चैप्टर 18 मैला आँचल फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास, Chapter 18 Maila Anchal Phanishwar Nath Renu Novel In Hindi, Chapter 18 Maila Anchal Phanishwar Nath Renu Ka Upanyas
Chapter 18 Maila Anchal Phanishwar Nath Renu Novel
“क्या नाम ?”
“सनिच्चर महतो।”
“कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?…क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?…कभी-कभी ? हूँ !…एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।…इधर आओ।…ज़ोर से साँस लो।…एक-दो-तीन बोलो।…ज़ोर से। हाँ, ठीक है।”
“क्या नाम ?”
“दासू गोप।”
“पेट देखें ?..हूँ !..पिल्ही है। सूई लगेगी। सूई के दिन पुरजी लेकर आना। कल , खून देने के लिए सुबह ही आ जाना। समझे !”
“क्या नाम ?”
“निरमला।”
“डागडरबाबू !” एक बूढ़ा हाथ जोड़कर आगे बढ़ आता है। गिड़गिड़ाता है-“हमारी बेटी है। आज से करीब एक साल पहले भोंमरा ने एक आँख में झाँटा मारा। इसके बाद दोनों आँखें आ गईं। बहुत किस्म की जंगली दवा करवाए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अब तो एकदम नहीं सूझता।”
बला की खूबसूरत है यह निरमला। दूध की तरह रंग है चेहरे का।…विशुद्ध मिथिला की सुन्दरता। भौरे ने गलती नहीं की थी। आँखें देखें !…और आगे बढ़ आइए।… आह !…एक बूँद आईड्राप के बगैर दो सुन्दर आँखें सदा के लिए ज्योतिहीन हो गईं।…अब तो इलाज से परे हैं।…
डाक्टर ने आँखों की पपनियाँ उलटकर रोशनी की हल्की रेखा भी खोजने की चेष्टा की।…ऊँहूँ ! पुतलियाँ कफ़न की तरह सफेद हो गई हैं। वह सोचता है, यदि तूलिका से इन पुतलियों में रंग भरा जा सकता ! हाँ, कोई चित्रकार ही अब इन आँखों को सुन्दर बना सकता है, ज्योति दे सकता है।
“डागडरबाबू !” रोगिनी कहती है। आवाज़ में कितनी मिठास है ! “बहुत नाम सुनकर आई हूँ। बहुत उम्मीद लेकर आई हूँ, बाईस कोस से। भगवान आपको जस दें ।”
प्रकाश दो ! प्रकाश दो ! अँधेरे में घुटता हुआ प्राणी छटपटा रहा है, आत्मा विकल है-रोशनी दो ! डाक्टर क्या करे ?…डाक्टर को भावुक नहीं होना चाहिए।
“घबराइए नहीं, दवा दे रहा हूँ। यहाँ ठीक नहीं होगा तो पटना जाना पड़ेगा।”
“हाँ, दूसरा रोगी !…क्या नाम है ?”
“रामचलित्तर साह।”
“क्या होता है?”
“जी ! कुछ खाते ही कै हो जाता है। पानी भी…”
“कब से ?”
“सात दिन से।”
“अरे ! सात दिन से !…जरा इधर आओ।”
“जी? बेमारी तो घर पर है।”
“घर कहाँ ?”
“जी, सरसौनी बिजलिया। यहाँ से कोस दसेक है।”
हठात् सभी रोगी एक ओर हट जाते हैं, खूँखार जानवर को देखकर जिस तरह गाय-बैलों का झुंड भड़क उठता है; सभी के चेहरे का रंग उतर जाता है। औरतें अपने बच्चे को आँचल में छिपा लेती हैं। सबकी डरी हुई निगाहें एक ही ओर लगी हुई हैं।
डाक्टर उलटकर देखता है-एक अधेड़ स्त्री।…भद्र महिला !
“कहिए, क्या है ?”
“डागडरबाबू ! यह मेरा नाती है, बस यही एक नाती ! मेरी आँखों का जोत है यह। एक साल से पाखाने के साथ खून आता है। इसको बचा दीजिए डागडरबाबू ! …यह नहीं बचेगा।”
“घबराइए नहीं।…इधर आओ तो बाबू ! क्या नाम है ?…गनेश ! वाह ! जरा पेट दिखलाइए तो गनेश जी !”
गनेश की नानी दवा लेकर चली जाती है। रोगियों का झुंड फिर डाक्टर के टेबल को घेर लेता है।
चिचाय की माँ कहती है, “पारबती की माँ थी। डाइन है ! तीन कुल में एक को भी नहीं छोड़ा। सबको खा गई। पहले भतार को, इसके बाद देबर-देबरानी, बेटा-बेटी, सबको खा गई। अब एक नाती है, उसको भी चबा रही है।”
चिचाय की माँ ने ऐसा मुँह बनाया मानो वह भी कुछ चबा रही हो।…डाक्टर चिचाय की माँ को देखता है।…काली, मोटी, गन्दी और झगड़ालू यह बुढ़िया चिचाय की माँ, जो बेवजह बकती रहती है, चिल्लाती रहती है।…यह डाइन नहीं ? सुमरितदास उस दिन कहता था-“चिचाय की माये तो जनाना डागडर है। पाँच महीने के पेट को भी इस सफाई से गिरा देती है कि किसी को कुछ मालूम भी नहीं होता।” यह डाइन नहीं और गनेश की नानी डाइन है ? आश्चर्य !
…गनेश की नानी ! बुढ़ापे में भी जिसकी सुन्दरता नष्ट नहीं हुई, जिसके चेहरे की झुर्रियों ने एक नई खूबसूरती ला दी है। सिर के सफेद बालों को धुंघराले लट ! होंठों की लाली ज्यों-की-त्यों है। ठुड्डी में एक छोटा-सा गड्ढा है और नाक के बगल से एक रेखा निकल नीचे ठुड्डी को छू रही है। सुन्दर दन्तपंक्तियाँ !…जवानी की सुन्दरता आग लगाती है, और बुढ़ापे की सुन्दरता स्नेह बरसाती है। लेकिन लोग इसे डाइन कहते हैं। आश्चर्य !
“कहाँ रहती है ?”
“इसी गाँव में ! कालीचरन का घर देखा है न ! उसी के पास। बैस बनियाँ है।…कितना ओझागुनी थक गया, इसको बस नहीं कर सका। जितिया परब (जीताष्टमी) की रात में कितनी बार लोगों ने इसको कोठी के जंगल के पास गोदी में बच्चा लेकर, नंगा नाचते देखा है। गैनू भैंसवार ने एक बार पकड़ने की कोशिश की थी। ऐसा झरका बान (अग्निबाण) मारा कि गैनू के सारे देह में फफोले निकल आए। दूसरे ही दिन गैनू मर गया।…”
रोज रात में डाक्टर केस-हिस्ट्री लिखने बैठता है।…अभी उसके हाथ में कालाआजार के पचास ऐसे रोगी हैं, जिनके लक्षण कालाआजार के निदान को भटकानेवाले साबित हो सकते हैं।
एक : (क) सेबी मंडल, उम्र 35, हिन्दू (मद), गाँव मेरीगंज, पोलियाटोली। तकलीफ : दाँत और मसूड़े में दर्द । दतुअन करने के समय खून निकलना, मुँह महकना, देह में खुजली, भूख की कमी। बुखार : नहीं। निदान : पायोरिया। दवा : कारबोलिक की कुल्ली। विटामिन सी का इंजेक्शन।
(ख) पन्द्रह दिन के बाद : शाम को सरदर्द की शिकायत । बुखार 99.5, रात में पसीना।…कैलशियम पाउडर।
(ग) पाँच दिन के बाद पेट खराब हो गया है। बुखार : 100। कार्मिनटिव मिक्शचर। कालाआजार के लिए खून लिया गया।
(घ) अल्डेहाइट टेस्ट का फल : ( कालाआज़ार ! चिकित्सा : नियोस्टिबोसन का इंजेक्शन।
दो : (क) तेतरी, उम्र : 17, हिन्दू (औरत), गाँव पासवानटोली, मेरीगंज।
तकलीफ : हड्डियों के हर जोड़ में दर्द। कभी-कभी नाक से खून गिरता है। बुखार : नहीं (थर्मामीटर से देखा 99.5) भूख : नहीं। रोग अनुमान : गठिया, वात।
दवा : विटामिन बी का इंजेक्शन। मालिश का तेल। डब्ल्यू.आर. के लिए खून लिया।
(ख) डब्ल्यू. आर. (गरमी) : (-) गरमी नहीं।
(ग) एक सप्ताह बाद नाक से खून गिरा।…पेट खराब हुआ। कालाआज़ार के लिए खून लिया।
(घ) अल्डहाइड टेस्ट का फल : सन्देहात्मक। फिर खून लिया।
(ङ) ब्रह्मचारी-टेस्ट का फल : (चिकित्सा-युरिया स्टिबामाइन (ब्रह्मचारी)।
तीन : (क) रामेसर का बच्चा : उम्र 2 महीने। नाभी में घाव। रात में रोता है, दूध फेंकता है।…माँ को कैलशियम पाउडर।
(ख) एक सप्ताह के बाद सारे देह में चकत्ते। अनुमान : एलरजिक।
(ग) चार दिन के बाद : चकत्तों में पानी भर गया है। डब्ल्यू. आर. के लिए माँ का खून लिया। फल : (-) नहीं।।
(घ) कालाआजार के लिए माँ का खून लिया। फल : (-) नहीं। कालाआजार के लिए बच्चे का खून लिया। फल : ( कालाआजार।)
और इस बच्चे की यदि मृत्यु हुई तो जरूर किसी डाइन के मत्थे दोष मढ़ा जाएगा। देह में फफोले ! गनेश की नानी पर ही सन्देह किया जाएगा। गनेश की नानी ! न जाने क्यों वह गनेश की नानी से कोई प्यारा-सा सम्बन्ध जोड़ने के लिए बेचैन हो गया है। कमली कहती है, “मौसी ! मौसी में बहुत गुन हैं। सीकों से बड़ी अच्छी चीजें बनाती है-फूलदानी, डाली, पंखे। कशीदा कितना सुन्दर काढ़ती है ! पर्व-त्योहार और शादी-ब्याह में दीवार पर कितना सुन्दर चित्र बनाती है-कमल के फूल, पत्ते और मयूर ! चौक कितना सुन्दर पूरती है !”…वह भी उसे मौसी कहेगा !
“मौसी !”
“कौन ?”
“मैं हूँ। डाक्टर। गनेश कहाँ है ?”
“डागडरबाबू ! आप ? आइए, बैठिए। गनेश सो रहा है।…मैं तो अकचका गई, किसने मौसी कहकर पुकारा !” बूढ़ी की आँखें छलछला आती हैं।
“मौसी ! सुमा है तुम एक खास किस्म का हलवा बनाती हो ?” मौसी हँस पड़ती है, “अरे दुर ! किसने कहा तुमसे ? पगली कमली ने कहा होगा जरूर।…कमली कैसी है अब ? इधर तो बहुत दिन से आई ही नहीं। पहले तो रोज आती थी।” ।
“अच्छी है।…अच्छी हो जाएगी। मौसी ! एक बात पू ?…तुम्हारी कोई बहन, माँ, बेटी या और कोई…सहरसा इलाके में, हनुमानगंज के पास कभी रहती थी ?” डाक्टर अपने बेतुके सवाल पर खुद हँसता है।
“सहरसा इलाके में हनुमानगंज के पास ?…रहो, याद करने दो।…नहीं तो ? क्यों, क्या बात है ?”
“यों ही पूछता हूँ। ठीक तुम्हारे ही जैसी एक मौसी वहाँ भी है।” बात को बदलते हुए डाक्टर कहता है, “मुझे एक फूल की डाली दो न, मौसी !”
उफ !…सचमुच डाइन है यह बुढ़िया। इसकी मुस्कराहट में जादू है। स्नेह की बरसा करती है। ऐसी आकर्षक मुस्कराहट ?
गनेश बड़ा भोला-भाला लड़का है ! बड़ा खूबसूरत ! गोरा रंग, लाल ओठ और धुंघराले बाल उसे नानी के पक्ष से ही मिले हैं।…बड़ा अकेला लड़का मालूम होता है। मौसी कहती है, “किसके साथ खेले ! गाँव के बच्चे अपने साथ खेलने नहीं देते।…मेरे ही साथ खेलता है।”
“गनेश जी, जरा पेट दिखाइए तो !…मौसी ! कल इसे सुबह ले आना तो ! खून लूँगा। होंठ मुरझाए रहते हैं।”
गनेश को अब एक मामा मिल गया।
“सचमुच ऐसा हलवा कभी नहीं खाया मौसी !…विश्वास करो।…गनेश को भी दो ! कोई हरज नहीं।”
“मामा देखो!” गनेश गले में स्टेथस्कोप लटकाकर हँसता है।
“वाह ! मेरा भानजा डाक्टर बनेगा।”
डाक्टर जब मौसी के घर से निकला तो उसने लक्ष्य किया, कालीचरन के कुएँ पर पानी भरनेवाली स्त्रियों की भीड़ लग गई है। सभी आँखें फाड़े, मुँह बाए, आश्चर्य से डाक्टर को देखती हैं-“इस डाक्टर को काल ने घेरा है सायद।”
“लाल सलाम !” कालीचरन मुट्ठी बाँधकर सलाम करता है, और डाक्टर को एक लाल परचा देते हुए कहता है, “कामरेड मन्त्री जी आपको पहचानते हैं डाक्टर साहब !…हाँ, कृष्णकान्त मिश्र जी !”
आइए ! आइए ! जरूर आइए !
कमानेवाला खाएगा, इसके चलते जो कुछ हो !
किसान राज : कायम हो।
मजदूर राज : कायम हो।
प्यारे भाइयो ! ता. ……को मेरीगंज कोठी के बगीचे में किसानों की एक विशाल सभा होगी। सोशलिस्ट पार्टी पूर्णिया के सहायक मन्त्री साथी गंगाप्रसादसिंह यादव सैनिक जी…।
“परसों सभा है ! आइएगा।…लाल सलाम !”
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