चैप्टर 120 वैशाली की नगरवधु आचार्य चतुरसेन शास्त्री का उपन्यास | Chapter 120 Vaishali Ki Nagarvadhu Acharya Chatursen Shastri Novel
Chapter 120 Vaishali Ki Nagarvadhu Acharya Chatursen Shastri Novel
Table of Contents
देवजुष्ट : वैशाली की नगरवधू
वह सेट्ठिपुत्र पुण्डरीक वड़वाश्व पर चढ़कर अतक्र्य वेग से निकल गया , अश्व संचालन में ऐसा नैपुण्य कभी उसका देखा नहीं गया था । पाश्र्वचर, अनुचर अपने – अपने अश्वों को ले उसके पीछे दौड़े ; परन्तु सेट्टिपुत्र को न पा सके। सेट्ठिपुत्र का वह वाड़व अश्व आज शतगुण वेग से वन , पर्वत और कन्दरा पार करता वायु में तैर रहा था । अनुचर चिन्तित – थकित वन – उपत्यका में खड़े निरुपाय सुदूर पर्वतों के मध्य में वायु में तैरते सेट्ठिपुत्र को देखते रहे । किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था । बहुत देर बाद अश्व लौटा । निकट आने पर सेट्ठिपुत्र ने अश्व की गति सरल की । उसने मुस्कराकर अनुचरों की ओर देखा , सब आश्वस्त हो उसे घेरकर चल दिए। अश्वारोहण का यह अभूतपूर्व कौशल उन्होंने सेट्ठि को जाकर बताया । सेट्टि अधिक चिन्तित हो गया । पुत्र का असाधारण परिवर्तन वह स्पष्ट देख रहा था । एक – दो बार उसने पुत्र से बात करने की भी चेष्टा की , पर वह पिता को देख मुस्करा दिया । उसकी अनोखी दृष्टि से ही घबराकर वह भाग गया । सेट्टिनी ने यह कहकर समाधान किया — विवाह के काम – ज्वर का यह आवेश है, सब ठीक हो जाएगा । उसने पुत्र के विश्राम – शयन – आहार की ओर भी यत्न से व्यवस्था करने के आदेश दिए । महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि उसने मित्र – मण्डली से मिलना भी बन्द कर दिया । अनेक मित्र रुष्ट हो गए । अनेक ने हंसकर कहा – “ यह सुहागरात का उन्माद है। ”माता -पिता और निकटवर्ती पाश्र्व दासियों से वह कम बोलता , केवल मुस्कराता। उसकी दृष्टि तो सहन ही नहीं होती थी । एकाध वाक्य , जो वह बोलता, स्वर अपरिचित , उच्चारण विचित्र । उसने शयन – कक्ष में ही डेरा जमाया , उसमें नववधू को छोड़ और किसी का आना – जाना निषिद्ध कर दिया । बहुत खोद- खोदकर पूछने पर वधू ने बताया – “ केवल सोते हैं , आसवपान करते हैं , बहुत कम बोलते हैं , बहुत कम खाते हैं । ”
नन्दन साहु के द्वारा यह समाचार यथासमय ब्राह्मण वर्षकार के पास भी पहुंच गया । सब घटना सुनकर वर्षकार भी विचार में पड़ गए । छाया पुरुष का वैशाली के प्रान्त भाग में चक्कर लगाना उन्होंने सुना था । बहुत विचार करने पर उन्होंने सोमिल को एकान्त में बुलाकर कहा – “ भद्र सोमिल , क्या वह छाया अब भी वैशाली में कहीं घूमती दीख पड़ती है ? ”
“ नहीं आर्य , सुना तो नहीं। ”
“ तो तुम इसका ठीक-ठाक पता लगाओ और नन्दन साहु से कहो, कि वह सेट्ठि कृतपुण्य से कहें कि पुत्र पर कड़ी दृष्टि रखें । ”
सेट्रिपत्र पुण्डरीक का यह परिवर्तन एक कण्ठ से दूसरे कण्ठ में होता हआ वैशाली भर में फैल गया , विशेषकर उसका अद्भुत अश्वारोहण वैशाली की चर्चा का विषय बन गया । उसका समय – एकान्त , अत्यल्प भाषण, मर्मभेदिनी दृष्टि सब कुछ कृत -विकृत होकर घर – घर की चर्चा का विषय हो गए। बहुत निषेध करने पर भी सेट्ठिपुत्र ने सान्ध्य – भ्रमण सम्बन्धी पिता की बात नहीं मानी । पुत्र के दुर्विनय पर खिन्न हो सेट्ठि नाना प्रकार की चिन्ताओं में लीन हो गया ।
Prev | Next | All Chapters
अदल बदल आचार्य चतुर सेन शास्त्री का उपन्यास
आग और धुआं आचार्य चतुर सेन शास्त्री का उपन्यास
देवांगना आचार्य चतुर सेन शास्त्री का उपन्यास