चैप्टर 3 दिलेर मुज़रिम इब्ने सफ़ी का उपन्यास जासूसी दुनिया सीरीज़

Chapter 3 Diler Mujrim Novel By Ibne Safi

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कातिल का कत्ल

“क्यों भाई कहो कैसा केस है?” फ़रीदी ने सिंगार सुलगाकर सार्जेंट हमीद की तरफ झुकते हुए कहा, “मेरे ख़याल में ऐसा दिलचस्प केस बहुत दिनों के बाद हाथ आया है।”

“आप तो दिन रात केसों ही के ख्वाब देखा करते हैं। कुछ हसीन दुनिया की तरह भी नज़र दौड़ाइये।” हमीद बेज़ारी से बोला।

“इसका मतलब है कि तुम इसमें दिलचस्पी न लोगे।”

“बस मुझे तो माफ़ ही रखिए। मैंने सैर सपाटे के लिए एक महीने की छुट्टी ली है। मुझे अपनी छुट्टी बर्बाद नहीं करनी।”

“बेकारी में तुम्हारा दिमाग न घबरायेगा।”

“बेकारी कैसी?” हमीद जल्दी से बोला, “क्या आपको मालूम नहीं कि मैंने अभी हाल ही में एक इश्क किया है।”

“एक!” फ़रीदी ने हँसकर कहा, “अगर इस तफ्तीश के दौरान कई इश्क और हो जाए, तो क्या बुरा है?”

“शायद आपका इशारा डॉक्टर शौकत की नौजवान नौकरानी की तरफ है।” हमीद मुँह बनाकर बोला, “माफ़ कीजिएगा…मेरा करैक्टर इतना भी गिरा हुआ नहीं है।”

“बड़े गधे हो तुम। मुझे उसका ख़याल भी न था।” फ़रीदी ने सिगार मुँह से निकालकर कहा, “खैर हटाओ कोई और बात करें। हाँ भई, सुना है कि दो-तीन दिन हुए रेलवे ग्राउंड पर सर्कस आया हुआ है। बहुत तारीफ़ सुनी है। चलो आज सर्कस देखें। सिर्फ साढ़े चार बजे हैं। खेल सात बजे शुरू होगा। इतनी देर में हम लोग खाना भी खा लेंगे।”

“अरे…यह क्या बदपरहेजी करने जा रहे हैं। अरे लाहौल वला…आप और यह बेकार के शौक। यकीन नहीं आता कि आपने जासूसी से तौबा कर ली है।” हमीद ने अजीब-सा मुँह बनाकर कहा।

“तुमने ये कैसे समझ लिया कि वहाँ मैं बेमतलब जा रहा हूँ। तुम देखोगे कि जासूसी कैसे की जाती है।” फ़रीदी ने जवाब दिया।

“माफ़ कीजिएगा…इस वक्त तो आप किसी चालीस रुपये वाले जासूसी नॉवेल के जासूस की तरह बोल रहे हैं।” हमीद बोला।

“तुमने तो सर्कस का विज्ञापन देखा होगा। भला बताओ, उसमें किस खेल की ज्यादा तारीफ़ की गई थी।”

“एक नेपाली का मौत के खंजर का खेल।” हमीद ने जवाब दिया। फिर उछलकर कहने लगा, “क्या मतलब!”

फ़रीदी ने इसके सवाल को टालते हुए कहा, “अच्छा इस खेल में है क्या? तुम तो एक बार शायद एक भी आए हो।”

“हाँ एक लड़की लकड़ी के तख्ते से लगकर खड़ी हो जाती है और नेपाली इस तरह खंजर फेंकता है कि वे उसके चारों तरफ लकड़ी के तख्ते में चुभते जाते हैं। आखिर में जब वह इन खांजरों के बीच से निकलती है, तो लकड़ी के तख्ते पर चुभे हुए खंजरों में उसका खाका-सा बना रह जाता है। भई वाकई कमाल है, अगर खंजर एक इंच भी आगे पीछे बढ़कर पड़े, तो लड़की का काम तमाम हो जाए।”

“अच्छा इन खंजरों की लंबाई क्या होगी?” फ़रीदी ने सिगार का कश लेकर कहा।

“मेरे खयाल से वे खंजर वैसे ही हैं, जैसा कि आपने लाश के सीने से निकाला था।”

“बहुत खूब!” फ़रीदी इत्मीनान से बोला, “अच्छा यह बताओ कि खंजर का कितना हिस्सा लकड़ी के तख्ते में घुस जाता है।”

“मेरे ख़याल से चौथाई!”

“मामूली ताकत वाले के बस का रोग नहीं!” फ़रीदी ने हमीद की पीठ ठोंकते हुए जोश में कहा, “अच्छा मेरे दोस्त आज सर्कस ज़रूर देखा जायेगा।”

“आखिर आपका मतलब क्या है?” हमीद बेचैनी से बोला।

“फिलहाल तो कोई ख़ास मतलब नहीं। अभी तो मेरी स्कीम किसी चालीस रुपये वाले नॉवेल के जासूस की ही स्कीम की तरह मालूम हो रही है। आगे अल्लाह मालिक है।”

“आखिर कुछ बताइए तो…!”

“शायद सविता देवी के क़त्ल में उसी नेपाली का हाथ हो।”

“यूं तो क़त्ल में मेरा भी हाथ हो सकता है।” हमीद हँसकर बोला।

“तुम नहीं समझते…एक लंबी चौड़ी औरत की लाश को फड़कने से रोक देना किसी कमजोर आदमी का काम नहीं। एक ज़िबह किए हुए मुर्ग को संभालना मुश्किल हो जाता है। फिर जिस शख्स ने डॉक्टर शौकत को धमकी दी थी, वह भी नेपाली ही था। ऐसी सूरत में क्यों न हम इस शक फायदा उठायें। मैं यह पक्के तौर पर नहीं कहता कि क़त्ल में सर्कस वाले नेपाली ही का हाथ है। फिर भी देख लेने में क्या नुकसान है? अगर कोई सुराग न मिला मिल सका, तो सैर ही हो जायेगी।”

“खैर में सर्कस देखने से इंकार नहीं कर सकता क्योंकि इसमें तकरीबन दो दर्जन लड़कियाँ काम करती हैं। लेकिन मैं यह भी नहीं चाहता कि वहाँ खेल के दौरान आप बहस करके मेरा मज़ा किरकिरा करें।”

“तुम चलो तो सही! मुझे यह भी मालूम है।” फ़रीदी ने बुझा हुआ सिगार दोबारा सुलगाकर कहा।

यह पहुँचकर उनकी हैरत का कोई ठिकाना न रहा, जब उन्होंने इवनिंग न्यूज़ में निशांत नगर के क़त्ल की खबर पढ़ी। उसमें इंस्पेक्टर फ़रीदी की बातचीत का एक एक शब्द लिखा था और यह भी लिखा था कि इंस्पेक्टर फ़रीदी ने निजी तौर पर मौका-ए-वारदात का मुआयना किया था। लेकिन उन्होंने निजी तौर पर खूनी को ढूंढने से इंकार कर दिया है। साथ ही यह भी लिखा था कि इंस्पेक्टर फ़रीदी छह माह की छुट्टी पर है। इसलिए ख़याल होता है कि शायद सरकारी तौर पर भी यह काम उनके जिम्मे न किया जाये।

“मेरे ख़याल से जिस शख्स को हम लोग डॉक्टर का पड़ोसी समझ रहे थे वह इवनिंग न्यूज का रिपोर्टर था।” फ़रीदी ने कहा, “अब तक तो हालात हमारे ही फेवर में है। इस ख़बर का आज ही छप जाना बहुत अच्छा हुआ। अगर वाकई सर्कस वाला नेपाली ही कातिल है, तो हम आसानी से उस पर इस ख़बर का असर देख सकेंगे।”

“हूं!” हमीद कुछ सोचते हो यूं ही बोला।

“क्या कोई नई बात सूझी।” फ़रीदी ने कहा।

“मैं कहता हूँ कि आखिर सिर दर्द मोल लेने से क्या फ़ायदा? क्यों न हम लोग अपनी छुट्टियाँ हँसी-खुशी गुज़ारें।”

“अच्छा बकवास बंद!” फ़रीदी झल्लाकर बोला, “अगर तू मेरा साथ नहीं देना चाहते, तो न दो। मैं तुम्हें मजबूर नहीं करूंगा।”

“आप तो खफ़ा हो गए। मेरा मतलब यह था कि अगर आप भी इस छुट्टी में एक आधा इश्क़ कर लेते, तो अच्छा था।” हमीद ने मुँह बनाकर कुछ इस अंदाज़ में कहा कि फ़रीदी मुस्कुराये बगैर न रह सका।

“अच्छा तो खाना इस वक्त मेरे साथ खाना।” फ़रीदी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

“सिर आँखों पर!” हमीद ने संजीदगी से कहा, “भला मैं अपने अफसर का हुक्म किस तरह टाल सकता हूँ।”

वे दोनों सर्कस शुरू होने से पंद्रह मिनट पहले ही रेलवे ग्राउंड पर पहुँच गए और बॉक्स के दो टिकट लेकर रिंग के सबसे करीब वाले सोफे पर जा बैठे। दो-चार खेलों के बाद असली खेल शुरू हुआ। एक नाटे कद का मजबूत नेपाली एक खूबसूरत लड़की के साथ रिंग में दाखिल हुआ।

“गजब की लौंडिया है।” हमीद ने धीरे से कहा।

“हशश… हशश….!” फ़रीदी नेपाली को गौर से देख रहा था।

“भाइयों और बहनों!” रिंग लीडर की आवाज गूंजी, “दुनिया का सबसे खौफ़नाक खेल शुरू होने वाला है। यह लड़की उस लकड़ी के तख्ते से लगकर खड़ी हो जाएगी और यह नेपाली अपने पंजे से लकड़ी के चारों तरफ उसका खाका बनायेगा। नेपाली की ज़रा सी गलती या लड़की की हल्की सी हरकत उसे मौत की गोद में पहुँचा सकती है। लेकिन देखिए कि यह लड़की मौत का मुकाबला किस हिम्मत से करती है और उस नेपाली का हाथ कितना सधा हुआ है। आइए देखते हैं।”

खट..! एक सनसनाता हुआ खंजर लड़की के सिर के बालों को छूता हुआ लकड़ी के तख्ते में तीन इंच धंस गया। लड़की सिर से पैर तक कांप गई। रिंग मास्टर ने नेपाली की तरफ हैरत से देखा और उसके माथे पर कुछ लकीरें दिखने लगी। देखने वालों पर सन्नाटा छा गया।

ख़ट…! दूसरा खंजर लड़की के कंधे के करीब फ्रॉक के पफ की छेदता हुआ तख्ते में धंस गया। लड़की का चेहरा दूध की तरह सफेद नज़र आने लगा। रिंग लीडर परेशान होकर रिंग का चक्कर काटने लगा। नेपाली खड़ा दिसंबर की सर्दी में अपने चेहरे से पसीना पोंछ रहा था।

“क्या उस दिन भी यह खंजर जिस्म के इतने करीब लगे थे।” फ़रीदी ने झुककर हमीद से पूछा।

“हरगिज़ नहीं हरगिज़ नहीं!” हमीद ने बेताबी से कहा, “इनकी दूरी तीन या चार इंच थी।”

“खट..!” अबकी बार लड़की के मुँह से चीख निकल गई। उसके बाजू से खून निकल रहा था। फ़रीदी ने नेपाली को शराबियों की तरह लड़खड़ाते बेरिंग के बाहर जाते देखा। फौरन ही पांच-छः जोकरों ने रिंग में आकर उछल-कूद मचा दी।

“भाइयों और बहनों!” रिंग मास्टर की आवाज दोबारा गूंजी, “मुझे इस वाकये पर हैरत है। नेपाली पंद्रह-बीस बरस से हमारे सर्कस में काम कर रहा है। लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ। ज़रूर वह कुछ बीमार है, जिसका पता हमें न था। बहरहाल अभी बहुत से दिलचस्प खेल बाकी हैं।”

“आओ…चलें!” फ़रीदी ने हमीद का हाथ पकड़कर उठते हुए कहा।

कई तंबुओं के बीच से गुज़रते हुए वे थोड़ी देर बाद मैनेजर के दफ्तर के सामने पहुँच गये। फ़रीदी ने चपरासी से अपना विजिटिंग कार्ड अंदर भिजवा दिया।

मैनेजर उठकर हाथ मिलाते हुए गर्मजोशी से बोला, “जी कहिए कैसे तकलीफ फ़रमाई?”

“मैं खंजर वाले नेपाली के बारे में कुछ पूछना चाहता हूँ।”

“क्या कहूं इस्पेक्टर साहब, मुझे खुद हैरत है। आज तक ऐसा वाकया नहीं हुआ। मुझे सख्त शर्मिंदगी है। क्या कानूनन मुझे इसके लिए जवाब देना पड़ेगा। कुछ समझ ही में नहीं आता। आज कई दिन से इसकी हालत बहुत खराब है। वह बेहद शराब पीने लगा है। हर वक्त नशे में डींगे मारता रहता है। अभी कल ही अपने एक साथी से कह रहा था कि मैं अब इतना दौलतमंद हो गया हूँ कि मुझे नौकरी की भी परवाह नहीं। उसने उसे नोटों की कई गड्डियाँ भी दिखाई थी।”

“उसकी यह हालत कबसे हैं?”

“मेरा ख़याल है कि राज रूपनगर में जब पड़ाव था, तभी से हमें इसकी हरकतों में बदलाव नज़र आने लगा था।”

“राजरूप नगर!” हमीद ने चौंककर कहा। लेकिन फ़रीदी ने उसके पैर पर अपना पैर रख दिया।

“क्या राज रूपनगर में भी आपकी कंपनी ने खेल दिखाए थे?”

“जी नहीं! वहाँ कहाँ? वह तो एक कस्बा है। हम लोग वहाँ ठहरकर अपने दूसरे काफिले का इंतज़ार कर रहे थे।”

“राजरूप नगर! वही तो नहीं, जो जनाब वजाहत मिर्ज़ा की जागीर है।”

“जी हाँ…जी हाँ…वही!”

“क्या यह नेपाली पढ़ा लिखा है?”

“जी हाँ…मैट्रिक पास है।”

“मैं उससे भी कुछ सवाल करना चाहता हूँ।”

“ज़रूर ज़रूर…मेरे साथ चलिए। लेकिन ज़रा हमारा भी ख़याल रखियेगा। मैं नहीं चाहता कि कंपनी का नाम बदनाम हो।”

“आप परेशान न हो।”

वे तीनों तंबुओं की कतारों से गुजरते हुए एक तंबू के सामने रुक गये।

“अंदर चलिये!” मैनेजर बोला।

“नहीं सिर्फ आप जाइये। आप उससे हमारे बारे में कहियेगा। अगर मिलना पसंद करेगा, तो हम लोग मिलेंगे। वरना नहीं।” फ़रीदी ने कहा।

मैनेजर पहले तो कुछ देर तक हैरत से उन्हें देखता रहा। फिर अंदर चला गया। फ़रीदी ने अपनी आँखें खेमे की जाली से लगा दी। नेपाली अभी तक खेल ही के कपड़े पहने हुए था। वह बहुत परेशान नज़र आ रहा था। मैनेजर के दाखिल होते ही वह उछलकर खड़ा हो गया। लेकिन फिर उसके चेहरे पर फैली चिंता की लकीरें धीरे-धीरे मिटने लगी।

“आप है…मैं समझा…जी कुछ नहीं। मुझे सख्त शर्मिंदगी है।” पर रुक-रुक कर बोला।

“तो क्या तुम किसी और का इंतज़ार कर रहे थे?” मैनेजर ने कहा।

“ज..ज…जी!” वह हकलाने लगा, “न..न…नहीं। ब…ब…बिल्कुल नहीं!”

बाहर फ़रीदी ने गहरी सांस ली और उसकी आँखों में अजीब किस्म की वहशियाना चमक पैदा हो गई।

“मैं माफी चाहता हूँ। मुझे अफ़सोस है।” नेपाली ख़ुद को संभालकर बोला।

“मैं इस वक्त उस मामले पर बात करने नहीं आया हूँ।” मैनेजर बोला, “बात दरअसल गया है कि एक साहब तुमसे मिलना चाहते हैं।”

नेपाली बुरी तरह कांपने लगा।

“मुझसे मिल…मिलना चाहते हैं।” वह बदहवास होकर बैठते हुए हकलाया। “मगर मैं नहीं मिलना चाहता। वे मुझसे क्यों मिलना चाहते हैं?”

“मैं यही बताने के लिए मिलना चाहता हूँ कि मैं क्यों मिलना चाहता हूँ।” फ़रीदी ने तंबू में प्रवेश करते हुए कहा। उसके पीछे हमीद भी था।

“मैं खुफिया पुलिस का इंस्पेक्टर!” फ़रीदी ने जल्दी से कहा।

“खुफिया पुलिस!” वह इस तरह बोला, जैसे कोई ख्वाब में बड़बड़ाता है।” लेकिन क्यों आखिर आप मुझसे क्यों मिलना चाहते हैं?”

“मैं तुम्हें परेशान करना नहीं चाहता, लेकिन तुम अगर मेरे सवालों का सही सही जवाब दोगे तो फिर तुम्हें डरने की ज़रूरत नहीं है। क्या तुम कल रात निशांत नगर डॉक्टर शौकत की कोठी पर गए थे?” फ़रीदी ने यह सवाल बहुत ही सादगी से पूछा। लेकिन इसका असर किसी बम के धमाके से कम ना था। नेपाली तेजी से उछल पड़ा। फ़रीदी को अब पूरा यकीन हो गया।

“नहीं नहीं!” वह कंपकपाती हुई आवाज में चीखा।

“तुम सफेद झूठ बोल रहे हो।”

“मैं वहाँ क्यों जाता? नहीं यह झूठ है। पक्का झूठ!”

“इसे कोई फ़ायदा नहीं मिस्टर!” फ़रीदी बोला, “मैं जानता हूँ कि कल रात तुम डॉक्टर शौकत को कत्ल करने गए और उसके धोखे में सविता देवी को क़त्ल कर आए। अगर तुम सच-सच बता दोगे, तो मैं तुम्हें बचाने की कोशिश करूंगा, क्योंकि मैं जानता हूँ कि तुम्हें वहाँ किसी दूसरे ने क़त्ल करने के लिए भेजा था।“

“आप मुझे बचाने की कोशिश करेंगे।” वह बेबसी से बोला, “ओह मेरे ख़ुदा! मैंने भयानक गलती की।”

“शाबाश! हाँ आगे कहो।” फ़रीदी नरम लहज़े में बोला। सर्कस का मैनेजर उन्हें हैरत और खौफ़ की नज़रों से देख रहा था।

नेपाली इंस्पेक्टर फ़रीदी के इस अचानक हमले से पहले ही हथियार डाल चुका था। उसने एक बेबस बच्चे की तरह कहना शुरू किया, “जी हाँ मैं ज़रूर बताऊंगा। मगर मैं बेकसूर हूँ। आपने कहा कि आप मुझे बचा लेंगे। उसने मुझे पचास हजार पेशगी दिए थे और क़त्ल के बाद पचास हजार और देने का वादा किया था। यह मैंने क्या किया। उसका नाम…हाँ, उसका नाम है…अर्र….हा… उफ़।” और वह चीखकर आगे की तरफ झुक गया।

“वह देखो!” सार्जेंट हमीद चीखा।

किसी ने तंबू के पीछे से नेपाली पर हमला किया था। खंजर तंबू के कपड़े की दीवार फाड़ता हुआ उसकी पीठ में घुस गया था। वह स्टूल पर बैठे-बैठे दो-तीन बार तड़पा और फिर देखते ही देखते फर्श पर आ गिरा।

“हमीद…बाहर…बाहर.. देखो, जाने ना पाये।” इंस्पेक्टर फरीदी गुस्से में चिल्लाया।

चीख की आवाज सुनकर कुछ और लोग भी आ गये। सब ने मिलकर कातिल की तलाश करना शुरू किया। लेकिन बेचारा मैनेजर घबराहट की वजह से बेहोश हो गया।

कोतवाली खबर पहुँचा दी गई। थोड़ी देर बाद कई कॉन्स्टेबल और दो सब इंस्पेक्टर मौका-ए-वारदात पर पहुंचे। इंस्पेक्टर फ़रीदी को वहाँ देखकर उन्हें सख्त हैरत हुई। फ़रीदी ने उन्हें सारा हाल बता दिया। मृतक के इकरार का गवाह मैनेजर था। इसलिए मैनेजर का बयान हो रहा था। इंस्पेक्टर फ़रीदी और सार्जेंट हमीद का वहाँ रुकना समय नष्ट करने जैसा था। इसलिए दोनों वहाँ से रवाना हो गये।

उनकी कार तेजी से निशांत नगर की तरफ जा रही थी।

“क्यों भई, रहा ना वही चालीस रुपये वाले जासूसी नावेल वाला मामला।” फ़रीदी ने हँसकर कहा।

“अब तो मुझे भी दिलचस्पी हो चली है।” हमीद ने कहा, “लेकिन यह तो बताइए कि आपको यकीन कैसे हुआ था कि वही कातिल है।”

“यकीन कहाँ, सिर्फ शक था, लेकिन मैनेजर से बातचीत करने के बाद कुछ कुछ यकीन हो चला था की साजिश में किसी दूसरे का हाल ज़रूर था। मैं यह भी सोच रहा था कि क़त्ल के सिलसिले में अपनी गलती का एहसास हो जाने के बाद ही से उसकी हालत खराब हो गई थी। यही वजह थी कि खेल के वक्त उसका हाथ बहक रहा था और अब उसे शायद उस आदमी का इंतज़ार था, जिसने उसे कत्ल के लिए बहकाया था। इस गलती की जवाबदेही के ख़याल ने उससे और भी परेशान कर रखा था। इन्हीं सब चीजों को मद्देनजर रखकर मैंने ख़ुद पहले उसके तंबू में जाना ठीक नहीं समझा। मैनेजर को अंदर भेज कर मैं जाली से उसके हाव-भाव देखने लगा। जाली से तो तुम भी देख रहे थे।”

“बहरहाल, आज से मैं आपका पूरा-पूरा शागिर्द हो गया।” हमीद ने कहा।

“क्या कहा, आज से…क्या पहले ना थे।” फ़रीदी ने हँसकर पूछा।

“नहीं पहले भी था।” हमीद ने जवाब दिया और दोनों ख़ामोश हो गये। इंस्पेक्टर फ़रीदी आगे के लिए प्रोग्राम बना रहा था।

फाटक पर कार की आवाज सुनकर डॉक्टर शौकत बाहर निकल आया था। इंस्पेक्टर फ़रीदी ने सारी कहानी उसे बता दी।

फिर फ़रीदी ने शौकत के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “तुम्हारा असली दुश्मन अब भी आजाद है और वह किसी वक्त भी तुम्हें नुकसान पहुँचा सकता है। इसलिए अब भी तुमको सावधानी की जरूरत है। मैं कोशिश करूंगा कि असली मुज़रिम को बहुत जल्दी गिरफ्तार करके कानून के हवाले कर दूं।”

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