चैप्टर 3 चट्टानों में आग ~ इब्ने सफ़ी का हिंदी जासूसी उपन्यास

Chapter 3 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 3 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

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घड़ी ने एक बजाया और इमरान बिस्तर से उठ गया। दरवाजा खोलकर बाहर निकला। चारों तरफ सन्नाटा था। लेकिन कोठी के किसी कमरे की भी रोशनी नहीं बुझाई गई थी।

बरामदे में रुककर उसने आहट ली। फिर तीर की तरह उस कमरे की तरफ बढ़ा, जहाँ कर्नल के खानदान वाले इकट्ठा थे। सोफिया के अलावा हर एक के आगे एक राइफल रखी हुई थी। अनवर और आरिफ़ बेहद बोर नज़र आ रहे थे। सोफिया की आँखें नींद की वजह से लाल थीं और कर्नल उस तरह सोफे पर अकड़ा बैठा था, जैसे वह कोई बुत हो। उसकी पलकें तक नहीं झपक रही थी।

इमरान को देखकर उसके जिस्म में हरकत पैदा हुई।

“क्या बात है? क्यों आये हो?” उसने गरजकर पूछा।

“एक बात समझ में नहीं आ रही है।” इमरान ने कहा।

“क्या?” कर्नल के लहज़े की सख्ती दूर नहीं हुई।

“अगर आप कुछ अजनबी आदमियों से डरे हुए हैं, तो पुलिस को इसकी खबर क्यों नहीं देते?”

“मैं जानता हूँ कि पुलिस कुछ नहीं कर सकती।”

“क्या वे लोग सचमुच आपके लिए अजनबी हैं।”

“हाँ!”

“बात समझ में नहीं आई।’

“क्यों?”

“सीधी सी बात है। अगर आप उन्हें जानते हैं, तो उनसे डरने की क्या वजह हो सकती है?”

कर्नल जवाब देने की बजाय इमरान को घूरता रहा।

“बैठ जाओ।” उसने थोड़ी देर बाद कहा। इमरान बैठ गया।

“मैं उन्हें जानता हूँ।” कर्नल बोला।

“तब फिर! पुलिस…ज़ाहिर सी बात है।”

“क्या तुम मुझे बेवकूफ समझते हो।” कर्नल बिगड़कर बोला।

“जी हाँ!” इमरान ने संजीदगी से सिर हिला दिया।

“क्या?” कर्नल उछल कर खड़ा हो गया।

“बैठ जाइये।” इमरान ने इत्मीनान से हाथ उठाकर कहा, “मैंने यह बात इसलिए कही थी कि आप लोग किसी वक्त भी उनकी गोलियों का निशाना बन सकते हैं।”

“क्यों?”

“वे किसी वक्त भी इस इमारत में दाखिल हो सकते हैं।”

“नहीं दाखिल हो सकते। बाहर कई पहाड़ी पहरा दे रहे हैं।”

“फिर इस तरह रायफलें सामने रखकर बैठने का क्या मतलब है?” इमरान सिर हिलाकर बोला, “नहीं कर्नल साहब! अगर आप भी इमरान एमएससी, पीएचडी से कोई काम लेना चाहते हैं, तो आप को उसे सारे हालात के बारे में बताना पड़ेगा। मैं यहाँ आपके बॉडी गार्ड का काम करने के लिए नहीं आया।”

“डैडी! बता दीजिए न…ठीक ही तो है।” सोफिया बोली।

“क्या तुम इस आदमी को भरोसे के काबिल समझती हो?”

“इनकी अभी उम्र ही क्या है?” इमरान ने सोफिया की तरफ इशारा करके कहा, “साठ-साठ साल की बुढ़िया भी मुझ पर भरोसा करती हैं।”

सोफिया बौखला कर घूरने लगी। उसकी समझ में कुछ नहीं आया।

अनवर और आरिफ़ हँसने लगे।

“दांत बंद करो।” कर्नल ने उन्हें डांटा और वे दोनों बुरा सा मुँह बनाकर खामोश हो गये।

“आप मुझे उन आदमियों के बारे में बताइये।” इमरान ने कहा।

कर्नल कुछ देर ख़ामोश रहा। फिर बड़बड़ाया, “मैं नहीं जानता कि क्या बताऊं।”

“क्या आप इस दौरान उनमें से किसी को देखा है।”

“नहीं!”

“फिर शायद मैं पागल हो गया हूँ।” इमरान ने कहा।

कर्नल उसे घूरने लगा। वह कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, “मैं उन लोगों के निशान से वाक़िफ हूँ। इस निशान का मेरी कोठी में पाया जाना इस चीज़ की तरफ इशारा करता है कि मैं खतरे में हूँ।”

“ओह!” इमरान ने सीटी बजाने वाले अंदाज़ में अपने होंठ सिकोड़े, फिर आहिस्ता से पूछा, “वह निशान आपको कब मिला?”

“आज से चार दिन पहले।”

“खूब! क्या मैंने उसे देख सकता हूँ।”

“भई! ये तुम्हारे बस का रोग नहीं मालूम होता।” कर्नल ने उकताकर बोला, “तुम कल सुबह वापस जाओ।’

“हो सकता है मैं भी रोगी हो जाऊं। आप मुझे दिखाइए न।”

कर्नल चुपचाप बैठा रहा। फिर उसने बुरा सा मुँह बनाया और उठकर एक मेज का दराज खोल लिया। इमरान उसे ध्यान से और दिलचस्पी से देख रहा था।

कर्नल ने वह चीज छोटी गोल मेज पर रख दी। तीन इंच लंबा लकड़ी का बंदर था। इमरान उसे मेज़ से उठाकर पलटने लगा। वह उसे थोड़ी देर तक देखता रहा, फिर उसी मेज़ पर रख कर कर्नल को घूरने लगा।

“क्या मैं कुछ पूछ सकता हूँ?” इमरान बोला।

“पूछो…बोर मत करो।”

“ठहरिये।” इमरान हाथ उठाकर बोला। फिर सोफिया वगैरह की तरफ देख कर कहने लगा, “जो सकता है कि आप इन लोगों के सामने मेरे सवालों का जवाब देना पसंद न करें।”

“ऊंह…बोर मत करो।” कर्नल ने उकता ये हुए लहज़े बोला।

“खैर…मैंने एहतियातन यह खयाल ज़ाहिर किया था।” इमरान ने लापरवाही से कहा। फिर कर्नल को घूरता हुआ बोला, “क्या कभी आपका ताल्लुक ड्रग्स की तस्करी से भी रहा है।”

कर्नल उछल पड़ा। फिर वह इमरान की तरफ इस तरह घूरने लगा, जैसे उसने उसे डंक मार दिया हो। फिर वह जल्दी से लड़कों की तरफ़ मुड़कर बोला, “जाओ तुम लोग आराम करो।”

उसके भतीजों के चेहरे खिल उठे, लेकिन सोफिया के अंदर से ऐसा मालूम हो रहा था जैसे वह नहीं जाना चाहती।

“तुम भी जाओ।’ कर्नल अधीरता से हाथ हिलाकर बोला।

“क्या यह ज़रूरी है?” सोफिया ने कहा।

“जाओ।” कर्नल चीखा।

“हाँ! तुमने क्या कहा था?” कर्नल ने इमरान से कहा।

इमरान ने फिर अपना वाक्य दोहरा दिया।

“तो क्या तुम उसके बारे में कुछ जानते हो।”

कर्नल ने लकड़ी के बंदर की तरफ़ इशारा किया।

“बहुत कुछ!” इमरान ने लापरवाही से कहा।

“तुम कैसे जानते हो?’

“यह बताना बहुत मुश्किल है।” इमरान मुस्कुराकर बोला, “लेकिन आपने मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं दिया।”

“नहीं, मेरा ताल्लुक ड्रग्स की तिजारत से कभी नहीं रहा।”

“तब फिर!” इमरान कुछ सोचता हुआ बोला, “आप उन लोगों के बारे में कुछ जानते हैं, वरना यह निशान इस कोठी में क्यों आया?”

“खुदा की कसम।” कर्नल बेचैनी में अपने हाथ मलता हुआ बोला, “तुम बहुत काम के आदमी मालूम होते हो।”

“लेकिन मैं कल सुबह वापस आ रहा हूँ।’

“हरगिज़ नहीं…हरगिज़ नहीं!”

“अगर मैं कल वापस न गया, तो उस मुर्गी को कौन देखेगा, जिसे मैं अंडों पर बिठा कर आया हूँ।”

“अच्छे लड़के…मज़ाक नहीं। मैं बहुत परेशान हूँ।”

“आप ली यूका से डरे हुए हैं!” इमरान सिर हिलाकर बोला।

इस बार फिर कर्नल उसी तरह उछला, जैसे इमरान ने डंक मार दिया हो।

“तुम कौन हो?” कर्नल ने खौफज़दा आवाज में कहा।

“अलीइमरान एमएससी, पीएचडी!”

“क्या तुम्हें सचमुच कैप्टन फैयाज़ ने भेजा है?”

“और मैं कल सुबह वापस चला जाऊंगा।”

“नामुमकिन…नामुमकिन…मैं तुम्हें किसी कीमत पर नहीं छोड़ सकता। लेकिन तुम ली यूका के बारे में कैसे जानते हो?”

“यह मैं नहीं बता सकता।” इमरान ने कहा, “लेकिन ली यूका के बारे में आपको बहुत कुछ बता सकता हूँ। वह एक चाबी है। उसके नाम से ड्रग्स की नाजायज तिजारत होती है। लेकिन उसे आज तक किसी ने नहीं देखा।”

“बिल्कुल ठीक! लड़के तुम खतरनाक मालूम होते हो।”

“मैं दुनिया का सबसे बड़ा बेवकूफ आदमी हूँ।’

“बकवास है…लेकिन तुम कैसे जानते हो?” कर्नल बड़बड़ाया, “मगर…कहीं तुम उसी के आदमी न हो।” कर्नल की आवाज़ हलक में फंस गई।

“बेहतर है…मैं कल सुबह..!”

“नहीं नहीं!” कर्नल हाथ उठा कर चीखा।

“अच्छा, यह बताइए कि ये निशान आपके पास क्यों आया?” इमरान ने पूछा।

“मैंने नहीं जानता।” कर्नल बोला।

“शायद आप इस बेवकूफ आदमी का इम्तिहानन लेना चाहते हैं।’ इमरान संजीदगी से कहा, “खैर, तो सुनिए…ली यूका…दो सौ साल पुराना नाम है।“

“लड़के! तुम्हें ये सारी जानकारी कहाँ से मिली।” कर्नल ने उसे प्रशंसात्मक नजरों से देखता हुआ बोला, ” यह बात ली यूका के गिरोह वालों के अलावा और कोई नहीं जानता।”

“तो मैं यह समझ लूं कि आपका ताल्लुक भी उसके गिरोह से रह चुका है।” इमरान ने कहा।

“हरगिज़ नहीं…तुम गलत समझे।”

“फिर यह निशान आपके पास कैसे पहुँचा? आखिर वे लोग आपसे किस चीज की मांग कर रहे थे।”

“ओह! तुम यह भी जानते हो।” कर्नल चीखकर बोला और फिर उठकर कमरे में टहलने लगा। इमरान के होंठों पर शरारती मुस्कुराहट थी।

“लड़के!” अचानक कर्नल ने टहलते-टहलते रुक गया, “तुम्हें साबित करना होगा कि तुम वही आदमी हो, जिसे कैप्टन फैयाज़ ने भेजा है।”

“आप बहुत परेशान हैं?” इमरान हँस पड़ा, “मेरे पास फैयाज़ का खत मौजूद है, लेकिन अभी से आप इतना क्यों परेशान हैं? यह तो पहली वार्निंग है। बंदर के बाद सांप आयेगा। अगर आपने इस दौरान भी उनकी मांग पूरी न की, तो फिर वह मुर्ग भेजेंगे और उसके दूसरे ही दिन आपका सफ़ाया हो जायेगा। आखिर वह कौन सी मांग है?”

कर्नल कुछ न बोला। उसका मुँह हैरत से खुला हुआ था और आँखें इमरान के चेहरे पर थी।

“लेकिन?” वह आखिर अपने होंठों पर ज़बान फेर कर बोला, ” इतना कुछ जानने के बाद तुम अब तक कैसे ज़िंदा हो? “

“सिर्फ़ कोकाकोला की वजह से।“

“संजीदगी…संजीगदी!” कर्नल ने अधीरता से हाथ उठाया, “मुझे फैयाज़ का खत दिखाओ।”

इमरान ने जेब से खत निकालकर कर्नल की तरफ बढ़ा दिया।

कर्नल काफी देर तक उस पर नज़र जमाये रहा, फिर इमरान को वापस करता हुआ बोला।

“मैं नहीं समझ सकता कि तुम किस किस्म के आदमी हो।”

“मैं हर किस्म का आदमी हूँ। फिलहाल आप मेरे बारे में कुछ न सोचिये।” इमरान ने कहा, “जितनी जल्दी आप मुझे अपने बारे में बता देंगे, उतना ही अच्छा होगा।”

कर्नल के चेहरे से हिचकिचाहट ज़ाहिर हो रही थी। वह कुछ न बोला।

“अच्छा ठहरिये!” इमरान ने कुछ देर बाद कहा, “ली यूका के आदमी सिर्फ एक ही सूरत में उस किस्म की हरकतें करते हैं। वह एक ऐसा गिरोह है, जो ड्रग्स की तस्करी करता है। ली यूका कौन है, यह किसी को मालूम नहीं। लेकिन तिजारत का सारा नफा उसको पहुँचता है। कभी उसके कुछ बेईमानी पर आमादा हो जाते हैं। वे ली यूका की मांगें पूरी नहीं करते। उस सूरत में उन्हें इस किस्म की वार्निंग मिलती है। पहली धमकी बंदर, दूसरी धमकी सांप…और तीसरी धमकी मुर्ग। अगर आखिरी धमकी ये बाद भी वे मांगे पूरी नहीं करते, तो उनका खात्मा कर दिया जाता है “

“तो क्या तुम यह समझते हो कि मैं ली यूका का एजेंट हूँ।” कर्नल खंखारकर बोला।

“ऐसी सूरत में और क्या समझ सकता हूँ।”

“नहीं, यह ग़लत है।”

“फिर!”

“मेरा खयाल है कि मेरे पास ली यूका का सुराग है।” कर्नल बड़बड़ाया।

“सुराग? वह किस तरह?”

“कुछ ऐसे कागजात है, जो किसी तरह ली यूका के लिए शक पैदा करने वाले हो सकते हैं।”

“शक होना और चीज है…लेकिन सुराग!” इमरान नहीं में सिर हिलाकर रह गया।

“यह मेरा अपना खयाल है।”

“आखिर आपने किस वजह से यह राय कायम की?” इमरान ने पूछा।

“यह बताना मुश्किल है। वैसे मैं इन कागजातों में से कुछ को बिल्कुल नहीं समझ सका।”

“लेकिन वे कागजात आपको मिले कहाँ से?”

“बहुत ही हैरत अंगेज़ तरीके से!” कर्नल सिगार सुलगाता हुआ बोला, “पिछली जंग के दौरान मैं हांगकांग में था। वहीं ये काग़ज़ात मेरे हाथ लगे। और यह हकीकत है कि जिससे मुझे कागज़ात मिले, वह मुझे ग़लत समझा था…हुआ यह कि एक रात मैं हांगकांग के होटल में खाना खा रहा था। एक दुबला पतला चीनी आकर मेरे सामने बैठ गया। मैंने महसूस किया कि वह बहुत ज्यादा खौफ़ज़दा है। उसका पूरा जिस्म कांप रहा था। उसने जेब से एक बड़ा सा लिफाफा निकालकर मेज़ के नीचे से मेरे घुटनों पर रख दिया और आहिस्ता से बोला, मैं खतरे में हूँ। फिर इससे पहले कि मैं कुछ कहता, वह तेजी से बाहर निकल गया। बात हैरत अंगेज थी। मैंने चुपचाप लिफाफा जेब में डाल लिया। मैंने सोचा, मुमकिन है वो चीनी मिलिट्री सीक्रेट सर्विस का आदमी रहा ही और कुछ अहम कागजात मेरे जरिए किसी ऐसे सेक्शन में पहुंचाना चाहता हो, जिसका नाम बी-फोर्टीन हो। मैं उस वक़्त अपनी पूरी वर्दी में था। होटल से वापस आने के बाद मैंने लिफाफा जेब से निकाला। वह सील किया गया था। मैंने उसे उसी हालात में रख दिया। दूसरे दिन मैंने बी-फोर्टीन के बारे में पूछना शुरू किया, लेकिन मिलिट्री की सीक्रेट सर्विस में इस नाम का कोई इदारा नहीं था। पूरे हांगकांग में बी-फोर्टीन का कोई सुराग न मिल सका। आखिर में मैंने तंग आकर इस लिफाफे को खोल डाला।”

“तो क्या इसमें ली यूका के बारे में पूरी रिपोर्ट है?” इमरान ने पूछा।

“नहीं! वे तो कुछ तिजारती किस्म के काग़ज़ात हैं। ली यूका का नाम उनमें कई जगह दोहराया गया है। कई कागज़ात चीनी और जापानी जबानों में भी हैं, जिन्हें मैं समझ न सका।”

“फिर आप को ली यूका की हिस्ट्री किस तरह मालूम हुई?”

“ओह! तो फिर मैंने हांगकांग में ली यूका के बारे में छानबीन की थी। मुझे सब कुछ मालूम हो गया था, लेकिन यह न मालूम हो सका कि ली यूका कौन है, और कहाँ है। उसके एजेंट आए दिन गिरफ़्तार होते रहते हैं। लेकिन उनमें से आज तक कोई ली यूका का पता न बता सका। वैसे नाम दो सौ साल से ज़िंदा नहीं है।”

इमरान थोड़ी देर तक कुछ सोचता रहा, फिर बोला, “ये लोग कब से आपके पीछे लगे हैं?”

“आज की बात नहीं!” कर्नल बुझा हुआ सिगार सुलगाकर बोला, “काग़ज़ात मिलने के छः माह बाद ही वे मेरे पीछे लग गए थे, लेकिन मैंने उन्हें वापस नहीं किये। कई बार वे चोरी-छिपे मेरे घर में भी दाखिल हुए, लेकिन उन्हें काग़ज़ात की हवा भी न लग सकी। अब उन्होंने अखिती हर्बा इस्तेमाल किया है। यानी मौत के निशान भेजने शुरू किए हैं, जिसका यह मतलब है कि अब वे मुझे ज़िंदा न छोड़ेंगे।”

“अच्छावो चीनी भी कभी दिखाई दिया था, जिससे कागज़ात आपको मिले थे?”

“कभी नहीं…वह कभी नहीं दिखाई पड़ा।”

कुछ देर तक ख़ामोशी रही, फिर इमरान बड़बड़ाने लगा।

“आप उसी वक़्त तक ज़िन्दा हैं, जब तक काग़ज़ात आपके कब्जे में है।”

“बिल्कुल ठीक!” कर्नल चौंककर बोला, “तुम वाकई बहुत ज़हीन हो!…यही वजह है कि मैं इन काग़ज़ात को वापस नहीं करना चाहता, वरना मुझे इनसे ज़र्रा बराबर भी दिलचस्पी नहीं! बस यह समझ लो कि मैंने सांप का सिर पकड़ रखा है। अगर छोड़ता हूँ, तो वे पलटकर यकीनन डस लेगा।”

“क्या मैं उन कागज़ात को देख सकता हूँ?”

“हरगिज़ नहीं। तुम मुझसे सांप की गिरफ्त ढीली करने को कह रहे हो।”

इमरान हँसने लगा। फिर उसने कहा, “आपने कैप्टन को क्यों बीच में डाला?”

“उसके फरिश्तों को भी अस्ल वाक़यात की ख़बर नहीं। वह तो सिर्फ़ इतना जानता है कि मुझे कुछ आदमियों की तरफ से खतरा है। लेकिन मैं किसी वजह से पुलिस को उस मामले में दखल देने की दावत नहीं दे सकता।”

“तो आप मुझे भी ये सारी बातें न बता ते।” इमरान ने कहा।

“बिल्कुल यही बात है! लेकिन तुम्हारे अंदर शैतान की रूह मालूम होती है।”

“इमरान की!” इमरान संजीदगी से सिर हिलाकर बोला, “बरहलाल, आपने मुझे बॉडी गार्ड के तौर पर बुलावाया है।”

“मैं किसी को भी न बुलवाता। यह सब कुछ सोफिया ने किया है। उसे हालात का इल्म है।”

“और आपके भतीजे?”

“उन्हें कुछ भी मालूम नहीं!”

“आपने उन्हें कुछ बताया तो होगा ही।”

“सिर्फ़ इतना कि कुछ दुश्मन मेरी ताक में हैं और बंदर उनका निशान है।”

“लेकिन इस तरह भरी हुई रायफलों के साथ रात भर जगने का क्या मतलब है? क्या आप यह समझते हैं कि वे आप के सामने आकर हमला करेंगे?”

“मैं यह भी बच्चों को बहलाने के लिए करता हूँ।”

“खैर मारिये गोली!” इमरान ने बेपरवाही से कंधों को हिलाते हुए कहा, “मैं सुबह की चाय के साथ बताशे और लेमन ड्रॉप्स इस्तेमाल करता हूँ।”

“हूं! तुम ठीक कहती हो।” कर्नल बोला। अब उसकी नज़रें इमरान के चेहरे से हटकर उसकी बंदूक पर जम गई।

उसने आगे बढ़कर बंदूक उठा ली और फिर उसे गिलाफ़ से निकालते ही बुरी तरह बिफर गया।

“क्या बेहूदगी है?” वह हलक फाड़ कर चीखा, “यह तो सचमुच एयरगन है।”

इमरान के इत्मीनान न में ज़र्रा बराबर भी फर्क नहीं आया।

उसने सिर हिलाकर कहा, “मैं कभी झूठ नहीं बोलता।”

कर्नल का पारा इतना चढ़ा है कि उसकी लड़की उसे धकेलती हुई कमरे के बाहर निकाल ले गई। कर्नल सोफिया के अलावा और किसी को खातिर में न लाता था। अगर उसकी बजाय किसी दूसरे ने यह हरकत की होती, तो वह उसका गला घोंट देता। उनके जाते ही इमरान इस तरह मुस्कुराने लगा, जैसे यह बड़ी सुखद घटना हो।

थोड़ी देर बाद सोफिया वापस आई और उसने इमरान से दूसरे कमरे में चलने को कहा।

इमरान खामोशी से उठकर उसके साथ हो लिया। सोफिया ने भी इसके अलावा और कोई बात नहीं की। शायद वह कमरे पहले ही से इमरान के लिए तैयार रखा गया था।

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