Chapter 1 Maila Anchal Phanishwar Nath Renu Novel
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Chapter 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8
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गाँव में यह खबर तुरंत बिजली की तरह फ़ैल गई – मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्फ कर लिया है और लोबिनलाल कुएँ से बाल्टी खोल कर ले गए हैं।
यद्यपि 1942 के जन-आंदोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्पात हुआ था और न आंदोलन की लहर ही इस गाँव तक पहुँच पाई थी, किंतु जिले भर की घटनाओं की खबर अफवाह के रूप में यहाँ तक ज़रूर पहुँची थी।… मोगलाही टीशन पर गोरा सिपाही एक मोदी की बेटी को उठाकर ले गए। इसी को लेकर सिख और गोरे सिपाहियों में लड़ाई हो गई, गोली चल गई। ढोलबाजा में पूरे गाँव को घेरकर आग लगा दी गई, एक बच्चा भी बच कर नहीं निकल सका। मुसहरू के ससुर ने अपनी आँखों से देखा था – ठीक आग में भूनी गई मछलियों की तरह लोगों की लाशें महीनों पड़ी रही, कौवा भी नहीं खा सकता था; मलेटरी का पहरा था। मुसहरू के ससुर का भतीजा फारबिस साहब का खानसामा है; वह झूठ बोलेगा? पूरेचार साल के बाद अब इस गाँव की बारी आई है। दुहाई माँ काली! दुहाई बाबा लरसिंह!
यह सब गुअरटोली के बलिया की बदौलत हो रहा है।
बिरंचीदास ने हिम्मत से काम लिया; आँगन से निकलकर चारों ओर देखा और मालिकटोला की ओर दौड़ा। मालिक तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद भी सुन कर घबड़ा गए, “लोबिन बाल्टी कहाँ से लाया था? जरूर चोरी की बाल्टी होगी! साले सब चोरी करेंगे और गाँव को बदनाम करेंगे।”
मालिकटोले से यह खबर राजपूत टोली पहुँची – कायस्थटोली के विश्वनाथप्रसाद ततमाटोली के बिरंची को मलेटरी के सिपाही पकड़कर ले गए हैं। ठाकुर रामकिरपाल सिंह बोले, “इस बार तहसीलदारी का मजा निकलेगा। जरूर जमींदार का लगान वसूल कर खा गया है। अब बड़े घर की हवा खायेंगे बच्चू!”
यादव टोली के लोगों ने खबर सुनते ही बलिया उर्फ बालदेव को गिरफ्तार कर लिया। भागने न पाए! रस्सी से बांधी! पहले ही कहा था यह एक दिन सारे गाँव को बंधवाएगा।
तहसीलदार विश्वनाथ प्रसाद एक सेर घी, पाँच सेर बासमती चावल और एक खस्सी लेकर डरते हुए मलेटरीवालों को डाली पहुँचाने चले, बिरंची को साथ ले लिया। बोले, “हिसाब लगा कर देख लो, पूरे पचास रुपए का सामान है। यह रुपया एक हफ्ता के अंदर ही अपने डोले और लोबिन के डोले से वसूल का जमा कर देना। तुम लोगों के चलते….।”
मलेटरी वाले कोठी के बगीचे में है। बगीचे के पास पहुँचकर विश्वनाथप्रसाद ने जेब से पलिया टोपी निकालकर पहन ली और कालीथान की ओर मुँह करके माँ काली को प्रणाम किया, “दुहाई माँ काली!”
बगीचे में पहुँचकर तहसीलदार साहब ने देखा, दो बैल गाड़ियाँ हैं; बैल घास खा रहे हैं; मलेटरीवाले जमीन पर कंबल बिछाकर बैठे हैं। ऐ…। मूढ़ी फांक रहे हैं! और बहरा चेथरू भी कंबल पर ही बैठकर मूढ़ी फांक रहा है।
“सलाम हुजूर!”
बिरंचि ने सामान सिर से उतारकर झुककर सलाम किया, “सलाम सरकार!” …. बकरा भी मेमिया उठा।
“आ रे,। यह क्या है? आप कौन हैं?” एक मोटे साहब ने पूछा।
“हुजूर, तबेदार राजा पारबंगा का तहसीलदार है, मीनापुर सर्किल का।”
“ओ, आप तहसीलदार हैं! ठीक बात! हम लोग डिस्ट्रिक्ट बोर्ड का आदमी है। यहां पर एक मैलेरिया सेंटर बनेगा। ऊपर से हुकुम आया है, यही बागान का जमीन में। मार्टिनसाहब डिस्टिक बोर्ड को यह जमीन बहुत पहले दे दिया।”
तहसीलदार साहब फिर एक बार सलाम करके बैठ गए। बिरंचीहाथ जोड़े खड़ा रहा।
राजपूतटोली के रामकिरपाल सिंह जब कोठी के बगीचे पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि बगीचे के पच्छिम वाली जमीन की पैमाइश हो रही है; कुछ लोग जरीब की कड़ी खींच रहे हैं, टोपावाले एक साहब तहसीलदार से हँस-हँसकर बातचीत कर रहे हैं।
और अंत में यादव टोली के लोग बालवीर के हाथ और कमर में रस्सी बांधकर हो-हल्ला मचाते हुए आए। उसकी कमर में बंधी हुई रस्सी को सभी पकड़े हुए हैं। फिरारी सुराजी को पकड़ने वालों को सरकार बहादुर की ओर से इनाम मिलता है – एक हज़ार, दो हज़ार, पाँच हज़ार! लेकिन साहब तो देखते ही गुस्सा हो गए, “क्या बात है? इसको क्यों बांध कर लाया है? इसने क्या किया है?”
“हुज़ूर, यह सुराजी बालदेव गोप हैं। दो साल जेहल खटकर आया है; इस गाँव का नहीं, चन्ननपट्टी का है। यहाँ मौसी के यहाँ आया है। खध्धड़ पहनता है, जैहिन्न बोलता है।”
“तो इसको बांधा है काहे?”
“अरे बालदेव!” साहब के किरानी ने बालदेव को पहचान लिया, “अरे यह तो बालदेव है। सर, यह रामकृष्ण कांग्रेस आश्रम का कार्यकर्ता है; बड़ा बहादुर है।”
यादों के बंधन से मुक्ति पाकर बालदेव साहब और किराने को बारी-बारी से ‘जाय हिन्द’ किया। साहब ने हँसते हुए कहा, “आपका गाँव में मलेरिया सेंटर खुल रहा है। खूब बड़ा डॉक्टर आ रहा है। डिस्ट्रिक्ट बोर्ड का तरफ से मकान मिलेगा। लेकिन बाकी काम तो आप लोगों की मदद से ही होगा।”
तहसीलदार साहब ने जमींदार खाते और नक्शे को तजवीज करके कहा, “हुजूर, जमीन एक एकड़ दस डिसमिल है।”
ठाकुर रामकिरपालसिंघ को अब तक साहब को सलाम करने का भी मौका नहीं मिला था। विश्वनाथप्रसाद ने बाजी मार ली। ज़िन्दगी में पहली बार सिंघजी को अपनी निरक्षरता पर ग्लानि हुई। सचमुच विद्या की महिमा बड़ी है। लेकिन भगवान ने शरीर दिया, उच्च जाति में जन्म दिया है। इसी के बल पर बहुत बाबू- बबुआन, हाकिम-हुक्कम और अमला-फैला से हेलमेल हुआ, जान पहचान हुई। मौका पाते ही सलाम करके जोर से बोले, “जै हो सरकार की!; हुजूर, पबली को भलाय के वास्ते इतना दूर से कष्ट उठाकर आया है, और हम लोग हुजूर का कोई सेवा नहीं कर सके। गुसाईं की रमैन में केहिन हैं – ” धन्य भाग प्रभु दरशन दीन्हा!” हुजूर सेवक का नाम रामकिरपालसिंघ वलद गरीबनवाज़सिंघ, मोत्तफा, जात राजपूत, मोकाम गढ़बुंदेल राजपूताना, हाल मोकाम मेरी गंज।”
“सिंह जी हमारा कोई सेवा नहीं चाहिए। सेवा के वास्ते मैलेरिया सेंटर खुल रहा है। इसी में मदद कीजिए सब मिलकर। यही सबसे बड़ा सेवा है।” साहब हँसते हुए बोले।
यादव टोली के लोग एक-एक कर, नजर बचाकर, नौ दो ग्यारह हो चुके थे। उन्हें डर था कि बालदेव को बांधकर लाने वालों का साहब चालान करेंगे।
साहब ने चलते समय कहा, “सात दिन के अंदर ही डिस्ट्रिक्ट बोर्ड का मिस्तरी लोग आवेगा। आप लोग बांस, खढ़, सुतली और दूसरा दरकारी चीज का इंतजाम कर देगा। तहसीलदार साहब, आप हैं, बालदेवप्रसाद तो देश का सेवक ही है, और सिंह जी हैं। आप सब लोग मिलकर मदद कीजिए।”
सब ने हाथ जोड़कर, गर्दन झुका कर स्वीकार किया। साहब दल बल के साथ चले। खस्सी मेमिया रहा था। बालदेव गाड़ी के पीछे पीछे गाँव के बाहर तक गया।
बालदेव ने लौटकर लोगों से कहा, “डिस्टिबोट के बंगाली आफसियार बाबू थे परफुल्लो बनरजी और उनका किरानी जीत्तन बाबू,प हले कांग्रेस ऑफिस के किरानी थे।“
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