चैप्टर 3 फ़रीदी और लियोनार्ड इब्ने सफ़ी का उपन्यास जासूसी दुनिया सीरीज़ | Chapter 4 Fareedi Aur Leonard Ibne Safi Novel

Chapter 3 Fareedi Aur Leonard Ibne Safi Novel

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नोक झोंक

खुफिया पुलिस के दफ्तर में मिस्टर जैक्सन के कमरे में मुल्क के छ: आला जासूसों की मीटिंग हो रही थी। फ़रीदी के अलावा हर एक अपनी रिपोर्ट मिस्टर जैक्सन के सामने पेश कर चुका था।

“क्यों मिस्टर फ़रीदी आप क्या सोच रहे हैं?” जैक्सन ने कहा।

“मैं यह सोच रहा था कि एक ऐसे शख्स का पता लगाना कितना मुश्किल है जिसे आज तक किसी ने न देखा हो, जिसकी तस्वीर डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टिगेशन के दफ्तर में मौजूद न हो; स्कॉटलैंड यार्ड वाले इसी बिना पर उसे पकड़ न सके कि उनके पास न तो तस्वीर थी और दूसरे ऐसे निशान जिनसे वह पकड़ा जा सके।”

“तो इसका मतलब यह हुआ कि हमें ना उम्मीद हो जाना चाहिए।” जैक्सन ने कहा।

“मैं अभी नहीं कह सकता।” फ़रीदी ने कुछ सोचते हुए कहा, “हो सकता है कि वह हमारी पकड़ में आ ही जाए। लेकिन ऐसे लोगों का पकड़ा जाना सिर्फ इत्तेफ़ाक होता है। काम के किसी खास तरीके पर अमल करके ऐसे लोगों को गिरफ्तार कर लेना बिल्कुल नामुमकिन है।”

“बरहाल बहस भर से कोई फ़ायदा नहीं।” जैक्सन ने कहा, “यह बताओ कि तुमने अब तक क्या किया?”

“मैंने आपसे अपने जिस शक का इज़हार किया था, उसके तहत में अखबार के दफ्तर में गया था। लेकिन वहाँ तहकीकात करने पर पता चला कि मैं गलती पर था। एडिटर ने मुझे बताया कि वह लोगों की दिलचस्पी के लिए इसी किस्म के दूसरे इश्तहार भी शुरू करने वाला है।”

“वह तो मैं पहले ही कह रहा था।” मिस्टर जैक्सन ने मुस्कुरा कर कहा।

“अरे फिर कहाँ आप और कहाँ मैं। आप हम सबके उस्ताद है।”

 जैक्सन हँसने लगा।

“तो फिर अब तुम्हारा क्या इरादा है।” जैक्सन बोला।

“मैं किसी ख़ास लाइन पर काम नहीं कर रहा हूँ।” फ़रीदी ने कहा।

“तो फिर इन जासूसों के बनाए हुए प्लान में उनके काम में शामिल हो जाओ।” जैक्सन ने कहा।

“मैं इसे वक्त बर्बाद करने के अलावा और कुछ नहीं समझता।” फ़रीदी ने कहा।

“यह आप किस तरह कह सकते हैं।” एक जासूस तेज आवाज में बोला। बाकी जासूसों के चेहरे से भी यही जाहिर हो रहा था कि उन्होंने फ़रीदी के जुमले का बुरा माना है।

“देखिए जनाब! यह शेर का शिकार तो है नहीं कि आपने हांक लगा दिया और इसका इंतज़ार करने लगे कि अभी शेर खुद-ब-खुद सामने आ जाएगा।” फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा, “यह ऐसे आदमी का मामला है जिसे आज तक किसी ने देखा ही नहीं और फिर उसने यहाँ कोई वारदात भी नहीं कि  जिसके सहारे किसी खास नतीजे पर पहुँचा जा सके।”

“तो इसका मतलब यह है कि उसे गिरफ्तार किया ही नहीं जा सकता।” दूसरा जासूस बोला।

“अगर उसका कुछ पता निशान न मिले, तो मैं ऐसा ही समझता हूँ।” फ़रीदी ने कहा।

“मेरा तो ख़याल यह है कि जब तक वह खुद हमारे सामने आकर ये न कह दे कि वही लियोनार्ड है, उसका पकड़ा जाना मुश्किल है।” एक जासूस ने तेवर में कहा।

“बेशक हालात ऐसे हैं।” फ़रीदी ने कहा, “और फिर न घोड़ा दूर न मैदान! हर एक के जौहर खुल जायेंगे।”

“भाई आखिर इस नोंक-झोंक से क्या फ़ायदा!” जैक्सन ने कहा।

“बहरहाल साहब हम लोगों ने जो प्लान तैयार किया है, उसी के मुताबिक काम करेंगे। एक जासूस बोला, “आपको अख्तियार है, चाहे आप हमारा साथ दे या न दे।”

“आपका ख़याल बिलकुल ठीक है।” फ़रीदी ने कहा, “और यह ज़रूरी नहीं कि हर मामले में मेरी राय ठीक ही होम हो सकता है कि आपका बनाया हुआ प्लान ही ठीक हो। बहरहाल मुझे आप जिस वक्त जो काम लेना चाहें, ले सकते हैं।”

“आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!” एक बूढ़े जासूस ने गुस्से में कहा।

“मैं यह चाहता हूँ कि आप लोग यह काम मिलजुलकर करें।” जैक्सन ने कहा, ” क्योंकि मुकाबला बहुत ही होशियार आदमी से है।”

“करीब करीब हम सब भी यही चाहते हैं।” फ़रीदी ने हँसकर कहा।

थोड़ी देर बाद भी सब मिस्टर जैक्सन के कमरे से उठकर चले गए। फ़रीदी अपने कमरे में आकर बैठ गयाम उसने उंगलियों के से निशान निकालें, जो उसने अखबार के दफ्तर से चुराये हुए कागज पर से हासिल किए थे। थोड़ी देर तक उन्हें गौर से देखता रहा, फिर उठकर रिकॉर्ड रूम में चला गया। वहाँ उसने दो-तीन फाइलें निकाली और उन्हें उलटता पलटता रहा। इतने में घड़ी ने चार बजाय और उसने फाइलें अलमारी मेरा दी और अपने कमरे में आकर घर जाने की तैयारी करने लगा।

लगभग आठ0 बजे रात को हमीद लौट आया और आते ही एक सोफे पर ढेर हो गया।

“खैरियत!” फ़रीदी ने कहा।

“मैंने यह लफ्ज़ आज तक नहीं सुना।”

फ़रीदी समझ गया कि ज़रूर कोई ख़ास बात हुई है।

“क्यों भई आखिर इतनी बदहवासी क्यों?”

“थका-थका कर मार डाला हरामजादे ने।“ हमीद ने कहा, “और आखिर बाद में कह दिया कि तुम उस कार की हिफ़ाज़त ना कर सकोगे क्योंकि तुम हमेशा मिलिट्री लॉरियाँ चलाते रहे हो।”

“बहुत खूब!” फ़रीदी ने मुस्कुराकर कहा, “तो उसने तुम्हारे सर्टिफिकेट देखे थे?”

“जी हाँ! काफ़ीदेर तक।” हमीद बोला, “और फिर उसने मुझसे कहा कि मैं तुम्हारा ट्रायल लेना चाहता हूँ। यह कहकर जो उसने मुझे अपनी कार में जोता है, तो अब फुर्सत मिली है। काफ़ी घूम फिर लेने के बाद उसने मुझे पांच का नोट टिकाया और ठंडे-ठंडे विदा कर दिया।”

“खैर, कोई परवाह नहीं! मेरा मकसद इतने ही में हल हो गया।” फ़रीदी ने कहा, “चलो वह सर्टिफिकेट वापस कर दो।”

“कैसे सर्टिफिकेट?” हमीद ने संजीदगी से कहा, “वे तो उसी के पास रह गए।”

“क्या कहा, उसके पास रह गए। उसके पास क्यों रह गए?”

“तो क्या मुझे वापस देने चाहिए थे।” हमीद ने भोलेपन से कहा।

“अजीब गधे आदमी हो।” फ़रीदी ने आकर कहा।

“यह बिल्कुल नामुमकिन है।” हमीद ने कहा, “मैं या तो गधा हो सकता हूँ या आदमी। एक ही वक्त में गधा और आदमी होना मेरे बस की बात नहीं। चाहे फिर नौकरी रहे या जाये।”

“सीधी तरह निकालते हो सर्टिफिकेट या दूं एक घूंसा।” फ़रीदी ने कहा।

“शौक से दीजिए। मैं उसे बहुत ही हिफाज़त से अपने बक्स में रख दूंगा।”

“क्या बकवास है?’

“हुज़ूर यह बकवास नहीं फ़लसफ़ा है।”

“जहन्नुम में जाओ तुम और तुम्हारा फ़लसफ़ा दोनों।” फ़रीदी ने झुंझलाकर कहा, ” लाओ…लाओ सर्टिफिकेट लाओ।”

“लीजिए जनाब! आखिर इस तरह नाराज क्यों होते हैं।” हमीद ने जेब से सर्टिफिकेट निकालकर फ़रीदी को दे दिया और मुँह फुलाए हुए कमरे से बाहर चला गया।

“अजीब गधा है, न मौका देखता न वक्त।” फ़रीदी बड़बड़ाता हुआ अजायबघर वाले कमरे में घुस गया।

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