चैप्टर 10 प्यार का पागलपन लव स्टोरी नॉवेल, Chapter 10 Pyar Ka Pagalpan Love Story Novel In Hindi
Chapter 10 Pyar Ka Pagalpan Love Story Novel In Hindi
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“कहीं बड़ी बहन तो पसंद नहीं आ गई तुझे?” तुषार ने हँसते हुए कहा, “पिटेगा भाई…पिया के जीजा से।“
“उसकी शादी नहीं हुई है अभी।“ साजन ने कहा।
“लगता है, तुझे बड़ी बहन ही पसंद आई है।“ तुषार छेड़ने वाले अंदाज़ में बोला।
साजन हड़बड़ा सा गया, मगर जल्द ही खुद को संभालकर बोला, “क्या बात कर रहा है यार…ऐसा कुछ नहीं है….”
“क्यों खूबसूरत नहीं थी?”
“नहीं वो…” साजन कुछ कह नहीं पाया। उसकी आँखों के सामने नैना का चेहरा तैर गया और साथ ही उस चेहरे के हर भाव, जो वो अब तक अपने ज़ेहन से निकाल नहीं पाया था। साजन को देखते ही उसका चौंककर अपने दायें गाल पर हाथ रख लेना, बालकनी से साजन के सिर पर टॉवल गिर जाने पर रेलिंग पकड़कर नीचे झांकना और उसके ऊपर देखते ही जीभ काटकर आँखें बंद कर लेना, लॉन में साजन की बाहों में गिर पड़ने पर उसके चेहरे में छा जाने वाली हया….कभी उसका कंधे उचका देना, कभी नज़रें झुका देना…कभी मुँह बना लेना…कभी मुस्कुरा देना…साजन चाहकर भी नैना की कोई अदा अपने ज़ेहन से हटा नहीं पा रहा था।
“नहीं…वो…क्या कह रहा है? खूबसूरत थी, तो मेरी बात चला दे…अब तू कर रहा है, तो सोच रहा हूँ कि मैं भी शादी कर ही लूं।” तुषार साजन का चेहरा देखते हुए बोला।
तुषार की बात सुनकर साजन मन ही मन सोचने लगा – ‘ये तो माँ की ज़ुबान बोलने लगा। माँ भी तो कह रही थी कि नैना की बात इससे चलवा दे।‘
“बता यार…काली मोटी भैंस तो नहीं थी?” साजन को जवाब न देते देख तुषार पूछ बैठा।
“हाँ! वैसी ही थी।” जाने क्यों साजन के मुँह से ये निकल गया, वह खुद समझ नहीं पाया।
“सच कह रहा है?”
“हाँ यार! तेरे लायक नहीं थी। और तो और, मैं खुद सोच रहा हूँ कि इस रिश्ते को मना कर दूं।“
“क्यों? तू क्यों मना करेगा?” तुषार ने पूछा।
“नहीं करनी मुझे शादी….वो तो माँ और पापा के ज़ोर देने पर लड़की देखने चला गया था।“ साजन ने कहा।
“तू फिर वही राग अलापने लगा साजन। जो तेरे दिमाग में घुसी हुई है, उस सूर्पनखा को भूल जा यार! स्कूल के दिन थे वो…उन दिनों की बातों को वहीं छोड़ दे। वहाँ उस लड़की से पंगे हो गए और तूने पूरी कॉलेज लाइफ क्या…आज तक कभी किसी लड़की की ओर आँख उठाकर नहीं देखा। आज शादी के लिए लड़की देखने गया भी, तो उसकी बड़ी बहन को देख आया…एक मिनट…एक मिनट…यार इतने सालों बाद उस सूर्पनखा को छोड़कर तूने किसी और लड़की को देखा…कमाल हो गया….क्या बात है यार?”
तुषार की बात सुनकर साजन चौंक गया और कुर्सी से उठकर गेट के पास जाकर खड़े होते हुए बोला, “कोई बात नहीं है यार! मुझे लड़कियों के चक्कर से दूर ही रहना है। मुझसे नहीं संभलेंगी ये लड़कियाँ….मुझे लड़कियों से डर लगता है।“
“अरे यार! हर लड़की सूर्पनखा नहीं होती। छोड़ लड़कियों से डरना…तूने उस सूर्पनखा की नाक नहीं काटी थी, पर थप्पड़ तो मारा था ना…हिसाब पूरा हो गया था…अब भूल जा उसे।“ तुषार उसे समझाने वाले अंदाज़ में बोला।
“कैसे भूलूं…अब तो भूलना और भी मुश्किल हो गया है।“ साजन अपने आप में ही बड़बड़ाया और अबकी बार सूर्पनखा का चेहरा उसकी आँखों के सामने नाचने लगा और इत्तेफ़ाकन उस सूर्पनखा का चेहरा उस चेहरे से हूबहू मिलता था, जिसका चेहरा आज दिन भर साजन की आँखों के सामने रहा था और उसके दिलो-दिमाग में बस गया था।
“मेरे ख़याल से तो तुझे उस सूर्पनखा को ढूंढकर उससे ही शादी कर लेनी चाहिए। उसके अलावा न तेरी लाइफ में कोई आई है और न उसका भयानक ख़याल किसी और को आने देता है। वैसे तूने कभी उसके बारे में पता नहीं किया? शादी हो गई होगी उसकी, क्यों? अब तक तो दो-चार बच्चे भी हो गए होंगे….मोटी हो गई होगी…भद्दी हो गई होगी….” तुषार अपनी लय में बोलता चला जा रहा था।
“नहीं! वो तो बहुत खूबसूरत हो गई है, पहले से कहीं ज्यादा….” होंठों ही होंठों में बुदबुदाते हुए साजन ने अपने दिल पर हाथ रखा। उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था।
उधर नैना बाथरूम में बैठी बाल्टी में डूबे साजन के कपड़ों को घूर रही थी।
‘अहसान नहीं उतारना होता ना, तो तुम्हारे कपड़े कभी नहीं धोती। समझे! वो तो नैना कभी किसी का अहसान नहीं रखती।‘ बड़बड़ाते हुए नैना अपना हाथ गाल पर रखकर सोचने लगी। साजन की हर हरक़त फ़िल्मी रील की तरह फ्रेम दर फ़ेम उसकी आँखों के सामने प्ले हो रही थी। साजन का उसके कंपकपाते हाथों को थामकर अपनी प्लेट में पनीर डाल देना, उसे गिरने से बचाने के लिए दौड़कर आना, उसके क़रीब आकर गीले बालों से उसके चेहरे पर पानी छिटक देना, जाते-जाते पलटकर उसे खूबसूरत कह देना…! ये सब सोचकर नैना दिल ही दिल में तो बड़ी ख़ुश थी, मगर ऊपरी तौर पर यूं जता रही थी, मानो उसे कोई फ़र्क ही न पड़ा हो।
‘क्या कह रहे थे…खूबसूरत हो गई हूँ मैं…जनाब मैं तो पहले से ही खूबसूरत हूँ….तुम आँख के अंधे थे, तो मैं क्या करूं? मैं तो पहले जैसी थी, वैसी ही अब भी हूँ….हाँ तुम हैंडसम हो गए हो….’ बड़बड़ाते हुई नैना को सफ़ेद कुर्ता पैजामा पहने साजन याद आ गया और उसके होंठों पर शर्मीली मुस्कान के साथ गालों पर गुलाबी रंगत फ़ैल गई। साजन के बारे में सोचते-सोचते उसने शर्ट पेंट क्या उसका अंडरवियर भी धो डाला।
साजन तुषार के घर से खाना खाकर अपने घर आ चुका था। वह बिस्तर पर लेटा हुआ था, मगर उसकी आँखों से नींद कोसो दूर थी। उसके ज़ेहन में तुषार की बात तैर रही थी – ‘तूने उसके बारे में पता करने की कोशिश नहीं की?’
‘क्यों करता? मैं उसकी सूरत तक देखना नहीं चाहता था, मगर आज जब वही सूरत मेरे सामने आई, तो उससे नज़र नहीं हटा पा रहा था मैं। ऐसा कैसे हो सकता है? ऐसा क्यों हो रहा है?’ साजन सीलिंग पर नज़र जमाये सोच रहा था।
उधर नैना भी बिस्तर पर लेटी करवट बदल रही थी।
‘सो जा नैना सो जा…! ये किसके बारे में सोच रही है तू?’ पेट के बल लेटे हुए अपनी दोनों कोहनियाँ तकिये पर टिकाकर और दोनों हथेलियाँ गालों पर रखकर वो बुदबुदाई। मगर उसकी नींद तो कोई ले उड़ा था।
‘जिस आदमी ने तुझे थप्पड़ मारा था, उसके कपड़े क्या अंडरवियर भी धोया है तूने…तुझसा महान कोई नहीं नैना! शायद इसी महानता के कारण तेरी नींद उड़ गई है।‘ वह अपनी नींद उड़ने की असल वजह नकार कर उसे उलजुलूल वजह देने में तुली हुई थी।
आखिर उसे नींद नहीं आई और वह उठकर कबर्ड तक गई। उसमें से ढूंढकर अपने स्कूल की पुरानी एल्बम निकाली और उसे लेकर बालकनी में कुर्सी डालकर बैठ गई।
साजन भी स्कूल की एल्बम हाथ में थामे बिस्तर पर बैठा हुआ था और उसमें लगी पुरानी तस्वीरों में किसी की तस्वीर तलाशने की कोशिश कर रहा था।
“कहाँ गई….क्या उसकी एक भी तस्वीर मेरे पास नहीं….” एल्बम पलटते हुए साजन बुदबुदाया।
“ये रही मिल गई….” उधर नैना एल्बम की एक फोटो को देखकर लगभग चीख पड़ी। वो स्कूल की फेरवेल पार्टी की ग्रुप फोटो थी, जिसमें सामने वाली पंक्ति के एक कोने में नैना खड़ी हुई थी और सबसे पीछे वाली पंक्ति के एक कोने में साजन खड़ा हुआ था।
साजन को भी वह तस्वीर मिल चुकी थी। वह तस्वीर पर हाथ फिराते हुए बुदबुदाया, “आखिर मिल ही गई तुम…तस्वीर में भी….कैसी हुआ करती थी तुम…?”
“कैसे हुआ करते थे तुम?” नैना भी तस्वीर को निहारते हुए बुदबुदाई।
दो शहरों में बैठे दो शख्स की यादों की कड़ियाँ जुड़ चुकी थी और उन्हें खींचकर दस बरस पीछे ले जा चुकी थी, जब नैना सोलह बरस की थी और साजन सतरह बरस का।
क्रमश:
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Author – Kripa Dhaani
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