चैप्टर 15 प्रभावती सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का उपन्यास | Chapter 15 Prabhavati Suryakant Tripathi Nirala Novel In Hindi 

चैप्टर 15 प्रभावती सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का उपन्यास | Chapter 15 Prabhavati Suryakant Tripathi Nirala Novel In Hindi 

Chapter 15 Prabhavati Suryakant Tripathi Nirala Novel In Hindi 

Chapter 15 Prabhavati Suryakant Tripathi Nirala Novel In Hindi 

महाराज सीधे डेरे पहुँचे। दूसरे दिनों से देर हो गई थी। यमुना प्रतीक्षा कर रही थी। महाराज को देखकर प्रसन्न हुई। पूछा, कोई घटना तो देर करने की नहीं घटी? महाराज गम्भीर होकर बोले, “बड़े काम की बात है।” प्रभावती सजग हो गई। यमुना ने संक्षेप में असली बात कहने के लिए कहा।

महाराज जैसे ईश्वर का स्मरण करते हुए बोले, “जिसके राम रखवारे हैं, उसका कोई क्या बिगाड़ सकता है? वे कहो तो सुई के छेद से हाथी को निकालें!”

महाराज और कुछ इसी तरह कहनेवाले थे कि यमुना से न रहा गया। बोली, “अरे भले आदमी, बात तो बताओ!”

“बीच में न टोक, यह कह कि तेरे बड़े भाग रहे जो प्रातःकाल उठकर बराँभन का मुँह देखेगी। हैं, चिड़िया का मरना, लड़कों का खिलवाड़! बड़ी समझदार बनी घूमती है। पड़ी होती आजवाले चक्कर में तो मक्कर भूल गए होते।”

यमुना तमतमा उठी कि दें गाल पर एक चाँटा। तब तक मधुर धीमे स्वर से प्रभावती ने कहा, “महाराज, भाग तो हमारे थे ही जो तुम मिले, अब यह बताओ कि क्या बात है?”

“हम बाजार में टहल रहे थे कि एक औरत ने कहा कि उस मकान की मालकिन आपको बुलाती है। हे यमुना जिधर निकलो, सब देखती हैं।” महाराज ऊपरवाला होंठ जरा सिकोड़कर निगाह नीची कर मूँछें देखने लगे। प्रभावती ने मुश्किल से हँसी को रोका। महाराज कहते गए, “कसरती बदन और रियाज की बातें ही ओर हैं। तू तो यमुना, हमारा सुभाव जानती है, उसके मरने के बाद दस पन्द्रह तो ब्याह आए होंगे, लेकिन हमने कहा कि उन उढ़रिहों की लड़की का

ब्याह कर दालिब ऋषि के कुल को कलंक लगाना है।”

यमुना और प्रभावती दोनों अधीर हो गईं, पर महाराज के क्रम में परिवर्तन असम्भव है, सोचकर बैठी रहीं। महाराज कहते गए, “पहले तो हमारी इच्छा हुई कि कह दें कि न जाएँगे। फिर हमें यमुना की बात याद आ गई कि आने-आने और बातचीत में कहीं अटको मत, तो हम चले गए। जीने के ऊपर गए तो पूरी अप्सरा बैठी थी। उठकर हमारा हाथ पकड़कर गद्दे पर ले जाकर बैठाया, फिर हमारा नाम पूछा। हमने कहा- सिवसरूप महाराज….”

“नाम बता दिया?” यमुना ने तेजी से पूछा।

“अरे यह तो हम अपने मन बता रहे हैं। हमने कहा, सिवसरूप महाराज, समय पड़े की बात है कि अब बात करना भी मोहाल हो रहा है। हमने कहा, हमारा नाम है बरमदत्त। उसने पूछा, अस्थान कहाँ पर है? हमने कहा, सुनो सिवसरूप महाराज, तुम वही हो, जो जुन्नी करके दूसरे के जजमान नहवाते थे, किसी के भी अस्थान को अपना अस्थान बताते थे, आज यह तुमसे पूछ रही है। हमने कहा, प्रयागराज। तो बोली कि हम दलमऊ नहाने गए थे। हमने कहा कि हाँ, तब हम मामा के यहाँ आए थे, हमने यहाँ तुमको देखा है। सुनकर पैरों पर माधा रख दिया। फिर बोली कि मैं महाराजाधिराज की सभा में नाचती हूँ। हमने आसिरवाद दिया कि तुम्हारी तड़क्की हो। अरे हाँ, भाई, जजमान है। फिर उसने पूछा कि देवी परभावती को जानते हैं आप, वह जो दलमऊ के सरदार की लड़की है? हमने कहा, हाँ, उनको देखा है, वे हमारे रिश्तेदार के जजमान हैं। उसने कहा, उनका यह हाल है।”

फिर महाराज ने वह हाल और उस तवायफ का नाम बतलाया।

क्रमश: 

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