चैप्टर 1 प्यासा सावन गुलशन नंदा का उपन्यास | Chapter 1 Pyasa Sawan Gulshan Nanda Novel

चैप्टर 1 प्यासा सावन गुलशन नंदा का उपन्यास | Chapter 1 Pyasa Sawan Gulshan Nanda Novel, Gulshan Nanda Ka Upanyas

Chapter 1 Pyasa Sawan Gulshan NandaChapter 1 Pyasa Sawan Gulshan Nanda

 

रात इतनी अंधेरी थी कि हाथ को हाथ सुझाई नहीं देता था… उस पर वर्षा। मानो तूफान के साथ आकाश से सागर उमड़ पड़ा हो। राकेश की कार बलखाती हुई पहाड़ी सड़क पर अंधेरे में आगे बढ़ती चली जा रही थी। तूफानी हवा और बौछार के थपेड़े कार के शीशे से टकरा टकरा जाते। मूसलाधार बारिश का पानी कार की हेडलाइट को लगभग निष्क्रिय बना रहा था। बत्तियों का प्रकाश कुछ ही दूर जाकर अंधेरे में डूब जाता। कार को तेज चलाना कठिन था, अतः राकेश बड़ी सावधानी से आगे बढ़ रहा था। साथ साथ वह झुंझला भी रहा था क्योंकि उसे पहले ही बहुत देर हो चुकी थी।

कार होटल स्नो लैंड के पोर्टिको में आकर रूकी। होटल की कुछ ही बत्तियां जल रही थी, अधिकांश भाग अंधेरे में डूबा हुआ था। राकेश कार का द्वार खोलकर झट बाहर निकला। ठंडी हवा के झोंकों से उसके शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई। उसने ओवरकोट का कॉलर ऊपर करके गर्दन को कछुए के समान समेट लिया और तेजी से लॉबी में चला गया। काउंटर पर किसी को न पाकर वह कमरे की बड़ी खिड़की के पास क्षण भर के लिए जा खड़ा हुआ। खिड़की का मखमली पर्दा हटा हुआ था, जिसे खिड़की के शीशों के बाहर बरखा की बूंदे तांडव करती हुई दिखाई दे रही थी। भारी ओवर कोट में सिमटने से शीत उसकी धमनियों में धंसता चला जा रहा था। सहसा वह मुड़ा और काउंटर पर जाकर उंगलियां बजाते हुए बोला, ” कोई है?”

दूसरे ही क्षण काउंटर के नीचे से एक युवती का सिर और फिर धड़ उभरा। राकेश की आंखें विस्मय से खुली की खुली रह गई। उसे ऐसा लगा जैसे जादूगर ने धुएं का गोला छोड़ा हो और दोहे के चाटने पर न जाने कहां से एक अप्सरा सामने आ गई हो – घुंघराले बालों में सीधी मांग, बादामी आंखें, कमान सी भंवें, काली लंबी पलकें और आंखों में काजल की पतली रेखा, माथे पर काजल का तिकोना टीका, गुलाबी दमकते हुए गाल, रसीले होंठ, निचले होंठ के किनारे पर मोहक सा तिल, ठोड़ी पर हल्का सा गड्ढा, सुराही दार गर्दन, और सीने के उभार में मन और आँखें के लिए अनियमित आकर्षण। राकेश काउंटर के पास खड़ा इस सौंदर्य संसार में खो सा गया। उसे अपने आसपास का तनिक भी ध्यान ना था। यूपी राकेश को यूं खोए हुए देखकर झेंप गई। वह इस होटल की रिसेप्शनिस्ट थी और कोई फाइल निकालने के लिए काउंटर के नीचे झुकी हुई थी। 

“मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूं?” चांदी की मानो अनेकों घंटियां बज उठी और राकेश की तंद्रा टूट गई। वह घबराकर बोला, “मेरा नाम राकेश है और मैंने आपके होटल में कमरा बुक करवाने के लिए एक तार भिजवाया था।”

“जी हां! पर मुझे खेद है कि इस समय होटल में कोई कमरा खाली नहीं है।” युवती ने सिर से पैर तक राकेश को निहारते हुए कहा, “क्षमा कीजिएगा बिल्कुल स्थान नहीं है, बिल्कुल नहीं।” 

“किंतु मैंने रिजर्वेशन के लिए बहुत पहले प्रार्थना की थी तार द्वारा।”

“जी! पर हमने तो आपको इस बात का कोई उत्तर नहीं दिया था कि आपकी रिजर्वेशन हो गई है। देखिए! बात यह है कि पिछले 3 दिनों से मौसम खराब होने के कारण हवाई उड़ान बंद पड़ी है और बहुत से लोग विवशत: यहीं पड़े हैं।”

“ओह! भगवान के लिए कुछ कीजिए मुझे मार में बहुत देर हो गई। फिर इस तूफान में कार की यात्रा व्यर्थ की मुसीबत मोल लेना है।”

“सॉरी मैं विवश हूं। इस समय होटल में कोई कमरा खाली नहीं है। दूसरे होटलों में भी यही हाल है, वरना आप का प्रबंध कहीं और करा देती।”

राकेश ने खिड़की के बाहर झांककर देखा। वर्षा तो थमने का नाम तक न ले रही थी। उसके चेहरे पर खेद और निराशा की छाप और गहरी हो गई। राकेश स्वयं पुरुषोचित्त सौंदर्य का सुंदर उदाहरण था। उसके व्यक्तित्व में युवतियों के लिए अपार आकर्षण था। धीरे-धीरे वह अपना मोहक प्रभाव उस युवती के हृदय पर डाल रहा था।

“एक ही उपाय है।” युवती ने उसे अत्यधिक निराश देखकर कहा।

“क्या?”

“आज शाम को यहां एक प्लेन पहुंचा है। प्रातः कुछ यात्री यहां से चले जाएंगे, सो मैं आपका नाम वेटिंग लिस्ट में लिख लेती हूं।”

राकेश ने स्वीकृति में सिर हिला दिया और बेबसी से सामने की दीवार को देखने लगा। दीवार पर टंगी क्लॉक 12:30 बजा रही थी। इतनी रात गए वह कहां जा सकता था। उसने अपना मुख युवती की तरफ घुमाते हुए कहा, “अगर आपको आपत्ति ना हो, तो मैं वहां सोफे पर बैठ कर प्रतीक्षा कर लूं। सुबह तो मुझे कमरा मिल ही जाएगा।”

“रात भर इतनी सर्दी में…!”

“दो चार घंटे की तो बात है, जैसे तैसे समय कट ही जाएगा।”

“एस यू प्लीज!” युवती ने हिचकिचाते हुए अनुमति दे दी। राकेश थैंक्यू कहकर सोफे की ओर बढ़ गया। युवती ने घंटी बजाई और स्नो लैंड होटल की विशेष पोशाक पहने एक बैरा कमरे में आया। उसने सफ़ेद रंग की पतलून पहन रखी थी, जिस पर सामने दो किरमिजी धारियां थी और किरमिजी ही रंग का जोधपुरी जैकेट। उसकी टोपी पर स्नो लैंड लिखा हुआ था। 

“आपका सामान?”

“कार के पीछे डिक्की में!” राकेश ने जेब से कार की चाभियों का गुच्छा निकाल कर बैरे को थमा दिया।

“जाओ साहब का सामान भीतर ले आओ।” युवती ने बैरे को आदेश दिया।

बैरा बाहर चला गया और राजेश सोफे में धंस कर गहरी सोच में डूब गया। उसे एक वियोग प्रेमी की भांति सुबह होने की प्रतीक्षा करनी थी। एकाकीपन और प्रतीक्षा के क्षणों ने उसके शरीर में और ठिठुरन उत्पन्न कर दी। उसने गर्दन को ओवर कोट के उठे हुए कॉलर में और सिकोड़ लिया और जेब में दोनों हाथ डालकर सोफे में और भी सिमट गया। वह अपने आप झुंझला रहा था और उन परिस्थितियों को कोस रहा था, जिनके कारण उसे इतना विलंब हो गया था। सोच में डूबा हुआ वह कभी-कभी कनखियों से काउंटर पर बैठी युवती को भी देख लेता। क्या सौंदर्य था? शीतल वातावरण में अकेले में किसी युवती की उपस्थिति भी क्या हल्की से गर्माहट पहुंचाती है हृदय में ।उसकी विचारधारा एक दूसरी दिशा में चल पड़ी। वह सोचने लगा, विधाता भी क्या विचित्र कलाकार है? एक ही मिट्टी से कैसी कैसी मूर्तियां ढालता है। काउंटर में बैठी युवती किसी राजभवन की शोभा बन सकती थी, किंतु होटल की साधारण कर्मचारिणी बनकर रह गई। विधाता शायद मसखरा भी है, अनमोल हीरा तराशकर कूड़े में फेंक देता है।

रिसेप्शनिस्ट युवती भी, जिसका नाम अर्चना था, थोड़ी थोड़ी देर बाद कनखियों से राकेश को देख लेती थी। उड़ती नजरों की यह मुलाकात धीरे-धीरे एक संबंध का रूप लेने लगी। बरखा की गुनगुनाहट उसके हृदयों की मौन धड़कनों में हल्का सा संगीत भर रही थी। बौछार का शोर स्वयं ही एक मधुर लय में परिवर्तित हो रहा था। अचानक राकेश उठा और काउंटर के पास आकर बोला, “एक्सक्यूज मी! क्या मुझे कॉफी का एक प्याला मिल सकता है?”

“सॉरी! हमारा किचन 12:00 बजे बंद हो जाता है।”

राकेश मुंह लटकाए फिर सोफे पर आ बैठा। अर्चना रजिस्टर पर झुक कर कुछ लिखने में व्यस्त हो गई। बैरा राकेश का सामान काउंटर के पास रखकर पिछले कमरे में चला गया।

राकेश बैठे-बैठे अपनी उंगलियां चटकाने लगा। व्यक्ति की सोची हुई योजना कभी उसे कितना धोखा देती है। वह सोच समझकर कोई निश्चित कार्यक्रम बनाता है, किंतु कोई उस पर पानी फेर देता है।

कुछ देर बाद वही बैरा कॉपी का एक प्याला अर्चना के लिए ले आया, जो नाइट ड्यूटी के बीच उसे होटल से मिला करता था अर्चना ने प्याला हाथ में उठाकर होठों की ओर ले जाना चाहा, किंतु उसका हाथ बीच में ही रुक गया। उसने राकेश की ओर देखा, जो गंभीर दृष्टि से कभी कॉफी के प्याले को और कभी अर्चना को देख रहा था। दृष्टि मिली और वह मुस्कुराई। मानव हृदय फूल के समान कोमल की होता है और पत्थर के समान कठोर भी। उसके सामने ही एक अजनबी सर्दी से ठिठुर रहा था। वह कॉफी का प्याला होंठों तक न ले जा सकी। उसने क्षण भर कुछ सोचा और कॉफी का प्याला थामे राकेश के पास आकर बोली, “लीजिए कॉफी, सर्दी से आपको बहुत कष्ट हो रहा है।”

“नहीं तो किंतु आप यह तो आपके लिए है।”

“लीजिए फिफ्टी फिफ्टी!”

राकेश चुप रहा। अर्चना ने सहानुभूति से देखा और आधी कॉफी प्लेट में डालकर कॉफी का आधा प्याला राकेश की ओर बढ़ा दिया।

प्याला थामते हुए राकेश का हाथ तनिक कांप सा गया। फिर मुस्कुराते हुए वह अर्चना की तरफ देखने लगा और बोला, “थैंक यू!”

“यह आप मुझे घूर घूर कर क्या देख रहे हैं?” अर्चना के इस वाक्य में अचानक उसे हल्का सा झंझोड़ दिया।

“देख रहा हूं कि थोड़ी देर पहले जो अजनबी था, वह एकाएक अपना कैसे बन गया।”

“कस्टमर का ध्यान रखना तो हमारा प्रथम कर्तव्य है, रिसेप्शनिस्ट जो हूं। होटल का धंधा जो ठहरा।” अर्चना मुस्कुराई।

“किंतु मैं तो अभी आपका कस्टमर भी नहीं हूं।”

“वेटिंग लिस्ट में तो है।” मंद मुस्कान से विवाद को समाप्त करने के लिए विषय बदलती हुई वह बोली, ” आज की है भयंकर सर्दी शायद आप से नहीं कर पाएंगे।”

“विवशता मनुष्य को साहसी बना देती है।” अर्चना राकेश के इस उत्तर से प्रभावित हुई। अचानक वह कुछ सोच कर बोली, ” मैं आपकी सहायता कर सकती हूं।”

“प्लीज…कैसे?”

“होटल की मालकिन का कमरा आपको देकर!”

“इट्स वंडर फुल! वह क्या करेंगी।”

“वह पहलगाम गई हुई हैं। वर्षा के कारण न आ सकी और इस भयंकर तूफान में अब उनका आना संभव नहीं लगता। सुबह तक तो आप कहां विश्राम कर ही सकते हैं।”

“… और सुबह होते ही आप किसी दूसरे कमरे का प्रबंध कर देंगे आपके इस कृपा को मैं जीवन भर नहीं भूलूंगा।”

“किंतु एक शर्त होगी।” अर्चना ने लजाते हुए कहा। फिर कुछ रुक कर बोली, ” इस बात को छुपाए रखना होगा, वरना मालकिन मेरी छुट्टी कर देंगी।”

राकेश का ह्रदय प्रसन्नता से भर गया। उसने अर्थ पूर्ण दृष्टि से अर्चना की ओर देखा और सोचने लगा, थोड़ी देर पूर्वा अपने आपको अभागा समझ रहा था, किंतु वह कितना भाग्यवान था। उसे प्रतिकूल परिस्थिति में भी एक युवती की सहानुभूति प्राप्त थी। अभी वह उसके प्रति अपना आभार भी व्यक्त ना कर पाया था कि अर्चना मुड़ते हुए बोली, ” आइए मेरे साथ।”

उसने काउंटर पर जाकर अपनी मालकिन के कमरे की चाबी उठाई और दाहिनी ओर चल पड़ी। राकेश उसके पीछे हो लिया। सीढ़ियां चढ़कर उसने गैलरी को पार किया और एक कमरे के पास खड़ी होकर चाबी से द्वार खोलने लगी।

राकेश चुपचाप उसके साथ चल रहा था। द्वार खुला और दोनों ने भीतर प्रवेश किया। कमरे में अंधेरा था। अर्चना ने बढ़कर टेबल लैंप का स्विच ऑन कर दिया। धुंधले प्रकाश में राकेश ने देखा कि साज-सज्जा में भारतीय और पाश्चात्य ढंग का मिश्रण था। कलात्मक ढंग का साफ सुथरा कमरा मालकिन की सुरुचि का प्रतीक था। एक ओर पियानो रखा था। दीवार पर गिटार और मेंडोलिन टंगे थे, जो उसकी संगीतप्रियता के प्रमाण थे।

“यही है वह कमरा। हमारी मालकिन कमला जी का निजी कमरा है।”

“आपकी मालकिन बड़ी सुरुचि संपन्न महिला मालूम होती हैं। उन्हें संगीत से भी गहरा लगाव है।”

“जी आपने ठीक ही पहचाना। मेंडोलिन तो इतना दर्दीला बजाती हैं कि सुनने वाले के ह्रदय को छू जाए।”

“भैया अकेली ही रहती है। मेरा मतलब उनके पतिदेव…”

“जी पति का देहांत हो जाने के बाद यही दुनिया है उनकी – शांतिपूर्ण और एकाकी!”

“उनका अपना कोई नहीं है? मेरा अभिप्राय है उनके बच्चे और संबंधी?”

“नहीं, कोई नहीं! उन्हें आप केवल दो चीजों से प्यार है – एक संगीत और दूसरी मैं।”

“मैं” के शब्द पर राकेश कुछ चौंका और अर्चना की आंखों में झांकने लगा।

राकेश की चक्की दृष्टि को काटते हुए अर्चना ने सक्रियता से कहा, ” मेरा भी इस दुनिया में और कोई नहीं है। मैं उन्हीं के आश्रय में हूं। उन्हीं की छत्रछाया में पली हूं।”

अर्चना से दृष्टि हटाकर राकेश कमरे का निरीक्षण करने लगा। सामने प्यानों के ऊपर फूलों का एक गुलदस्ता रखा हुआ था। वह गुलदस्ते के पास चला गया।

“लाल गुलाब!” उसके मुंह से सहसा निकला।

“हमारी मालकिन को लाल गुलाब बहुत प्रिय हैं। हमें हर सुबह उनके लिए फूल एकत्र करने पड़ते हैं।”

Next | All Chapters

बदनाम गुलशन नंदा का उपन्यास

काली घटा गुलशन नंदा का उपन्यास

कांच की चूड़ियां गुलशन नंदा का उपन्यास 

गाइड आर के नारायण का उपन्यास 

Leave a Comment