चैप्टर 14 तितली जयशंकर प्रसाद का उपन्यास | Chapter 14 Titli Jaishankar Prasad Novel In Hindi
Chapter 14 Titli Jaishankar Prasad Novel In Hindi
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शैला का छोटी कोठी से भी हट जाना रामदीन को बहुत बुरा लगा। वह माधुरी, श्यामदुलारी और इंद्रदेव से भी मन-ही-मन जलने लगा। लड़का ही तो था, उसे अपने साथ स्नेह से व्यवहार करने वाली शैला के प्रति तीव्र सहानुभूति हुई। वह बिना समझे-बूझे मलिया के कहने पर विश्वास कर बैठा कि शैला को छोटी कोठी से हटाने में गहरी चालबाजी है, अब वह इस गांव में भी नहीं रहने पावेगी, नील-कोठी भी कुछ ही दिनों की चहल-पहल है।
रामदीन रोष से भर उठा। वह कोठी का नौकर है। माधुरी ने कई हेर-फेर लगाकर उसे नील-कोठी जाने से रोकलिया। मेम साहब का साथ छोड़ना उसे अखर गया। शैला ने जाते-जाते उसे एक रुपया देकर कहा-रामदीन, तुम यहीं काम करो। फिर मैं मांजी से कहकर बुला लूंगी ! अच्छा न !
लड़के का विद्रोही मन इस सांत्वना से धैर्य न रख सका। वह रेने लगा। शैला के पास कोई उपाय न था। वह तो चली गई। किंतु, रामदीन उत्पाती जीव बन गया। दूसरे ही दिन उसने लैंप गिरा दिया। पानी भरने का तांबे का घड़ा लेकर गिर पड़ा। तरकारी धोने ले जाकर सब कीचड़ से भर लाया। मलिया को चिकोटी काटकर भागा। और, सबसे अधिक बुरा काम किया उसने माधुरी के सामने तरेर कर देखने का, जब उसको अनवरी को मुँह चिढ़ाने के लिए वह डांट रही थी।
उसका सारा उत्पात देखते-देखते इतना बढ़ा कि बड़ी कोठी में से कई चीजें खो जाने लगीं। माधुरी तो उधार खाए बैठी थी। अब अनवरी की चमड़े की छोटी-सी थैली भी गुम हो गई, तब तो रामदीन परी बे-भाव की पड़ी। चोरी के लिए वह अच्छी तरह पिटा, पर स्वीकार करने के लिए वह किसी भी तरह प्रस्तुत नहीं।
माधुरी ने स्वभाव के अनुसार उसे खूब पीटने के लिए चौबे से कहा। चौबेजी ने कहा-यह पाजी पीटने से नहीं मानेगा। इसे तो पुलिस में देना ही चाहिए। ऐसे लौंड़ों की दूसरी दवा ही नहीं।
माधुरी ने इंद्रदेव को बुलाकर उसका सब वृत्तांत कुछ नोन-मिर्च लगाकर सुनाते हुए पुलिस में भेजने के लिए कहा। इंद्रदेव ने सिर हिला दिया। वह गंभीर होकर सोचने लगे। बात क्या है ! शैला के यहाँ से जाते ही रामदीन को हो क्या गया !
इसमें भी आप सोच रहे हैं! भाई साहब, मैं कहती हूँ न, इसे पुलिस में अभी दीजिए, नहीं तो आगे चलकर यह पक्का चोर बनेगा और यह देहात इसके अत्याचार से लुट जाएगा।-माधुरी ने झल्लाकर कहा।
इंद्रदेव को माधुरी की इस भविष्यवाणी पर विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने कहा-लड़कों को इतना कड़ा दंड देने से सुधार होने की संभावना तो बहुत ही कम होती है, उलटे उनके स्वभाव में उच्छृंखलता बढ़ती है। उसे न हो तो शैला के पास भेज दो। वहाँ ठीक रहेगा।
माधुरी आग हो गई-उन्हीं के साथ रहकर तो बिगड़ा है। फिर वहाँ न भेजूंगी। मैं कहती हूँ, भाई साहब, इसे पुलिस में भेजना ही होगा।
अनवरी ने भी दूसरी ओर से आकर क्रोध और उदासी से भरे स्वर में कहा-दूसरा कोई उपाय नहीं।
अनवरी का बेग गुप्त हो गया था, इस पर भी विश्वास करना ही पड़ा। इंद्रदेव को अपने घरेलू संबंध में इस तरह अनवरी का सब जगह बोल देना बहुत दिनों से खटक रहा था। किंतु आज वह सहज ही सीमा को पार कर गया। क्रोध से भरकर प्रतिवाद करने जाकर भी वह रुक गए। उन्होंने देखा कि हानि तो अनवरी की ही हुई है, यहाँ तो उसे बोलने का नैतिक अधिकार ही है।
रामदीन बुलाया गया। अनवरी पर जो क्रोध था उसे किसी पर निकालना ही चाहिए, और जब दुर्बल प्राणी सामने हो तो हृदय के संतोष के लिए अच्छा अवसर मिल जाता है। रामदीन ने सामने आते ही इंद्रदेव का रूप देखकर रोना आरंभ किया। उठा हुआ थप्पड़ रुक गया। इंद्रदेव ने डांटकर पूछा-क्यों बे, तूने मनीबेग चुरा लिया है।
मैंने नहीं चुराया। मुझे निकालने के लिए डॉक्टर साहब बहुत दिनों से लगी हुई हैं। एं-एं-एं ! एक दिन कहती भी थीं कि तुझे पुलिस में भेजे बिना मुझे चैन नहीं। दुहाई सरकार की, मेरा खेत छुड़ाकर मेरी नानी को भूखों मारने की भी धमकी देती थीं।
इंद्रदेव ने कड़ककर कहा-चुप बदमाश ! क्या तुमसे उनकी कोई बुराई है जो वह ऐसा करेंगी ?
मैं जो मेम साहब का काम करता हूँ ! मलिया भी कहती थी बीबी रानी मेम साहब को निकालकर छोड़ेंगी और तुमको भी …हूँ-हूँ-ऊं-ऊं !
उसका स्वर तो ऊंचा हुआ, पर बीबी-रानी अपना नाम सुनकर क्षोभ और क्रोध से लाल हो गई। सुना न, इस पाजी का हौसला देखिए। यह कितनी झूठी-झूठी बातें भी बना सकता है। कहकर भी माधुरी रोने-रोने हो रही थी। आगे उसके लिए बोलना असंभव था। बात में सत्यांश था। वह क्रोध न करके अपनी सफाई देने की चेष्टा करने लगी। उसने कहा-बुलाओ तो मलिया को, कोई सुनता है कि नहीं !
इंद्रदेव ने विषय का भीषण आभास पाया। उन्होंने कहा-कोई काम नहीं। इस शैतान को पुलिस में देना ही होगा। मैं अभी भेजता हूँ।
रामदीन की नानी दौड़ी आई 1 उसके रोने-गाने पर भी इंद्रदेव को अपना मत बदलना ठीक न लगा। हाँ, उन्होंने रामदीन को चुनार के रिफार्मेटरी में भेजने के लिए मजिस्ट्रेट को चिट्टी लिख दी।
शैला के हटते ही उसका प्रभु भक्त बाल-सेवक इस तरह निकाला गया !
इन्द्रदेव ने देखा कि समस्या जटिल होती जा रही है। उसके मन में एक बार यह विचार आया कि वह वहाँ से जाकर कहीं पर अपनी बैरिस्टरी की प्रेक्टिस करने लगे परंतु शैला ! अभी तो उसके काम का आंरभ हो रहा है। वह क्या समझेगी। मेरी कायरता पर उसे कितनी लज्जा होगी। और मैं ही क्यों ऐसा करूं। रामदीन के लिए अपना घर तो बिगाडूंगा नहीं। पर यह चाल कब तक चलेगी।
एक छोटे-से घर में साम्राज्य की-सी नीति बरतने में उन्हें बड़ी पीड़ा होने लगी। अधिक न सोचकर वह बाहर घूमने चले गए।
शैला को रामदीन की बात तब मालूम हुई, जब वह मजिस्ट्रेट के इजलास पर पहुँच चुका था और पुलिस ने किसी तरह अपराध प्रमाणित कर दिया था ! साथ ही, इंद्रदेव-जैसे प्रतिष्ठित जमींदार का पत्र भी रिफार्मेटरी भेजने के लिए पहुँच गया था।
क्रमशः
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