चैप्टर 29 मैला आँचल फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास | Chapter 29 Maila Anchal Phanishwar Nath Renu Novel

चैप्टर 29 मैला आँचल फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास | Chapter 29 Maila Anchal Phanishwar Nath Renu Novel, Maila Anchal Phanishwar Nath Renu Ka Upanyas 

Chapter 29 Maila Anchal Phanishwar Nath Renu 

Chapter 29 Maila Anchal Phanishwar Nath Renu Novel

कल ‘सिरवा’ पर्व है।

कल पड़मान में ‘मछमरी’ होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सभी टापी और जाल लेकर सुबह ही निकलेंगे। आज दोपहर को सत्तू खाएँगे। सतुआनी पर्व है आज। आज रात की बनी हुई चीजें कल खाएँगे। कल चूल्हा नहीं जलेगा। बारहों मास चूल्हा जलाने के लिए यह आवश्यक है कि वर्ष के प्रथम दिन में भूमिदाह नहीं किया जाए। इस वर्ष की पकी हुई चीज उस वर्ष में खाएँगे।

सारे मेरीगंज के मछली मारनेवालों का सरदार है कालीचरन । भुरुकवा उगने के । समय ही निकलना होगा। बारह कोस जमीन तय करना होगा। इस कालीचरन ने ऐलान कर दिया है, जुलूस बनाकर चलना होगा, लाल झंडे के साथ। नारा भी लगाते चलना होगा। जमींदार फैजबख्श अली ने इस बार पड़मान नदी के ‘जलकर’ को खास में रखा है ! उसके अमलों ने कहा है कि मछली नहीं मारने देंगे, मलेटरी मँगाकर तैनात रखेंगे। देखना है मलेटरी को!

नए तहसीलदार बाबू हरगौरीसिंह के यहाँ नया खाता खुलेगा। शाम को सतनारायण की पूजा होगी। डाक्टर को भी निमन्त्रण है।

तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद ने तहसीलदारी छोड़ दी है तो क्या, नया खाता भी न करेंगे ? उनके यहाँ भी सत्यनारायण व्रत की कथा होगी। डाक्टर साहब को निमन्त्रण है।

मौसी ने होली में डाक्टर को नहीं खिलाया था। इस बार डाक्टर को वही खिलाएगी।

मठ पर भी नया खाता होता है। इस बार नए महन्थ रामदास जी के हाथ से खाता खुलेगा। इसीलिए विशेष आयोजन है। बीजक पाठ, साहेब भजनावली, ध्यान और अन्त में वैष्णव-भोजन। बालदेव जी और बावनदास को विशेष निमन्त्रण है। लछमी दासिन ने भंडारी के मार्फत कहला भेजा हे, “बालदेव जी जरूरी आवें। गाँव में वैष्णव है ही और कौन !”

बेतार सुमरितदास अब नए तहसीलदार का कारपरदाज है। वह कहता फिरता है, ‘हरगौरीबाबू हीरा आदमी है। सारा कागज-पत्तर हमीं पर फेंककर निश्चिन्त ! देखिए तो, हम कितना समझाते हैं कि बाबू साहेब ! बही-बस्ता, सेयाहा और कर्चा किसी दूसरे को छूने नहीं देना चाहिए। लेकिन हरगौरीबाबू हीरा आदमी हैं। विश्वनाथपरसाद तो एक नम्मर के मखीचूस और सक्की आदमी हैं। कायस्त और राजपूत का कलेजा बराबर हो भला !..हूँ ! कँगरेसी हुए हैं ! सुमरितदास से कौन बात छिपी हुई है ? अब तो गाँव का चाल-चलन एकदम बिगड़ जाएगा। जवान बेटी को एक परदेसी जवान के साथ हँसी-मसखरी करने की, घूमने-फिरने की आजादी दे दी है विश्वनाथपरसाद ने। गाँव का चाल-चलन नहीं बिगड़े तो सुमरितदास का नाम बदल देना।”

नए तहसीलदार बाबूहरगौरीसिंह के यहाँ रात में एक भी रैयत नहीं आया। पुन्याह में जो सलामी मिलती है, वह रकम जमींदार की होती है, लेकिन खाता खुलने के दिन की सलामी तो तहसीलदार की खास आमदनी है। सुमरितदास ने आकर खबर दी-“सभी रैयत विश्वनाथपरसाद के यहाँ गए थे। डेढ़ सौ रुपए सलामी में पड़े थे। मछली मारकर लौटते समय रास्ते में रैयतों ने मिटिन किया था कि नए तहसीलदार के यहाँ नहीं जाएँगे। कुकरा का बेटा कालिया लीटरी करता है। बाप काटे घोड़ा का घास और बेटा का नाम दुरगादास ! अभी ततमाटोली का बिरंचिया कहता था कि रैयतों का पेट जो भरेगा वही असल जमींदार है। नए तहसीलदार ने कभी एक चुटकी धान भी दिया है ?…शास्तर-वचन कभी झूठ नहीं होता…राई एडं कनमोचड़, जूता मारं पवित्तरम ! समझे तहसीलदार साहब, राड़ और काँटों को काँटीवाले जूते से बस में किया जाता है।”

बालदेव जी का काम छूट गया।

कपड़े, चीनी और किरासन तेल की पुर्जी अब तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद देंगे। बालदेव जी को क्यों छुड़ा दिया ?…सायद उनका बिलेक पकड़ा गया। पाप कितने दिनों तक छिपेगा ? खेलावन ने जो परमेसरसिंघ की जमीन मोल ली है, सो किस रुपए से ? वह बालदेव जी की ही जमीन है। खेलावन के घर में जाकर देखा, आज भी गाँठ-के-गाँठ कपड़ा पड़ा हुआ है; टीन-का-टीन तेल है। खेलावन के सभी सगे-सम्बन्धियों के यहाँ कपड़े गए हैं। यह बात कितने दिनों तक छिपी रहेगी ? सुनते हैं कि कैंगरेस ने अपना खौफिया बहाल किया है। अँगरेजी का खौफिया तो ऊपर से ही किसी बात का पता लगाता था, कैंगरेस के खौफिया को हाँड़ी के चावल का भी पता रहता है।

स्त्री की मृत्यु के बाद जोतखी जी बहुत गुमसुम रहते हैं।…डाक्टर को कितना कहा कि कोई दवा देकर रामनारायण की माँ को उबारिए, लेकिन कौन सुनता है ! बस, एक ही जवाब। बच्चा को पेट काटकर निकालना होगा। शिव हो ! शिव हो ! पराई स्त्री ‘को बेपर्द करने की बात कैसे उसके मुँह से निकली ?…पारबती की माँ ने बदला ले लिया। पाँच साल पहले पंचायत में जोतखी जी ने कहा था कि पारबती की माँ को मैला घोलकर पिलाया जाए। विश्वनाथप्रसाद ने पारबती की माँ का पक्ष लिया था, नहीं तो उसी बार उसका सभी ‘गुण-मन्तर’ शेष हो जाता।…इस बार पारबती की माँ ने बदला चुका लिया।…अच्छा ! ब्राह्मण का श्राप निष्फल नहीं होगा। देखना, देखना ! इस कलियुग में भी असल ब्राह्मण रहता है, देखना !

अरे ! वह जमाना चला गया जब राजपूतटोली और बाभनटोली के लोग बात-बात में लात-जूता चलाते थे। याद नहीं है ? एक बार टहलू पासवान का गुरु घोड़ी पर चढ़कर आ रहा था। गाँव के अन्दर यदि आता तो एक बात भी थी। गाँव के बाहर ही सिंघ जी ने घोड़ी पर से नीचे गिराकर जूते से मारना शुरू कर दिया था-‘साला दुसाध, घोड़ी पर चढ़ेगा !’…अब वह जमाना नहीं है। गाँधी जी का जमाना है। नया तहसीलदार हुआ है तो क्या ? हमारा क्या बिगाड़ लेगा ? न जगह न जमीन है; इस गाँव में नहीं उस __ गाँव में रहें, बराबर है।…धमकी देते हैं कि जूते से रैट करेंगे। अच्छा ! अच्छा !

युगों से पीड़ित, दलित और अपेक्षित लोगों को कालीचरन की बातें बड़ी अच्छी लगती हैं। ऐसा लगता है, कोई घाव पर ठंडा लेप कर रहा हो। लेकिन कालीचरन कहता है-“मैं आप लोगों के दिल में आग लगाना चाहता हूँ। सोए हुए को जगाना चाहता हूँ। सोशलिस्ट पाटी आपकी पाटी है, गरीबों की, मजदूरों की पाटी है। सोशलिस्ट पाटी चाहती है कि आप अपने हकों को पहचानें। आप भी आदमी हैं, आपको आदमी का सभी हक मिलना चाहिए। मैं आप लोगों को मीठी बातों में भुलाना नहीं चाहता। वह काँगरेसी का काम है। मैं आग लगाना चाहता हूँ।”

कालीचरन आग उगलता है, लेकिन सुननेवालों का जलता हुआ कलेजा ठंडा हो जाता है।…जमीन, जोतनेवालों की ! पूँजीवाद का नाश !

बावनदास फिर एक फाहरम लाया है। मन्त्री जी ने भेज दिया है। इस बार पटना का छापा फाहरम है, पुरैनियाँ का नहीं। पटना का फाहरम कच्चा नहीं हो सकता।… इस फाहरम पर अपना नाम, अपने बाप का नाम, जमीन का खाता नम्बर, खसरा नम्बर लिखकर पुरैनियाँ कचहरी में दे दो ‘दफा 40’ के हाकिम को। जमीन नकदी हो जाएगी। सच ?…हाँ, अँगूठे का टीप देना होगा।…और जिन लोगों ने चरखा-सेंटर में दसखत करना सीख लिया है, उन्हें भी टीप देना होगा ?

बालदेव जी क्या करें ? खेलावन भैया कुछ समझते ही नहीं। रोज कहते हैं, “बालदेव, कमला किनारेवाली जमीन में कलरू पासवान के दादा का नाम कायमी बटैयादार की सूरत से दर्ज है। कलरू से कहकर सुपुर्दी दिला दो।…लेकिन बालदेव जी क्या करें ? चौधरी जी को वह सब दिन से गुरु की तरह मानता आ रहा है। कभी किसी काम में तरौटी नहीं होने दिया। इतना चौअन्नियाँ मेम्बर बनाकर दिया। गाँव में चरखा-सेंटर खुलवा दिया, लेकिन जिला कमेटी के मेम्बर तहसीलदार साहब हो गए। बालदेव को कोई खबर नहीं दी गई। कपड़े की मेम्बरी भी नहीं रही। नीमक कानून के समय से जेल जाने का यही बख्शीस मिला है। कालीचरन की पाटीवाले ठीक कहते हैं, “काँगरेस अमीरों की पाटी है।”…लेकिन वह कालीचरन की पाटी में तो नहीं जा सकता। कालीचरन की आँखें उसने ही खोलीं। रात-रात-भर जागकर कालीचरन को जेहल का कितना किस्सा, गाँधी जी का किस्सा, जमाहिरलाल का किस्सा सुनाया। कालीचरन उसका चेला है। वह आखिर चेला की पाटी में जाएगा ? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता !…खेलावन भैया कुछ नहीं समझते हैं। पासवानटोली में अब उसकी पैठ नहीं। कलरू उसकी बात नहीं मानेगा। उसका लीडर कालीचरन है।…तहसीलदार साहब को तो लोग डर से लीडर मानते हैं।

नए तहसीलदार साहब भी फेहरिस्त तैयार कर रहे हैं। सुमरितदास सबों का नाम “लिखा रहा है- “सबसे पहले लिखिए बिरंचिया का नाम। सोनमा दुसाध, किराय कोयरी, ये सब देनदार कलम हैं। अब लिखिए-झोंपड़िया कलम। हाँ, जिन लोगों को अपनी झोंपड़ी के सिवा कुछ भी नहीं।…बस, यह फिरिस्त मनेजरसाहब को दे दीजिएगा और कहिएगा कि खेमा लेकर जल्दी इलाके में आवें, नहीं तो सारा सर्किल खराब हो जाएगा।”

लछमी दासिन के दिल में बालदेव जी ने घर कर लिया है। खाता-बही के दिन आए थे। एकदम सूख गए हैं बालदेव जी। लछमी कितनी समझाती है कि कामकाज छोड़कर कुछ दिन आराम कीजिए, लेकिन कौन सुनता है ? पहले जान तब जहान ! जब शरीर ही नहीं रहेगा तो परमारथ का कारज कैसे होगा ? शरीर ही तीरथ है। कितना कहने पर, सतगुरुसाहेब की कसम धराने पर यह मंजूर किया है कि एक बेला रोज मठ पर आया करें। शाम के सतसंग में बैठेंगे। भंडारी से कह दिया है घी और दूध की मलाई रोज कटोरे में चुराकर रख दिया करेगा। रामदास बालदेव का आना पसन्द नहीं करता है।…जैसे भी हो, बालदेव जी के शरीर की सेवा करेगी लछमी। अब बालदेव जी के आने में जरा भी देर होती है तो लछमी का दिल धड़कने लगता है; मन चंचल हो जाता है। सतगुरुसाहेब ने कहा है :

ई मन चंचल, ई मन चोर,

ई मन शुध ठगहार

मन मन करत सुर नर मुनि

मन के लक्ष दुआर।

लछमी का मन चंचल है, पर चोर नहीं। बालदेव जी चोरी से उसके मन में नहीं आते हैं। मन के लक्ष दुआर हैं, बालदेव जी एक ही साथ लक्ष दुआर से उसके मन में पैठ जाते हैं…एक लक्ष बालदेव जी !

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