चैप्टर 16 : ज़िन्दगी गुलज़ार है | Chapter 16 Zindagi Gulzar Hai Novel In Hindi

Chapter 16 Zindagi Gulzar Hai Novel In Hindi

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१८ अप्रैल – ज़ारून

पता नहीं मेरे सारे दिन एक जैसे क्यों होते जा रहे हैं, फ्रस्ट्रेशन, डिप्रेशन से भरपूर.

आज फिर मेरा दिन बहुत बुरा गुज़रा है और इसकी वजह वही थी. आज उस वाक्ये के बाद वो पहली बार कॉलेज आई थी. हम लोग उस वक़्त डिपार्टमेंट की सीढ़ियों पर खड़े बातें कर रहे थे, जब वो नज़र आई थी. सिर झुकाए बड़ी ख़ामोशी से वो हमारे पास से गुजरी थी.

सर अबरार ने उस वाक्ये के दूसरे दिन ही मुझसे इस बारे में बात की थी. मैंने उन्हें बता दिया था कि उसने मुझे बदकिरदार कहा था, मगर उन्हें यकीन नहीं आ रहा था कि वो बगैर किसी वजह के ऐसी कोई बात कर सकती है. मैंने उनसे कह दिया था कि जब वो कॉलेज आये, तो खुद ही उससे पूछ लेना और आज सर अबरार ने उसे देखते ही अपने कमरे में बुलवाया था. मैं खौफज़दा था कि वो सर अबरार को सारी बात बता देगी. लेकिन उसने जिस तरह बात की थी, उसके अंदाज़ ने मुझे और ज्यादा खौफज़दा कर दिया था. उसने कुछ ना बताते हुए भी सब कुछ बता दिया था. उसके जाते ही सर अबरार ने मुझसे कहा था –

“तुमने इसे क्या कहा था, जो उसने तुम्हें बदकिरदार कहा था?”

“सर मैंने उसे कुछ नहीं कहा, उसे गलतफ़हमी हो गई थी.” मैंने झूठ बोलना ज़रूरी समझा.

“मैं तुम्हे अच्छी तरह जानता हूँ, कोई लड़की इतनी बड़ी बात बगैर वजह के नहीं कह सकती और फिर वो भी कशफ़ जैसी लड़की, नहीं उसे कोई गलतफहमी नहीं हुई होगी. तुमने ज़रूर उसे कुछ कहा होगा.” सर अबरार का लहज़ा बहुत खुश्क था.

“हाँ, मैंने उसके बारे में कुछ रिमार्क्स दिए थे, लेकिन उसके सामने नहीं. पहल मैंने बहरहाल नहीं की थी.” मैंने अपनी पोजीशन क्लियर करने की कोशिश की.

“क्या रिमार्क्स दिए थे तुमने?”

सर अबरार के अंदाज़ में तब्दीली नहीं आई थी और पहली बार मैंने महसूस किया कि मेरे अल्फाज़ इस क़दर भी बे-ज़रर (जिससे कोई हानि न पहुँचे, अहानिकारक) नहीं थे कि मैं उन्हें सर अबरार के सामने दोहरा पाता.

“सर ये ज़रूरी नहीं होता कि हम किसी की गैर मौजूदगी में उसके बारे में कुछ कहें, तो हमारा वाकई मतलब हो. कुछ बातें हम वैसे ही कह देते हैं. दोस्तों के सामने शो-ऑफ करने के लिये, मगर ज़रूरी नहीं कि हम वाकई किसी को नुकसान पहुँचाना चाहते हैं.”

मैंने असल बात बताने से पहले थोड़ा झूठ बोलना सही समझा और फिर उन्हें सारी बातें बताता गया.

“और ये यकीनन उस सारी बकवास का कुछ हिस्सा होगा, सारी बात बताने की हिम्मत तो तुम कभी नहीं कर सकते.” मैं उनकी बात पर सर नहीं उठा सका.

“फिर तुम्हें लफ्ज़ बदकिरदार गाली क्यों लगा? उस सारी बकवास के बाद तुम अपने आपके लिए कौन सी इज्ज़त और लक़ब (ख़िताब) चाहते थे? मेरा ख़याल था कि तुम्हारे सारे अफेयर्स उन्हीं लड़कियों तक महदूद (सीमित) हैं, जो खुद भी यूनिवर्सिटी में एन्जॉयमेंट के लिए आती हैं, मगर तुम इस हद तक गिर चुके हो, ये मैं सोच भी नहीं सकता था. तुमने उसे थप्पड़ मारा, थप्पड़ तो उसे तुम्हारे मुँह पर मारना चाहिए था. तुम औरत की इज्ज़त करना तक भूल गए हो. अपने दोस्तों में बैठ कर तुम ऐसी बातें करते हो, तुम्हें तो डूब मरना चाहिये.” उनका हर लफ्ज़ मेरी शर्मिंदगी के बोझ में इजाफ़ा कर रहा था.

“अब यहाँ से दफ़ा हो जाओ और आइंदा मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना.” मैं अपनी चेयर से उठा और उनके करीब कारपेट पर पंजों के बल बैठ गया.

“आई एम सॉरी. मैं मानता हूँ मैंने गलती की है, मगर ये मेरी पहली गलती थी. क्या मुझे एक चांस नहीं देंगे?”

“तुमने मुझे इतना सदमा पहुँचाया है कि मैं बयां नहीं कर सकता. मैंने आज तक तुमसे तुम्हारे अफ़ेयर्स के बारे में इसलिए बात नहीं की, क्योंकि कोई ग़लत बात मुझ तक नहीं पहुँची और फिर तुमने अपनी स्टडीज़ के मामले में भी लापरवाही नहीं बरती, मगर तुमने तो मेरे एतमाद (विश्वास) को ठेस पहुँचाई है. मैंने हमेशा तुम्हें बेटे की तरह चाहा है, इसलिए मुझे ज्यादा तकलीफ़ पहुँची है. तुम्हारी जगह कोई दूसरा आदमी होता, तो मैं कभी उससे इस सिलसिले में बात तक न करता, मगर तुम्हारी बात और है. मुझसे माज़रत (माफ़ी मांगना) करके क्या होगा, तुम्हें उससे माज़रत करना चहिये, जिसके साथ तुमने ये सब किया है.” उनके आखिरी जुमले पर मेरी बहाल होती हुई सांस दोबारा रुकने लगी थी.

“”सर! क्या ये ज़रूरी है?” मैंने बहुत बेबस होकर उनसे पूछा था.

“बेहद ज़रूरी है.” उनका नरम पड़ता हुआ लहज़ा दोबारा सख्त हो गया था और मैंने मजबूरन हामी भर ली. लेकिन अब सोच रहा हूँ कि ऐसे कैसे माज़रत करूंगा उससे, जिससे मैं नफ़रत करता हूँ.

मैं उससे कैसे कहूंगा कि मुझे अपने किये पर अफ़सोस है, हालांकि मुझे कोई अफ़सोस नहीं है. उस सारे तमाशे में मुझे क्या मिला है? मैं उसे फ़्लर्ट नहीं कर पाया, सर अबरार के सामने उसकी इमेज ख़राब करते-करते मैं अपनी इमेज ख़राब कर बैठा. कॉलेज में बदनाम हो गया, कोई एक शिकस्त है, जो उसने मुझे दी है. एक बात तो तय है कि मैं उसे कभी माफ़ नहीं कर सकता. हर गुज़रते दिन के साथ मेरी नफरत में इज़ाफा हो रहा है. शायद मुझे उसे इतनी अहमियत देनी ही नहीं चाहिए थी. मैं अपना वक़्त बर्बाद कर रहा हूँ और ये अहसास मुझे देर से हुआ है.

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