चैप्टर 2 दिलेर मुज़रिम इब्ने सफ़ी का उपन्यास जासूसी दुनिया सीरीज़

Chapter 2 Diler Mujrim Novel By Ibne Safi

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इंस्पेक्टर फ़रीदी

सारे घर में मातम छा गया। कस्बे के थाने को सूचना मिल गई थी और उस वक्त एक सब इंस्पेक्टर दो हेड कांस्टेबल मृत महिला के कमरे के सामने बैठे खुसर-पुसर कर रहे थे। नौकरानी के बयान पर उन्होंने अपनी दिमागी घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए थे। उनके ख़याल में वही संदिग्ध कातिल था, जो रात को बाग में आया था और सविता देवी रात में उसी से झगड़ा कर रही थीं। डॉक्टर शौकत उनकी बातों से संतुष्ट नहीं था। जैसे-जैसे भी अपनी तजुर्बेकारी का इज़हार कर रहे थे, उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था। वैसे भी वह अपने कस्बे की पुलिस को नाकारा समझता था। इसलिए उसने खुफिया डिपार्टमेंट के इंस्पेक्टर फ़रीदी को एक निजी खत लेकर बुलवा भेजा था। फ़रीदी उन चंद इंस्पेक्टरों में से था, जो बहुत ही अहम कामों के लिए बुलाया जाता था, लेकिन निजी संबंधों के चलते डॉक्टर शौकत को पूरा यकीन था कि यह केस सरकारी तौर पर उसे न भी सौंपा गया, तो भी वह उसे अपने हाथ में ले लेगा।

लगभग दो घंटे के बाद इंस्पेक्टर फ़रीदी अपने असिस्टेंट सार्जेंट हमीद के साथ वहाँ पहुँच गया। इंस्पेक्टर फ़रीदी तीस-बत्तीस साल का एक तेज दिमाग और बहादुर जवान था। उसके चौड़े माथे के नीचे दो बड़ी-बड़ी आँखें उसकी काबिलियत को नुमाया करती थीं। उसके लिबास के रख-रखाव और ताजा शेव किये चेहरे से मालूम हो रहा था, वह एक उसूल वाला आदमी है। सार्जेंट हामिद की चाल-ढाल में थोड़ा सा जनानापन था। उसके अंदाज़ से मालूम होता था कि वह जबरदस्ती अपने हुस्न की नुमाइश करने का आदी था। उसने कोई बहुत ही तेज खुशबू वाला सेंट लगा रखा था। उसकी उम्र चौबीस साल से ज्यादा न थी, लेकिन इस छोटी सी उम्र में भी वह बहुत चतुर और बुद्धिमान था।

इसी बुद्धिमानी की बिना पर उसके साथ इंस्पेक्टर फ़रीदी के तालुकात दोस्ताना थे। दोनों की आपस की गुफ्तगू से अफ़सरी या मातहती का पता लगाना मुमकिन नहीं, तो मुश्किल ज़रूर था।

थाने के सब इंस्पेक्टर और दीवान उनके अचानक आ जाने से घबरा गए, क्योंकि उन्हें उनके आने की खबर नहीं थी। उन्हें उनका आना बुरा लगा।

“डॉक्टर शौकत!” फ़रीदी ने अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, “इस नुकसान की भरपाई नामुमकिन है। लेकिन रस्मी तौर पर मैं अपने गम का इज़हार ज़रूर करूंगा।”

“इंस्पेक्टर आज मेरी माँ मर गई।” शौकत की आँखों में आँसू छलक आये।

“सब्र करो। तुम्हें एक मजबूत दिल का आदमी होना चाहिए।” फ़रीदी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

“कहिये दरोगा जी कुछ सुराग मिला।” उसने सब इंस्पेक्टर की तरफ मुड़ कर पूछा।

“अरे साहब! हम बेचारे भला सुराग क्या जाने?” सब इंस्पेक्टर ने बड़े स्टाइल से जवाब दिया।

फ़रीदी ने जवाब की कड़वाहट महसूस जरूर की, लेकिन वह सिर्फ मुस्कुरा कर ख़ामोश हो गया।

“शौकत साहब! यह तो आप जानते ही हैं कि मैं आज कल छुट्टी पर हूँ।” फ़रीदी बोला, “और फिर दूसरी बात यह कि आमतौर पर कत्ल के केस उस वक्त हमारे पास आते हैं, जब सिविल पुलिस छानबीन में नाकाम रहती है।”

थाने के सब इंस्पेक्टर की आँखें ख़ुशी से चमक उठी।

इंस्पेक्टर फ़रीदी ने सब इंस्पेक्टर की ख़ुशी को महसूस किया और अपने जाने पहचाने अंदाज़ में बोला, “लेकिन मैं निजी तौर पर इस केस को अपने हाथ में लूंगा।”

थाने के सब इंस्पेक्टर की आँखों की चमक एकदम से गायब हो गई। उसका मुँह लटक गया।

फ़रीदी ने पूरा किस्सा सुनने के बाद नौकरानी का बयान लेना शुरू किया। नौकरानी ने शुरू से आखिर तक रात की सारी कहानी दोबारा सुना दी।

“क्या तुम बता सकती हो कि रात में तुमने इस हादसे के बाद भी कोई आवाज सुनी थी?”

“जी नहीं! मैंने सिर्फ देवी जी के बड़बड़ाने की आवाज सुनी थी। वे अक्सर सोते वक्त बड़बड़ाया करती थीं।”

“कुछ बेकार की बातें बड़बड़ाया करती थीं। ठहरिए, याद करके बताती हूँ।” कुछ देर बाद सोचने के बाद वो बोली, “हाँ ठीक याद आया। वे राजरूप नगर…राजरूप नगर बड़बड़ा रही थीं। मैंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया क्योंकि मैं उनकी आदत जानती थी।”

“राज रूपनगर!” फ़रीदी ने धीरे से दोहराया और कुछ सोचने लगा।

“हमीद तुमने इससे पहले भी यह नाम सुना है?”

हमीद ने ‘नहीं’ में सिर हिला दिया।

“डॉक्टर शौकत तुमने?”

“मैंने तो आज तक नहीं सुना।”

“क्या सविता देवी ने यह नाम कभी नहीं लिया?”

“मेरी याददाश्त भी तो नहीं।” डॉक्टर शौकत ने ज़ेहन में ज़ोर देते हुए जवाब दिया।

“हूं…अच्छा!” फ़रीदी ने कहा, “अब मैं ज़रा लाश को देखना चाहता हूँ।”

सब लोग उस कमरे में आये, जहना लाश पड़ी हुई थी। चारपाई के सिरहाने वाली खिड़की खुली थी। उसमें सलाखें नहीं थी। इंस्पेक्टर फ़रीदी देर तक लाश का मुआयना करता रहा। फिर उसने वह छुरा सब इंस्पेक्टर की इजाज़त से लाश के सीने से खींच लिया और उसके हत्थे पर उंगलियों के निशान ढूंढने लगा।

फिर खिड़की की तरफ गया और झुककर नीचे देखने लगा। खिड़की से तीन फुट नीचे लगभग एक फुट चौड़ी कॉर्निश थी, जिससे बांस की एक सीढ़ी टिकी हुई थी। खिड़की पर पड़ी हुई धूल कई जगह से साफ थी और एक जगह पांचों उंगलियों के निशान साफ देखे जा सकते थे।

“यह तो साफ ज़ाहिर है कि कातिल इस खिड़की से आया था।” फ़रीदी ने कहा।

“यह तो इतना साफ है कि घर की नौकरानी भी यही कह रही थी।” थाने के सब इंस्पेक्टर ने मज़ाक में कहा।

फरीदी ने मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा और फिर ख़ामोशी से खंजर का जायज़ा लेने लगा।

“कातिल ने दस्ताने पहन रखे थे और वह एक बेहतरीन खंजरबाज़ मालूम होता है।” इंस्पेक्टर फ़रीदी बोला, “और वह एक ताकतवर इंसान है। दरोगा जी इस खंजर के बारे में आपकी क्या राय है?”

“खंजर…जी हाँ, यह भी बहुत मजबूत मालूम होता है।” सब इंस्पेक्टर मुस्कुरा कर बोला।

“जी नहीं…मैं इसकी बनावट के बारे में पूछ रहा हूँ।”

“इसकी बनावट के बारे में सिर्फ लोहार ही बता सकते हैं।”

“जी नहीं! मैं भी बता सकता हूँ। इस किस्म के खंजर नेपाल के अलावा और कहीं नहीं बनते।”

“नेपाल!” डॉक्टर शौकत को जैसे झटका लगा और वह एक कदम पीछे हट गया।

“क्यों…क्या हुआ?” फ़रीदी उसे घूरता हुआ बोला।

“कुछ नहीं!” शौकत ने ख़ुद पर काबू पाते हुए कहा।

“खैर! हाँ तो मैं यह कह रहा था कि इस किस्म के खंजर सिवाय नेपाल के और कहीं नहीं बनाए जाते और डॉक्टर मैं तुमसे कहूंगा कि…” अभी वह इतना ही कह पाया था कि एक कॉन्स्टेबल ने आकर खबर दी कि उस शख्स का पता लग गया है, जिससे कल रात सविता देवी का झगड़ा हुआ था।

सब लोग तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़े। बाहर एक कॉन्स्टेबल खड़ा था। आने वाले कॉन्स्टेबल ने बताया कि रात सविता देवी उसी से झगड़ रही थी। वह रात में इस तरफ से गुज़र रहा था कि सविता देवी ने उसे पुकारा। उसे जल्दी थी, क्योंकि वह गश्त पर जा रहा था। लेकिन वह फिर भी चला आया। सविता देवी ने उसे बताया कि कोई आदमी उनकी मुर्गियों की ताक में है और हमसे इधर का ख़याल रखने को कहा। उसने जवाब दिया कि पुलिस मुर्गियाँ ताकने के लिए नहीं है और फिर वह दूसरी चौकी का कॉन्स्टेबल है, उसी बात पर झगड़ा होने लगा।

थाने का दरोगा उसे अलग ले जाकर पूछताछ करने लगा और फ़रीदी ने बुलंद आवाज में कहना शुरू किया, “हाँ तो डॉक्टर! मैं तुमसे यह कह रहा था कि यह खंजर दरअसल तुम्हारे सीने में होना चाहिए था। सविता देवी धोखे में कत्ल हो गई और जब कातिल को अपनी गलती का पता चलेगा, तो वह फिर तुम्हारे पीछे पड़ जाएगा। अब फिर उसी कमरे में चलकर मैं इसका खुलासा करूंगा।”

इस बात पर सब के सब बौखला गए। शौकत घबराहट में जल्दी-जल्दी पलकें झपका रहा था। दरोगा जी की आँखें हैरत से फटी हुई थी और सार्जेंट हमीद उन्हें मज़ाकिया तौर पर घूर रहा था।

सब लोग फिर लाश वाले कमरे में वापस आये। इंस्पेक्टर फ़रीदी खिड़की के कॉर्निश पर उतर गया और लाइन से सारे कमरों की खिड़कियों को देखकर लौट आया।

“अब मामला बिल्कुल ही साफ हो गया कि सविता देवी डॉक्टर ही के धोखे में कत्ल हुई थी। अगर कातिल सविता देवी को कत्ल करना चाहता, तो उसे या कैसे मालूम हो सकता था कि सविता देवी शौकत ही कमरे में सोई हुई थीं।” इंस्पेक्टर फ़रीदी ने कहा, “अगर वह तलाश करता हुआ इस कमरे तक पहुँचा था, तो दूसरी खिड़कियों पर ही इस किस्म के निशान होने चाहिए थे, जैसे कि इस खिड़की पर मिले हैं और फिर सविता देवी के क़त्ल की एक ही वजह हो सकती थी – उनकी जायदाद। लेकिन अगर उसका फ़ायदा उनके किसी रिश्तेदार को पहुँचता, तो वह उन्हें अब से दस बरस पहले ही खत्म कर देता या करा देता, जब उन्होंने अपनी जायदाद धर्मशाला के नाम लिखने का सिर्फ इरादा ही ज़ाहिर किया था। अब जबकि दस साल गुज़र चुके हैं और जायदाद के बारे में कानूनी वसीयत की कार्रवाई पूरी हो चुकी थी, उनके क़त्ल की कोई ठीक-ठाक वजह समझ में नहीं आ सकती थी। अगर कातिल चोरी की नीयत से अचानक इस कमरे में दाखिल हुआ था, जिसमें वह सो रही थी, तो क्या वजह है कि कोई चीज चोरी नहीं गई।”

“हो सकता है कि इस कमरे में उसके दाखिल होते ही सविता देवी जाग उठी हो और वह पकड़े जाने के खौफ़ से उन्हें कत्ल करके कुछ चुराये बगैर ही भाग खड़ा हुआ।” दरोगा जी ने अपना दिमागी तीर मारा।

“माय डियर!” फ़रीदी जोश में बोला, “मैं साबित कर सकता हूँ कि कातिल हमले के बाद काफ़ी देर तक इस कमरे में ठहरा रहा।”
सब इंस्पेक्टर के चेहरे पर कटीली मुस्कुराहट फैल गई और सार्जेंट हमीद उसे दांत पीसकर घूरने लगा।

इंस्पेक्टर फ़रीदी ने कहना शुरू किया, “जिस वक्त शौकत ने लाश को देखा, वह सिर से पैर तक कंबल से ढकी हुई थी। ज़ाहिर है कि इससे पहले कोई कमरे में दाखिल भी न हो सकता था, क्योंकि दरवाजा अंदर से बंद था। लिहाज़ा लाश पर पहले शौकत ही की नज़र पड़ी। इसमें किसी और के मुँह ढाकने का सवाल ही पैदा नहीं होता। अब ज़रा लाश के करीब आइए…दरोगा जी, मैं आपसे कह रहा हूँ। यह देखें, लाश का निचला होंठ दांतों से दबकर रह गया है। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि कातिल ने एक हाथ से सविता देवी का मुँह दबाया था और दूसरे हाथ से वार किया था। फिर फौरन ही मुँह दबाए हुए इनके पैरों पर बैठ गया था, ताकि वह हिल न सके और वह इस हालत में उस वक्त तक रहा जब तक इन्होंने दम न तोड़ दिया। होंठ का दांतों में दबा होना ज़ाहिर कर रहा है कि यह तकलीफ के कारण सिर्फ इतना कर सकीं कि उन्होंने दांतों में होंठ लिया, लेकिन कातिल के हाथ के दबाव की वजह से होंठ फिर अपनी असली हालत पर न आ सका और इसी हालत में लाश ठंडी हो गई। कातिल को अपने मकसद में कामयाबी पर इतना यकीन था कि उसने कंबल उलट कर अपने शिकार का चेहरा तक देखने की ज़हमत गवारा नहीं की। हो सकता है कि उसने बाद में मुँह खोलकर देखा भी हो।” इंस्पेक्टर फ़रीदी रूका, लेकिन फिर कुछ सोचकर बोला, “मगर नहीं अगर ऐसा करता, तो फिर दोबारा ढक देने की कोई ऐसी ख़ास वजह समझ में नहीं आती।”

“शायद या खुदकुशी का केस हो।” सब इंस्पेक्टर ने फिर अपनी काबिलियत दिखाई।

“जनाब-ए-आला!” सार्जेंट हमीद बोला, “इतनी उम्र हो गई, लेकिन कंबल ओढ़कर आराम से खंजर घोंप लेने वाला एक भी न मिला कि मैं उसकी कद्र कर सकता।”

सब इंस्पेक्टर ने झेंपकर सिर झुका लिया।

इंस्पेक्टर फ़रीदी इन सब बातों को सुनी-अनसुनी करके डॉक्टर शौकत से बोला, “डॉक्टर! तुम्हारी जान खतरे में है। यह प्लान तुम्हारे ही क़त्ल के लिए बनाया गया था। सोच कर बताओ, क्या तुम्हारा कोई ऐसा दुश्मन है, जो तुम्हारी जान तक ही ले लेने में कसर नहीं छोड़ेगा।”

“मेरी याददाश्त में तो कोई ऐसा आदमी नहीं। आज तक मेरे संबंध किसी से खराब नहीं रहे, लेकिन ठहरिए…आपको याद होगा कि मैं नेपाली खंजर की बात पर अचानक चौंक पड़ा था। तकरीबन पंद्रह दिन पहले की बात है। एक रात मैं एक बहुत ही खतरनाक किस्म का ऑपरेशन करने जा रहा था कि एक अच्छी हसीयत का नेपाली मेरे पास आया और मुझसे बोला कि मैं उसी वक्त एक मरीज को देख लूं, जिसकी हालत नाजुक थी। मैंने मजबूरी ज़ाहिर की, तो वह रोने और गिड़गिड़ाने लगा। लेकिन मैं मजबूर था क्योंकि पहले ही से एक खतरनाक केस मेरे पास था। खतरा था कि उसी रात उसका ऑपरेशन न किया, तो मरीज की मौत हो जाएगी। आखिर जब नेपाली उदास हो गया, तो मुझे बुरा-भला कहते हुए वापस चला गया। दूसरे दिन सुबह जब मैं अस्पताल जा रहा था, तो चर्च रोड के चौराहे पर पेट्रोल लेने के लिए रुका। वहां मुझे वही नेपाली नज़र आया। मुझे देख कर उसे नफरत से बुरा सा मुँह बनाया और अपनी ज़बान में कुछ बड़बड़ाता हुआ मेरी तरफ बढ़ा और मुक्का तानकर कहने लगा, “शाला…हमारा आदमी मर गया। अब हम तुम्हारी खबर ले लेगा।” मैंने हँसकर मोटर स्टार्ट की और आगे बढ़ गया।

“हूं…अच्छा!” फ़रीदी बोला, “उसकी शक्ल सूरत के बारे में कुछ बता सकते हो?”

“ये ज़रा मुश्किल है क्योंकि मुझे तो सारे नेपाली एक ही जैसी शक्ल सूरत के लगते हैं।” डॉक्टर शौकत ने जवाब दिया।

“खैर! अपनी हिफ़ाज़त का ख़ास ख़याल रखना। अच्छा दरोगा जी, मेरा काम खत्म…डॉक्टर शौकत, मैंने तुमसे वादा किया था कि इस केस को मैं अपने हाथ में लूंगा। लेकिन मुझे अफ़सोस है कि मैं ऐसा नहीं कर सकता। मेरा ख़याल है कि दरोगा जी इस काम को बखूबी अंजाम देंगे। अच्छा अब मैं जाना चाहूंगा। हाँ डॉक्टर ज़रा कार तक चलो। मैं तुम्हारी हिफ़ाज़त के लिए तुम्हें कुछ हिदायतें देना चाहता हूँ। अच्छा दरोगा जी आदाब अअर्ज़र्ज!”

कार के करीब पहुँचकर फ़रीदी ने जेब से एक छोटी सी पिस्तौल निकाली और डॉक्टर शौकत को थमा दी।

“यह लो!” वह बोला, “हिफ़ाज़त के लिए मैं तुम्हें यह देता हूँ और कल तक इसका लाइसेंस से तुम तक पहुँच जायेगा।”

“जी नहीं शुक्रिया! इसकी ज़रूरत नहीं है।” डॉक्टर शौकत ने मुँह फुलाकर जवाब दिया।

“बेवकूफ आदमी, बिगड़ गए क्या? क्या सच में तुम समझते हो कि मैं इस केस की खोज बीन नहीं करूंगा। हाँ, उन गधों के सामने मैंने यह केस

अपने हाथ में लेने से इंकार कर दिया। ये कमबखत सिर्फ़ बड़े अफसरों तक शिकायत पहुँचाने के काबिल होते हैं।”
डॉक्टर शौकत के चेहरे पर रौनक आ गई और उसने पिस्तौल लेकर जेल में डाल ली।

“देखो जब भी कोई ज़रूरत हो, मुझे बुलवा लेना। हो सकता है कि मैं दस बजे रात तक फिर आऊं। लेकिन तुम होशियार रहना अच्छा ख़ुदा हाफिज़!”

ड्राइवर ने कार स्टार्ट कर दी। सूरज धीरे-धीरे डूब रहा था।

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