चैप्टर 2 फ़रीदी और लियोनार्ड इब्ने सफ़ी का उपन्यास जासूसी दुनिया सीरीज़

Chapter 2 Fareedi Aur Leonard Ibne Safi Novel

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रहस्यमय आदमी

मशहूर अखबार ‘न्यूज़ स्टार’ के दफ्तर की इमारत रोशनी से जगमगा रही थी। रात के लगभग दस बजे होंगे। ज्यादा सर्दी होने की वजह से सड़कों पर कम ही लोग नजर आ रहे थे। रात के सन्नाटे में अखबार छापने वाली मशीनों की धड़धड़ाहट दूर तक सुनाई दे रही थी। उसके साथ ही कभी-कभी कुत्तों की भौंकने की आवाज में भी फिजा में गूंज उठती थी।

न्यू स्टार के दफ्तर और छापेखाने में लोग तेजी से काम अंजाम दे रहे थे। तभी एडिटर के कमरे में शोर होने लगा। करीब के लोग अपना कामकाज छोड़कर कमरे के दरवाजे पर इकट्ठा हो गए।

एडिटर अपने कमरे के दरवाजे पर खड़े लोगों से कह रहा था, “जाओ तुम लोग यहाँ क्यों इकट्ठा हो गए। जाओ…अपना काम करो।”

लोग धीरे-धीरे अपने कामों में लग गए। एडिटर कमरे में लौट आया। वहाँ एक आदमी आराम कुर्सी पर बेहोश पड़ा था। सब-एडिटर उसके कपड़ों के बटन खोल रहा था।

“दौड़ो जल्दी करो। डॉक्टर को बुलाओ।” एडिटर ने सब एडिटर से कहा। सब एडिटर उस आदमी को उसी हालत में छोड़कर बाहर चला गया।

एडिटर में बैठकर एक सिगरेट सुलगाया और मुस्कुराते हुए बेहोश आदमी की तरफ देखने लगा। बेहोश आदमी ने आराम कुर्सी पर बदस्तूर लेटे ही लेटे खुली आंखों से कमरे का जायजा लिया और एक हाथ अलस्टर के अंदर जेब में डाल कर नोटों का एक बंडल  निकाला और फर्श पर गिरा दिया। एडिटर ने झुककर बंडल उठाया और अपनी जेब में रख लिया। उसके बाद बेहोश आदमी की कुर्सी से एक तह किया हुआ कागज गिरा। एडिटर ने उसे भी उठा कर मेज़ के दराज में रख लिया। फिर कमरे के दरवाजे पर आया और चिक उठा कर इधर-उधर देखने लगा। आसपास कोई मौजूद नहीं था। वह बाहर निकल कर बरामदे में खड़ा हो गया।

थोड़ी देर बाद सब एडिटर डॉक्टर को लेकर आ गया। उन दोनों के पीछे एक आदमी और था। उसने उनके करीब पहुंचकर अपना हैट उतारा और अपना विजिटिंग कार्ड घबराए हुए एडिटर की तरफ बढ़ा दिया। एडिटर डॉक्टर से कह रहा था, “डॉक्टर साहब…! ज़रा देखिए। मैं तो सख्त परेशान हूँ। मालूम नहीं बेचारा किस काम के लिए आया था। कमरे में दाखिल होते ही बेहोश होकर गिर पड़ा।”

“अच्छा मैं देखता हूँ।” यह कहकर डॉक्टर सब एडिटर के साथ कमरे में चला आया। एडिटर वहीं खड़ा आने वाले के विजिटिंग कार्ड को देख रहा था।

“फ़रीदी साहब!” एडिटर ने आने वाले को घूरते हुए कहा, “फ़रमाइए कैसे आना हुआ?”

“कोई ख़ास बात नहीं।” फ़रीदी ने कहा, “पहले आप अपने मरीज़ को देखिए। फिर बाद में बातें होती रहेंगी।”

अरे कमरे की तरफ बढ़ा। उसके पीछे फ़रीदी भी।

“कहिए डॉक्टर साहब, क्या बात है?” एडिटर ने कहा।

“कोई ख़ास बात नहीं। मुझे यह बेहोशी बहुत ज्यादा थकान का नतीजा मालूम होती है।” डॉक्टर ने कहा, “ये जल्द ही होश में आ जायेंगे।”

फ़रीदी ने बेहोश आदमी की तरफ देखा और चौंक पड़ा।

“तशरीफ़ रखिए।” एडिटर ने फ़रीदी से कहा। उसकी आवाज में कंपकंपी थी, जिसे डर का नतीजा कहा जा सकता है।

फ़रीदी ख़ामोशी से एक कुर्सी पर बैठ गया।

“कमज़ोर दिल वाले लोगों पर अक्सर सर्दियों में इस तरह के दौरे पड़ जाते हैं।” फ़रीदी ने कहा।

“आपका ख़याल दुरुस्त है।” डॉक्टर बोला।

“ये हैं कौन साहब?” फ़रीदी ने कहा।

“मालूम नहीं!” एडिटर ने कहा, “इन्होंने चपरासी से अपना विजिटिंग कार्ड भिजवाया था। उसके बाद खुद अंदर आए और बेहोश होकर गिर पड़े। मैं और मेरा असिस्टेंट दोनों यहाँ मौजूद थे। हमने इन्हें उठाकर कुर्सी पर डाल दिया और असिस्टेंट डॉक्टर को लेने चला गया।”

फ़रीदी ने मेज पर से अजनबी का विजिटिंग कार्ड उठाकर देखा, जिस पर लिखा हुआ था –

“प्रिंस ऑफ इराक अदनान!”

फ़रीदी ने सिर हिलाते हुए कहा, “मैं सूरत देख कर ही समझ गया था कि कोई बड़ा आदमी है।”

“जी हाँ! मेरी परेशानी की वजह दरअसल यही चीज थी।” एडिटर सिगरेट सुलगा ता हुए बोला, “लीजिए शौक फरमाइए।” उसने सिगरेट केस फ़रीदी की तरफ बढ़ाया।

“जी शुक्रिया! मैं सिर्फ सिगार पीता हूँ।” फ़रीदी ने कहा।

“अजीब मुसीबत है!” एडिटर ने बेहोश आदमी की तरफ देखते हुए कहा, “अगर इस तरह का ख़तरनाक मर्ज़ है, तो ऐसे लोग वक्त बेवक्त घर ही से क्यों निकलते हैं।”

थोड़ी देर बाद अजनबी को होश आ गया। वह सीधा होकर बैठ गया। उसने चुंधयाई हुई आँखों से चारों तरफ देखा और मुस्कुराहट के साथ अंग्रेजी में बोला, “मुझे अफ़सोस है कि मेरी वजह से आप लोगों को परेशानी उठानी पड़ी।”

“कोई बात नहीं।” एडिटर ने मुस्कुराकर कहा, “फरमाइए कैसे तशरीफ़ लाए थे?”

“मुझे पांच मिनट की मोहलत दीजिए।” अजनबी बोला, ” मुझे सोचना पड़ेगा कि मैं क्यों आया था। इस तरह के दौरों के बाद अक्सर मैं थोड़ी देर के लिए अपनी याददाश्त खो बैठता हूँ।”

“बड़ी अजीब बात है।” फ़रीदी मुस्कुराते हुए बोला।

“जी हाँ…? यूरोप के लगभग हर मुल्क में मैंने अपने इस मर्ज़ का इलाज करवाना चाहा। लेकिन बेकार।” अजनबी ने कहा और कुछ सोचने लगा।

“मेरा ख़याल है कि हिंदुस्तान में आपके इस मर्ज़ का ठीक से इलाज हो जाएगा।” फ़रीदी ने कहा।

अजनबी उसके जुमले पर चौंक पड़ा और बोला, “जी हाँ…मैं दरअसल आपके अखबार में एक इश्तिहार देने के लिए आया था।”

“हाँ हाँ शौक से।” एडिटर ने कहा।

“मुझे एक ड्राइवर की ज़रूरत है।”

“अगर यह बात है, तो अंग्रेजी अखबार आपके लिए बेकार साबित होगा।” फ़रीदी ने कहा, “क्योंकि हिंदुस्तान में शायद ही कोई अंग्रेजी पढ़ा हुआ पेशेवर ड्राइवर मिल सके।”

“लेकिन मुझे अंग्रेजी ही जाने वाला चाहिए क्योंकि मैं हिंदुस्तानी ज़बान नहीं समझ पाता।” अजनबी ने कहा।

“खैर कोशिश कीजिए। शायद कोई मिल ही जाए।” फ़रीदी बोला।

“आप अपना पता मुझे दे दीजिए। मैं इश्तहार छपवा दूंगा।” एडिटर ने अजनबी से कहा।

थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें करने के बाद अजनबी खड़ा हो गया। उसने वहाँ से बैठे हुए सब आदमियों से हाथ मिलाया और कमरे से बाहर निकल गया।

“हाँ तो फरमाइए। मैं आपकी क्या खिदमत कर सकता हूँ।” एडिटर ने फ़रीदी की तरफ देख कर कहा।

“जनाब पहले यह बताइए कि आपके कमरे में इतना सफोकेशन क्यों है?” फ़रीदी ने कहा।

“क्यों क्या बात है?” एडिटर ने कहा।

“मुझे कुछ ऐसा मालूम होता है, जैसे मैं भी थोड़ी देर बाद बेहोश हो जाऊंगा।” फ़रीदी ने घुटी हुई आवाज में कहा।

“अरे..!” एडिटर हैरत से आँखें फाड़ता हुआ बोला।

“जी हाँ! जरा जल्दी से। डॉक्टर शायद अभी थोड़ी दूर ही गया होगा।” फ़रीदी ये कहते हुए कुर्सी पर एक तरफ लटक गया। उसका बायां हाथ जमीन पर झूल रहा था।

एडिटर घबरा कर खड़ा हो गया। वह उसे आवाज दे रहा था, लेकिन बेकार। फ़रीदी बेहोश हो चुका था। बजाय इसके कि वह घंटी बजाकर किसी को बुलाता, एडिटर खुद ही बाहर की तरफ भागा। शायद वो डॉक्टर को बुलाने जा रहा था। उसने उसे इमारत के गेट पर ही रोक लिया।

“डॉक्टर डॉक्टर…फौरन वापस चलो दूसरे साहब भी बेहोश हो गए।”

****

दूसरे दिन फ़रीदी और हमीद में बात हो रही थी। उस दिन के ‘न्यू स्टार’ का एडिशन मेज़ पर खुला हुआ पड़ा था।

“देखो आज और दिलचस्प इश्तहारों का सिलसिला नहीं छपा।” फ़रीदी ने कहा।

“एडिटर ने माफ़ी भी मांगी है।” हमीद बोला, “यह देखिए, लिखता है हमें अफ़सोस है कि अचानक कागज खो जाने की वजह से आज के अंक में ब्लैकमेलिंग का दिलचस्प इश्तहार प्रकाशित न हो सका।”

“यह बात तो उसने बिल्कुल सच लिखी है।” फ़रीदी बोला, “कागज सचमुच खो गए हैं और शायद तुम यह भी जानते हो कि आजकल शहर में खोई हुई चीजें मेरी जेब से बरामद होती है।”

“क्या मतलब?” हमीद ने उसे गौर से देखते हुए कहा।

“यानी यह कि वह कागज इस वक़्त मेरी जेब में मौजूद है।” फ़रीदी ने जेब से एक तह किया हुए क्या कागज निकालते हुए कहा, “पढ़ो!”

हमीद पढ़ने लगा।

“लंदन की हसीन रात कौन भूल सकता है, जब प्रिंस ने अपने कुंवारी चचेरी बहन को एक रात के लिए अपनी बीवी बनाया था। लंदन के जेफर्स होटल का कमरा नंबर 115 सुहागरात की रंगीनियों से भरा हुआ था। प्रिंस की चचेरी बहन दूसरे ही दिन हिंदुस्तान के लिए रवाना हो गई। वापसी पर तीन दिन के अंदर ही उसने एक जागीरदार से शादी कर ली। मेरे पास उसके काफ़ी सबूत मौजूद है कि वह जिस बच्चे की माँ बनने वाली है, वह जागीरदार का नहीं है। मैं उस प्रिंस और उसकी चचेरी बहन से पंद्रह करोड़ का सौदा करता हूँ। अदायगी न होने की सूरत में यह राज उस जागीरदार को सबूत के साथ बताया जाएगा। लेन देन इसी अखबार के जरिये होगा।”

“लेकिन यह आपको मिला कैसे?” हमीद ने पूछा।

फ़रीदी ने उस रात के सारे हालात बताते हुए कहा, “मेरे बेहोश होते ही एडिटर घबराकर डॉक्टर को बुलाने के लिए कमरे से बाहर निकल गया और मैंने जल्दी-जल्दी उस कमरे की तलाशी लेना शुरू कर दी। सबसे पहले मैंने मैज के दराजों को खोला। इत्तेफाक से यह कागज़ ऊपर ही रखा हुआ मिल गया। इतना काफ़ी था। मैंने जल्दी से इसे जेब में डाला और फिर बेहोश बनकर लेट गया। इस कागज पर दो आदमियों की उंगलियों के निशान मिले हैं और दूसरे इंसान के बारे में अभी कुछ कह नहीं सकता। लेकिन मुझे जिस पर शक है, उसके पीछे तुम्हें लगाना चाहता हूँ। तुम आसानी से उसकी उंगलियों के निशान ले सकोगे।”

“वह है?” हमीद ने बेताबी से पूछा।

“वही शक्स, जो रात एडिटर के कमरे में बेहोश हो गया था।” फ़रीदी ने कहा, “इसके लिए तुम्हें उसका ड्राइवर बनना पड़ेगा।”

“मैं समझ गया…हाँ आइडिया तो अच्छा है” हमीद  बोला, “लेकिन ये तो बताइए कि आपने होश में आने के बाद एडिटर को क्या बताया था कि आप उससे क्यों मिलने गए थे?”

“अरे यह भी कोई खास बात है।” फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला, “मैंने कल भी एक लेख के बारे में उससे बातचीत शुरू कर दी थी, जो कि सरकार के खिलाफ़ था। मैंने उससे कहा कि मुझे बहुत ‘न्यू स्टार’ बहुत पसंद है। मैं नहीं चाहता कि सरकार उस पर किसी किस्म की पाबंदी लगा दे। लिहाज़ा इस किस्म के लेख न छापे जाए।”

“बहुत खूब!” हमीद ने कहा, “और उस शख्स की अचानक बेहोशी के बारे में आपकी क्या राय है?”

“मेरा ख़याल है कि वह शख्स यह विज्ञापन एडिटर को देने के लिए आया होगा और मौका न देख कर उसे यह चाल चली। उसके बेहोश होते ही एडिटर ने अपने असिस्टेंट को डॉक्टर के लिए दौड़ाया। उस दौरान उसने वह विज्ञापन एडिटर को दिया होगा। जब वह होश में आया, उस वक़्त मैं वहाँ मौजूद था। मेरे अलावा डॉक्टर भी था। हम लोगों की मौजूदगी में उसने यही ज़ाहिर करना मुनासिब समझा कि वह एक मोटर ड्राइवर के लिए अखबार में इश्तहार देना चाहता है।”

हमीद ने समझते हुए सिर हिलाया।

“इस अखबार में प्रिंस अदनान की तरफ से एक ड्राइवर के लिए इश्तेहार छपा हुआ है। लेकिन अब उसे धोखा देना मुश्किल हो जाएगा।” हमीद ने कहा।

“तुम ठीक समझे! एडिटर ने उसे रात ही में खबरदार कर दिया होगा कि इश्कहार का कागज गुम हो गया है और वह भी समझ गया होगा कि यह काम मेरा ही है। इसमें शक नहीं है कि अब प्रिंस अदनान काफ़ी एहतिहात से काम लेगा।”

“आप यह सब बातें ऐसे कह रहे हैं, जैसे आपको पूरा यकीन हो कि प्रिंस अदनान ही असली मुज़रिम है।” हमीद ने कहा।

“असली मुज़रिम वह नहीं, बल्कि लियोनार्ड है। वह तो उसका एक एजेंट मालूम होता है।” फ़रीदी ने कहा।

“चलिए एक न सही दो सही।” हमीद ने कहा, “मैं तो प्रिंस अदनान को ही लियोनार्ड समझ रहा था।”

“तुम गलत समझ रहे थे।” फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला, “लियोनार्ड अंग्रेज है और प्रिंस अदनान हिंदुस्तानी।”

“हिंदुस्तानी या इराकी?” हमीद ने कहा।

“100 फ़ीसदी हिंदुस्तानी!*

“वह कैसे?”

“पहले तुम उसे एक बार देख आओ। फिर बताऊंगा।” फ़रीदी ने कहा।

“तो मैं किस तरह जाऊं?” हमीद ने कहा।

“पैदल!”

“ओ हाँ! मेरा यह मतलब नहीं।” हमीद ने झुंझलाकर कहा, “मैं उससे किस हैसियत से मिलूं।”

“नौकरी के लिए एक ड्राइवर की हैसियत से।”

“मगर वह अब काफ़ी होशियार हो गया होगा।”

“तब तो मुझे और भी ज्यादा आसानी हो जाएगी।” फ़रीदी ने कहा, “हमेशा याद रखो कि मुज़रिम उस वक़्त बहुत आसानी से पकड़ में आ जाता है, जब वह हद से ज्यादा होशियार हो जाए। मैं तो यह चाहता हूँ कि तुम्हारे जाने पर उसे किसी तरह का शक हो जाए कि यहाँ के जासूस उसके पीछे लग गए हैं।”

हमीद ने हां के अंदाज़ में सिर हिलाया।

“लेकिन एक बात का ख़ास ख़याल रखना।” फ़रीदी ने कहा, “उस पर यह न ज़ाहिर होने कि तुम बहुत अंग्रेजी जानते हो। बात टूटी-फूटी अंग्रेजी में ही करना और इस बात की कोशिश करना कि उसे शक न होने पाए। अगर शक हो भी गया, तो उसकी फिक्र नहीं। क्योंकि उस सूरत में भी कोई न कोई रास्ता निकाल ही लूंगा।”

“मैं अच्छी तरह समझ गया।” हमीद ने कहा, “अच्छा तो मैं किस तरह जाऊं? क्या भेष बदलने की भी जरूरत होगी?”

“बिल्कुल…बगैर भेष बदले उसके सामने जाना भी मत। वरना सारा खेल बिगड़ जाएगा। आज तीन बजे तुम उसके यहाँ पहुँच जाना…और हाँ मैं अभी तुम्हें एक तजुरबेकार मिलिट्री ड्राइवर का सर्टिफिकेट भी दे दूंगा।”

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