चैप्टर 12 अदल बदल : आचार्य चतुरसेन शास्त्री का उपन्यास | Chapter 12 Adal Badal Novel By Acharya Chatursen Shastri

Chapter 12 Adal Badal Novel By Acharya Chatursen Shastri

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घर से बाहर आते ही थोड़ी दूर पर मायादेवी को एक खाली तांगा दिख पड़ा और वह उस पर सवार हो गई। जब तांगे वाले ने पूछा कि, ‘कहाँ चलूं? तो मायादेवी क्षणभर के लिए असमंजस में पड़ गईं। झोंक में आकर जो उन्होंने घर त्यागा था, तब खून की गर्मी में आगा-पीछा कुछ भी नहीं सोचा था – अब वह एकाएक यह निर्णय न कर सकीं कि कहाँ चलें। परन्तु फिर यह उन्हें उचित प्रतीत न हआ। पहले यही बात उनके मन में थी, परन्तु भनिती को ऐसा करना अपमानजनक लगने लगा। फिर उन्होंने आजाला संघ में जाने की सोची, पर इस समय ऐसा भी वह न कर सकीं। अभी उसे घर छोड़े केवल कुछ क्षण ही व्यतीत हुए थे। पर इतने में ही वह ऐसा अनुभव करने लगी कि उसकी सारी ही गरिमा समाप्त हो चुकी है और अब वह पृथ्वी पर अकेली है। उसका मन गहरी उदासी से भर गया। सोच-विचार कर उसने मालतीदेवी के घर जाने का निश्चय किया, और वहीं जाने का तांगे वाले को आदेश दिया।

मालतीदेवी ने माया का स्वागत तो किया, पर माया ने तुरन्त ही ताड़ लिया कि उसका यों सिर पर आ पड़ना मालती को रुचिकर नहीं हुआ है।

रात माया ने बड़ी चिंता में काटी। प्रातःकाल मालती के परामर्श से मायादेवी ने वकील से मुलाकात की। वकील साहब का नाम नवनीतप्रसाद था। बातचीत के मीठे और फीस वसूलने में रूखे। कानून में अधूरे और बकवाद में पूरे। सब बातें सुनकर वकील साहब ने कहा – ‘हाँ हाँ, आपके विचार बड़े कल्चर्ड हैं श्रीमती जी। अब पुरुषों की अधीनता में पिसने की क्या आवश्यकता है? फिर हिन्दू कोडबिल पास हो गया है। कानून सर्वथा आपके पक्ष में है। हाँ, फीस का सवाल है।’

‘फीस आप जो चाहेंगे, वही मिल जायेगी। उसकी आप चिंता मत कीजिए, परन्तु आप पक्के तौर पर तलाक दिला दीजिए।’

‘पक्के तौर पर ही श्रीमतीजी, पक्के तौर पर। मैं तो कच्चा काम करता ही नहीं। सारी अदालत यह बात जानती है। हाँ, फीस की बात है। फीस तो आप लाई होंगी?’

मायादेवी ने पचास रुपये का नोट वकील साहब की मेज पर रखते हुए कहा -‘अभी यह लीजिए पचास रुपये। बाकी आप जो कहेंगे और दे दिए जायेंगे। मैं श्रीमती मालतीदेवी के कहने से आई हूँ, आपकी फीस मारी नहीं जायेगी।’

‘श्रीमतीजी, मालतीदेवी एक कल्चर्ड लेडी हैं। जब वे हमारे-आपके बीच में हैं, तो फिर मामला ही दूसरा है।’

रुपये उठाकर उन्होंने मेज की दराज में रखे और मायादेवी से कुछ प्रश्न पूछकर नोट करने के बाद कहा – ‘अच्छी बात है, मैं रात को कानून की किताबें देख-भालकर मसविदा तैयार कर लूंगा। कल अदालत में आपका बयान भी हो जायेगा।’

‘किन्तु देखिए, ऐसा न हो कि कोई झगड़ा-झंझट खड़ा हो जाये। आगा-पीछा सब आप देखभाल लीजिए।’

‘मैंने तो आपसे कह ही दिया कि मैं कच्चा काम नहीं करता। आप किसी बात की चिंता न कीजिए। कानून आपके पक्ष में है और मैं आपकी सेवा में। सिर्फ फीस का सवाल है। सो उसकी बात तो आप कहती ही हैं कि मैं बेफिक्र रहूं।’

‘जी, बिल्कुल बेफिक्र रहिये।’

‘तो आप भी बेफिक्र रहिये। तलाक हो जायेगा। हाँ, क्या आप अपने पति से कुछ हर्जाना भी वसूल करना चाहती हैं ?’

‘जी नहीं, मैं सिर्फ तलाक चाहती हूँ।’

‘ठीक है, ठीक है। एक बात और पूछना चाहता हूँ। आप यदि नाराज न हों, तो अर्ज़ करूं?’

‘कहिए’।

‘देखिए, स्त्री-जात की जवानी का मामला बड़ा ही नाजुक होता है। दुनिया में बड़े-बड़े दरख्त हैं, न जाने कब कैसी हवा लग जाए, कब ऊंचा-नीचा पैर पड़ जाये।’

‘आपका मतलब क्या है ?’

वकील साहब ने सिर खुलजाते हुए कहा – ‘जी मतलब-मतलब यही कि आप जैसी कल्चर्ड, सुंदरी युवती को एक आड़ चाहिए।’

‘आड़ ?

‘जी हाँ, मेरा मतलब है सहारा।’

‘आप अपना मतलब और साफ-साफ कहिये।’

वकील साहब अपनी गंजी खोपड़ी सहलाते हुए बोले – ‘ओफ, आप समझीं नहीं। लेकिन, जहाँ तक मेरा ख़याल है, शादी तो आप करेंगी ही।’

‘इससे आपको क्या मतलब ?’

‘जी, मतलब तो कुछ नहीं। परन्तु मैं शायद आपकी मदद कर सकूं।’

‘किस विषय में?

‘शादी के विषय में। मैं एक ऐसे योग्य पुरुष को जानता हूँ, जो आप ही के समान कल्चर्ड विचारों का है, सभ्य पुरुष है, खुशहाल है, समझदार है। हाँ, उम्र ज़रा खिच गई है, पर मर्द की उम्र क्या, पर्स देखना चाहिए। वह पुरुष खुशी से आप जैसी कल्चर्ड महिला से शादी करने को तैयार हो जायेगा।’

मायादेवी ने घृणा से होंठ सिकोड़कर गंजे वकील की ओर देखा और कहा – ‘आप कैसे कह सकते हैं कि वह तैयार हो जायेगा, दूसरे के दिल की बात आप जान कैसे सकते हैं?’

‘खूब जानता हूँ देवीजी, मैं दावे से कह सकता हूँ कि वह आप पर मर मिटेगा।’

‘तो वह मर मिटने वाले शायद आप ही हैं।’ मायादेवी ने भ्रूभंग करके कहा।

‘हो ही, आप भी कमाल की भांपने वाली हैं, मान गया। अब जब आप समझ ही गई हैं, तो फिर कहना ही क्या। मैं सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि आप एक दिलवाला पति पा सकेंगी।’

‘खैर देखा जायेगा, अभी तो आप जो मामले की बात है उसी का ध्यान कीजिए। इस मसले पर पीछे गौर कर लिया जायेगा।’

‘तब तो श्रीमती जी फीस का मसला ही खत्म’-आप चाहें तो ये पचास रुपये भी लेती जाइए।’

‘अभी उन्हें रखिए। शायद आपको अभी ज़रूरत पड़ जाये, तो मैं आपके पास कल कचहरी में मिलूं?’

‘कचहरी में क्यों, यहीं आइए। हम लोग साथ-साथ चाय पियेंगे, और काम की बातें करेंगे, एक-दूसरे को समझेंगे, समझती हैं न आप?’

‘खूब समझती हूँ।’

‘कमाल करती हैं आप। क्या साफगोई है। मान गया। तो पक्की रही, आप आ रही हैं न कल?’

‘मै कचहरी में मिलूंगी, आप सब कागजात तैयार रखिये।’

‘लेकिन मेरी दर्खास्त…’ वकील साहब ने बेचैनी से कहा।

मायादेवी ने उठते हुए कहा – ‘पहले मेरी दर्खास्त की कार्यवाही हो जाये।’

वकील साहब हँस पड़े। ‘अच्छा, अच्छा, यह भी ठीक है।’ उन्होंने कहा।

मायादेवी ‘नमस्ते’ कह विदा हुई।

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अन्य हिंदी उन्पयास :

~ निर्मला मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास

~ प्रेमा मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास 

~ प्रतिज्ञा मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास 

~ गबन मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास

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