चैप्टर 12 चट्टानों में आग ~ इब्ने सफ़ी का हिंदी जासूसी उपन्यास

Chapter 12 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 12 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

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मेहमानों की वजह से आरिफ़ और अनवर को एक ही कमरे में रहना पड़ता था। यह कमरा सोफ़िया के कमरे से मिला हुआ था और बीच में सिर्फ एक दरवाजा था।

इमरान ने आरिफ़ के सामने प्रस्ताव पेश किया। उसे यकीन था कि आरिफ़ फौरन तैयार हो जायेगा। प्रस्ताव आया था कि आरिफ इमरान के कमरे में चला जाए और इमरान उसकी जगह अनवर के साथ रहना शुरू कर दें। आरिफ़ इस प्रस्ताव पर खिल उठा क्योंकि इमरान का कमरा मार्था के कमरे के बराबर था। अनवर को इस तब्दीली पर हैरत हुई और साथ ही अफ़सोस भी। वह सोच रहा था कि काश इमरान ने अपनी जगह उसे भेजा होता।

“आखिर आपने वह कमरा क्यों छोड़ दिया?” अनवर ने उससे पूछा।

“अरे भाई… क्या बताऊं! बड़े डरावने ख्वाब आने लगे थे।” इमरान ने संजीदगी से कहा।

“डरावने ख्वाब!” अनवर ने आश्चर्य प्रकट किया।

“आहा… क्यों नहीं! मुझे अंग्रेज लड़कियों से बड़ा डर लगता है।”

अनवर हँसने लगा। लेकिन इमरान की गंभीरता में कोई फ़र्क नहीं पड़ा।

थोड़ी देर बाद अनवर ने कहा, “लेकिन आपने आरिफ़ वहाँ भेज कर अच्छा नहीं किया।”

“अच्छा तो तुम चले जाओ।”

“मेरा यह मतलब नहीं।” अनवर हकलाया।

“फिर क्या मतलब है?”

“आरिफ़ कोई काम सोचकर नहीं करता।”

“हाय तो क्या मैंने उसे वहाँ कोई काम करने के लिए भेजा है।”

“मतलब यह नहीं…बात यह है…”

“तो वही बात बताओ…बताओ ना!”

“कहीं वह कोई हरकत न कर बैठे।”

“कैसी हरकत?” इमरान की आँखें और ज्यादा फैल गई।

“ओह! आप समझे ही नहीं या फिर बन रहे हैं। मेरा मतलब है कि कहीं वह उस पर डोरे न डालें।”

“ओह समझा!” इमरान ने संजीदगी से सिर हिलाकर कहा, “मगर डोरे डालने में क्या नुकसान है? फ़िक्र की बात तो उस वक्त थी, जब वह रस्सियाँ डालता।”

“डोरे डालना मुहावरा है इमरान साहब।” अनवर झल्लाकर अपनी टांगे पीटकर बोला।

“मैं नहीं समझा।” इमरान ने मूर्खों की तरह कहा।

“ओफ्फ! मेरा मतलब है कि कहीं वह उसे फांस न ले।”

“लाहौल विला कूवत…तो पहले क्यों नहीं बताया था।” इमरान ने उठते हुए कहा।

“कहाँ चले?”

“ज़रा मार्था को होशियार कर दूं।”

“कमाल करते हैं आप भी!” अनवर भी खड़ा हो गया, “अजीब बात है।”

“फिर तुम क्या चाहते हो?”

“कुछ भी नहीं!” अनवर अपनी पेशानी पर हाथ मारकर बोला।

“यार तुम अपने दिमाग का इलाज करो।” इमरान बैठता हुआ नाराज़गी से बोला, “जब कुछ भी नहीं था, तो तुमने मेरा इतना वक्त क्यों बर्बाद कराया।”

“चलिए सो जाइए।” अनवर पलंग पर गिरता हुआ बोला, “आपसे ख़ुदा समझे।”

“नहीं बल्कि तुमसे ख़ुदा समझे और फिर मुझे उर्दू में समझायें। तुम्हारी बातें तो मेरे पल्ले ही नहीं पड़ती।”

अनवर ने चादर सिर तक घसीट ली।

इमरान बदस्तूर आराम कुर्सी पर पड़ा रहा। अनवर ने सोने की कोशिश शुरू कर दी थी, लेकिन ऐसे में नींद कहाँ! उस यह सोच-सोच कर कोफ्त हो रही थी कि आरिफ़ मार्था को लतीफे सुना-सुना कर हँसा रहा होगा। मार्था ख़ुद भी बड़ी बातूनी थी और बकवास करने वाले उसे पसंद थे। अनवर में सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि वह जिस लड़की के बारे में ज्यादा सोचता था, उससे खुलकर बात नहीं कर सकता था। आजकल मार्था हर वक्त उसके ज़ेहन पर छाई रहती थी, इसलिए वह उससे बात करते वक्त हकलाता ज़रूर था। उसने इमरान की तरफ करवट बदलते हुए चेहरे से चादर हटा दी।

“आखिर कर्नल साहब कहाँ गए?” उसने इमरान से पूछा।

“आहा…बहुत देर में चौंके।” इमरान ने मुस्कुराकर कहा, “मेरा ख़याल है कि उन्हें कोई हादसा पेश आ गया।”

“क्या?” अनवर उछलकर बैठ गया।

“ओहो! फ़िक्र न करो। हादसा ऐसा नहीं हो सकता कि तुम्हें परेशान होना पड़े।”

“देखिए इमरान साहब! अब यह मामला बर्दाश्त से बाहर होता जा रहा है। मैं कल सुबह किसी बात की परवाह किए बगैर कर्नल साहब की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज़ करा दूंगा।”

इमरान कुछ न बोला। वह किसी गहरी सोच में था। अनवर बड़बड़ाता रहा।

“कर्नल साहब बूढ़े हो गए हैं। मुझे तो लगता है कि उनके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया है।”

“हाँ! अच्छा तो वह रिपोर्ट क्या होगी?” उसने पूछा।

“यही कि कर्नल साहब किसी अजनबी आदमी है गिरोह से डरे थे और अचानक गायब हो गये।”

“हूं…और रिपोर्ट करने में देर की क्या वजह बताओगे?”

“यह भी बड़ी बात नहीं। कह दूंगा कि कर्नल साहब के डर की वजह से देर हुई। वे पुलिस को रिपोर्ट देने के खिलाफ थे।”

“ठीक है!” इमरान ने कहा। थोड़ी देर कुछ सोचता रहा। फिर बोला, “ज़रूर रिपोर्ट कर दो।”

अनवर हैरान नज़रों से उसे घूरने लगा।

“लेकिन..इमरान ने कहा, “तुम मेरे बारे में हरगिज़ कुछ ना कहोगे। समझे! मैं सिर्फ कर्नल का प्राइवेट सेक्रेट्री हूँ।”

“क्या आप इस वक्त गंभीर है।”

“मैं गंभीर कब नहीं था!”

“आखिर अब आप रिपोर्ट के हक में क्यों हो गये?”

“ज़रूरत! हालात हमेशा बदलते रहते हैं।”

“मेरी समझ में नहीं आता कि आप क्या करना चाहते हैं।”

“हा!” इमरान ठंडी सांस लेकर बोला, “मैं छोटा सा बंगला बनवाना चाहता हूँ। एक खूबसूरत सी बीवी चाहता हूँ और डेढ़ दर्जन बच्चे।”

अनवर फिर झल्लाकर लेट गया और चादर खींच ली।

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