चैप्टर 10 चट्टानों में आग ~ इब्ने सफ़ी का हिंदी जासूसी उपन्यास

Chapter 10 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

 

Chapter 10 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

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इंस्पेक्टर ख़ालिद सोनागिरी के ज़ेफ़रीज़ होटल के बॉल रूम में खड़ा नाचते हुए जोड़ों का जायज़ा ले रहा था। उसके साथ उसके सेक्शन का डीएस भी था।

“देखिए, वो रहा।” ख़ालिद ने इमरान की तरफ इशारा करके कहा। इमरान डिक्सन की लड़की मार्था के साथ नाच रहा था।

सोफ़िया अपने मेहमानों समेत यहाँ आई थी। लेकिन उसने नाच में हिस्सा नहीं लिया था।

“अच्छा!” डीएस ने आश्चर्य व्यक्त किया, “यह तो अभी लौंडा ही मालूम होता है…खैर, मैंने कैप्टन फैयाज़ से उसकी हैसियत के बारे में पूछा है। वह इधर शायद ज़रगाम की लड़की सोफ़िया है। उसके साथ को दाढ़ी वाला कौन है?”

“कोई मेहमान है, बारतोश…चेकोस्लोवाकिया का बाशिंदा और वह कर्नल डिक्सन हैं। उसकी लड़की मार्था इमरान के साथ नाच रही है।”

“इस इमरान पर गहरी नज़र रखो।” डीएस ने कहा, “अच्छा अब मैं जाऊंगा।” डीएस चला गया।

नाच भी खत्म हो गया। इमरान और मार्था अपनी मेज़ की तरफ लौट आये। ख़ालिद कुछ पल उन्हें घूरता रहा, फिर वह भी चला गया।

इमरान बड़ी मौज़ में था। मार्था दो-तीन दिनों में उसे काफ़ी घुलमिल गई थी। वह लड़की ही कुछ इस किस्म की। आरिफ़ और अनवर से भी वह कुछ इस तरह घुल मिल गई थी, जैसे बरसों पुरानी जान-पहचान हो।

“तुम बहुत अच्छा नाचते हो।” उसने इमरान से कहा।

“वाकई!” इमरान ने हैरत से कहा, “अगर यह बात है तो अब मैं दिन-रात नाचा करूंगा। मेरे पापा बहुत ग्रेट आदमी हैं। उन्हें बड़ी ख़ुशी होगी।”

“क्या तुम व़ाकई बेवकूफ आदमी हो?” मार्था ने मुस्कुराकर पूछा।

“पापा यही कहते हैं।”

“और बच्चे की मम्मी का क्या ख़याल है?”

“मम्मी जूतों से मरम्मत करने की स्पेशलिस्ट हैं। इसलिए ख़ास मौके पर ही अपने ख़यालात का इज़हार करती हैं।”

“मैं नहीं समझी।”

“न समझी होगी…इंग्लैंड में जूतों से इज़हार-ए-खयाल का रिवाज़ नहीं है।”

इतने में आरिफ़ की किसी बात पर मार्था उसकी तरफ मुड़ गई। वेटर उनके लिए कॉफ़ी की ट्रे ला रहा था। इसमें एक गिलास ऑरेंज स्कवाश का भी था। यह सोफ़िया ने अपने लिए मंगवाया था। वेटर अभी दूर ही था कि उसके करीब से गुज़रता हुआ एक आदमी उससे टकरा गया। वेटर लड़खड़ाया ज़रूर, मगर संभल गया और उसने ट्रे भी संभाल ली।

इमरान सामने ही देख रहा था। उसके होंठ ज़रा-सा खुले और फिर बराबर हो गये। वह उस आदमी को देख रहा था, जो वेटर से टकराने के बाद उससे माफ़ी मांग कर आगे बढ़ गया था।

जैसे ही वेटर ने ट्रे मेज़ पर रखी, इमरान इस तरह दूसरी तरफ मुड़ा कि उसका हाथ ऑरेंज स्कवाश के गिलास से लगा और गिलास उलट गया।

“ओहो! क्या मुसीबत है!” इमरान बौखलाकर बोला और गिलास सीधा करने लगा।

“तुम शायद कभी शरीफ़ आदमियों के साथ नहीं रहे।” कर्नल डिक्सन झुंझला गया, लेकिन बारतोश उसे अजीब नज़रों से घूर रहा था।

“मैं भी दूसरा लाता हूँ।” इमरान ने सोफ़िया की तरफ देख कर कहा और गिलास उठाकर खड़ा हो गया। सोफ़िया कुछ न बोली। उसके चेहरे पर भी नागवारी नज़र आ रही थी।

इमरान ने काउंटर पर पहुँचकर दूसरा गिलास मांगा। इतनी देर में वेटर मेज़ साफ कर चुका था। इमरान गिलास लेकर वापस आ गया। सोफ़िया की सलवार और मार्था की स्कर्ट पर ऑरेंज स्कवाश के धब्बे पड़ गए थे। ऐसी सूरत में वहाँ ज्यादा देर तक रहना करीब-करीब नामुमकिन था, लेकिन अब सवाल यह था कि वह उन्हें किस तरह रोके। ज़ाहिर है कि स्कर्ट और सलवार के धब्बे काफ़ी बड़े थे और दूर से साफ नज़र आ रहे थे।

“तुम जैसे बदहवास आदमियों का अंजाम मैंने हमेशा बुरा देखा है।” कर्नल डिक्सन इमरान से कह रहा था।

“हाँ!” इमरान सिर हिलाकर बोला, “मुझे इसका तज़ुर्बा हो चुका है। एक बार मैंने संखिया के धोखे में लेमन ड्रॉप खा लिया था।”

मार्था झल्लाहट के बावजूद मुस्कुरा पड़ी।

“फिर क्या हुआ था?” आरिफ़ ने पूछा।

“बच्चा हुआ था और मुझे अंकल कहता था।” इमरान ने उर्दू में कहा, “तुम बहुत चहकते हो, लेकिन मार्था तुम पर हरगिज़ आशिक नहीं हो सकती।”

“क्या फिजूल बकवास करने लगे!” सोफ़िया बिगड़कर बोली।

इमरान कुछ न बोला। वह कुछ सोच रहा था और उसकी ऑंखें इस तरह फैल गई थी, जैसे कोई उल्लू अचानक रोशनी में पकड़ लाया गया हो।

थोड़ी देर बाद वे सब वापसी के लिए उठे।

सोफ़िया की सलवार का धब्बा तो लंबी कमीज़ के नीचे छुप गया, लेकिन मार्था की सफ़ेद स्कर्ट का धब्बा बड़ा बदनुमा मालूम हो रहा था। जैसे-तैसे वह स्टेशन वैगन तक आई।

इमरान की वजह से जो मज़ा किरकिरा हो गया था, उसका एहसास हर एक को था। लेकिन बुरा भला सुनाने के अलावा और उसका कोई कर ही क्या सकता था।

स्टेशन वैगन कर्नल ज़रगाम की कोठी की तरफ रवाना हो गई। रात काफी ख़ुशगवार थी और मार्था अनवर के करीब की सीट पर बैठी हुई थी। इसलिए अनवर ने गाड़ी की रफ्तार हल्की रखी थी।

अचानक एक सुनसान सड़क पर उन्हें तीन वर्दीधारी पुलिस वाले नज़र आये, जो हाथ उठाये गाड़ी को रुकवाने का इशारा कर रहे थे। अनवर ने रफ्तार और कम कर दी। स्टेशन वैगन उनके करीब पहुँचकर रुक गई। उनमें एक सब-इंस्पेक्टर था और दो कांस्टेबल।

सब इंस्पेक्टर आगे बढ़कर गाड़ी के करीब पहुँचकर बोला, “अंदर की बत्ती जलाओ।”

“क्यों?” इमरान ने पूछा।

“हमें खबर मिली है कि इस गाड़ी में बेहोश लड़की है।”

“हा हा!” इमरान ने कहकहा लगाया, “बेशक है…बेशक है!”

अनवर ने अंदर का बल्ब रोशन कर दिया और सब इंस्पेक्टर चुंधियाई हुई आँखों से एक-एक की तरफ देखने लगा। इमरान बड़ी दिलचस्पी से उसके चेहरे पर नज़र जमाये हुए था।

“कहाँ है?” सब इंस्पेक्टर गरजा।

“क्या मैं बेहोश नहीं हूँ?” इमरान नाक पर उंगली रखकर लचकता हुआ बोला, “मैं बेहोश हूँ, तभी तो मर्दाना लिबास पहनती हूँ। ए हटो भी।”

सोफ़िया अनवर और आरिफ़ बेतहाशा हँसने लगे।

“क्या बेहूदगी है!” सब इंस्पेक्टर झल्ला गया।

“लेकिन क्या मैं पूछ सकता हूँ कि इस किस्म की खबर कहाँ से आई है?” इमरान ने पूछा।

“कुछ नहीं, जाओ…जाओ। वह कोई दूसरी गाड़ी होगी।” सब इंस्पेक्टर गाड़ी से हट गया। गाड़ी चल पड़ी।

मार्था सोफ़िया से कहकहो की वजह पूछने लगी। फिर वह भी हँसने लगी।

“पता नहीं किस किस्म का आदमी है?” उसने कहा।

उसे उम्मीद थी कि इमरान इस पर कुछ कहेगा ज़रूर। लेकिन इमरान ख़ामोश ही रहा। वह किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था।

अभी ज्यादा रात नहीं कुछ रही थी, इसलिए घर पहुँचकर भी सब के सब किसी ना किसी तफ़रीह में लग गये। अनवर और बारतोश बिलियर्ड खेल रहे थे। डिक्सन और आरिफ़ ब्रिज खेलने के लिए सोफ़िया और मार्था का इंतज़ार कर रहे थे, जो कपड़े बदलने के लिए अपने कमरे में चली गई थी।

थोड़ी देर बाद इमरान ने मार्था के कमरे में दरवाजे पर दस्तक दी।

“कौन है?” अंदर से आवाज आई।

“इमरान दी ग्रेट फ़ूल!”

“क्या बात है?” मार्था ने दरवाजा खोलते हुए पूछा। वह अपना स्कर्ट तब्दील कर चुकी थी।

“मुझे अफ़सोस है कि मेरी वजह से तुम्हारा स्कर्ट खराब हो गया।”

“कोई बात नहीं!”

“ओह नहीं…लाओ स्कर्ट मुझे दो, वरना वह धब्बा बिल्कुल खराब हो जायेगा।”

“अरे नहीं! तुम उसकी फ़िक्र न करो।”

“लाओ तो…वरना मुझे और ज्यादा अफ़सोस होगा।”

“तुमसे तो पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाता है।”

थोड़ी ना-नुकुर के बाद मार्था ने अपने स्कर्ट इमरान के हवाले कर दिया। अब वह सोफ़िया के कमरे में पहुँचा। उसने एक हाथ में मार्था का स्कर्ट था और दूसरे हाथ में दूध की बोतल।

“ये क्या?” सोफ़िया ने हैरत से पूछा।

“धब्बा छुड़ाने जा रहा हूँ। लाओ तुम भी सलवार दे दो।”

“क्या बेतुकी बात है? इमरान साहब सचमुच आप कभी-कभी बहुत बोर करते हैं।”

“नहीं लाओ! पानी नहीं लगेगा। दूध से साफ करूंगा।”

“मैं कुछ नहीं जानती।” सोफ़िया भन्ना गई।

इमरान ने सलवार उठा ली, जो अभी कुर्सी के हत्थे पर पड़ी हुई थी।

सोफ़िया उकताये हुए अंदाज़ में उसकी हरकतें देखती रही। उसने एक बड़े प्याले में दूध उलटकर धब्बों को मलना शुरू किया। थोड़ी देर बाद धब्बे साफ हो गये। सोफ़िया की बड़ी बालों वाली ईरानी बिल्ली बार-बार प्याले पर झपट रही थी। इमरान उसे हटाता जाता था। जब अपने काम से फ़ारिक हो चुका, तो बिल्ली दूध पर टूट पड़ी। इस बार इमरान ने उसे नहीं रोका।

“क्या पानी से नहीं कर सकते थे? आखिर आपको अपनी बेवकूफी ज़ाहिर करने का इतना शौक क्यों है?” सोफ़िया बोली।

“हाय तो क्या मैंने कोई बेवकूफी की है।” इमरान ने आश्चर्य व्यक्त किया।

“ख़ुदा के लिए बोर मत कीजिये।” सोफ़िया ने बेचारी से कहा।

“आदम ने जब उस दरख़्त के करीब जाने में हिचकिचाहट ज़ाहिर की थी, हव्वा ने भी यही कहा था।”

सोफ़िया कुछ ना बोली। उसने बिल्ली की तरफ देखा, जो दूध पीते-पीते एक तरफ लुढ़क गई थी।

“अरे यह उसे क्या हो गया?” वह उठती हुई बोली।

“कुछ नहीं!” इमरान ने बिल्ली की टांग पकड़ कर उसे हाथ में लटका लिया।

“क्या हुआ इसे?” सोफ़िया चीखकर बोली।

“कुछ नहीं! सिर्फ बेहोश हो गई है। अल्लाह ने चाहा, तो सुबह से पहले होश में नहीं आयेगी।”

“आखिरी आप क्या कह रहे हैं?” सोफ़िया के लहज़े में आश्चर्य मिश्रित झुंझलाहट थी।

“नकली पुलिस वाले एक बेहोश लड़की हमारी गाड़ी में ज़रूर पाते। मगर मैं इस तरह लटका न सकता था।”

“क्या?” सोफ़िया आँखें फाड़कर बोली, “तो यह धब्बा…!”

“ज़ाहिर है कि वह अमृतधारा के धब्बे नहीं थे।”

“लेकिन इसका मतलब?”

“तुम्हारा अगवा, लेकिन मैंने उनकी नहीं चलने दी।”

“आप ने जानबूझकर गिलास में हाथ मारा था।”

“हाँ!” इमरान सिर हिलाकर बोला, “कभी-कभी ऐसी बेवकूफी भी सरजद हो जाती है।”

“आपको मालूम कैसे हुआ था?”

इमरान ने एक अज्ञात आदमी के वेटर से टकराने की दास्तान दोहराते हुए कहा, “मेरी बाई आँख हमेशा खुली रहती है। मैंने उसे गिलास में कुछ डालते देखा था।”

सोफ़िया खौफ़जदा नज़र आने लगी।

इमरान ने कहा, “ओह…डरो नहीं! लेकिन तुम्हें हर हाल में मेरा पाबंद रहना पड़ेगा।”

सोफ़िया कुछ ना बोली। वह इस बेवकूफ जैसे अकलमंद आदमी को हैरत से देख रही थी।

“और हाँ देखो! इस वाकये का ज़िक्र किसी से न करना।” इमरान ने बेहोश बिल्ली की तरफ इशारा करके कहा, “आरिफ़ अनवर से भी नहीं।”

“नहीं करूंगी इमरान साहब। आप व़ाकई ग्रेट हैं।”

“काश मेरे पापा भी यही समझते।” इमरान ने गंभीर लहज़े में कहा।

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