Chapter 27 Zindagi Gulzar Hai Novel In Hindi

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१० फ़रवरी – कशफ़
इस वक़्त १० बज रहे हैं. आज गुजरात में मेरी पोस्टिंग का आखिरी दिन था. आज मैं नए आने वाली ए.सी. को चार्ज दे चुकी हूँ और कल मुझे फैसलाबाद में चार्ज लेना है. पता नहीं सियासी तब्दीलियों की साथ ये इंतज़ामी तब्दीलियाँ क्यों शुरू हो जाती है? मैं ज़हनी तौर पर पहले ही अपना चार्ज छोड़ने के लिए तैयार थी, क्योंकि सूबा में बड़े पैमाने पर इंतज़ामी तब्दीलियाँ हो रही थी, फिर मैं इस वबा (महामारी) से कैसे बच सकती थी?
मैं कभी भी गुजरात में पोस्टिंग के डेढ़ साल नहीं भूल सकती. यही मेरी ज़िन्दगी का सबसे यादगार अरसा है. अगर सोचूं कि इन डेढ़ सालों में सबसे अच्छा काम कौन सा किया, तो ज़हन पर ज्यादा ज़ोर देना नहीं पड़ेगा. अपने मंझले मामू के बड़े बेटे को पुलिस कस्टडी से छुड़वाना ही सबसे बेहतरीन काम था. उस पर कार चोरी का इल्ज़ाम लगाया गया था और वो इस जुर्म से इंकारी था, हालांकि मैं जानती थी कि तफ़रीहन (दिल्लगी के लिए) सही, मगर उसने ये काम ज़ररूर किया होगा. इसके बावजूद मैं अपनी माँ के कहने पर मजबूर हो गई और जिस आदमी की कार चोरी हुई थी, उसे मजबूर किया कि वो मेरे मामू के साथ कॉमप्रोमाईज़ कर लें. ये काम मेरी ज़िन्दगी का सबसे मुश्किल काम था, क्योंकि मुझे जिन लोगों से नफ़रत है, उनमें मंझले मामू का खानदान भी शामिल है.
जब हम अपने हालत के बिगड़ जाने की वजह से उनके घर रहने को मजबूर हुए, तो उनका सुलूक हमारे साथ इंसानियत से गिरा हुआ था. मुमानी हमेशा हमें खाने के वक़्त कहा करती कि हम थोड़ा खाना लें, क्योंकि बाकी लोग ने भी खाना है और हम हैरान होकर उनका मुँह देखा करते थे कि क्या इतना खाना खा रहे हैं कि वो ये कहने पर मजबूर हो गयी हैं.
अखबार पढ़ने के लिए मैं मुमानी के कमरे में १०-१० चक्कर लगाया करती थी और उन्होंने अखबार पढ़ भी लिया होता था, तब भी मुझे आता देख वो दोबारा अखबार उठा लेती थीं.
नाश्ते में हमें डबल रोटी नहीं मिलती थी. लेकिन चूहों की कुतरी हुईं डबल रोटी के पूरी लिफ़ाफ़े वेस्ट-बिन में पड़े होते. हम लोग टीवी देखने उनके कमरे में जाते, तो वो या उनका कोई बच्चा टीवी बंद कर देता. ज़िल्लत के वो ३ साल मेरे लिए बहुत अहम् साबित हुए थे. उन्होंने आगे पढ़ने के लिए मुझे तैयार किया था. तब मैं १२ साल की थी और उनकी सारी बातें आज भी मेरे ज़हन पर नक्श (खुदा हुआ होना) है.
आजिद को छुड़वाने पर मैं अम्मी की वजह से मजबूर हुई थी और मैं हैरान थी कि क्या अम्मी वो सब भूल गई हैं, मगर वो एक मुहब्बत करने वाली बहन हैं और ऐसी बहनें याददाश्त के मामले में हमेशा कमज़ोर होती हैं.
इस डेढ़ साल में मैं अपने रिश्तेदारों के बहुत से छोटे-बड़े काम करती रही हूँ और अब मेरे सिर पर ये बोझ नहीं है कि मैंने उनके लिए कभी कुछ नहीं किया. मैंने सारा एहसान नहीं तो उसका बड़ा हिस्सा उतार दिया है. अब उनके सामने मेरी गर्दन पहले की तरह झुकी नहीं रहेगी. मुझे अपनी ट्रांसफर से ख़ुशी हुई है, क्योंकि इसने मेरे ज़हनी दबावों को कम कर दिया है. मैं चाहूंगी आइंदा मेरी पोस्टिंग कभी गुजरात में ना हो. शायद मैं दोबारा किसी के काम आना नहीं चाहती.
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