Chapter 14 Zindagi Gulzar Hai Novel In Hindi
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११ अप्रैल – ज़ारून
आज मैं बहुत परेशान हूँ और कोई चीज़ भी मेरी परेशानी दूर करने में नाकाम रही है.
बाज़ चेहरे इंसान को कितना धोखा देते हैं. आप उन्हें देखते हैं और सोचते हैं कि वो बेज़ार हैं, उनसे आपको कोई नुकसान नहीं पहुँच सकता और फिर हमें सबसे बड़ा नुकसान उन्हीं से पहुँचता है. क्या कभी कोई सोच सकता था कि बेज़ार ख़ामोश सी रहने वाली लड़की के अंदर इतनी आग है? वो इस तरह बोल सकती है? वो मुझे एक आतिश-फ़शन (आग बरसाने वाला) की तरह लगती थी.
मैं सोच नहीं सकता था कि वो वहाँ लाइब्रेरी में मौज़ूद होगी. एक तूफ़ान की तरह आई थी वो और मुझे हिला कर चली गई थी. पूरी लाइब्रेरी में उसने मुझे तमाशा बनाकर रख दिया था. उसने मुझे बदकिरदार कहा था और अगर ओसामा और फ़ारूख मुझे न पकड़ते, तो मैं उसे जान से ही मार देता.
ओसामा और फ़ारूख मुझे वहाँ से सीधा घर लाये थे और देर तक मेरा गुस्सा ठंडा करने की कोशिश करते रहे. मुझे हैरत थी कि वो कशफ़ की तरफ़दारी कर रहे थे और सारा क़सूर मेरे सिर डाल रहे थे. सही मायनों में आस्तीन के साँप हैं वो. मेरा दिल चाह रहा था, मैं उन दोनों को भी शूट कर दूं.
मेरे दिल से अब तक कशफ़ के ख़िलाफ़ गुस्सा और नफ़रत खत्म नहीं हुई. उसने मेरे साथ जो किया है, वो कभी नहीं भुला सकता. भूलना चाहूं, तब भी नहीं. मैं तुम्हें हमेशा याद रखूंगा कशफ़! और मेरी याददाश्त में रहना तुम्हें बहुत महंगा पड़ेगा. काश मैं तुम्हें जान से मार सकता.
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Complete Novel : Zindagi Gulzar Hai Novel In Hindi
Complete Novel : Chandrakanta