चैप्टर 14 चट्टानों में आग ~ इब्ने सफ़ी का हिंदी जासूसी उपन्यास

Chapter 14 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 14 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

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कोठी के करीब पहुँचकर इमरान अपने नथुने इस तरह सिकोड़ने लगा, जैसे कुछ सूंघने की कोशिश कर रहा हो। फिर वह अचानक चलते-चलते रुककर ख़ालिद की तरफ मुड़ा।

“क्या आप ही किसी किस्म की बू महसूस कर रहे हैं।” उसने पूछा।

“हाँ महसूस तो कर रहा हूँ। कुछ मीठी-मीठी सी बू! शायद यह सड़ते हुए शहतूतों की बू है।”

“हरगिज़ नहीं!” वह कोठी की तरफ बढ़ता हुआ चला गया। फिर से दरवाजे में दाखिल होते ही दोबारा उछलकर बाहर आ गया। इतने में ख़ालिद और बारतोश भी उसके करीब पहुँच गये।

“क्या बात है?” ख़ालिद ने घबराये हुए लहज़े में पूछा।

“अंदर कुछ गड़बड़ ज़रूर है।” इमरान आहिस्ता से बोला, “नहीं अंदर मत जाओ। वहाँ सिंथेलिक गैस भरी हुई है। यह मीठी-मीठी सी बू उसी की है।”

“सिंथेलिक गैस!” ख़ालिद बड़बड़ाया, “यह क्या बला है?”

“ज़ेहन को कुछ देर के लिए सन्न कर देने वाली गैस। मेरा ख़याल है कि अंदर कोई भी होश में न होगा।” इमरान बोला।

अचानक उन्होंने एक चीख सुनी और साथ ही कर्नल डिक्सन इमारत के पिछले दरवाजे से उछलकर नीचे आ रहा था। वह बेचैनी से अपने हाथ पैर पटक रहा था। उसका चेहरा सुर्ख हो गया था और आँखों और नाक से पानी बह रहा था।

ख़ालिद ने उसे कुछ पूछना चाहा, लेकिन इमरान जल्दी से हाथ उठाकर बोला, ” कुछ पूछने का वक्त नहीं है। हमें अंदर वालों के लिए कुछ करना चाहिए। वरना मुमकिन है उनमें से कोई मर ही जाये। फिर उसने बारतोश को वही ठहरने को कहा और ख़ालिद को अपने पीछे आने का इशारा करके बेतहाशा दौड़ने लगा। वे दोनों चक्कर काटकर कोठी के बाहर बरामदे में आये। यहाँ बू और ज्यादा तेज थी। इमरान ने अपनी नाक दबाई और तीर की तरह अंदर घुसता चला गया। ख़ालिद ने भी उसका पीछा किया। लेकिन थोड़ी दूर चलने के बाद उसका दम घुटने लगा। वह पलटने के बारे में सोच ही रहा था कि उसने इमरान को देखा, जो किसी को पीठ पर लादे वापस आ रहा था। ख़ालिद एक तरफ हट गया और फिर वह भी उसी के साथ बाहर चला आया।

इमरान ने बेहोश आरिफ़ की बाहर बाग में डालते हुए कहा, “यार हिम्मत रखो! उन सबकी ज़िन्दगी ख़तरे में है। क्या तुम पांच-दस मिनट सांस नहीं रोक सकते।”

फिर किसी ना किसी तरह उन्होंने एक-एक करके उन सबको कोठी से निकाला। मगर सोफ़िया उनमें नहीं थी। इमरान ने पूरी कोठी का चक्कर लगा डाला, लेकिन सोफ़िया कहीं ना मिली।

उन्हें होश में लाने और कोठी का वातावरण साफ होने में करीबन दो घंटे लग गये।

उनमें से किसी ने भी कोई ढंग की बात में बताई। किसी को इसका अहसास नहीं हो सका कि वह सब क्यों और किस तरह हुआ।

“इमरान साहब!” ख़ालिद बड़े गुस्से में बोला, “पानी सिर से ऊँचा हो चुका है। अब आपको बताना ही पड़ेगा। यह वाकया इतना भी पेंचीदा नहीं है कि मैं कुछ समझ ना सकूं। आखिर कर्नल की साहबज़ादी कहाँ गायब हो गई?”

“अगर तुम समझ गए हो, तो मुझे बता दो। मैं तो कुछ नहीं जानता।” इमरान ने उम्मीद के खिलाफ़ बड़े खुश्क लहज़े में कहा।

“या तो यह ख़ुद साहबजादी ही की हरकत है या फिर किसी और की, जो इस तरह उन्हें उठा ले गया।” ख़ालिद बोला।

“उसे शिफ्टेन ले गया है।” इमरान ने कहा।

“तो आखिर अब तक वक्त बर्बाद करने की क्या ज़रूरत थी।” ख़ालिद झुंझला गया।

“वक्त की बर्बादी से तुम्हारा क्या मतलब है?” इमरान ने खुश्क लहज़े में पूछा।

“जब मैंने शिफ्टेन के बारे में पूछा था तो आपने कहा था कि नहीं जानता। फिर आपने इस सिलसिले में उसका नाम क्यों लिया?”

“तो फिर क्या शहंशाह बाउडाई का नाम लेता?’

“देखिए आप ऐसे सूरत ने भी मामले को उलझाने से बाज नहीं आ रहे।”

“यार मैं हूँ कौन!” इमरान गर्दन झटककर बोला, “तुम सरकारी आदमी हो। इस सिलसिले में हम लोगों के बयान नोट करो। कुछ तसल्ली दिलासे दो। मुझ पर चंद पर्दानशीन औरतों ने हमला किया। इसका हाल भी लिखिए वगैरह-वगैरह।”

“मैं आपको अपने साथ ऑफिस ले चलना चाहता हूँ।” ख़ालिद बोला।

“देखो दोस्त! मैं वक्त बर्बाद करने के लिए तैयार नहीं।”

“मुझे कोई सख्त कदम उठाने पर मजबूर ना कीजिये।” ख़ालिद लहज़ा कुछ तेज हो गया।

“अच्छा यह बात है!” इमरान व्यंग्यात्मक अंदाज़ में बोला, “क्या कर लेंगे जनाब! क्या इस कोठी के किसी फ़र्द ने आपसे मदद तलब की है। आप हमारे मामलों में दखल देने वाले होते ही कौन हैं?”

दूसरे लोग सोफे पर ख़ामोश पड़े उनकी गुफ्तगू सुन रहे थे। किसी में भी इतनी ताकत नहीं रह गई थी कि कुछ कहने के लिए ज़ुबान हिला सकता। उनकी हालत बिल्कुल तमाशाइयों जैसी थी। इंस्पेक्टर ख़ालिद ने उन पर एक उचटती सी नज़र डाली और इमरान से बोला, “इमरान साहब! मुझे कैप्टन फैयाज़ का ख़याल है, वरना।”

अचानक बारतोश ने हस्तक्षेप किया। उसने अंग्रेजी में कहा, “लड़की के लिए तुम लोग क्या कर रहे हो? यकीनन यह उन्हीं बदमाशों की हरकत लगती है।”

“हाँ माय डियर मिस्टर ख़ालिद!” इमरान सिर हिलाकर बोला, “फिलहाल हमें देखना चाहिए कि सोफ़िया कहाँ गई?”

ख़ालिद कुछ न बोला। इमरान कमरे से बरामदे में आ गया। ख़ालिद ने उसका अनुसरण किया।

“ऐसी जगह, जहाँ आबादी ही न हो, मकान बनाना बहुत बुरा है।” बारतोश ने कहा, जो दरवाजे में खड़ा चारों तरफ देख रहा था।

अचानक इमरान बरामदे से उतरकर एक तरफ चलने लगा। फिर वह गुलाब के झाड़ियों के पास रुककर झुका।

यह काले रंग का जनाना सैंडल था, जिसने उसका ध्यान अपनी तरफ खींचा था।

ख़ालिद और बार तोश भी उसके करीब पहुँच गये।

“ओह…यह तो लड़की ही का मालूम होता है।”

इमरान कुछ न बोला। उसकी नज़र से झाड़ियों से हटकर किसी दूसरी चीज पर जम गई। फिर वह अचानक ख़ालिद की तरफ मुड़ा।

“तुम तो सोनागिरी के चप्पे-चप्पे से वाकिफ़ होंगे।” उसने ख़ालिद से पूछा।

“सिर्फ सोनागिरी नहीं, बल्कि आसपास के इलाके पर भी मेरी नज़र है।” ख़ालिद ने कहा, लेकिन उसका लहज़ा सहज नहीं था।

“क्या यहाँ कोई ऐसा इलाका भी है, जहाँ की मिट्टी लाल रंग की हो।”

ख़ालिद सोच में पड़ गया। कुछ देर बाद उसने कहा, “आप यह क्यों पूछ रहे हैं?”

इमरान जमीन से लाल चिकनी मिट्टी का टुकड़ा उठाया, जिसमें थोड़ी नमी भी मौजूद थीं।

“मेरा ख़याल है।” उसने कहा, “यह मिट्टी किसी जूते के सोल और एड़ी के बीच की जगह में चिपकी हुई थी और यहाँ से कम से कम दो-तीन मील के घेरे में मैंने कहीं नरम जमीन नहीं देखी। इसे देखो, इसमें अब भी नमी बाकी है।”

ख़ालिद ने उसे अपने हाथ में लेकर उलटते-पलटते हुए कहा, “पलटन के पड़ाव के इलाके में एक जगह ऐसी नरम जमीन मिलती है। वहाँ दरअसल एक छोटी सी नदी भी है, उसके किनारे की जमीन…उसकी मिट्टी में हमेशा नमी मौजूद रहती है।”

“क्या वह कुछ सुनसान जगह है?”

“सुनसान नहीं कह सकते, कम आबाद ज़रूर है। वहाँ ज्यादातर ऊँचे तबके के लोग आबाद हैं।”

“क्या तुम मुझे अपनी मोटरसाइकिल पर वहाँ ले चलोगे।”

“हो सकता है।” ख़ालिद ने सोचते हुए कहा।

“अच्छा तो ठहरो।” इमरान ने कहा और कोठी के अंदर चला गया। उसने अनवर को संबोधित किया, जो एक सोफे पर पड़ा अफीमचियों की तरह ऊंघ रहा था।

“सुनो! मैं सोफ़िया की तलाश में जा रहा हूँ। तुम अगर अपनी जगह से हिल न सको, तो पुलिस को फोन पर इस वाकये की खबर दे देना। ये नौकर कहाँ मर गए?”

“बाहर है?” अनवर ने कमज़ोर आवाज में कहा, “सुबह ही वे शहर गए थे। अभी तक वापस नहीं आये।”

कर्नल ज़रगाम का यह असूल था कि वह हफ्ते में एक दिन अपने नौकरों को आधे दिन की छुट्टी देता था।

इमरान चंद लम्हे खड़ा सोचता रहा, फिर उस कमरे में चला आया, जहाँ उसका सामान रखा हुआ था। उसने जल्दी से सूटकेस से कुछ चीजें निकाली और उन्हें जेबों में ठूंसता हुआ वह बाहर निकल गया।

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