चैप्टर 2 प्यासा सावन गुलशन नंदा का उपन्यास | Chapter 2 Pyasa Sawan Gulshan Nanda Novel

चैप्टर 2 प्यासा सावन गुलशन नंदा का उपन्यास | Chapter 2 Pyasa Sawan Gulshan Nanda Novel, Gulshan Nanda Ka Upanyas 

Chapter 2 Pyasa Sawan Gulshan Nanda

Chapter 2 Pyasa Sawan Gulshan Nanda

“तो इस लाल गुलाब के साथ उनके जीवन का अवश्य कोई गहरा संबंध होगा।”

” संभव है;”

” किंतु लाल गुलाब से रुचि लेना कोई अच्छा लक्षण नहीं है। शायद हृदय की दबी चिंगारियों को उजागर करने का कोई रूप हो यह।”

” आपको तो सफेद गुलाब पसंद होगा?”

“जी..!” वह चौंक पड़ा और अर्चना की ओर उखड़ी दृष्टि से देखते हुए बोला, “आपका अनुमान ठीक है। वास्तव में जीवन की सादगी श्वेतपन में ही छिपी हुई है।”

अर्चना लजा सी गई। उसे लगा कि यह वाक्य उसने फूलों की अपेक्षा उस पर अधिक कहा है। विषय बदलती हुई वह बोली, “सुबह होने से पूर्व आपको यह कमरा छोड़ देना होगा।”

“जी, आज्ञा का पालन होगा।” राकेश मुस्कुराया।

“और यह बात हम दोनों तक ही सीमित रहनी चाहिए।”

“तथास्तु!” राकेश ने गर्दन झुकाई।

अर्चना ने ने एक बार मौन दृष्टि से उसे देखा और फिर कमरे के बारे में अन्य निर्देश देने लगी। इसके पूर्व कि राकेश उसका आभार प्रदर्शित करता, वह कमरे से चली गई।

राकेश कुछ क्षणों तक वहीं निश्चेष्ट खड़ा रहा अर्चना उसकी दृष्टि से ओझल हो चुकी थी, परंतु वह उसकी कल्पना में विद्यमान थी। कमरे के बंद वातावरण में बरखा का शोर सुनाई दे रहा था।

धीरे धीरे चलता हुआ वह सामने बिछे आरामदेह बिस्तर तक जा पहुंचा। सावधानी से उसने अपना एक अपना कोट एक ओर फेंका, टाई की गांठ ढीली की और लेटने से क्षण भर पहले उसने खिड़की से बाहर हवा और बादल की तूफान की तीव्रता का अनुमान लगाया। आकाश पर घटाओं में जब बिजली कौंधती, तो दूर-दूर तक धुंध फैली दिखाई देती। बंद खिड़की के शीशे पर बरखा की मोटी बूंदी इस प्रकार पड़ती, जैसे कोई उसके हृदय के धधकते शोलों पर छींटे दे रहा हो।

अर्चना की कृपा से राकेश मीलों की यात्रा की थकान पल भर में भूल गया। 

वर्षा का शोर अभी तक घाटी को अपनी लपेट में लिए हुए था। अर्चना जब काउंटर पर लौटी, तो बादल जोर से गरजने लगे।

फिर इतनी भयानक आवाज से बिजली कड़की, जैसे पास ही किसी वृक्ष या भवन पर गिरी हो। अर्चना भयभीत होकर कांपी और फिर संभलकर रजिस्टर पर झुक गई। थोड़ी देर बाद टेलीफोन की घंटी बजी। अर्चना ने रिसीवर उठाकर सुना – दिल्ली से ट्रंककाल था, कोई महाशय कमरा बुक करवाना चाहते थे।

अचानक रिसीवर अर्चना के हाथ में कांपने लगा। उसके शरीर में बिजली सी कौंध गई। बाहर पोर्टिको में अभी अभी रुकी कार की परिचित आवाज ने उसके मस्तिष्क में खलबली मचा दी। उसने रिसीवर रख दिया और चिंतित दृष्टि से मुख्य द्वार की ओर देखने लगी। उसकी मालकिन कमलाजी इस भयंकर तूफान में भी लौट आई थी। उनका सामना होती ही अर्चना के हाथ-पैर फूल गए। उसे लगा जैसे उसका सिर मनों भारी हो उठा हो।

कमला जी 35 वर्ष की एक सुंदर महिला थी। भरा भरा शरीर, गोरे मुख पर संपन्नता और समृद्धि के चिन्ह, कटे हुए शुष्क बाल और मोटी मोटी नशीली आंखें, जो सदा मुस्कुराती मालूम होती थी। उन्होंने बहुमूल्य गुलाबी कोट पहन रखा था, जो उनके भरे हुए सुंदर कूल्हो तक पहुंचता था। कोट के नीचे मोटी ऊन का कार्डिगन था। भूरे रंग की चुस्त पतलून सुडौल जांघों और पिंडलियों को उजागर कर रही थी। उनके पीछे रबड़ के काले जूते में छिपे हुए थे। भीतर आते ही वह अर्चना की ओर देख कर मुस्कुराई। अर्चना ने हाथ जोड़कर स्वागत किया।

कमला जी बड़ी रौबीली चाल से चलती है काउंटर के पास पहुंची। अर्चना का चेहरा सफेद पड़ गया था। उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा जा रहा था। उसे बिल्कुल आशा न थी कि इतनी रात की और इस भयंकर तूफान में वो पहलगाम से लौट आएंगी। उसने राकेश के साथ जो स्नेह और दया का व्यवहार किया था, अब और महंगा पड़ता दिखाई दे रहा था। सहानुभूति दुर्भाग्य बन गई।

“कितना भयानक मौसम है।” कमला जी ने आते ही कहा, “इस मौसम में पहलगाम उजाड़ लग रहा था, काटने को दौड़ता था। इसलिए बारिश और तूफान का ध्यान किए बिना ही इतनी रात गए में लौट आई।”

“आपने बहुत अच्छा किया आंटी। मुझे तो बड़ी चिंता हो रही थी। आइए हीटर के पास…!” उसने एक ओर हटते हुए आंटी को इलेक्ट्रिक हीटर के पास आने का संकेत किया।

कमला जी हीटर के पास आकर खड़ी हुई। बैरा उनका सामान भीतर ले आया था। अर्चना का ध्यान इस समय कहींऔर था। उसका मस्तिक चक्कर में पड़ गया। वह उस बला को किसी प्रकार टालने का उपाय सोच रही थी, जो उसने स्वयं ही अपने सिर ले ली थी। एकाएक व काउंटर से बाहर आई।

“कहां जा रही हो अर्चना?जेड कमला देवी ने पूछा।

” आप कुछ देर यूं ही हीटर के पास अपने आप को गर्म कीजिए, तब तक मैं आपका कमरा गर्म करा देती हूं। आज कितना शीत है।” और यह कहते हुए अर्चना तेजी से दाहिनी ओर मुड़कर सीढ़ियों की ओर बढ़ गई।

कमला जी ने मुस्कुराकर उधर देखा और स्वयं धीरे से बोली – “कितनी प्यारी लड़की है। कितना ध्यान रखती है मेरा।” यह कहते हुए उनकी दृष्टि जाती अर्चना की पीठ पर स्नेह भरी थपकी देने लगी।

अर्चना शीघ्र पांव उठाती हुई मालकिन की कमरे की ओर बढ़ी। घबराहट में उसकी सांस घुटी जा रही थी। मालकिन के आने से पूर्व ही वह राकेश को वहां से हटा देना चाहती थी। गैलरी में एक ओर जाकर वह झट होटल के टेलीफोन बूथ में पहुंची। उसने कांपती उंगलियों से मालकिन के कमरे का फोन नंबर डायल किया। दूसरी ओर घंटी बजी, किंतु किसी ने रिसीवर नहीं उठाया। अर्चना ने घबराकर दोबारा नंबर मिलाया। अभी के भी कोई नहीं बोला। वह चाहती थी कि उसे मालकिन का द्वार खटखटा न पड़े। राकेश को फोन पर सूचित कर दें कि मालकिन आ गई है और वह चुपके से उनका कमरा खाली कर दे। किंतु वहां से कोई उत्तर ही नहीं आ रहा था। घंटी निरंतर बजी जा रही थी। शायद गहरी नींद सो रहा था। अर्चना ने झुंझलाकर रिसीवर रख दिया और बिजली की तेजी से कमला देवी के कमरे की ओर लपकी। वह डर रही थी कि कहीं देर होने से स्थिति कोई भयानक रूप धारण कर ले।

मालकिन कि कमरे के सामने खड़े होकर उसने धीरे से दूसरी चाबी से द्वार खोला और धड़कते हुए हृदय से अंदर प्रवेश किया। सामने बिस्तर पर राकेश गहरी नींद में सोया हुआ था। उसे क्या पता था कि उसकी भलाई करने वाली अर्चना को उसने किस संकट में डाल दिया था।

अर्चना ने द्वार भीतर से बंद कर दिया और राकेश के सिरहाने खड़ी होकर उसे जगाने लगी। राकेश ने आंखें खोली, पलकें झपकी और आश्चर्यचकित अर्चना को देखने लगा।

“जल्दी कीजिए, मालकिन वापस आ गई हैं। जितनी शीघ्र हो सके, कमरे से बाहर चले जाइए।” अर्चना ने उखड़ी हुई सांसो में कहा।

राकेश को जैसे एकाएक बिच्छू ने काट लिया हो। वह हड़बड़ा कर उठा और झट खूंटी से अपना सूट और ओवर कोट उतारकर दाएं बाएं देखने लगा।

“अर्चना क्या तुमने भीतर से किवाड़ बंद कर लिए हैं?” सहसा बाहर से कमला देवी की आवाज आई।

राकेश घबरा कर द्वार खोलने के लिए बड़ा ही था कि अर्चना ने झट उसका हाथ पकड़कर पीछे खींच लिया और चुप रहने का संकेत करती हुए कपड़ों की अलमारी के पास खींच ले गई। उसने झट अलमारी के पट खोले और राकेश को भीतर धकेल कर तुरंत बंद करके बाहर से चाबी लगा दी। राकेश बिना कुछ कहे चुपचाप अलमारी में खड़ा हो गया। इस संकट से बचने के लिए इस समय और उपाय ही क्या था? इधर से निश्चिंत होकर अर्चना झट द्वार की ओर बढ़ी और किवाड़ खोलते हुए बोली, “आइए आंटी सब ठीक है..!”

द्वार के पास खड़ी कमलादेवी बैरे को कुछ निर्देश देने लगी। अर्चना ने झट बढ़कर उनका बिस्तर ठीक कर दिया। चादर पर उसे राकेश का टाइपिन पड़ा दिखाई दिया, जिसे उसने झट उठाकर गुलदान में फेंक दिया।

कमलादेवी भीतर आई। उनके पीछे दो बैरों ने उनका सामान उठा रखा था।

“अब आप आराम कीजिए आंटी ..आप बहुत थक गई होंगी।” अर्चना ने होठों पर फीकी मुस्कुराहट लाते हुए कहा।

“तू कितना ध्यान रखती है मेरा अर्चना।”

“वह तो रखना ही पड़ेगा, आपकी बेटी जो हूं।” न जाने क्यों इन शब्दों पर कमला जी भीगी पलकें भीग गईं। अपने हृदय की घबराहट दूर करने के लिए वह बैरों द्वारा उनका सामान एक ओर लगवाने लगी। 

इससे निपट कर बाहर जाने के लिए द्वार की ओर बढ़ी ही थी कि कमला देवी ने कहा, ” मैं कपड़े बदल लूं। तब तक तुम मेरे सूट केस से चीजें निकालकर अलमारी में रखवा दो।”

कमला जी सूटकेस से गाउन निकालकर बाथरूम की ओर बढ़ गई। अलमारी का शब्द सुनते ही अर्चना के पैरों तले से जैसे धरती खिसक गई। उसने हड़बड़ाकर मालकिन की ओर देखा और फिर संभलते हुए झट बोली, ” आप अलमारी की चाबी मुझे दे गई थीं, वह तो मैं लाना भूल गई। ठहरिए, मैं भी आई।” यह कहकर अर्चना तेजी से बाहर निकल गई।

अलमारी में बंद राकेश यह वार्तालाप सुन कर घबरा गया। वह सोचने लगा, दुर्भाग्य ने उसे किस झंझट में डाल दिया। उसकी सांस घुटने लगी और हृदय तेजी से धड़कने लगा।

कमलाजी बाथरूम से बाहर निकल आईं। उन्होंने अब हल्के नीले रंग का स्लीपिंग सूट पहन रखा था। रेशमी सूट ने उनके अंगों को और भी आकर्षक बना दिया था। प्रसन्नता से खिला हुआ मुखड़ा, सोने के पूर्व का मेकअप और फबता हुआ स्लीपिंग सूट – कल्पना जी का सौंदर्य अत्यधिक मोहक हो गया था। उन्होंने दीवार पर टंगा मेंडोलिन उतारा और गुनगुनाते हुए किसी पश्चिमी गीत की धुन छेड़ दी। क्या स्वर था? क्या संगीत था? मानो बरखा की फुहार में कोई अल्हड़ युवती मन में आशाओं का संसार लिए, झूमती, नाचती, गाती लहराती, अपने प्रेमी से मिलने जा रही हो।

राकेश को इस मधुर स्वर ने जैसे झंझोड छोड़ दिया। वह इस छोटे से बंदी गृह में कसमसाने लगा। क्या दोष था उसका? क्या अपराध था उसका? उसका मन चाहा कि वह चीखे, चिल्लाए और ठोकरों से अलमारी तोड़ दे।

अचानक बाहर कई पावों की आहट सुनाई दी। कमलाजी ने एकाएक संगीत बंद कर दिया और द्वार की ओर देखने लगी, जिसमें से चार बैरे एक बड़ी अलमारी को उठाकर भीतर चले आ रहे थे। अर्चना उनके पीछे थी।

“यह क्या? नई अलमारी किस लिए?” कमला देवी ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।

“आपकी अलमारी का ताला खराब है, स्वयं ही खुल जाता है। स्टोर में नई अलमारी रखी थी, सोचा आज ही बदल दूं।”

“इतनी भी क्या शीघ्रता थी। अच्छा अब आ ही गई है, तो बदल डालो।” 

बैरों ने नई अलमारी कमरे में टिका दी और पुरानी अलमारी उठाकर बाहर ले गए। बोझ से उनके शरीर टूट रहे थे, किंतु अर्चना “शाबास सावधानी से” कहती हुई उनका उत्साह बढ़ाये जा रही थीm राकेश को भीतर यूं अनुभव हो रहा था, मानो उसे बांधकर उल्टा लटका दिया गया हो। वह पुकारना चाहता था, किंतु आवाज जैसे उसके गले में अटक गई हो। उसने सोचा, असमय की चीख चिल्लाहट उसके और अर्चना के लिए समस्या बन जाएगी। 

अलमारी के बाहर आते ही अर्चना ने संतोष की सांस ली। आया हुआ संकट टल गया था। उसने शीघ्रता से अलमारी खोली और मालकिन के कपड़े सजाने लगी। कमला देवी ने मेंडोलिन पर पुनः गीत छोड़ दिया। कमरा मधुर स्वरों से गुंजायमान हो उठा।

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