चैप्टर 2 क्रिसमस कैरोल चार्ल्स डिकेंस का उपन्यास | Chapter 2 A Christmas Carol Charles Dickens Book In Hindi Read Online

चैप्टर 2 क्रिसमस कैरोल चार्ल्स डिकेंस का उपन्यास | Chapter 2 A Christmas Carol Charles Dickens Novel In Hindi Read Online

Chapter 2 A Christmas Carol Charles Dickens Novel In Hindi 

Chapter 2 A Christmas Carol Charles Dickens Novel In Hindi 

तीनों आत्माओं में से पहली आत्मा

जब स्क्रूज जागा, तो इतना अंधेरा था कि बिस्तर पर से खिड़की को दीवारों से अलग पहचान पाना मुश्किल हो रहा था। वह अपनी नेज़ जैसी तेज़ आँखों से अंधेरे को चीरने की कोशिश कर रहा था, तभी पास के किसी गिरजाघर की घड़ी ने चौथाई घंटे की आवाज़ दी। वह ध्यान से घंटे की प्रतीक्षा करने लगा।

बड़े ही ताज्जुब के साथ उसने सुना कि भारी घंटी छह से सात, फिर सात से आठ, और इसी तरह बारह तक गिनती गई; फिर रुक गई। बारह! जबकि वह तो दो बजे के बाद सोया था। घड़ी ज़रूर गलत चल रही थी। शायद बर्फ का एक टुकड़ा उसके भीतर जा घुसा होगा। बारह बजे!

उसने अपनी जेबघड़ी का बटन दबाया, ताकि इस बेहूदी घड़ी को ठीक कर सके। लेकिन उसकी घड़ी ने भी बारह बार धड़कन दी—और फिर रुक गई।

“ये मुमकिन नहीं है।” स्क्रूज बोला, “क्या मैं पूरे एक दिन और फिर दूसरी रात तक सोता रह गया? क्या वाक़ई कुछ ऐसा हुआ है कि सूरज ही गायब हो गया हो और ये बारह दोपहर के हों?”

ये ख़्याल डरावना था, सो वो झटपट बिस्तर से निकल पड़ा और टटोलता हुआ खिड़की तक पहुँचा। उसे अपनी ड्रेसिंग गाउन की बाजू से शीशे पर जमी बर्फ़ को साफ़ करना पड़ा, तब जाकर कुछ दिखाई दिया; और तब भी बहुत कम। वह बस इतना देख पाया कि बाहर अब भी बहुत कुहासा और कड़ाके की सर्दी थी, और कोई हलचल नहीं थी—ना लोग इधर-उधर दौड़ रहे थे, ना कोई अफ़रा-तफ़री मची थी—जैसी कि ज़रूर होती, अगर रात ने दिन को हरा कर दुनिया पर क़ब्ज़ा कर लिया होता।

यह जानकर उसे बड़ी राहत मिली, क्योंकि अगर ऐसा होतातो “तीन दिन बाद इस दस्तावेज़ के दिखाए जाने पर मिस्टर एबेनेज़र स्क्रूज को या उनके आदेश पर भुगतान करें” जैसे वाक्य बस एक बेमायने दस्तावेज़ बन जाते—क्योंकि फिर दिन ही न होते गिनने को।

स्क्रूज फिर से बिस्तर पर लेट गया, और सोचता रहा, सोचता रहा, बार-बार सोचता रहा, मगर किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सका। जितना ज़्यादा वह सोचता, उतना ही ज़्यादा उलझन में पड़ता; और जितनी कोशिश करता कि ना सोचे, उतना ही ज़्यादा दिमाग़ में वही बातें घूमने लगतीं।

मार्ले की भूत-आत्मा ने उसे बहुत बेचैन कर दिया था। हर बार जब वह ठंडे दिमाग़ से यह तय करता कि ये सब महज़ एक सपना था, उसका ज़ेहन एक खिंची हुई मजबूत स्प्रिंग की तरह फिर से पहली जगह लौट आता और वही सवाल सामने ला खड़ा करता: “क्या वो सपना था या नहीं?”

स्क्रूज इसी सोच-विचार की हालत में लेटा रहा, जब तक घंटी ने तीन चौथाई और नहीं बजा दिए; तभी अचानक उसे याद आया कि उस भूत ने उसे एक और आत्मा के आगमन की चेतावनी दी थी, जब घड़ी एक बजाएगी। उसने ठान लिया कि वह उस घड़ी तक जागता रहेगा; और ये सोचकर कि वह ना सो सकता है और ना ही स्वर्ग जा सकता है, यह फ़ैसला उसकी हालत में सबसे समझदारी वाला था।

वो चौथाई घंटा इतना लंबा लगा कि उसे कई बार यकीन हो गया कि शायद वह अनजाने में झपकी ले चुका है और घंटी की आवाज़ मिस कर चुका है। आख़िरकार, वो आवाज़ उसके कानों में गूंजी।

“डिन्ग, डॉन्ग!”

“एक चौथाई बीत गया।” स्क्रूज ने गिनते हुए कहा।

“डिन्ग, डॉन्ग!”

“आधा घंटा!” उसने कहा।

“डिन्ग, डॉन्ग!”

“एक चौथाई रह गया।” स्क्रूज ने कहा।

“डिन्ग, डॉन्ग!”

“अब तो पूरा घंटा ही बजा।” स्क्रूज ने जीत की खुशी में कहा, “और कुछ नहीं!”

उसने ये बात कह ही दी थी कि घंटा बजा—एक गूंजती, गहरी, खोखली, उदास सी एक की आवाज़।

उसी पल कमरे में रोशनी चमकी, और उसके बिस्तर के पर्दे खींच दिए गए।

हाँ, बिस्तर के पर्दे सच में खींचे गए—एक हाथ से। ना उसके पैरों की ओर वाले पर्दे, ना पीठ की तरफ़ के, बल्कि वही जो उसके चेहरे के सामने थे। बिस्तर के वही पर्दे खींचे गए; और स्क्रूज, आधा उठकर बैठते हुए, खुद को उस रहस्यमयी आगंतुक के आमने-सामने पाया जिसने पर्दे हटाए थे: बिलकुल उसी क़रीबी से, जैसे मैं अब तुम्हारे पास हूँ—मैं जो एक रूह की तरह तुम्हारी कुहनी के पास खड़ा हूँ।

वो अजीबो-ग़रीब शक्ल थी—बच्चे जैसी; मगर बच्चा कम, बूढ़ा ज़्यादा लगता था, जैसे किसी अलौकिक धुंध से होकर दिख रहा हो, जिससे उसका आकार छोटा होकर बच्चे जैसा लग रहा था। उसके बाल, जो गर्दन और पीठ पर लटक रहे थे, बर्फ़ जैसे सफेद थे, जैसे उम्र ने रंग उतार दिया हो; फिर भी उसके चेहरे पर एक भी झुर्री नहीं थी और त्वचा पर एक नरम, कोमल सी चमक थी।

उसके बाजू लंबे और ताक़तवर थे; हाथ भी वैसे ही, जैसे उनमें कोई खास ताक़त हो। उसके पैर और उंगलियां नाज़ुक और सुंदर आकार के थे, और ऊपर की तरह वे भी नंगे थे। उसने एक बेहद सफेद चोग़ा पहन रखा था; और उसकी कमर पर एक चमकदार पेटी बंधी थी, जिसकी चमक बहुत दिलकश थी।

उसके हाथ में हरी-भरी होली (एक तरह का पत्तेदार पौधा) की टहनी थी; और इस ठंडे प्रतीक के बावजूद, उसके कपड़ों की कढ़ाई गर्मियों के फूलों से सजी हुई थी।

मगर जो बात सबसे ज़्यादा हैरान करने वाली थी, वो ये कि उसके सिर के ऊपर से एक चमकती हुई साफ़ और तेज़ रोशनी की किरण निकल रही थी, जिसकी वजह से ये सब कुछ साफ़ दिखाई दे रहा था; और शायद उसी रौशनी को ढँकने के लिए वह अपने बाज़ू में एक बड़ा सा टोपी जैसा ढक्कन उठाए खड़ा था, जिसे वह कभी-कभी इस्तेमाल करता होगा।

लेकिन जब स्क्रूज ने उस अजीब शख़्सियत को और ज़्यादा गौर से देखा, तो उसने पाया कि इसकी सबसे अजीब बात अब भी कुछ और थी। क्योंकि जैसे उसकी कमर पर बंधी चमकदार पेटी कभी एक ओर, कभी दूसरी ओर जगमगाने लगती थी, और जो चीज़ एक पल में रौशन थी, अगले ही पल में अंधेरे में डूब जाती—वैसे ही वह पूरी आकृति भी बार-बार बदलती रहती थी। कभी वह एक हाथ वाली शक्ल होती, कभी एक टांग वाली; कभी बीस टांगों के साथ, कभी सिर्फ़ दो टांगें बिना सिर के, कभी सिर जो जिस्म से कटा हुआ हो। और इन तमाम टूटते-बिखरते हिस्सों की कोई साफ़ रूपरेखा नज़र नहीं आती, क्योंकि वह घने अंधेरे में खो जाते। लेकिन इसी हैरानी के आलम में, वह आकृति दोबारा वैसे ही साफ़ और मुकम्मल हो जाती थी, जैसी पहले थी।

“क्या आप वही रूह हैं, जनाब, जिसकी आमद की मुझे पहले ही इत्तिला दी गई थी?” स्क्रूज ने पूछा।

“मैं ही हूँ!”

उसकी आवाज़ नर्म और मुलायम थी। हैरतअंगेज़ तौर पर धीमी, जैसे वह पास खड़ा होकर नहीं, बल्कि कहीं दूर से बोल रहा हो।

“आप कौन हैं और क्या हैं?” स्क्रूज ने पूछा।

“मैं क्रिसमस के अतीत की आत्मा हूँ।”

“बहुत पुराना अतीत?” स्क्रूज ने पूछा, उसकी बौनी कद-काठी को देख कर।

“नहीं। तुम्हारा अतीत।”

शायद, स्क्रूज ये बात किसी को समझा भी नहीं सकता था, अगर किसी ने उससे पूछ लिया होता, मगर ना जाने क्यों, उसे उस आत्मा के सिर पर टोपी देखने की बहुत चाहत हुई। उसने अदब से गुज़ारिश की कि कृपया अपना सिर ढक ले।

“क्या!” भूत ने चौंक कर कहा, “क्या तुम इतनी जल्दी अपने दुनिया-दारी के हाथों से उस रौशनी को बुझा देना चाहते हो जो मैं लाया हूँ? क्या ये काफी नहीं कि तुम उन्हीं में से एक हो, जिनकी ख्वाहिशों और गुनाहों ने ये टोपी बनाई, और अब मैं सदियों तक इसे अपने माथे पर झुकाकर ओढ़ने पर मजबूर हूँ?”

स्क्रूज ने पूरे सम्मान के साथ यह कह कर अपनी सफाई दी कि उसका इरादा किसी तरह से भी रूह का अपमान करने का नहीं था, और ना ही उसे कभी याद है कि उसने जानबूझ कर कभी आत्मा को इस तरह टोपी पहनाई हो।

इसके बाद उसने हिम्मत कर के पूछा कि उसे वहाँ किस काम से बुलाया गया है।

“तुम्हारी भलाई के लिए!” आत्मा ने जवाब दिया।

स्क्रूज ने इसके लिए शुक्रिया अदा किया, लेकिन मन ही मन उसने सोचा कि एक पूरी नींद भरी रात उसके भले के लिए कहीं ज़्यादा मुफीद होती। आत्मा शायद उसके दिल की बात सुन रही थी, क्योंकि उसने तुरंत कहा:

“तुम्हारे उद्धार के लिए। ध्यान दो!”

उसने अपनी मज़बूत हथेली बढ़ाई और धीरे से स्क्रूज का बाजू पकड़ लिया।

“उठो! और मेरे साथ चलो!”

अब अगर स्क्रूज ये कहता भी कि मौसम बेहद सर्द है, वक्त भी चलने-फिरने का नहीं है; बिस्तर गर्म है, और थर्मामीटर जमाव बिंदु से नीचे है; वह सिर्फ चप्पल, नाइटी और नाइटकैप में है; और उसे ज़ुकाम भी है—तो भी सब बेकार होता। क्योंकि आत्मा की पकड़, औरत के हाथ की तरह नरम होते हुए भी, टाली नहीं जा सकती थी।

वह उठ खड़ा हुआ; लेकिन जब देखा कि आत्मा खिड़की की ओर बढ़ रही है, तो घबरा कर उसकी चादर को पकड़ लिया और गुज़ारिश करने लगा।

“मैं एक फ़ानी इंसान हूँ।” स्क्रूज ने एतराज़ किया, “और गिर सकता हूँ।”

“बस मेरे हाथ का ये हल्का सा स्पर्श महसूस करोm” आत्मा ने कहा, और अपना हाथ उसके दिल पर रख दिया, “और तुम इससे भी ज़्यादा को सह सकोगे!”

जैसे ही ये शब्द कहे गए, वे दीवार के आर-पार निकल गए, और खुद को एक खुले देहात की सड़क पर खड़ा पाया, जहाँ दोनों ओर खेत फैले हुए थे। शहर पूरी तरह ग़ायब हो चुका था। उसका नामो-निशान भी बाकी न था। अंधेरा और कोहरा भी उसके साथ ही जाता रहा, क्योंकि अब वहाँ एक साफ़, सर्द, जाड़ों का दिन था—ज़मीन पर बर्फ़ जमी हुई थी।

“हे खुदा!” स्क्रूज ने कहा, हाथ जोड़ते हुए और चारों ओर देखते हुए। “मैं इसी जगह पला-बढ़ा हूँ। मैं यहाँ एक बच्चा था!”

आत्मा ने नर्मी से उसकी ओर देखा। उसका स्पर्श, चाहे बहुत हल्का और पलभर का ही क्यों न रहा हो, अब भी बूढ़े आदमी की संवेदनाओं में मौजूद था। स्क्रूज को महसूस हुआ कि हवा में हजारों महकें तैर रही हैं—हर एक महक से जुड़ी हुई हजारों यादें, उम्मीदें, खुशियाँ और फिक्रें—जो बहुत वक़्त पहले दिल से उतर चुकी थीं।

“तुम्हारा होठ काँप रहा है।” भूत ने कहा। “और ये गाल पर क्या है?”

स्क्रूज ने कुछ हिचकती हुई आवाज़ में बड़बड़ाते हुए कहा कि वो एक फुंसी है; और भूत से इल्तिजा की कि उसे जहाँ चाहो ले चलो।

“तुम्हें रास्ता याद है?” आत्मा ने पूछा।

“याद है!” स्क्रूज ने जोश से कहा, “मैं तो आँखें बंद करके भी इस राह पर चल सकता हूँ!”

“कितना अजीब है कि इतने सालों तक इसे भुला दिया!” आत्मा ने कहा। “आओ, आगे बढ़ते हैं।”

वे सड़क पर चलने लगे। स्क्रूज हर दरवाज़े, हर खंभे, और हर पेड़ को पहचानता चला गया; यहाँ तक कि दूर से एक छोटा सा बाज़ार वाला कस्बा दिखाई देने लगा, जिसमें एक पुल था, एक चर्च, और एक बलखाती हुई नदी।

अब कुछ झबरीले छोटे टट्टू उनकी ओर आते नज़र आए, जिनकी पीठ पर लड़के सवार थे, और वे दूसरी गाड़ियों और खेतों की सैर करते बच्चों को पुकार रहे थे, जिन्हें किसान लोग चला रहे थे। ये सारे लड़के बेहद खुश थे, और एक-दूसरे को चिल्लाकर पुकार रहे थे, यहाँ तक कि खुले खेतों में इतनी हँसी-खुशी की आवाज़ें गूंजने लगीं कि वो ठंडी, कुरकुरी हवा भी मानो खिलखिलाकर हँस पड़ी!

“ये तो सिर्फ़ बीते हुए वक़्त की परछाइयाँ हैं।” भूत ने कहा। “इन्हें हमारी मौजूदगी का कोई एहसास नहीं है।”

वो हँसमुख मुसाफ़िर पास आते गए; और जैसे-जैसे वो करीब आए, स्क्रूज उन्हें पहचानता गया और हर एक का नाम लेता गया। उसे देखकर इतना ज़्यादा सुकून और खुशी क्यों हो रही थी! उसकी ठंडी आँखें क्यों चमक उठीं, और उसका दिल क्यों उछल पड़ा जब वो उसके पास से गुज़रे! जब उन्होंने एक-दूसरे को “मेरी क्रिसमस” कहकर अलग-अलग रास्तों से अपने-अपने घरों को जाते हुए अलविदा कहा, तो स्क्रूज को इतनी खुशी क्यों हुई! आख़िर क्रिसमस की खुशी स्क्रूज के लिए क्या मायने रखती थी? क्रिसमस पे धिक्कार! इससे उसे आज तक क्या फायदा हुआ था?

“स्कूल पूरी तरह वीरान नहीं है।” भूत ने कहा। “एक तन्हा बच्चा, जिसे उसके दोस्तों ने भुला दिया है, अब भी वहाँ मौजूद है।”

स्क्रूज ने कहा कि वह जानता है। और वह फूट-फूट कर रो पड़ा।

वे मुख्य सड़क से हटकर एक जानी-पहचानी गली में मुड़े, और जल्दी ही एक बड़ी हवेली के पास पहुँच गए, जो सुस्त लाल ईंटों से बनी हुई थी। उसकी छत पर एक छोटा सा गुम्बद था, जिस पर मौसमदर्शक लगा था, और उसमें एक घंटी टंगी थी। वह एक विशाल मकान था, लेकिन अब बदहाली का शिकार हो चुका था; बड़े-बड़े दफ़्तर अब बेकार पड़े थे, उनकी दीवारें सीलन और काई से भरी थीं, खिड़कियाँ टूटी हुईं, और दरवाज़े जर्जर। अस्तबलों में मुर्गियाँ क़दमी करती घूम रही थीं; और कोच हाउस और शेड्स में घास उग आई थी। अन्दर भी हाल कुछ बेहतर न था; जब वे उस उदास हॉल में दाख़िल हुए और खुले दरवाज़ों से झाँककर कमरों को देखा, तो पाया कि वो सब बहुत साधारण, ठंडे और सुनसान थे। हवा में मिट्टी की सी गंध थी, और जगह में एक सूनी सी सर्दी, जो यूँ लगता था जैसे मोमबत्ती की रौशनी में जागने की आदत और भूखे पेट का एहसास उसमें बसा हो।

फिर भूत और स्क्रूज उस हॉल को पार करते हुए मकान के पिछले हिस्से की एक दरवाज़े की ओर बढ़े। वह दरवाज़ा अपने आप खुल गया, और एक लंबा, सुनसान, उदास कमरा दिखाई दिया, जिसे लकड़ी की सादी बेंचों और डेस्कों की कतारों ने और भी वीरान बना दिया था। उनमें से एक डेस्क पर एक अकेला लड़का एक कमज़ोर सी आग के पास बैठा पढ़ रहा था; और स्क्रूज एक बेंच पर बैठ गया, और अपने पुराने, भुला दिए गए बाल रूप को देखकर फूट-फूट कर रोने लगा।

उस मकान में कोई भी धीमी सी गूंज, पैनलिंग के पीछे चूहों की सरसराहट, पिछवाड़े के सूने आँगन में आधी जमी हुई नाली से टपकती पानी की बूँदें, एक वीरान चंपा के पेड़ की पत्तियों में से आती सिसकी, या किसी खाली गोदाम के झूलते हुए दरवाज़े की आवाज़—यहाँ तक कि आग के भीतर चटकती चिंगारी तक—हर चीज़ स्क्रूज के दिल पर असर करती थी, और उसकी आँखों से बहते आँसुओं को और भी राह देती थी।

भूत ने उसके बाज़ू को छुआ और उसके पढ़ने में मग्न छोटे रूप की ओर इशारा किया। अचानक, एक आदमी, विदेशी लिबास में, बेहद असली और साफ़-साफ़ नज़र आने वाला, खिड़की के बाहर दिखाई दिया—उसकी कमर में कुल्हाड़ी अटकी थी और वो एक लकड़ियों से लदे गधे की लगाम थामे खड़ा था।

“अरे, अली बाबा!” स्क्रूज ने खुशी से चीखते हुए कहा। “वो प्यारा पुराना नेकदिल अली बाबा! हाँ, हाँ, मुझे याद है! एक बार क्रिसमस के वक़्त, जब वो तन्हा बच्चा यहाँ अकेला छोड़ दिया गया था, तभी पहली बार वो इसी तरह आया था। बेचारा बच्चा! और वो वैलेंटाइन…” स्क्रूज ने कहा, “…और उसका जंगली भाई ऑर्सन—वो रहे जा रहे हैं! और वो कौन था, जिसे उसकी चड्डी में ही दमिश्क के फाटक पर नींद में छोड़ा गया था; देखो, वो भी है! और सुल्तान का नोकर, जिसे जिन्नात ने उल्टा कर दिया था—वो रहा, सिर के बल खड़ा है! सही किया उसके साथ! प्रिंसेस से शादी करने की उसे क्या ज़रूरत थी!”

स्क्रूज को इस तरह ज़ोर-ज़ोर से, हँसी और आँसुओं के बीच, अपने पूरे दिलो-दिमाग़ के साथ इन बातों में मग्न देखकर, और उसके चेहरे पर जोश और उत्तेजना की रौशनी देखकर, यकीनन उसके कारोबारी दोस्तों को बहुत हैरानी होती।

“वो रहा तोता!” स्क्रूज खुशी से चिल्लाया। “हरी देह और पीली पूंछ वाला, और सिर पर जैसे सलाद का पत्ता उग रहा हो—हाँ वही है! बेचारे रॉबिन क्रूसो ने उसे कहा था, जब वो टापू का चक्कर लगाकर लौटकर आया था। ‘बेचारे रॉबिन क्रूसो, कहाँ चले गए थे रॉबिन क्रूसो?’ उस आदमी को लगा कि वो सपना देख रहा है, मगर वो सपना नहीं था। असल में वही तोता था, जानो! और वो रहा फ्राइडे, अपनी जान बचाकर नाले की तरफ़ दौड़ रहा है! अरे ओ! हुप! हल्लो!”

फिर, अपनी आदत से बिल्कुल उलट तेज़ी से भाव बदलते हुए, स्क्रूज ने अपने पुराने रूप के लिए हमदर्दी से कहा, “बेचारा बच्चा!” और एक बार फिर रो पड़ा।

“काश!” स्क्रूज बड़बड़ाया, अपनी आँखें कुहनी से पोंछते हुए और जेब में हाथ डालकर इधर-उधर देखते हुए, “काश मैं… मगर अब बहुत देर हो चुकी है।”

“क्या बात है?” भूत ने पूछा।

“कुछ नहीं!” स्क्रूज ने कहा। “कुछ नहीं। बस, कल रात एक लड़का मेरे दरवाज़े पर खड़ा होकर क्रिसमस का गीत गा रहा था। मुझे उसे कुछ देना चाहिए था। बस, इतनी सी बात है।”

भूत ने सोच में डूबी मुस्कान के साथ अपना हाथ लहराया और कहा, “आओ, एक और क्रिसमस देखते हैं!”

स्क्रूज का पुराना रूप इन शब्दों के साथ बड़ा होता गया, और कमरा कुछ और अधिक अंधेरा और गंदा होता गया। दीवारों की पैनलिंग सिकुड़ गई, खिड़कियाँ दरक गईं; छत से पलस्तर झड़ने लगा और उसकी जगह नंगी लकड़ियाँ दिखाई देने लगीं; पर ये सब कैसे हुआ, इसका अंदाज़ा स्क्रूज को नहीं था। उसे बस इतना पता था कि सब कुछ बिल्कुल वैसा ही हो रहा था जैसा उस वक़्त हुआ था; और वह फिर से अकेला था, जब बाकी सारे लड़के अपनी-अपनी खुशगवार छुट्टियों के लिए घर चले गए थे।

अब वह लड़का पढ़ नहीं रहा था, बल्कि निराशा में कमरे में इधर-उधर टहल रहा था। स्क्रूज ने भूत की तरफ़ देखा और अफ़सोस से सिर हिलाते हुए चिंतित नज़रों से दरवाज़े की ओर देखा।

वह दरवाज़ा खुला; और एक छोटी बच्ची, उस लड़के से कहीं कम उम्र की, उछलती-कूदती भीतर आई, उसने दौड़कर अपने भाई की गरदन में बाहें डाल दीं, बार-बार उसे चूमा और उसे पुकारा, “मेरे प्यारे, प्यारे भाई!”

“मैं तुम्हें घर ले जाने आई हूँ, प्यारे भाई!” उस बच्ची ने अपनी छोटी-छोटी हथेलियाँ ताली की तरह बजाईं और झुक कर खिलखिलाते हुए कहा, “घर ले जाने… घर, घर, घर!”

“घर? छोटी फै़न?” लड़के ने हैरानी से पूछा।

“हाँ!” बच्ची ने उल्लास से भरी आवाज़ में कहा, “हमेशा के लिए घर। हमेशा-हमेशा के लिए। अब्बा अब पहले से बहुत ज़्यादा मेहरबान हो गए हैं, और घर अब तो जैसे जन्नत सा लगता है! एक रात जब मैं सोने जा रही थी, उन्होंने इतनी नरमी से मुझसे बात की कि मुझे हिम्मत हुई उनसे दोबारा पूछने की—क्या तुम घर आ सकते हो? और उन्होंने कहा, ‘हाँ, आ सकता है।’ फिर उन्होंने मुझे एक बग्घी में भेजा ताकि मैं तुम्हें खुद लेकर आऊँ। और अब तुम बड़े आदमी बनने वाले हो!” उसने आँखें फैला कर कहा, “और फिर कभी यहाँ वापस नहीं आओगे; लेकिन पहले हम सारा क्रिसमस साथ बिताएँगे, और दुनिया की सबसे ख़ुशगवार छुट्टियाँ मनाएँगे!”

“तुम तो पूरी एक खातून हो गई हो, छोटी फै़न!” लड़का चौंककर बोला।

वो बच्ची फिर से ताली बजाकर हँसी, और उसका सिर सहलाने की कोशिश की, लेकिन क़द छोटा होने की वजह से वो सिर तक नहीं पहुँच सकी। फिर हँसते हुए उचक-उचक कर उसने उसे गले लगाया। फिर वो अपनी मासूम बेकरारी में उसका हाथ खींचते हुए दरवाज़े की तरफ़ बढ़ चली, और वो लड़का भी खुशी-खुशी उसके साथ चल पड़ा।

उसी वक़्त बाहर हॉल में एक भारी आवाज़ गूँजी, “मास्टर स्क्रूज का बक्सा नीचे लाओ!” और वहाँ स्कूलमास्टर ख़ुद आ गया, जिसकी नज़रें मास्टर स्क्रूज पर ग़ुस्से भरे शाइस्तगी से टिकी थीं। उसने हाथ मिलाकर स्क्रूज को जैसे सन्न कर दिया। फिर उसने स्क्रूज और उसकी बहन को एक पुरानी, सर्द और उदास बैठक में पहुँचाया, जहाँ दीवारों पर लटके नक़्शे और खिड़की में रखे आसमानी और ज़मीनी गोले बर्फ़ जैसे ठंडे हो चुके थे। वहाँ उसने एक अजीब हल्की-सी शराब की बोतल और बेहद भारी केक का एक टुकड़ा पेश किया, और इन दोनों बच्चों को थोड़ी-थोड़ी मिक़दार में वो चीज़ें दीं। इसी दौरान एक दुबला-पतला नौकर बग्घी वाले को ‘कुछ’ पीने की दावत देने गया, मगर बग्घी वाले ने जवाब दिया, “अगर वही शराब है जो पहले दी थी, तो फिर शुक्रिया, नहीं चाहिए।”

तब तक मास्टर स्क्रूज का बक्सा बग्घी की छत पर कसकर बाँधा जा चुका था। बच्चे स्कूलमास्टर से दिल से विदा हुए और बग्घी में सवार होकर बग़ीचे की पगडंडी से हँसते-खेलते रवाना हो गए; बग्घी के तेज़ पहिए बर्फ़ और पाले की बूंदों को सदाबहार पेड़ों की पत्तियों से ऐसे उड़ा रहे थे जैसे पानी की छींटें हों।

“हमेशा एक नाज़ुक मख़लूक़ रही।” भूत ने नरमी से कहा, “जिसे एक हल्की सी हवा भी मुरझा देती, लेकिन उसका दिल बहुत बड़ा था।”

“बिलकुल था!” स्क्रूज ने भर्राई हुई आवाज़ में कहा, “तुम सही कह रहे हो, आत्मा। मैं इस बात से इनकार नहीं कर सकता। खुदा न करे!”

“वो बड़ी होकर इस दुनिया से गई।” भूत ने कहा, “और मुझे लगता है कि उसके बच्चे भी थे।”

“एक बच्चा;” स्क्रूज ने जवाब दिया।

“सही!” भूत बोला, “तुम्हारा भांजा!”

स्क्रूज के चेहरे पर एक बेचैनी सी आ गई और उसने संक्षेप में कहा, “हाँ।”

हालाँकि अभी कुछ ही लम्हों पहले वे स्कूल की इमारत से बाहर निकले थे, अब वे एक चहल-पहल भरी शहर की सड़कों में आ पहुँचे थे, जहाँ धुंधली परछाइयाँ जैसे राहगीर इधर-उधर आ-जा रहे थे; जहाँ घोड़ा-गाड़ियों और बग्घियों की परछाइयाँ रास्ते के लिए आपस में होड़ कर रही थीं; और हर तरफ़ एक असली शहर का शोर-शराबा, दौड़-भाग और हलचल बसी हुई थी। दुकानों की सजावट से साफ़ ज़ाहिर था कि यहाँ भी क्रिसमस का मौसम आ पहुँचा था; मगर अब शाम हो चली थी, और सारी गलियाँ रोशनी से जगमगा रही थीं।

भूत एक पुराने गोदाम के दरवाज़े पर रुका, और स्क्रूज से पूछा, “तुम इस जगह को पहचानते हो?”

“पहचानता हूँ?” स्क्रूज बोला, “अरे, मैंने तो यहाँ से ही अपने काम की तालीम शुरू की थी!”

वे भीतर गए। एक बुज़ुर्ग सज्जन, जिनके सिर पर वेल्श टोपी थी, ऊँचे डेस्क के पीछे बैठे थे—इतना ऊँचा कि अगर उनकी क़द दो इंच और लंबी होती, तो शायद उनका सिर छत से टकरा जाता। उन्हें देखकर स्क्रूज ज़ोर से बोल उठा:

“अरे! ये तो पुराने फेज़ीविग हैं! खुदा उन्हें सलामत रखे—फेज़ीविग फिर से ज़िंदा नज़र आ रहे हैं!”

पुराने फेज़ीविग ने अपना क़लम नीचे रखा, और घड़ी की तरफ़ देखा, जो ठीक सात बजा रही थी। उन्होंने अपने हाथ रगड़े, अपनी चौड़ी जैकेट को ठीक किया, और पूरे बदन से यूँ हँसे जैसे हर अंग से खुशी झलक रही हो। फिर एक गरम, नरम, मोटी और बेहद ख़ुशमिज़ाज आवाज़ में पुकारा:

“यो हो! एबेनीज़र! डिक!”

स्क्रूज का पुराना रूप, जो अब एक जवान लड़का बन चुका था, तेज़ी से भीतर आया, साथ में उसका साथी प्रशिक्षु भी था।

“डिक विल्किंस, बिल्कुल!” स्क्रूज ने भूत से कहा, “हाय अल्लाह, हाँ! यही है वो। वो मुझसे बहुत मोहब्बत करता था, डिक। बेचारा डिक! वाह, वाह!”

“यो हो, मेरे बच्चो!” फेज़ीविग ने कहा, “आज रात कोई काम नहीं। क्रिसमस की शाम है, डिक। क्रिसमस है, एबेनीज़र! चलो, झटपट खिड़कियों पर शटर लगाओ,” फेज़ीविग ने ज़ोर से ताली बजाकर कहा, “इससे पहले कि कोई ‘जैक रॉबिन्सन’ बोल सके!”

तुम यक़ीन नहीं करोगे कि उन दोनों ने किस जोश से काम शुरू किया! वो सीधे सड़कों पर दौड़ पड़े—एक, दो, तीन—शटर ले आए—चार, पाँच, छह—उन्हें जगह पर फिट किया और बंद किया—सात, आठ, नौ—और बारह गिनने से पहले ही वापस आ गए, ऐसे हाँफते हुए जैसे कोई दौड़ का घोड़ा हाँफता है।

“हिल्ली-हो!” फेज़ीविग ने पुकारा, और उस ऊँचे डेस्क से फ़ुर्ती से कूदकर नीचे आ गए। “चलो बच्चों, सब कुछ साफ़ कर दो, और यहाँ ढेर सारी जगह बना दो! हिल्ली-हो, डिक! चहक उठो, एबेनीज़र!”

साफ़ कर दो! ऐसा कुछ भी नहीं था जिसे वो दोनों साफ़ न कर सकते हों, या करना न चाहते हों, ख़ासकर जब फेज़ीविग खुद नज़र रख रहे हों। सब कुछ मिनटों में कर दिया गया। हर सामान ऐसे उठा लिया गया जैसे वो ज़िंदगी भर के लिए छुट्टी पर भेज दिया गया हो; फ़र्श बुहारा गया, पानी से धोया गया; दीये ठीक किए गए, आग में ईंधन डाला गया; और गोदाम एक शानदार, गरम, सूखा और चमकता हुआ नृत्य-भवन बन गया—जिसे कोई भी सर्दियों की रात में देखकर दुआ दे।

अंदर आया एक वायलिन बजाने वाला, हाथ में सुरों की किताब लिए हुए। वह ऊँचे डेस्क की ओर गया और उसे एक ऑर्केस्ट्रा में बदल दिया, और ऐसा सुर मिलाने लगा जैसे पचास पेट दर्द एक साथ कराह उठे हों। फिर आईं मिसेज़ फेज़ीविग, जिनके चेहरे पर एक बड़ी, प्यारी और भरपूर मुस्कान थी। फिर आईं फेज़ीविग साहब की तीन बेटियाँ, जो ख़ुशमिज़ाज और दिलकश थीं। फिर आए वो छह नौजवान, जिनका दिल इन लड़कियों ने तोड़ा था। फिर आए दफ्तर में काम करने वाले तमाम लड़के-लड़कियाँ। फिर आईं नौकरानी, अपने रिश्तेदार नानबाई (बेक़र) के साथ। फिर आईं बावर्चिन, अपने भाई के ख़ास दोस्त दूधवाले के साथ। फिर आया सामने वाले घर का लड़का, जिस पर शक था कि उसका उस्ताद उसे ठीक से खाना नहीं देता; वह अपनी शर्म को छुपाता हुआ उस लड़की के पीछे छिपने की कोशिश कर रहा था जो एक घर छोड़कर पास में रहती थी, और जिसने हाल ही में अपनी मालकिन से कान खिंचवाए थे।

एक-एक कर के सब लोग भीतर आ गए; कोई शर्मीला, कोई बेहिचक; कोई नफ़ासत से, कोई हिचकिचाते हुए; कोई धक्का देता हुआ, कोई खींचता हुआ; लेकिन सब किसी न किसी तरह आ ही गए। और फिर शुरू हो गया रक्स (नृत्य)—बीस जोड़े एक साथ थिरकने लगे; आधा चक्कर घुमाना और फिर वापस उसी रास्ते से आना; बीच से नीचे जाना और फिर ऊपर लौटना; एक-दूसरे के इर्द-गिर्द घूमना, अलग-अलग क़िस्म की मोहब्बत-भरी अदाओं में बंधे हुए। पुराने टॉप जोड़े हर बार ग़लत जगह पर पहुँच जाते थे, और नए टॉप जोड़े जैसे ही ऊपर पहुँचते, फिर से शुरू हो जाते। आख़िर में ऐसा लगा कि सारे जोड़े टॉप जोड़े बन गए हैं, और अब कोई नीचे वाला बचा ही नहीं जो उन्हें सँभाल सके!

जब ये नज़ारा सामने आया, तो फेज़ीविग साहब ने ताली बजाकर सबको रुकवाया और ख़ुशी से चिल्लाए, “बहुत खूब!” और वायलिन बजाने वाला, जिसका चेहरा अब गर्मी से लाल हो गया था, सीधे उस बर्तन में मुँह डालकर पी गया जिसमें खासतौर पर उसके लिए ठंडी बियर (पोर्टर) रखी गई थी। मगर वह आराम को क्या समझता! जैसे ही वापस लौटा, फिर से बजाने लग गया—even जब नाचने वाले अभी लौटे भी नहीं थे—जैसे पिछला वायलिन वाला थककर स्ट्रेचर पर लाद कर घर भेजा गया हो और अब यह नया आदमी आया हो जो उसे हर हालत में पीछे छोड़ देना चाहता हो, चाहे जान ही क्यों न चली जाए!

और भी नाच हुए, और खेल हुए जिसमें हार माननी पड़ती थी (forfeits), फिर और नाच हुए, फिर आया केक, फिर आया नेगस (एक तरह की गरम मीठी शराब), फिर आया एक बड़ा सा ठंडा भुना हुआ मांस, फिर आया उबला हुआ ठंडा मांस, फिर आए मीठे पाई, और भरपूर बीयर!

मगर शाम का सबसे शानदार नज़ारा तब आया जब रोस्ट और बॉइल के बाद उस चालाक वायलिन वाले ने “सर रोजर डी कवरली” की धुन छेड़ दी। तब फेज़ीविग साहब सामने आए, मिसेज़ फेज़ीविग के साथ नाचने के लिए। वो सबसे ऊपर वाला जोड़ा थे; और उनके सामने तगड़ी मेहनत थी—तीस-चालीस जोड़े मौजूद थे—ऐसे लोग जो सिर्फ़ मस्ती नहीं, नृत्य के लिए आए थे, और जिन्हें टहलने से कोई दिलचस्पी नहीं थी।

मगर भले ही वो दोगुने होते—बल्कि चार गुना भी होते—फेज़ीविग और उनकी बीवी उन सबसे निपट लेते। मिसेज़ फेज़ीविग तो हर मायने में उनकी हमक़दम थीं—अगर ये तारीफ़ ऊँची नहीं लगती, तो बताओ और ऊँची क्या होगी, मैं वो भी कह दूँ। फेज़ीविग साहब की पिंडलियों से जैसे रोशनी फूट रही थी—वो हर स्टेप में ऐसे चमकती थीं जैसे दो छोटे-छोटे चाँद। कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता था कि अगला स्टेप कहाँ जाएगा।

और जब फेज़ीविग और मिसेज़ फेज़ीविग ने पूरा डांस पूरा कर लिया—आगे जाना, पीछे लौटना, दोनों हाथ पकड़ना, झुककर सलाम करना, फिर गोल घूमना, सुई में धागा पिरोने जैसा स्टेप करना और वापस अपनी जगह आना—तब फेज़ीविग साहब ने एक ऐसा “कट” मारा, यानी एक तीखा नृत्य स्टेप, कि ऐसा लगा जैसे उन्होंने अपने पैरों से आँख मारी हो—और वो बिना लड़खड़ाए सीधे ज़मीन पर आ खड़े हुए।

जब घड़ी ने ग्यारह बजाए, तो यह घरेलू जलसा (डांस-बॉल) खत्म हो गया। मिस्टर और मिसेज़ फेज़ीविग दरवाज़े के दोनों किनारों पर खड़े हो गए और हर शख़्स से, चाहे वह मर्द हो या औरत, हाथ मिलाकर विदा ली और उन्हें “क्रिसमस मुबारक” कहा। जब सारे मेहमान जा चुके और सिर्फ़ दो शागिर्द (प्रशिक्षु) रह गए, तो उन्होंने उनके साथ भी वही सुलूक किया। इस तरह हँसी-ख़ुशी की आवाज़ें धीमे-धीमे ख़ामोश हो गईं, और वो दोनों लड़के अपनी जगह, जो पिछली दुकान के काउंटर के नीचे थे, सोने चले गए।

इस पूरे वक़्त के दौरान स्क्रूज ऐसा बर्ताव कर रहा था, जैसे उस पर कोई जुनून सवार हो। उसका दिल और रूह उस मंज़र में पूरी तरह डूबे हुए थे, और अपने पुराने वजूद के साथ जी रहे थे। वह हर बात की तस्दीक कर रहा था, हर चीज़ को याद कर रहा था, हर पल का लुत्फ़ उठा रहा था, और एक अजीब सी बेचैनी से दो-चार था। उसे ये तब तक याद नहीं आया कि उसके साथ एक रूह (आत्मा) भी है, जब तक कि उसके पुराने खुद और डिक के रौशन चेहरे उनसे मुड़ कर चले नहीं गए। और तभी उसने गौर किया कि वह रूह उसे गौर से देख रही थी, और उसके सिर से निकलती रौशनी बड़ी साफ़ और तेज़ थी।

“बस इतनी सी बात?” रूह ने कहा, “जो इन सीधे-सादे लोगों को इतनी शुक्रगुज़ारी से भर दे?”

“छोटी सी बात?” स्क्रूज ने दोहराया, कुछ हैरान होकर।

रूह ने इशारे से उसे दोनों शागिर्दों की बातें सुनने को कहा, जो फेज़ीविग की तारीफ़ों में दिल खोलकर बोल रहे थे। जब स्क्रूज ने उनकी बातें सुन लीं, तो रूह बोली:

“क्या देखा तुमने? उसने तो मुश्किल से तुम्हारी इस फ़ानी दुनिया के कुछ ही पैसे खर्च किए होंगे—तीन या चार पाउंड, शायद। क्या इतना काफ़ी है कि लोग उसकी इतनी तारीफ़ करें?”

“बात वो नहीं है।” स्क्रूज ने गर्मजोशी से कहा, और बिला इरादा अपनी पुरानी शख्सियत की तरह बोलने लगा। “बात ये नहीं है, रूह। उसमें ये ताक़त थी कि वो हमें ख़ुश या ग़मगीन कर सकता था; हमारी नौकरी को आसान या मुश्किल बना सकता था; उसे एक खुशी या एक सज़ा बना सकता था। मान लो उसकी ये ताक़त सिर्फ़ लफ़्ज़ों और नज़रों में थी—ऐसी छोटी-छोटी बातों में जो गिनी भी नहीं जा सकतीं—तो फिर क्या? जो खुशी वो देता है, वो उतनी ही बड़ी है जितनी कि कोई दौलत खर्च करके दी जाती हो।”

उसे महसूस हुआ कि रूह की नज़र उस पर टिकी हुई है, तो वह चुप हो गया।

“क्या बात है?” रूह ने पूछा।

“कुछ खास नहीं,” स्क्रूज ने कहा।

“कुछ तो है,” रूह ने ज़ोर दिया।

“नहीं,” स्क्रूज बोला, “नहीं। बस… मैं चाहता हूँ कि अभी अपने मुंशी से एक-दो लफ़्ज़ बोल पाता। बस इतनी सी बात है।”

उसका पुराना रूप दीपकों को धीमा करते हुए अपनी यह ख्वाहिश ज़ाहिर कर चुका था; और स्क्रूज फिर से रूह के साथ खुले आसमान के नीचे खड़ा था।

“मेरा वक़्त अब कम रह गया है ” रूह ने कहा, “जल्दी करो!”

ये बात उसने न तो स्क्रूज से कही थी, न किसी ऐसे शख़्स से जिसे स्क्रूज देख सकता था, लेकिन इसका असर फौरन हुआ। क्योंकि एक बार फिर स्क्रूज ने खुद को देखा। अब वह बड़ा हो गया था—जवानी के पूरे जोश में एक मर्द। उसके चेहरे पर अभी वह सख्त और जमी हुई लकीरें नहीं थीं जो बाद में आ गई थीं, लेकिन उस पर चिंता और लालच की परछाइयाँ ज़रूर दिखने लगी थीं। उसकी आँखों में एक बेसब्र, लालची, और बेचैन चमक थी, जो यह दिखा रही थी कि एक जुनून उसमें घर कर चुका है, और उसकी जड़ें फैलने लगी हैं।

वह अकेला नहीं था—उसके पास एक नौजवान औरत बैठी थी, जो गहरे रंग के शोक-वस्त्र पहने हुए थी। उसकी आँखों में आँसू थे, जो उस रौशनी में चमक रहे थे जो ‘क्रिसमस पास्ट’ की रूह से निकल रही थी।

“अब कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता।” लड़की ने नर्मी से कहा। “तुम्हारे लिए तो बिल्कुल भी नहीं। एक और बुत ने मेरी जगह ले ली है; और अगर वो तुम्हें आने वाले वक़्त में वही राहत और सुकून दे सकता है, जो मैं देना चाहती थी, तो मुझे कोई गिला नहीं।”

“कौन सा बुत मेरी जगह ले चुका है?” स्क्रूज ने पूछा।

“सोने का—दौलत का।”

“ये है दुनिया की इंसाफ़ पसंदी!” स्क्रूज ने कहा। “दुनिया में सबसे ज़्यादा सख़्ती जिस चीज़ पर होती है, वो है ग़रीबी; और सबसे ज़्यादा नफ़रत जिस चीज़ से जताई जाती है, वो है दौलत का पीछा करना!”

“तुम दुनिया से बहुत डरते हो।” लड़की ने नरमी से जवाब दिया। “तुम्हारी सारी उम्मीदें अब सिर्फ़ इसी बात पर टिक गई हैं कि तुम दुनिया की तुहमतों से बचे रहो। मैंने देखा है कि तुम्हारे वो ऊँचे ख्वाब, जो कभी तुम्हारी पहचान थे, एक-एक कर गिरते चले गए… और अब एक ही जज़्बा बाक़ी रह गया है—मुनाफ़ा। है ना?”

“तो क्या हुआ?” स्क्रूज ने पलटकर कहा। “अगर मैं और समझदार हो गया हूँ, तो इसमें बुरा क्या है? मैं तुम्हारे लिए तो नहीं बदला हूँ।”

लड़की ने धीरे से सिर हिला दिया।

“क्या मैं बदला हूँ?”

“हमारा रिश्ता बहुत पुराना है। ये उस वक़्त बना था, जब हम दोनों ग़रीब थे और इस ग़ुरबत में भी खुश थे, इस यक़ीन के साथ कि धीरे-धीरे मेहनत और सब्र से अपनी ज़िन्दगी बेहतर बनाएँगे। लेकिन अब तुम बदल चुके हो। जब ये रिश्ता जुड़ा था, तुम एक और शख़्स थे।”

“मैं तब एक लड़का था,” उसने बेसब्री से कहा।

“तुम्हारे अपने जज़्बात ये बताते हैं कि तुम अब वैसे नहीं रहे, जैसे तब थे,” उसने जवाब दिया। “मैं अब भी वही हूँ। वो वादा जो कभी हमें खुशी देता था, अब सिर्फ़ दर्द और मायूसी लाता है क्योंकि अब हम दिल से एक नहीं रहे। मैंने कितनी बार और कितनी शिद्दत से इस बारे में सोचा है, ये मैं नहीं कहूँगी। इतना कहना काफ़ी है कि मैंने इस पर बहुत सोचा है—और अब मैं तुम्हें आज़ाद करती हूँ।”

“क्या मैंने कभी ख़ुद को इस रिश्ते से आज़ाद करने की दरख़्वास्त की है?”

“अल्फ़ाज़ में? नहीं, कभी नहीं।”

“तो फिर किस चीज़ में?”

“तुम्हारी बदली हुई फ़ितरत में; तुम्हारे रूख और रवैये में; तुम्हारी ज़िंदगी के नए माहौल में; एक नए मक़सद और उम्मीद में—जो अब मेरा नहीं रहा। उन सब चीज़ों में, जो कभी मेरे प्यार को तुम्हारी नज़र में क़ीमती बनाती थीं। अगर ये सब हमारे दरमियान कभी न होता,” लड़की ने नर्मी मगर सख़्ती से उसकी तरफ़ देखते हुए कहा, “तो बताओ, क्या तुम मुझे तलाशते? क्या मुझे पाने की कोशिश करते? आह, नहीं!”

वो अपनी ही बात की सच्चाई को नकार नहीं सका, भले ही उसका दिल मानने को तैयार न था। लेकिन फिर भी उसने कुछ झिझक के साथ कहा, “तुम ऐसा सोचती हो?”

“काश मैं कुछ और सोच पाती।” उसने कहा, “ख़ुदा गवाह है। जब मैं ऐसी सच्चाई को पहचानती हूँ, तो जानती हूँ कि वो कितनी ताक़तवर और बेमिसाल होती है। लेकिन अगर आज तुम आज़ाद होते, या कल, या बीते हुए कल में भी, क्या मैं यक़ीन कर सकती कि तुम एक ग़रीब लड़की को चुनते—तुम, जो हर रिश्ते को भी मुनाफ़े के तराज़ू में तौलते हो? और अगर किसी लम्हे के लिए तुम अपने उस एकमात्र उसूल से मुंह मोड़कर मुझे चुन भी लेते, तो क्या मुझे ये नहीं मालूम कि तुम्हें ज़रूर पछतावा होता? हाँ, मुझे मालूम है—और मैं तुम्हें रिहा करती हूँ। पूरे दिल से, उस शख़्स की मोहब्बत में जिसे तुम कभी हुआ करते थे।”

वो कुछ कहने ही वाला था कि लड़की ने अपना सिर मोड़े हुए ही दोबारा बोलना शुरू किया।

“शायद… बीते वक़्त की यादें मुझे ये उम्मीद करने पर मजबूर कर रही हैं कि तुम्हें भी इस जुदाई से थोड़ी तकलीफ़ होगी। मगर ये दुख बहुत छोटा और चंद लम्हों का होगा। बहुत जल्द तुम इस सबको एक बेकार ख्वाब समझ कर भुला दोगे और शुक्र मनाओगे कि तुम इस ख्वाब से जाग गए। मैं दुआ करती हूँ कि जिस ज़िन्दगी को तुमने चुना है, उसमें तुम खुश रहो।”

वो उसे छोड़ कर चली गई, और इस तरह वे दोनों अलग हो गए।

“रूह!” स्क्रूज चीखा, “अब और मत दिखाओ! मुझे घर ले चलो। तुम्हें मुझे तकलीफ़ देकर क्यों मज़ा आता है?”

“एक साया और बाक़ी है!” रूह ने एलान किया।

“नहीं!” स्क्रूज चिल्लाया, “अब नहीं! मैं और नहीं देखना चाहता! बस बहुत हुआ!”

मगर बेरहम रूह ने उसे अपने दोनों हाथों में मजबूती से जकड़ लिया और अगला मंज़र देखने पर मजबूर कर दिया।

अब वे एक और जगह पर थे—एक कमरा, न बहुत बड़ा और न ही बहुत शानदार, लेकिन आराम और मोहब्बत से भरा हुआ। सर्दियों की आग के पास एक हसीन नौजवान लड़की बैठी थी, जो पहली वाली लड़की जैसी लग रही थी। स्क्रूज को पहले तो लगा कि वही है, मगर फिर उसने देखा कि वो अब एक प्यारी सी माँ बन चुकी है, और उसके सामने उसकी बेटी बैठी है। कमरे में इतना शोर था कि स्क्रूज की घबराई हुई हालत में वह बच्चों की गिनती भी नहीं कर सका। और ये बच्चे किसी कविता के मशहूर चालीस बच्चों की तरह नहीं थे, जो एक जैसे बर्ताव करते हों—बल्कि यहाँ हर बच्चा ऐसे पेश आ रहा था जैसे चालीस हो। हंगामा इतना ज़्यादा था कि यकीन करना मुश्किल था, मगर किसी को कोई परवाह नहीं थी। माँ और बेटी हँस रही थीं और इस शोर में पूरी तरह शामिल थीं। कुछ ही देर में वो लड़की भी खेल में शामिल हो गई, और छोटे ‘डाकुओं’ ने उसके साथ शरारतों में कोई कसर नहीं छोड़ी।

काश! मैं उनमें से एक होता! हालाँकि मैं कभी इतनी बदतमीज़ी नहीं करता—नहीं, हरगिज़ नहीं! मैं उस नाज़ुक चोटी को कभी मसलता नहीं, न ही उस अनमोल छोटे से जूते को उतारने की गुस्ताख़ी करता। और जो उन बच्चों ने खेल ही खेल में उसकी कमर नापी, तो मैं ऐसा करता भी तो मुझे लगता मेरा हाथ वहीं मुड़कर रह जाएगा और कभी सीधा नहीं होगा। मगर फिर भी, मैं मानता हूँ, मुझे उसकी होंठों को छूने की तलब थी; उससे कुछ पूछने की आरज़ू थी ताकि वो अपना मुँह खोले; उसकी झुकी पलकों को देखने की हसरत थी, बिना उसे शर्मिंदा किए; उसके बालों की लहरें खोलने की ख्वाहिश थी—जिसका एक इंच भी अनमोल यादगार होता। यानी, मुझे बच्चों जैसी छूट चाहिए थी, लेकिन साथ ही इतना बड़ा भी होना चाहता था कि उसकी क़ीमत जान सकूँ।

फिर अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई, और कमरे में ऐसा शोर मच गया कि हँसती हुई, लुटी-पिटी सी लड़की एक भीड़ के बीच मुस्कुराती हुई दरवाज़े की तरफ ले जाई गई—ठीक उसी वक़्त जब उसका शौहर, एक और आदमी के साथ जो क्रिसमस के तोहफ़ों से लदा हुआ था, घर लौट रहा था।

फिर क्या था—चीख़-पुकार, हँसी-ठिठोली, और उस बेबस आदमी पर बच्चों का हमला शुरू! कुर्सियों को सीढ़ी बना कर उसकी जेबों में हाथ डाला गया, उसके ब्राउन पेपर के पैकेट छीन लिए गए, उसकी टाई को पकड़ कर खींचा गया, उसकी गर्दन में बाँहें डाल दी गईं, उसकी पीठ थपथपाई गई, और बेइंतिहा मोहब्बत में उसकी टाँगें तक ठोकी गईं! हर तोहफ़े के खुलते ही जो हैरत और खुशी की आवाज़ें उठतीं, वो बयान से बाहर थीं!

फिर ये भी हुआ कि एक डरावनी ख़बर आई—कि बच्चे ने गुड़िया की फ्राइंग-पैन अपने मुँह में डालने की कोशिश की, और शक था कि उसने लकड़ी की थाली पर चिपकी हुई नकली टर्की निगल ली है! फिर जब पता चला कि ये सिर्फ़ अफ़वाह थी, तो सबने राहत की साँस ली। उस वक़्त जो ख़ुशी, जो क़द्रदानी और जो बेइंतिहा ख़ुशहाली थी—वो सब लफ़्ज़ों से परे हैं।

आख़िर में धीरे-धीरे बच्चे अपने जज़्बातों के साथ कमरे से निकल गए, एक-एक सीढ़ी चढ़ते हुए, ऊपर की मंज़िल पर गए, और अपने बिस्तरों में जा कर चुपचाप सो गए।

और अब स्क्रूज पहले से कहीं ज़्यादा ध्यान से देखने लगा, जब उस घर का मालिक, जिसकी बेटी उसके कंधे से लग कर बैठी थी, अपनी बीवी और बेटी के साथ अपने ही अलाव के पास बैठ गया। और जब स्क्रूज ने सोचा कि ऐसी ही कोई और प्यारी सी बच्ची—जो उतनी ही सलीकेदार और उम्मीदों से भरी हो—उसे ‘पिता’ कह सकती थी, और उसकी ज़िंदगी की बेरहम सर्दी में बसंत की तरह आई होती, तो उसकी आँखें नम हो गईं और उसका नज़ारा धुंधला पड़ गया।

“बेल!” उस शख़्स ने अपनी बीवी की ओर मुस्कुराकर देखा, “आज दोपहर मैं तुम्हारे एक पुराने दोस्त से मिला।”

“कौन था वो?” उसने पूछा।

“अंदाज़ा लगाओ!”

“मैं कैसे जानूं? ओ हो, अब तो समझ गई!” उसने हँसते हुए कहा, “मिस्टर स्क्रूज!”

“हाँ, वही मिस्टर स्क्रूज थे। मैं उनके ऑफिस की खिड़की के सामने से गुज़रा; वो बंद नहीं थी और अंदर एक मोमबत्ती जल रही थी, तो मैं उन्हें देखे बिना रह नहीं सका। सुना है उनके साझेदार की हालत नाज़ुक है—मौत के करीब है; और स्क्रूज अकेले बैठे थे। पूरी दुनिया में बिल्कुल अकेले। मुझे यकीन है, वो अब तन्हा रह गए हैं।”

“रूह!” स्क्रूज की आवाज़ काँप रही थी, “मुझे यहाँ से ले चलो!”

“मैंने पहले ही कहा था कि ये सब बीते वक्त की परछाइयाँ हैं,” रूह ने कहा, “ये जैसे हैं, वैसे ही हैं—इसमें मेरा कोई क़सूर नहीं!”

“ले चलो मुझे यहाँ से!” स्क्रूज चीख़ पड़ा, “मैं और नहीं सह सकता!”

उसने रूह की तरफ पलट कर देखा, और पाया कि उसके चेहरे पर एक अजीब सी बात थी—उसके चेहरे में उन सभी चेहरों की झलकें थीं जो उसने अब तक स्क्रूज को दिखाए थे। स्क्रूज ने उससे जूझने की कोशिश की।

“मुझे छोड़ दो! मुझे वापस ले चलो! अब और सताओ मत!”

इस संघर्ष में—अगर इसे संघर्ष कहा जा सकता है, क्योंकि रूह ने तो कोई प्रतिरोध किया ही नहीं—स्क्रूज ने देखा कि उसकी पेशानी पर जलती हुई रोशनी अब और भी तेज़ हो गई है। और शायद इसी रोशनी के असर से वह बेचैन हो रहा था। तो उसने जल्दी से वह ढक्कन जैसा टोपा पकड़ा और झपटकर उसे रूह के सिर पर रख दिया।

रूह उसके नीचे दब गया, और वह टोपा उसके पूरे वजूद को ढँक गया। मगर चाहे स्क्रूज ने जितनी भी ज़ोर लगाई, वह उस रोशनी को पूरी तरह छुपा नहीं सका। वह रोशनी अब भी नीचे से फूट कर ज़मीन पर फैल रही थी—एक दमकती हुई धारा की तरह।

स्क्रूज को महसूस हुआ कि वो थक चुका है, और एक अजीब सी नींद उसे अपनी गिरफ़्त में ले रही है। फिर उसे ये भी अहसास हुआ कि वो अब अपने ही कमरे में है। उसने उस टोपी को एक आख़िरी बार दबाया, मगर उसका हाथ अब ढीला पड़ चुका था। और फिर वो लड़खड़ाता हुआ बिस्तर तक पहुँचा, और गिरते ही गहरी नींद में डूब गया।

स्क्रूज ने पहले रूह को बुझा दिया।

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