चैप्टर 14 नारी सियारामशरण गुप्त का उपन्यास | Chapter 14 Nari Siyaramsharan Gupt Novel

चैप्टर 14 नारी सियारामशरण गुप्त का उपन्यास | Chapter 14 Nari Siyaramsharan Gupt Novel

Chapter 14 Nari Siyaramsharan Gupt Novel

Chapter 14 Nari Siyaramsharan Gupt Novel

रविवार की छुट्टी का दिन था यही वह दिन है, जब निरन्तर छः दिन तक लड़कों को अपने पीछे दौड़ाकर समय थोड़ी देर के लिए उनके पास बैठ जाता है। रद्दी के बहुत बड़े ढेर में जैसे यही एक उनके काम की चीज हो ।

परन्तु हल्ली को लगा आज रविवार न होता तो अच्छा था । जैसे इस रविवार ने षड्यन्त्र करके उसकी चोरी के रुपये एक दिन और अधिक रखने के लिए हीरालाल को अवसर दे दिया है। ऐसे बुरे काम में असहयोग करने के लिए ही आज के दिन मदरसा खुला रहना चाहिए था !

तथापि, बिना भूख के भी जब कोई मधु फल महक फैलाता हुआ हाथ में आ जाय, तब उसका सदुपयोग किये बिना नहीं रहा जा सकता । हल्ली ने आज का दिन बाहर खेत पर लड़कों के साथ बिताने का निश्चय किया। अपने खेत वाले आम में मौर आ जाने की बात अभी उसने सुनी है, इसलिए उसे देखने के लिए आज उसका वहाँ जाना और आवश्यक है।

उसने हँसकर जमना से कहा- माँ, तुम हमारे पण्डितजी से भी कड़ी हो। मदरसे की तो छुट्टी है, पर तुम आज भी मुझे नहलाये बिना न मानोगी। मैं नहाकर आया, तुम मेरे लिए पहले से थाली परोस रखो। नहीं तो देर हो जायगी, मुझे जल्दी जाना है ।

जल्दी कहाँ जाना है? जमना ने पूछा।

“खेलने जाना है, नहीं तो और क्या बम्बई – कलकत्ते ? तुम कभी घर के बाहर नहीं होने देती, मेरी तो बड़ी इच्छा होती है। एक बार तुम मुझे दस ही रुपये दो, फिर देखो कि बप्पा की तरह मैं भी देस परदेस घूम सकता हूँ कि नहीं।”

रात तक खाने-पीने से निश्चिन्त होकर हल्ली अपने दल के साथ खेत के उसी आम के नीचे जाकर ठहरा। वृक्ष नई-नई कोंपलों से लदकर और भी सुन्दर हो उठा था। परन्तु उन सबको इस समय इस ऊपरी सौन्दर्य की अपेक्षा न थी । वृक्ष ने हरे-हरे पत्तों के भीतर कहाँ- कहाँ मनोरम मौर, काव्य के मर्म की तरह छिपा रक्खा है, वही उनके देखने का विषय था । एक लड़का सहसा कह उठा – वह है वह !

दूसरे लड़के ने नीचे से एक ढेला उठाकर फेंकते हुए कहा- और यह देखो यहाँ ?

हल्ली ने ऊपर न देखकर उस लड़के को डाँटकर कहा- क्या करते हो यह? मौर में आम फलते हैं, ढेला लगने से खराब हो जायँगे।

तब एक और लड़के ने प्रस्ताव किया कि वह पेड़ पर चढ़ जायगा और ऊपर से ही बता देगा कि मौर कहाँ-कहाँ आया है। विचार के बाद यह बात स्वीकार करने योग्य निकली। इसलिए नहीं कि ऊपर चढ़कर गिरने का डर है, वरन् इसलिए कि वृक्ष की डालें पतली हैं, कोई टूट जायगी तो नुकसान होगा। परन्तु थोड़ा और देखने पर इसके बिना ही उनका काम निकल गया। वे जो देखना चाहते थे वह नीचे से ही यथेष्ट संख्या में उन्हें दिखाई देने लगा।

हल्ली ने हाथ से ताली पीटते हुए कहा- इतना मौर आया है- सबमें आम ही आम हो जायँ तो आहा ! बड़ा मजा हो ।

“इतने आम होंगे कि गाँव भर के आदमी खाने बैठें तो भी न चुकें ।”

हल्ली के लिए यह बड़ी प्रसन्नता की बात है कि उसके पेड़ के आम गाँव भर के आदमी खावें । पर उसने कहा- मैं गाँव भर के आदमियों को आम न खाने दूँगा। गाँव भर में हीरा भी आ जायगा ।

“हीरा चोर है” – पास खड़े हुए लड़के ने कहा- साथ ही दूसरे लड़कों ने भी “चोर है, चोर है” की धूम मचा दी, जैसे सचमुच किसी चोर को चोरी करते हुए उन्होंने पकड़ लिया हो।

“और उसकी यह बात सुनी तुमने हल्ली ? वह कहता है, तुम्हारी माँ पर हमारे हजारों रुपये आते हैं। दो रुपये ले ही लिये तो इसमें दूसरे किसी का क्या लिया। सब रुपये वे दे न सकेंगी, इसके लिए राम के यहाँ उनका विचार होगा।”

एक और लड़का बोल उठा – हल्ली की माँ ने रुपये नहीं लिये। बताओ गवाह कौन-कौन है?

हल्ली थोड़ी देर के लिए अनमना हो गया। हीरा वह बात झूठ तो नहीं कहता है। उसने अपनी माँ से भी सुना है कि चौधरी के कुछ रुपये देने हैं। तो क्या इसी से चोरी की बात सुनकर भी माँ उस पर नाराज नहीं हुई? उसने कहा- हीरा के बाप के रुपये हमें देने हैं, पर उसने चोरी क्यों की? इसके लिए उसे राम के यहाँ नरक मिलेगा।

इस निर्णय ने सब लड़कों को एक साथ प्रसन्न कर दिया। वह प्रसन्नता देखकर विरोधी भी यह नहीं कह सकता कि विधाता ने नरक की सृष्टि करके कुछ बुरा किया है।

“और हीरा यह भी कहता था कि अपने रुपयों में हम हल्ली का यह खेत, यह कुआँ और आम का यह पेड़ छीन लेंगे। उसके बाप के पास यह खेत चला गया तो फिर वह किसी दूसरे को इसका एक फल सूँघने के लिए भी न देगा।”

“वह न देगा तो उसके सब आम सड़ जायँगे। इतने फल सबके सब कोई एक एक आदमी खा सकता है— क्यों हल्ली ?”

हल्ली ने जैसे यह बात सुनी ही नहीं। उसका यह पेड़ हीरालाल छीन लेगा, यह सोचकर ही उसका मुँह सूख गया। वह जानता है, उसकी माँ इस बिरवे को कितना प्यार करती हैं। कोई इसका एक पत्ता भी तोड़ता है तो उन्हें दुख हुए बिना नहीं रहता । इसके नीचे सफाई ऐसी रखती हैं, जैसे यहाँ रसोई का चौका हो। उसे याद है, पिछली बार इन्हीं दिनों अपने हाथ से घड़े पर घड़े पानी खींचकर वे इसका थाला भर रही थीं। किसी ने कहा- जब आम का पौधा फूलने पर हो, तब उसे पानी नहीं दिया जाता। इससे मौर झड़ जाता है और फल नहीं आते। इसके उत्तर में जमना ने कहा था, – गरमी पड़ने लगी है और मेरा बिरवा अभी बच्चा है। वह प्यासा नहीं रह सकता, फल न आवें तो भले ही न आवें । उसे और भी याद आया, एक दिन माँ ने कहा था- हल्ली, यह बिरवा तेरा बड़ा भाई है। देख, यह कितना सीधा है और इसी के नीचे तू कितना ऊधम मचाता है? वृक्ष को अपना बड़ा भाई समझकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई थी। उसका जी करने लगा था, इससे चिपट जाय। कवि ने बहुत पहले किसी ऐसे ही बिरवे को देखकर कहा होगा- “घटस्तनप्रस्रवणैर्व्यवर्धयत् । ” हल्ली को यह मालूम न था, फिर भी इसमें माँ का ” पुत्र – वात्सल्य” उसे हृदय से स्वीकार था । उसका बाप घर नहीं आता और उसका यह बड़ा भाई भी उसका न रहेगा, यह सोचकर उसकी आँखों में पानी आने लगा ।

उतरता फागुन था । चारों ओर के खेत कट चुके थे। जहाँ तहाँ कटे हुए खेतों की लाँक जमा थी। लोग कहीं बैलों के मुँह में जाली पहनाकर फसल की दलनी कर रहे थे और कहीं दली हुई लाँक में से भूसी उड़ा रहे थे। जगह-जगह खेतों पर वृक्षों की छाया में किसानों के लड़के- बच्चे खेलों में व्यस्त थे । फिर भी हल्ली को जान पड़ा, मानो कहीं कोई नहीं है; दूर दूर तक किसी ने खेतों का धन लूटकर मानो उन्हें नंगा कर दिया है !

एक लड़के ने कहा-हल्ली, तुम तो ऐसे सुस्त पड़ गये जैसे हीरा ने सचमुच तुम्हारा कुछ छीन लिया हो। वह यहाँ आयगा तो हम सब मार मारकर उसे भगा देंगे। चलो अब वही चोर-चोर का खेल खेलें । हल्ली उत्साहित हो उठा। बोला- हाँ यही होने दो।

अब खेल के सम्बन्ध में विचार होने लगा । हल्ली कोतवाल बनकर कुएँ की जगत पर बैठेगा। सूखे हुए डंठल के पत्ते अलग करके एक कलम-सी उसने अपने लिए बना ली। और कुछ न हो कोतवाल के हाथ में यह चाहिए। वह इस तरह तनकर बैठेगा जैसे उसके सामने मेज रक्खी हो। कोतवाल बनने में अब और कसर नहीं है, चौकीदार बनने के लिए भी दो-तीन लड़के खुशी से तैयार हैं। बस कमी है एक चोर की। खेल में भी चोर का पा लेना सरल नहीं दिखाई दिया। अधिक मूर्ख समझे जाने वाले एक लड़के से अनुरोध किया गया तो उसने इनकार करके कहा- चौकीदार बुरी तरह मारेगा।

हल्ली ने कहा- जो चोरी करेगा वह पिटेगा नहीं तो क्या होगा ? – पर एक बात है, चोरी के लिए धन चाहिए ।

दूसरे लड़के ने कहा – चोर आम के पत्ते चुरायगा, चौकीदार पीछे- पीछे छिपे रहेंगे, वे आकर कहेंगे- हुजूर-

हल्ली बीच में ही बोल उठा-नहीं, आम के पत्ते हरगिज नहीं तोड़े जा सकते। आम मौर रहा है।

न चोर, न चोरी का धन – ऐसे में कोतवाल और चौकीदार का काम कैसे चले ? इसी समय एक लड़का बोल उठा-वह देखो, हीरा आ रहा है।

क्षण भर में हीरालाल निकट आ गया। हल्ली कोतवाल बना बैठा था, इस समय उसे चोर की ही आवश्यकता थी। इसी से वह उसे अपने खेत पर आने से रोक नहीं सका।

हीरालाल ने झट आगे आकर कहा- क्या चोर-चोर खेल रहे हो? खेलो मैं बनता हूँ चोर ।

सब एक साथ विस्मित हो उठे । हल्ली से इसकी इतनी लड़ाई है, फिर भी इसे यहाँ आकर खेलने में लज्जा नहीं ! सच तो यह है, इस समय उसके इस व्यवहार से हल्ली को भी प्रसन्नता हुई। दुर्गुण में भी मिरच के स्वाद जैसा कुछ है, जो हमारी रसनावृत्ति को मुग्ध किये बिना नहीं रहता।

एक लड़के ने कहा- यह बिज्जू कह रहा था, मैं चोर नहीं बनता, चौकीदार बुरी तरह पीटेंगे।

हीरालाल बोला- यह तो पूरा बिज्जू ही है, चोरी करना क्या जाने । चौकीदार हों, कुतवाल साहब हों, वकील साहब हों, सबकी आँखों में धूल डालकर न भाग गये तो फिर बहादुरी ही क्या।

हल्ली ने उत्तर दिया – चोरी करने में क्या बहादुरी है ? तुमने चोरी की, फिर एक दिन पकड़ ही तो लिये गये। अब कल आकर रुपये न दोगे तो पण्डितजी-

“अरे देख लिया पण्डितजी को! – तुम बहुत सीधे हो इसी से तुम्हें सबक देने के लिए मैंने वह काम किया था। नहीं तो मुझे कमी क्या है ? मेरे घर ढेरों रुपये आते हैं! तुम दो रुपट्टी के लिए इस तरह जान देने लगोगे, यह मैं नहीं जानता था। मेरे घर इतने रुपये नाली में बह जाते हैं, जब कहो तभी तुम्हें दस बीस-पचास रुपये लाकर दे दूँ। तुम्हारी माँ के ऊपर भी हमारे पंसेरियों रुपये निकलते हैं। मेरे यहाँ कमी किस बात की है ।”

हल्ली को लज्जा मालूम हुई। सचमुच यह तो बहुत ओछेपन की बात है कि मैं दो रुपये के लिए इतना अधीर हो उठा हूँ। माँ ने इसी से इन रुपयों के लिए बुरा नहीं माना। सबसे अधिक लज्जा की बात तो यह है कि उसकी माँ पर इसका इतना करजा हो। उसने वह प्रसङ्ग बदलकर कहा- तुम हमें सबक क्या दोगे, दरजे में सबसे पिटते रहते हो ।

खिलाड़ियों को भी बातचीत रुच नहीं रही थी। चोर आ जाय और काम रुका रहे ? झट से खेल शुरू हो गया ।

खेल खेलना था झूठ-मूठ की चोरी का, परन्तु हीरालाल करने लगा सचमुच की चोरी। एक ओर आम के पत्ते बहुत ऊँचाई पर न थे । एक हाथ में लकड़ी लिए हुए चोर उचक उचक कर पत्तों का एक गुच्छा नीचे गिराने लगा। जब तक हल्ली ऐसा करने के लिए दूर से उसे रोके – रोके, तब तक वृक्ष की एक टहनी उसके हाथ में टूटकर आ गई।

हल्ली गरम होकर चिल्ला उठा- पकड़ो-पकड़ो, चोर बेईमान को । डाका डालकर भाग रहा है !

हल्ली एकाएक भूल गया कि उसका पद कोतवाल का है, उसका काम साधारण चौकीदार की तरह चोर के पीछे भागते फिरने का नहीं । वह दौड़ा, चौकीदार दौड़े और साधारण नागरिक की हैसियत के दूसरे लड़कों ने भी पुलिस के इस काम में सहायता देने से जी नहीं चुराया । चोर और पुलिस में प्रबल कौन है, यह बताना आसान नहीं । परन्तु कहना पड़ेगा, इस समय इन निकट सम्बन्धियों में चोर ही प्रबल था । वह तेजी से भागता हुआ चोरी के माल के साथ बहुत आगे दिखाई दिया ।

यदि सचमुच के कोतवाल की बात इस समय हल्ली के मन से उतर न गई होती तो बहुत सम्भव है, इस बनावटी पुलिस के हाथ भी यह चोर न आ सकता। परन्तु हल्ली खेल-खेल भूलकर हीरालाल के पीछे इस तरह दौड़ पड़ा था कि थोड़ी दूर पर ही उसने चोर का एक हाथ पकड़कर उसकी पीठ पर एक धमाका जड़ दिया ।

हीरालाल ने चोर के माल वाला हाथ ऊपर उठाकर हल्ली को उस ओर ढकेला जहाँ एक कटीला झाड़ पड़ा था। इधर इसने काँटों से बचने का प्रयत्न किया, उधर उसे गाली देता हुआ वह आगे बढ़ गया।

हल्ली ने पास पड़ा हुआ पत्थर उठाकर कहा-भाग मत, नहीं तो मैं मार डालूँगा ।

उत्तर में दूसरी ओर से फिर दूसरी गाली उसके कान में पहुँची कि उसने हाथ का पत्थर उसकी ओर चला ही तो दिया।

इधर-उधर के लड़कों ने देखा कि हीरालाल नीचे जमीन पर है। सब चिल्ला उठे – हल्ली, यह क्या किया ?

हल्ली नहीं चाहता था कि वह ऐसा कुछ भयंकर कर बैठे। पर अब क्या हो सकता था। वह हीरालाल की ओर देखे बिना ही दूसरी ओर भागा। दूसरे लड़के भी भागते दिखाई दिये। थोड़ी देर बाद ही वहाँ फिर पहले का-सा सन्नाटा छा गया।

क्रमश:

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