चैप्टर 16 चट्टानों में आग ~ इब्ने सफ़ी का हिंदी जासूसी उपन्यास

Chapter 16 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 16 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

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सोफ़िया आँखें फाड़-फाड़ के चारों तरफ देख रही थी, लेकिन उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह कहाँ है। कमरा अलीशान ढंग से सजा था और वह एक आरामदेह बिस्तर पर पड़ी हुई थी। उसने उठना चाहा, मगर उठ न सकी। उसे ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे उसके जिस्म में जान ही न रह गई हो। ज़ेहन काम नहीं कर रहा था। उस पर दोबारा बेहोशी छा गई और फिर दूसरी बार जब उसकी आँख खुली, तो दीवार पर लगी घड़ी में आठ बज रहे थे। सिरहाने रखा हुआ टेबल लैंप रोशन था।

इस बार वह पहली ही कोशिश में उठ बैठी। थोड़ी देर सिर पकड़े बैठी रही। फिर खड़ी हो गई। लेकिन इस शिद्दत से चक्कर आया कि उसे संभलने के लिए मेज़ का कोना पकड़ना पड़ा…सामने का दरवाजा खुला हुआ था। वह बाहर जाने का इरादा कर ही रही थी कि एक आदमी कमरे में दाखिल हुआ।

“आपको कर्नल साहब याद फ़रमा रहे हैं।” उसने बड़े अदब से कहा।

“क्या? डैडी?” सोफ़िया ने हैरान होकर पूछा।

“जी हाँ!”

कमजोरी के बावजूद सोफ़िया की रफ़्तार काफ़ी तेज थी और उस आदमी के अंदाज़ से ऐसा मालूम हो रहा था, जैसे वह उसी की वजह से जल्दी-जल्दी कदम उठा रहा है।

वे कई बरामदों से गुज़रते हुए एक बड़े कमरे में आए और फिर वहाँ सोफ़िया ने जो कुछ देखा, वह उसे अधमरा कर देने के लिए पर्याप्त था।

उसने कर्नल ज़रगाम को देखा, जो एक कुर्सी से बंधा हुआ था और उसके गिर्द चार आदमी खड़े उसे खा जाने वाली नज़रों से घूर रहे थे।

“तुम!” अचानक कर्नल चीख पड़ा। उसने उठने की कोशिश की, लेकिन हिल न सका। उसे मजबूती से बांधा गया था।

मैं दोनों ख़ामोशी से एक दूसरे की तरफ देखते रहे।

अचानक भारी जबड़े वाला एक आदमी बोला, “कर्नल तुम ली यूका से टकराने की कोशिश कर रहे हो। ली यूका, जिसे आज तक किसी ने भी नहीं देखा।”

कर्नल कुछ न बोला। उसकी आँखें फ़ियाया के चेहरे से हटकर झुक गई थी। भारी जबड़ों वाला फिर बोला, “अगर तुमने काग़ज़ात वापस ना किए, तो तुम्हारी आँखों के सामने इस लड़की की बोटियाँ काट दी जायेंगी। एक-एक बोटी…क्या तुम इसके तड़पने का मंज़र देख सकोगे।”

“नहीं!” कर्नल बेसाख्ता चीख पड़ा। उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें फूट आई थी।

सोफ़िया खड़ी कांपती रही। उसका सिर दोबारा चकराने लगा था। ऐसा मालूम हो रहा था, जैसे कमरे की रोशनी पर गर्द की तहें चढ़ती जा रही हों। और फिर उस आदमी ने, जो उस के साथ आया था, आगे बढ़कर उसे संभाल लिया। वह बेहोश हो चुकी थी।

“उसे आराम कुर्सी में डाल दो।” भारी जबड़ों वाले ने कहा। फिर कर्नल से बोला, ” अगर तुम्हें अब भी होश ना आये, तो इसे तुम्हारी बदकिस्मती समझना चाहिए।”

कर्नल उसे चंद लम्हे घूरता रहा। फिर अपना ऊपरी होंठ भींचकर बोला, “उड़ा दो उसकी बोटियाँ…मैं कर्नल ज़रगाम हूँ समझे। तुम्हें कागजातों का साया तक नसीब नहीं होगा।”

भारी जबड़ों वाले ने कहकहा लगाया।

“कर्नल! तुम ली यूका की ताकत से वाकिफ़ होने के बावजूद बच्चों की सी बातें कर रहे हो।” उसने कहा, “ली यूका ने तुम्हें कहाँ से खोज निकाला है। वैसे तुम ऐसी जगह पर छुपे थे, जहाँ फ़रिश्ते भी पर नहीं मार सकते थे। वह ली यूका ही की ताकत थी, जो दिनदहाड़े तुम्हारी लड़की को यहाँ उठा लाई। मैं कहता हूँ आखिर वह कागज़ात तुम्हारे किस काम के हैं? यकीन जानो,  तुम उससे कोई फ़ायदा नहीं उठा सकते। वैसे तुम अक्लमंद ज़रूर हो कि तुम्हें अभी तक वे कागज़ात पुलिस के हवाले नहीं किये। मुझे बताओ, तुम चाहते क्या हो।”

“मैं तुम्हारे किसी सवाल का जवाब नहीं देना चाहता। तुम्हारा जो दिल चाहे, कर लो।” कर्नल गुर्राया।

“अच्छा!” भारी जबड़े वाले ने अपने आदमी को इशारा करते हुए कहा, “उस लड़की के पैर का अंगूठा काट दो।”

उस आदमी ने मेज पर से चमत्कार कुल्हाड़ी उठाई और बेहोश सोफ़िया की तरफ बढ़ा।

“ठहरो!” अचानक एक गरजदार आवाज सुनाई दी, “ली यूका आ गया।”

साथ ही एक ज़ोरदार धमाका भी हुआ और सामने वाली दीवार पर आँखों को चुंधिया देने वाली चमक दिखाई दी। सारा कमरा धुएं से भर गया। सफेद रंग का गहरा धुंआ, जिसमें एक बालिश्त के फ़ासले की चीज भी नज़र नहीं आ रही थी।

धड़ाधड़ फर्नीचर उलट ने लगा। कर्नल ज़रगाम की भी कुर्सी उलट गई। लेकिन उसे इतना होश था कि उसने अपना सिर फर्श से न लगने दिया। कमरे के दूसरे लोग नींद से चौंकते हुए कुत्तों की तरह शोर मचा रहे थे। अचानक कर्नल कुर्सी छोड़कर खड़ा हो गया। कोई उसका हाथ पकड़े हुए उसे एक तरफ खींच रहा था। कर्नल धुएं की घुटन की वजह से इतना बदहवास हो रहा था कि उस अज्ञात आदमी के साथ खिंचता चला गया।

और फिर थोड़ी देर बाद उसने खुद को ताजा हवा में महसूस किया। उसके सिर पर खुला हुआ और तारों भरा आसमान था। उसने अंधेरे में उस आदमी को पहचानने की कोशिश की, जो उसका हाथ पकड़े हुए तेजी से ढलान में उतर रहा था। उसने अपने कंधे पर किसी को याद रखा था। इसके बावजूद उसके कदम बड़ी तेजी से उठ रहे थे।

“तुम कौन हो?” कर्नल ने भरायी हुई आवाज में पूछा।

“अली इमरान! एमएससी पीएचडी।” जवाब मिला।

“इमरान!”

“शश…चुपचाप चले आइए।”

वे जल्दी ही चट्टानों में एक सुरक्षित जगह पर पहुँच गये। यह चट्टानें कुछ इस किसने की थी कि उनमें घंटों तलाश करने वालों को चक्कर दिया जा सकता था।

इमरान ने बेहोश सोफ़िया को कंधे से उतारकर एक पत्थर पर लिटा दिया।

“क्यों क्या है?” कर्नल ने पूछा।

“ज़रा एक च्यूइंगगम खाऊंगा।” इमरान ने अपनी जेबें में टटोलते हुए कहा।

“अजीब आदमी हो…अरे, इमारत यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है।” कर्नल घबराये हुए लहज़े में बोला।

“इसलिए तो मैं रुक गया हूँ। लगे हाथों यह तमाशा भी देख लूं। क्या यहाँ से फायर स्टेशन नज़दीक है।”

“क्या वहाँ आग लग गई है?” कर्नल ने पूछा।

“जी नहीं! ख़ामखा बात का बतंगड़ बनेगा। वह तो सिर्फ़ धुएं का एक मामूली सा बम था। ज़रा देखिएगा धुएं का बादल…”

कर्नल ने इमारत की तरफ नज़र डाली। उसके ऊपर हिस्से पर धुएं का घना बादल मंडरा रहा था।

“क्या वह बम तुमने…”

“अरे तौबा…लाहौल विला…” इमरान अपना मुँह पीटता हुआ बोला, “मैं तो उसे टूथ पेस्ट का ट्यूब समझे हुए था…मगर मुझे उन बेचारों पर तरस आता है क्योंकि इमारत से बाहर निकलने के सारे रास्ते बंद हैं। मैंने पिछली रात को सपना देखा था कि कयामत करीब ऐसा ज़रूर होगा वगैरा-वगैरा!”

“इमरान ख़ुदा की कसम तुम हीरे हो।” कर्नल दबे हुए जोश के साथ बोला।

“ओह, ऐसा न कहिये। वरना कस्टम वाले ड्यूटी वसूल कर लेंगे।” इमरान ने कहा, “लेकिन आप यहाँ कैसे आ फंसे?”

“मैं ऐसी जगह छुपा था इमरान कि वहाँ परिंदा भी पर नहीं मार सकता था। लेकिन उन्होंने मुझे प्लेग के चूहे की तरह बाहर निकाल लिया।”

“गैस?” इमरान ने पूछा।

“हाँ मैं एक गुफा में था। उन्होंने बाहर से गैस डाल कर मुझे निकलने पर मजबूर कर दिया। लेकिन सोफ़िया यहाँ कैसे पहुँची?”

“ठहरिए!” इमरान हाथ उठाकर बोला और शायद दूर की कोई आवाज सुनने लगा। फिर उसने जल्दी से कहा, “इस बारे में फिर कभी बताऊंगा..उठिए…गाड़ियाँ आ रही हैं।”

उसने फिर सोफ़िया को उठाना चाहा। लेकिन कर्नल ने रोक दिया। वह गोद में उठाकर इमरान के पीछे चलने लगा। उतराई बहुत तेज थी। लेकिन फिर भी वह संभल-संभल कर नीचे उतरते रहे थे। फिर उन्हें पतली सी बलखाती हुई सड़क नज़र आई। तारों की छांव में सड़क साफ दिखाई दे रही थी। अचानक नीचे से लाल रंग की रोशनी की किरण आकर चट्टानों पर फैल गई। कर्नल के मुँह से अजीब सी आवाज निकली।

“ओह…फ़िक्र न कीजिये। पुलिस है।” इमरान ने कहा।

कि जल्दी ही पांच-छः आदमी उनकी मदद के लिए ऊपर चढ़ आए। उनमें इंस्पेक्टर ख़ालिद भी था।

“उस इमारत में तो आग लग गई है।” उसने इमरान से कहा।

“उन लोगों को भिजवाने का इंतज़ाम करो।” इमरान बोला, “और तुम मेरे साथ आओ। सिर्फ दस आदमी काफ़ी होंगे।”

फिर उसने कर्नल से कहा, “आप बहुत कमज़ोर हो गए हैं। इसलिए इस वक्त पुलिस को कोई बयान न दीजियेगा।”

“क्या मतलब?” ख़ालिद भन्नाकर बोला।

“कुछ नहीं प्यारे! तुम मेरे साथ हो। आदमियों को भी लाओ।”

“सब भाई मौजूद हैं।” ख़ालिद बोला।

कर्नल और सोफ़िया नीचे पहुँचाया जा चुके थे। इमरान ख़ालिद के साथ फिर उसी इमारत की तरफ बढ़ा, जिसकी खिड़कियों से गहरा धुंआ निकलकर आकाश में बल खा रहा था। इमरान के गिर्द काफ़ी भीड़ इकट्ठा हो गई थी। ख़ालिद के आदमी जल्द ही आ मिले और इमरान उन्हें साथ लेकर अंदर घुसता हुआ चला गया। बाहर के सारे दरवाजे उसने पहले ही बंद कर दिए थे। इसलिए इमरान के लोग बाहर नहीं निकल सकते थे और बाहर वालों की अभी तक हिम्मत नहीं पड़ी कि इमारत में कदम रख सकते।

इमारत में कुछ कमरे ऐसे भी थे, जहाँ अभी तक धुआं गहरा नहीं हुआ था। ऐसे कमरों में से एक में उन्हें पांचों आदमी मिल गए थे। वे सब पसीने में नहाये हुए बुरी तरह हांफ रहे थे।

“क्या बात है?” इमरान ने पहुँचते ही ललकारा।

उसे देखकर उन सब की हालत और ज्यादा खराब हो गई।

“बोलते क्यों नहीं?” इमरान फिर गरजा। इमरान ने ख़ालिद से कहा, “ये शिफ्टेन के आदमी हैं। धुएं के बम बना रहे थे। एक बम फट गया।”

“बकवास है!” भारी जबड़ों वाले ने चीखकर कहा।

“खैर…परवाह नहीं!” ख़ालिद गर्दन झटक कर बोला, “मैं तुम्हें अपहरण के इल्जाम में हिरासत में लेता हूँ।”

“यह भी एक फिजूल की बात होगी।” भारी जबड़ों वाला मुस्कुराकर बोला, “हमने किसी को भी छुपाकर नहीं रखा।”

“हाँ ख़ालिद साहब!” इमरान ही मूर्खतापूर्ण अंदाज़ में ऑंखें फिराकर कहा, “इससे काम नहीं चलेगा। ज़ोर ज़बरदस्ती का सबूत तो शायद यहाँ से उठ चुका है…नहीं ये लोग बम रहे थे।”

“हथकड़ियाँ लगा दो।” ख़ालिद ने अपने आदमियों की तरफ मुड़ कर कहा।

“देखो मुसीबत में फंस जाओगे तुम लोग!” भारी जबड़े वाला झल्लाकर बोला।

“फ़िक्र ना करो!” ख़ालिद ने जेब से रिवाल्वर निकालते हुए कहा, “चुपचाप हथकड़ियाँ लगवा लो, वरना अंजाम बहुत बुरा होगा। मैं ज़रा फौजी किस्म का आदमी हूँ।”

उन सबके हथकड़ियाँ लग गई। जब वे पुलिस की गाड़ी में बैठाये जा चुके, तो ख़ालिद ने इमरान से कहा, “अब बताइए, क्या चार्ज लगाया जाए उनके खिलाफ़!”

“बमसाजी! आसपास के लोगों ने धमाका ज़रूर सुना होगा। दस बारह सेर गंधक और दो एक जार तेजाब के इमारत से बरामद कर लो…समझे। बस इतना ही काफ़ी है।”

“और वो शिफ्टेन वाला मामला?” ख़ालिद ने पूछा।

“फिलहाल तुम्हारे फ़रिश्ते भी उसके लिए सबूत जुटा नहीं सकते…अच्छा मैं चला….कम से कम उनकी जमानत तो होने नहीं देना।”

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