब जानते हैं कि वह बच्ची उस सार्जेण्ट की थी लेकिन बर्टी को यकीन ही नहीं होता कि वह सार्जेण्ट को प्यार करती थी। वह कहता है – वह दूसरे को प्यार करती होती, तो मेरी इतनी सेवा कैसे कर सकती थी भला? उस बच्ची का नाम बर्टी ने रोज रखा और उसे ले कर दिन-भर उन्हीं गुलाब के पेड़ों के बीच में बैठा करता था। जैसे अपनी पत्नी को लेकर बैठता था। दो साल बाद बच्ची को साँप ने काट लिया, वह मर गई और तब से बर्टी का दिमाग ठीक नहीं रहता। खैर, जाने दीजिए। आइए अपना काम शुरू करें| चलिए अंदर के स्टडी रूम में चलें!”

“चलिए” चंदर बोला और पम्मी के पीछे-पीछे चल दिया। मकान बहुत बड़ा था और पुराने अंग्रेजों के ढंग पर सजा हुआ था। बाहर से जितना पुराना और गंदा नज़र आता था, अंदर से उतना ही आलीशान और सुथरा। ईस्ट इण्डिया कंपनी के जमाने की छाप अंदर थी। यहाँ तक कि बिजली लगने के बावजूद अंदर पुराने बड़े-बड़े हाथ से खीचे जाने वाले पंखे लगे थे। दो कमरो को पार कर वे लोग स्टडी रूम में पहुँचे। बड़ा-सा कमरा जिसमें चारो तरफ़ आलमारियों में किताबें सजी हुई थी! चार कोने में चार मेजें लगी हुई थी, जिनमें कुछ बुक्स और कुछ तस्वीरें स्टैण्ड के सहारे रखी हुई थीं। एक आलमारी में नीचे खाने में टाइपराइटर रखा था। पम्मी ने बिजली जला दी, और टाइप राइटर खोल कर साफ़ करने लगी। चंदर घूम कर किताबें देखने लगा। एक कोने मे कुछ मराठी की किताबें रखी थी। उसे बड़ा ताज़्जुब हुआ – “अच्छा पम्मी, ओह माफ कीजिएगा, मिस डिक्रूज!”

“नहीं, आप मुझे पम्मी पुकार सकते है। मुझे यही नाम अच्छा लगता है। हाँ, क्या पूछ रहे थे आप?”

“क्या आप मराठी भी जानती है?”

“नहीं, मैं तो नहीं मेरी नानी जी जानती थी। क्या आप को डॉ० शुक्ला ने हम लोगों के बारे में कुछ नहीं बताया???”

“नहीं!” कपूर ने कहा।

“अच्छा! ताज्जुब है!” पम्मी बोली – “आप ने ट्रेनाली डिक्रूज का नाम सुना है न?” पम्मी बोली।

“हाँ, हाँ, डिक्रूज जिन्होंने कौशाम्बी की खुदाई करवायी थी। वह तो बहुत बड़े पुरातत्त्ववेत्ता थे?” कपूर ने कहा।

कपूर “हाँ, वही! वह मेरे सगे नाना थे और वह अंग्रेज नहीं थे, मराठा थे और उन्होंने मेरी नानी से शादी की थी, जो एक काश्मीरी ईसाई महिला थी। उनके कारण भारत में उन्हें ईसाइयत अपनानी पड़ी। यह मेरे नाना का ही मकान है और अब हम लोगों को मिल गया है। डॉ० शुक्ला के दोस्त मिस्टर श्रीवास्तव बैरिस्टर है न, वे हमा खानदान के ऐटर्नी थे। उन्होंने और डॉ० शुक्ला ने ही यह जायदाद हमें दिलवायी। लीजिए मशीन तो ठीक हो गय।” उसने टाइपराइटर में कार्बन और कागज लगा कर कहा – “लाइए निबंध?”

इस के बाद घण्टे-भर तक टाइपराइटर रुका नहीं। कपूर ने देखा कि यह लड़की जो व्यवहार में इतनी सरल और स्पष्ट है, फैशन में इतनी नाजुक और शौकीन है, काम करने में उतनी ही मेहनती और तेज भी है। उसकी उंगलियाँ मशीन की तरह चल रही थी। और तेज़ इतनी कि एक घण्टे में उस ने लगभग आधी पाण्डुलिपि टाइप कर डाली थी। ठीक एक घण्टे के बाद उस ने टाइपराइटर बंद कर दिया, बगल में बैठे हुए कपूर की ओर झुककर कहा – “अब थोड़ी देर आराम!” और अपनी उंगलियाँ चटखाने के बाद वह कुर्सी खिसकाकर उठी और एक भरपूर अँगड़ाई ली। उसका अंग-अंग धनुष की तरह झुक गया। उसके बाद कपूर के कंधे पर बेतकल्लुफी से हाथ रख कर बोली – “क्यों, एक प्याला चाय मंगवायी जाये!”

“मैं तो पी चुका हूँ।”

“लेकिन मुझसे तो काम होने से रहा अब बिना चाय के!” पम्मी एक अल्हड़ बच्ची की तरह बोली और अंदर चली गयी। कपूर ने टाइप किये हुए कागज उठाये और कलम निकाल कर उन की ग़लतियाँ सुधारने लगा। चाय पीकर थोड़ी देर पम्मी वापस आयी और बैठ गयी। उसने एक सिगरेट केस कपूर के सामने पेश किया।

“धन्यवाद, मैं सिगरेट नहीं पीता।”

“अच्छा, ताज्जुब है, आपकी इज़ाजत हो, तो मैं सिगरेट पी लूं!”

“क्या आप सिगरेट पीती हैं? छि: पता नहीं क्यों औरतों का सिगरेट पीना मुझे बहुत ही नापसंद है।”

“मेरी तो मजबूरी है मिस्टर कपूर, मैं यहाँ के समाज में मिलती जुलती नहीं, अपने विवाह और अपने तलाक़ के बाद मुझे एंग्लो-इण्डियन समाज से नफरत हो गयी है। मैं अपने दिल से हिन्दुस्तानी हूँ। लेकिन हिन्दुस्तानियों से घुलना-मिलना हमारे लिए संभव नहीं। घर में अकेले रहती हूँ। सिगरेट और चाय से तबीयत बदल जाती है। किताबों का मुझे शौक नहीं।”

“तलाक के बाद आपने पढ़ाई जारी क्यों नहीं रखी?” पूछा कपूर ने।

“मैंने कहा न, कि किताबों का मुझे शौक नहीं, बिलकुल!” पम्मी बोली।

“और मैं अपने को आदमियो में घुलने-मिलने के लायक नहीं पाती। तलाक के बाद साल भर तक मैं अपने घर में बंद रही। मै और बर्टी सिर्फ़…बर्टी से बात करने का मौका मिला। बर्टी मेरा भाई, वह भी बीमार और बूढ़ा! कहीं कोई तकल्लुफ़ की गुजाइश नहीं। अब में हरेक से बेतकल्लुफ्फ़ी से बात करती हूँ, तो कुछ लोग मुझ पर हँसते हैं, कुछ लोग मुझे सभ्य समाज के लायक नहीं समझते, कुछ लोग उस का गलत मतलब निकालते है। इसलिए मैंने अपने को अपने बंगले में ही कैद कर लिया है। अब आप ही हैं, आज पहली बार मैंने देखा आपको। समझी ही नहीं कि आपसे कितना दुराव रखना चाहिए। अगर भलेमानस न हो, तो आप इसका गलत मतलब निकाल सकते हैं।”

“अगर यही बात हो तो…” कपूर हँस कर बोला – “संभव है कि भलेमानस बनने के बजाय गलत मतलब निकालना ज्यादा पसंद करूं।”

“तो संभव है मैं मजबूर होकर आपसे भी न मिलूं!” वह गंभीरता से बोली।

“नहीं मिस डिक्रूज!”

“नहीं, आप पम्मी कहिए, डिक्रूज नहीं!”

“पम्मी सही, आप गलत न समझें। मैं मजाक कर रहा था।” कपूर बोला। उसने इतनी देर में समझ लिया था कि यह साधरण ईसाई छोकरी नहीं है।

इतने में बर्टी लड़खड़ाता हुआ, हाय में धूल सना खुरपा लिये आया और चुपचाप खड़ा हो गया और अपनी धुंधली पीली आँखो से एकट क कपूर को देखने लगा। कपूर ने एक कुरसी खिसका दी और कहा “आइए !” पम्मी उठी और बर्टी के एक कंधे पर हाथ रख कर उसे सहारा देकर कुरसी पर बिठा दिया। बर्टी बैठ गया और आँखें बंद कर लीं। उस का बीमार कमजोर व्यक्तित्व जाने कैसा लगता था कि पम्मी कपूर दोनों चुप हो गये। थोड़ी देर बाद बर्टी ने आँख खोली और बहुत करुण स्वर में बोला, “पम्मी, तुम नाराज हो, मैंने जान-बूझकर तुम्हारे मित्र का अपमान नहीं किया था।”

“अरे नहीं!” पम्मी ने उठ कर बर्टी का कंधा सहलाते हुए कहा “मैं तो भूल गयी और कपूर भी भूल गये।”

“अच्छा, धन्यवाद! पम्मी अपना हाथ इधर लाओ!” और वह पम्मी के हाथ पर सिर रख कर पड़ रहा और बोला – “मैं कितना अभागा हूँ। कितना अभागा! अच्छा पम्मी, कल रात को तुमने सुना था, वह आई थी और पूछ रही थी, बर्टी तबीयत ठीक है ना! मैंने झट अपनी आँखें ढक ली कि आँखों का पीलापन ना देख ले। मैंने कहा तबीयत अब ठीक है, मैं अच्छा हूँ, तो उठी और जाने लगी। मैंने पूछा कहाँ जा रही हो, तो बोली सार्जेंट के साथ क्लब जा रही हूँ। तुम्हें सुना था ना पम्मी।”

कपूर स्तब्ध सा दोनों की ओर देख रहा था। मम्मी ने कपूर को आँख का इशारा करते हुए कहा, “हाँ हमसे मिली थी वह, लेकिन बर्टी वह सार्जेंट के साथ नहीं गई थी।”

“हाँ तब!” बर्टी की आँखें चमक उठी और उसने उल्लास भरे स्वर में पूछा।

“उसने कहा कि बर्टी के ये गुलाब सार्जेंट से भी ज्यादा प्यारे हैं।” पम्मी बोली।

“अच्छा!” मुस्कुराहट से बर्टी का चेहरा खिल उठा। उसकी पीली पीली आँखें और धंस गई और दांत बाहर झलकने लगे, “क्या कहा उसने? जरा फिर तो कहो?”

उसने कहा, “ये गुलाब सार्जेंट से ज्यादा प्यारे हैं, फिर इन्हीं गुलाबो पर नाचती रही और सुबह होते ही इन्हीं फूलों में छुप गई। तुम्हें सुबह किसी फूल में तो नहीं मिली।”

“ऊं हूं! तुम्हें किसी फूल में तो नहीं मिली।” बर्टी ने बच्चों के से भोले विश्वास भरे स्वरों में पूछा।

चंदर चौंक उठा। पम्मी और बर्टी की बातों पर उसका मन बड़ा भर आया था। बर्टी की मुस्कुराहट पर उसकी नसें थरा थरा उठी।

“नहीं, मैंने तो नहीं देखा!” चंदर ने कहा।

बर्टी मैं फिर मायूसी से अपना सिर झुका लिया, फिर आँखें बंद कर ली। और कराहती हुई आवाज में बोला, “जिस फूल में वह छिप गई थी, उसी को किसी ने चुरा लिया होगा।”

फिर सहसा वह तनकर खड़ा हो गया और पुचकारते हुए बोला –  “जाने कौन ये फूल चुराता है। अगर मुझे एक बार मिल जाये, तो मैं उस का खून ऐसे पी लूं!” उस ने हाथ की अंगुली काटते हुए कहा और उठ कर लड़खड़ाता हुआ चला गया।

वातावरण इतना भारी हो गया था कि फिर पम्मी और कपूर ने कोई बातें नहीं की। पम्मी ने चुपचाप टाइप करना शुरू किया और कपूर चुपचाप बर्टी की बातें सोचता रह। घण्टे भर बाद जब टाइपराइटर खामोश हुआ, तो कपूर ने कहा – “पम्मी, मैंने जितने लोग देखे हैं, उनमें शायद बर्टी सबसे विचित्र, है, और शायद सब से दयनीय।”

पम्मी खामोश रह। फिर उसी लापरवाही से अंगड़ाई लेते हुए बोली — “मुझे बर्टी की बातों पर जरा भी दया नहीं आती। मैं उसको दिलासा दे देती हूँ क्योंकि वह मेरा भाई है और बच्चे की तरह नासमझ और लाचार है।”

कपूर चौंक गया। वह पम्मी की ओर आश्चर्य से चुपचाप देखता रहा, कुछ बोला नहीं।

“क्यों, तुम्हें ताज्जुब होता है? ” पम्मी ने कुछ मुस्कुरा कर कहा।

“लेकिन मैं सच कहती हूँ…” वह बहुत गंभीर हो गयी, “मुझे जरा तरस नहीं आता, इस पागलपन पर।”

क्षण भर चुप रही, फिर जैसे बहुत ही तेजी से बोली – “तुम जानते हो उसके फूल कौन चुराता है? मैं, मैं उस के फूल तोड़ कर फेंक देती हूँ। मुझे शादी से नफरत है, शादी के बाद होने वाली आप सी धोखेबाजी से नफरत है, और उस धोखेबाजी के बाद इस झूठमूठ को यादगार और बेमानी के पागलपन से नफरत ह। और ये गुलाब के फूल, क्यों मूल्यवान् हैं, इसीलिए न कि इस के साथ बर्टी की ज़िन्दगी की इतनी बड़ी ट्रेजेडी जुड़ी हुई है। अगर एक फूल के खूबसूरत होने के लिए आदमी की ज़िन्दगी में इतनी बड़ी ट्रेजेडी आना जरूरी है, तो लानत है उस फूल की खूबसूरती पर! मैं उससे नफरत करती हूँ। इसीलिए मैं किताबों से नफरत करती हूँ। एक कहानी लिखने के लिए कितनी कहानियो की ट्रेजेडी बर्दाश्त करनी होती है।”

पम्मी चुप हो गयी। उस का चेहरा सुर्ख हो गया था। थोड़ी देर बाद उसका तैश उतर गया और वह अपने आवेश पर खुद शर्मा गयी। उठ कर वह कपूर के पास गयी और उस के कंधे पर हाथ रख कर बोली — “बर्टी से मत कहना, अच्छा?”

कपूर ने सिर हिला कर स्वीकृति दी और कागज समेट कर खड़ा हुआ। पम्मी ने उस के कंधों पर हाथ रख कर उसे अपनी ओर घुमा कर कहा – “देखो, पिछले चार साल से मैं अकेली थी, और किसी दोस्त का इंतज़ार कर रही थी, तुम आये और दोस्त बन गये। तो अब, अक्सर आ जाना, ऐ?”

“अच्छा ” कपूर ने गंभीरता से कहा।

“डॉ० साहब से मेरा अभिवादन करना और कहना कभी यहाँ जरूर आना।”

“आप कभी चलिए, वहाँ उन की लड़की है। आप उससे मिल कर खुश होंगी।”

पम्मी उसके साथ फाटक तक पहुँचाने चली, तो देखा बर्टी एक चमेली के झाड़ टहनियाँ हटा-हटा कर कुछ ढूंढ रहा था। पम्मी को देख कर पूछा उसने – “तुम्हें याद है, वह चमेली के झाड़ में तो नहीं, कपूर ने पता नहीं क्यों जल्दी से पम्मी को अभिवादन किया और चल दिया। उसे बर्टी को देख कर डर लगता था।

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