बीरबल की चतुराई की कहानी | Birbal Ki Chaturai Ki Kahani
अकबर और बीरबल की कहानियाँ भारतीय लोककथाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये कहानियाँ बुद्धिमत्ता, हाजिरजवाबी और नैतिक मूल्यों से भरपूर होती हैं। बीरबल की चतुराई और अकबर के साथ उनके रोचक संवाद सदियों से लोगों का मनोरंजन करते आ रहे हैं। ऐसी ही यह एक मजेदार और सीख देने वाली कहानी है, जो न्याय, बुद्धिमत्ता और तर्कशक्ति का एक सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करती है।
Birbal Ki Chaturai Ki Kahani
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एक दिन बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठे थे। तभी एक गरीब किसान भागता हुआ उनके पास आया और विनती करने लगा,
“जहाँपनाह! मेरी सहायता कीजिए।”
अकबर ने पूछा, “क्या बात है? क्यों इतने परेशान हो?”
किसान ने बताया, “जहाँपनाह, मैं एक अमीर साहूकार के खेत में मजदूरी करता हूँ। आज मैंने खेत में पूरे दिन काम किया। लेकिन जब मजदूरी लेने गया तो साहूकार ने मुझे आधे पैसे ही दिए और कहा कि तुमने तो केवल आधी धूप और आधी छांव में काम किया। इसलिए तुम्हें पूरे पैसे नहीं मिलेंगे। यह सरासर अन्याय है।”
अकबर ने कुछ देर सोचा और फिर बीरबल की ओर देखा। उन्होंने कहा, “बीरबल, यह मामला तुम्हारे सुपुर्द करता हूँ। देखो, कैसे न्याय करते हो।”
बीरबल मुस्कुराए और बोले, “जहाँपनाह, यह बड़ा दिलचस्प मामला है। इसका समाधान मैं कल दूँगा।”
अगले दिन बीरबल ने किसान और साहूकार को दरबार में बुलवाया। जब दोनों हाजिर हुए, तो बीरबल ने साहूकार से पूछा,”तुमने इस को आधे पैसे क्यों दिए।
साहूकार ने कहा, “मेरा किसान से सौदा तय हुआ था कि वह दिन भर धूप में रहकर काम करेगा, तो उसे पैसे दूंगा। इसलिए छांव में काम करने के पैसे मैंने काट लिए।”
बीरबल समझ गए कि साहूकार ने किसान को बातों में उलझा दिया था।
अब उन्होंने किसान को न्याय दिलाने के लिए एक अनोखा उपाय निकाला। उन्होंने अपने सेवकों से कहा कि साहूकार को एक कमरे में ले जाकर वहाँ उसे खाने के लिए कुछ दिया जाए, लेकिन उसे आधा हिस्सा सिर्फ खाने की सुगंध दी जाए, और आधा हिस्सा असली भोजन दिया जाए।
सेवक साहूकार को भोजन के लिए ले गए। जब साहूकार ने खाना शुरू किया, तो उसने शिकायत की, “यह क्या मजाक है? मुझे आधे हिस्से की केवल सुगंध दी जा रही है, असली खाना तो मुझे आधा ही मिल रहा है!”
बीरबल ने मुस्कुराकर उत्तर दिया, “जिस तरह किसान को आधी धूप और आधी छांव का बहाना बनाकर आधी मजदूरी दी गई, उसी तरह तुम्हें भी आधा भोजन असली और आधा उसकी सुगंध के रूप में दिया जा रहा है। यह न्यायसंगत है, है ना?”
साहूकार तुरंत समझ गया कि बीरबल ने उसे उसकी ही बातों में फँसा लिया है। उसने शर्मिंदा होकर अपनी गलती स्वीकार कर ली और किसान को पूरी मजदूरी दे दी।
सीख
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि न्याय हमेशा तर्क और बुद्धिमत्ता पर आधारित होना चाहिए। अगर कोई किसी के साथ अन्याय करता है, तो उसे भी वही अनुभव कराना चाहिए ताकि उसे अपनी गलती का एहसास हो। बीरबल की चतुराई और हाजिरजवाबी हमें यह सिखाती है कि न्याय केवल कानून से ही नहीं, बल्कि बुद्धिमानी से भी किया जा सकता है।
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