अकबर बीरबल की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ | Best Akbar Birbal Stories In Hindi
Best Akbar Birbal Stories In Hindi
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तीन सवाल अकबर बीरबल
एक दिन बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठे थे। वे हमेशा की तरह अपने दरबारियों से रोचक चर्चाएँ कर रहे थे। उसी समय, उनके मन में एक जिज्ञासा उठी। उन्होंने सोचा कि वे अपने दरबारियों की बुद्धिमत्ता को परखें।
उन्होंने सभी दरबारियों की ओर देखा और कहा, “मेरे तीन प्रश्न हैं। जो व्यक्ति इनका सही उत्तर देगा, उसे मैं विशेष इनाम दूँगा।”
दरबारियों ने उत्सुकता से पूछा, “हुजूर, वे प्रश्न क्या हैं?”
अकबर ने गंभीर स्वर में कहा:
1. इस संसार में सबसे बड़ी चीज़ क्या है?
2. आसमान में कितने तारे हैं?
3. पृथ्वी का केंद्र कहाँ है?
दरबार में सन्नाटा छा गया। सभी दरबारी सोच में पड़ गए। ये प्रश्न जितने सरल लग रहे थे, उतने ही कठिन थे।
सबसे पहले एक मंत्री ने कहा, “जहाँपनाह, सबसे बड़ी चीज़ हमारा महल है। यह बहुत विशाल और सुंदर है।”
दूसरे दरबारी ने कहा, “नहीं, सबसे बड़ी चीज़ हमारा राज्य है, जो दूर-दूर तक फैला हुआ है।”
तीसरे दरबारी ने कहा, “नहीं हुजूर, सबसे बड़ी चीज़ यह धरती है, जिस पर हम सभी रहते हैं।”
अकबर को किसी भी उत्तर से संतोष नहीं हुआ। उन्होंने बीरबल की ओर देखा और पूछा, “बीरबल, तुम्हारी क्या राय है?”
बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, “जहाँपनाह, इस संसार में सबसे बड़ी चीज़ मनुष्य की सोच है।”
अकबर ने हैरानी से पूछा, “वह कैसे?”
बीरबल ने उत्तर दिया, “हमारी सोच असीमित होती है। हम अपने विचारों से पूरे ब्रह्मांड की कल्पना कर सकते हैं। सोच के बल पर ही मनुष्य ने असंभव को संभव बनाया है। इसलिए, सोच सबसे बड़ी चीज़ है।”
अकबर बीरबल के उत्तर से प्रभावित हुए और आगे बढ़े।
अब अकबर ने दूसरा प्रश्न पूछा, “आसमान में कितने तारे हैं?”
दरबार में फिर से खुसर-पुसर शुरू हो गई। कुछ दरबारियों ने संख्याएँ बताने की कोशिश की, लेकिन वे गलत साबित हुए।
अकबर ने बीरबल की ओर देखा और कहा, “बीरबल, तुम बताओ।”
बीरबल ने मुस्कुराते हुए एक भेड़ मंगवाई। उसने कहा, “जहाँपनाह, इस भेड़ के शरीर पर जितने बाल हैं, उतने ही तारे आसमान में हैं।”
अकबर ने चौंककर पूछा, “क्या तुम इसे साबित कर सकते हो?”
बीरबल ने विनम्रता से उत्तर दिया, “अगर कोई गिनना चाहे, तो वह एक-एक करके इन बालों की गिनती कर सकता है। अगर वह गिन पाए, तो मैं मान लूँगा कि मैंने गलत कहा। लेकिन जब तक कोई इसे गिन नहीं लेता, मेरा उत्तर सही रहेगा।”
अकबर बीरबल की बुद्धिमत्ता से प्रभावित हुए और मुस्कुराने लगे। अब वे तीसरे प्रश्न की ओर बढ़े।
अकबर ने तीसरा प्रश्न पूछा, “बीरबल, क्या तुम मुझे बता सकते हो कि पृथ्वी का केंद्र कहाँ है?”
दरबार में कोई इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सका। सभी दरबारी परेशान थे, क्योंकि पृथ्वी बहुत विशाल थी, और उसके केंद्र को जानना असंभव था।
बीरबल ने ज़मीन पर एक लकड़ी गाड़ दी और कहा, “जहाँपनाह, यही पृथ्वी का केंद्र है।”
अकबर ने चकित होकर पूछा, “तुम ऐसा कैसे कह सकते हो?”
बीरबल ने उत्तर दिया, “जहाँपनाह, अगर आपको लगता है कि यह पृथ्वी का केंद्र नहीं है, तो आप किसी को बुलाइए जो नाप सके और प्रमाणित कर सके कि यह गलत है। लेकिन जब तक कोई यह साबित नहीं कर सकता, तब तक यह सही रहेगा।
अकबर हँस पड़े और बोले, “बीरबल, तुम सचमुच अद्भुत हो! तुम्हारी बुद्धिमत्ता का कोई मुकाबला नहीं!”
इसके बाद, अकबर ने बीरबल को कीमती इनाम दिया और दरबार में सभी ने बीरबल की प्रशंसा की।
सीख
यह कहानी हमें कई महत्वपूर्ण बातें सिखाती है:
1. सोच की शक्ति: इंसान की सोच ही उसे महान बनाती है। सीमाओं से परे जाकर सोचना ही हमें नए आविष्कार और उपलब्धियाँ दिलाता है।
2. बुद्धिमत्ता और तर्कशक्ति: कठिन प्रश्नों का उत्तर सिर्फ याद किए गए तथ्यों से नहीं, बल्कि तर्क और चतुराई से दिया जा सकता है।
3. चीज़ों को अलग दृष्टिकोण से देखना: कई बार समस्या का हल सीधा नहीं होता, बल्कि हमें नए दृष्टिकोण से सोचना पड़ता है।
4. व्यावहारिक बुद्धिमत्ता: सटीक उत्तर देने के लिए केवल ज्ञान ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक समझ भी जरूरी होती है।
अकबर के साले की कहानी
शकूर मिर्ज़ा एक स्वार्थी और अहंकारी व्यक्ति था। वह चाहता था कि अकबर सिर्फ उसी पर भरोसा करें और बीरबल को अपने दरबार से निकाल दें। उसने कई बार कोशिश की, लेकिन हर बार बीरबल की चतुराई से हार गया। तब उसने एक बहुत ही शातिर योजना बनाई।
एक दिन शकूर मिर्ज़ा ने अकबर से कहा—
“जहांपनाह, मैं सुनता आया हूँ कि बीरबल बहुत बुद्धिमान हैं, लेकिन क्या वे यह बता सकते हैं कि दुनिया में सबसे बड़ी सजा क्या होती है?”
अकबर ने बीरबल को बुलाकर वही सवाल किया।
बीरबल मुस्कुराए और बोले— “जहांपनाह, सबसे बड़ी सजा वह होती है, जिससे इंसान का घमंड टूट जाए और वह खुद को असहाय महसूस करे।”
शकूर मिर्ज़ा ने हँसते हुए कहा— “यह कोई उत्तर नहीं हुआ। इसे सिद्ध करना होगा!”
बीरबल ने कुछ सोचा और अकबर से कहा— “जहांपनाह, मुझे इस प्रश्न का उत्तर सिद्ध करने के लिए कुछ समय दें।”
अकबर ने इजाजत दी। बीरबल ने तुरंत एक योजना बनाई।
अगले दिन बीरबल ने दरबार में ऐलान किया— “शकूर मिर्ज़ा की बुद्धि की परीक्षा लेने के लिए बादशाह सलामत ने उन्हें एक विशेष सम्मान दिया है। अब वे अगले तीन दिनों तक नगर के सबसे बड़े भिखारी होंगे!”
यह सुनते ही शकूर मिर्ज़ा का चेहरा फक पड़ गया। उसने विरोध किया, लेकिन अकबर ने कहा— “यह तो बस एक परीक्षा है, क्या तुम इतना भी नहीं सह सकते?”
शकूर को मजबूरन यह चुनौती स्वीकार करनी पड़ी।
अगले तीन दिन शकूर मिर्ज़ा को भिखारी की तरह नगर में घूमना पड़ा। जिन लोगों के सामने वह शान से घूमता था, वही अब उसे दुत्कार रहे थे। उसे न अच्छा खाना मिला, न सम्मान। लोग उसे पहचान कर हँसने लगे, और दरबारियों ने भी उसका मज़ाक उड़ाया।
तीसरे दिन वह दरबार में आया, उसकी हालत खराब थी—कपड़े मैले, आँखों में आँसू और आत्मसम्मान चूर-चूर।
अकबर ने पूछा— “अब बताओ, सबसे बड़ी सजा क्या होती है?”
शकूर मिर्ज़ा सिर झुकाकर बोला— “जहांपनाह, सबसे बड़ी सजा वही होती है, जिससे इंसान का अहंकार टूट जाए और वह खुद को असहाय महसूस करे।”
बीरबल मुस्कुराए और बोले— “जहांपनाह, यही उत्तर मैंने पहले ही दिया था, लेकिन इसे सिद्ध करना जरूरी था।”
अकबर ने बीरबल की प्रशंसा की और शकूर मिर्ज़ा को चेतावनी दी कि वह आगे से कोई साजिश न करे।
अपनी पहली हार से सीखने के बजाय, शकूर ने एक नई योजना बनाई। उसने एक बेशकीमती हार चुरवाकर बीरबल पर चोरी का आरोप लगाने की योजना बनाई।
शकूर ने दरबार में ऐलान किया—”जहांपनाह, आपके खजाने से एक बेशकीमती हार चोरी हो गया है, और मुझे शक है कि बीरबल ने ही इसे चुराया है।”
अकबर को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन उन्होंने मामले की जाँच करने का आदेश दिया। बीरबल को भी इस षड्यंत्र का अहसास हो गया था। उन्होंने दरबार में ऐलान किया—”जहांपनाह, यदि मुझे दस मिनट दिए जाएँ, तो मैं खुद इस चोर का पता लगा सकता हूँ।”
अकबर ने इजाजत दे दी।
बीरबल ने दरबार के सभी सेवकों को बुलाया और उन्हें एक-एक लकड़ी दी। उन्होंने कहा— “यह जादुई लकड़ी है। जो भी चोर होगा, उसकी लकड़ी रात में एक इंच लंबी हो जाएगी।”
डरे हुए सेवक रातभर बेचैनी से सोए, लेकिन असली चोर, जिसे शकूर ने भेजा था, डर के कारण अपनी लकड़ी को थोड़ा सा काट बैठा।
अगले दिन, जब बीरबल ने सभी की लकड़ी की लंबाई जाँची, तो उन्होंने देखा कि एक सेवक की लकड़ी बाकी सभी से छोटी थी। बीरबल ने तुरंत ऐलान किया— “जहांपनाह, यही चोर है!”
अकबर ने सेवक से सख्ती से पूछताछ की, तो उसने कबूल किया कि यह साजिश शकूर मिर्जा ने रची थी। अकबर गुस्से में आ गए और शकूर को सजा देने का आदेश दिया, लेकिन बीरबल ने कहा—
“जहांपनाह, असली सजा तो यह होगी कि इसे अब से कोई भी जिम्मेदारी न दी जाए और इसके फैसलों पर कोई भरोसा न करे।”
अकबर ने बीरबल की बात मानी और शकूर मिर्जा को दरबार से निकाल दिया।
इसके बाद शकूर मिर्ज़ा ने कभी बीरबल को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं की और दरबार में शांति बनी रही। बीरबल ने फिर से साबित कर दिया कि चतुराई और सच्चाई के आगे कोई भी चालाकी टिक नहीं सकती।
सीख:
– अहंकार और ईर्ष्या अंत में व्यक्ति को ही नुकसान पहुँचाती है।
– सच्ची बुद्धिमत्ता सिर्फ बातें करने में नहीं, बल्कि सही तरीके से सीख देने में होती है।
– जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, वह खुद उसमें गिर जाता है।
कुत्ते की पूंछ अकबर बीरबल
बादशाह अकबर को अजीबो-गरीब सवाल पूछने और अपने दरबारियों की बुद्धि की परीक्षा लेने का शौक था। उनका सबसे प्रिय दरबारी बीरबल था, जो हर प्रश्न का उत्तर चतुराई और हाज़िरजवाबी से देता था।
एक दिन अकबर अपने दरबार में बैठे थे। उन्होंने इधर-उधर देखा और अचानक एक सवाल किया— “क्या दुनिया में ऐसी कोई चीज़ है, जो हमेशा टेढ़ी ही रहती है?”
दरबारी एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे। कुछ सोचने लगे, पर किसी के पास कोई ठोस जवाब नहीं था। फिर सभी की निगाहें बीरबल की ओर गईं, क्योंकि उन्हें पता था कि अगर कोई इस प्रश्न का उत्तर दे सकता है, तो वह बीरबल ही है।
बीरबल मुस्कुराए और बोले, “जी हाँ, महाराज! दुनिया में एक चीज़ ऐसी है, जो हमेशा टेढ़ी ही रहती है—कुत्ते की पूंछ”
अकबर को बीरबल का उत्तर दिलचस्प तो लगा, पर वे पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने सोचा कि इसे परखने का एक तरीका होना चाहिए।
उन्होंने आदेश दिया, “अगर तुम सच कह रहे हो, तो हमें यह साबित करके दिखाओ।”
बीरबल ने सिर झुकाकर कहा, “जो आज्ञा, महाराज!”
अगले दिन, बीरबल एक कुत्ते को दरबार में लेकर आए। सभी दरबारी हैरान थे कि बीरबल अब क्या करने वाले हैं।
बीरबल ने कुत्ते को खड़ा किया और फिर अकबर से बोले, “महाराज, मैं इसे सीधा करने की पूरी कोशिश करूंगा।”
उन्होंने कुत्ते की पूंछ को सीधा करने की कोशिश की। वे धीरे-धीरे उसे खींचने लगे, लेकिन जैसे ही उन्होंने पूंछ छोड़ दी, वह फिर से टेढ़ी हो गई।
बीरबल ने दोबारा कोशिश की, पर कुत्ते की पूंछ फिर से अपनी टेढ़ी स्थिति में आ गई।
अब बीरबल ने दरबारियों को भी बुलाया और कहा, “आप भी प्रयास करें, देखें क्या यह सीधा होता है?”
कुछ दरबारी आए और कुत्ते की पूंछ को सीधा करने की कोशिश करने लगे। लेकिन हर बार जैसे ही वे हाथ हटाते, कुत्ते की पूंछ वापस टेढ़ी हो जाती।
अंत में बीरबल ने कहा, “महाराज, यह इस बात का प्रमाण है कि कुछ चीज़ें अपने स्वभाव के अनुसार ही होती हैं। चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, कुत्ते की पूंछ को पूरी तरह से सीधा नहीं किया जा सकता। इसी तरह, दुनिया में कुछ चीज़ें और कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनका स्वभाव नहीं बदला जा सकता।”
अकबर हँस पड़े। उन्हें बीरबल का उत्तर न केवल तार्किक लगा, बल्कि इसमें गहरी सीख भी छिपी हुई थी।
सीख
इस कहानी से हमें कई महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिलती हैं:
1. प्राकृतिक स्वभाव को बदला नहीं जा सकता
– कुत्ते की पूंछ हमेशा टेढ़ी रहती है, और उसे सीधा करने की कितनी भी कोशिश की जाए, वह फिर से टेढ़ी हो जाती है। इसी तरह, कुछ चीज़ों और लोगों का स्वभाव नहीं बदला जा सकता। हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि हर व्यक्ति की अपनी विशेषता होती है।
2. बुद्धिमत्ता और तर्क से हर समस्या का हल निकाला जा सकता है
– बीरबल ने सिर्फ बातों से नहीं, बल्कि व्यावहारिक रूप से अकबर को अपने उत्तर का प्रमाण दिखाया। यह दर्शाता है कि किसी भी तर्क को साबित करने के लिए व्यावहारिक दृष्टिकोण महत्वपूर्ण होता है।
3. हर प्रश्न का उत्तर संभव है, बस सही दृष्टिकोण चाहिए
– जहाँ बाकी दरबारी अकबर के सवाल से चकित रह गए, वहीं बीरबल ने अपनी चतुराई से न केवल उत्तर दिया, बल्कि उसे सिद्ध भी किया। यह दर्शाता है कि हर समस्या का समाधान होता है, अगर हम सही तरीके से सोचें।
4. कुछ चीज़ों को बदलने के बजाय उन्हें स्वीकार करना बेहतर होता है
– कई बार हम अपने आसपास के लोगों या परिस्थितियों को बदलने की कोशिश करते हैं, लेकिन कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जिन्हें हमें ज्यों का त्यों स्वीकार करना पड़ता है।
आधी धूप आधी छांव अकबर बीरबल
एक दिन बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठे थे और बीरबल से कुछ सवाल पूछ रहे थे। बीरबल ने अकबर के सवाल का जो जवाब दिया, वह अकबर को बिल्कुल पसंद नहीं आया। अकबर गुस्से में आकर बोले, “तुम हमेशा मुझे अपनी बातों से चिढ़ाते हो। क्या तुम मुझसे बहस करने के लिए दरबार में आए हो?”
बीरबल ने कोई उत्तर नहीं दिया, लेकिन अकबर का गुस्सा बढ़ता ही गया। उन्होंने गुस्से में आकर बीरबल को दरबार से बाहर निकाल दिया और कहा, “तुम हमारे राज्य में अब कोई स्थान नहीं रखते। तुम तुरंत यहां से चले जाओ।”
बीरबल चुपचाप दरबार से बाहर चले गए और कुछ समय के लिए नगर से बाहर एक दूर के गांव में रहने लगे। उनकी विदाई से अकबर को थोड़ी राहत तो मिली, लेकिन जल्द ही उन्हें यह एहसास होने लगा कि बीरबल के बिना दरबार में कुछ कमी है। बीरबल की चतुराई और बुद्धिमत्ता अकबर के लिए अनमोल थी, और अब वह उनके बिना अकेले महसूस कर रहे थे।
एक दिन अकबर ने बेगम से कहा, “मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ है। मैं बीरबल को वापस लाना चाहता हूं, लेकिन मुझे नहीं पता कि वे कहां गए हैं। किसी भी तरह मुझे बीरबल को ढूंढना होगा।”
बेगम ने अकबर ने एक तरीका सुझाया, जिसे मानकर अगले दिन अकबर ने राज्य भर में मुनादी करवाई कि जो व्यक्ति आधी धूप और आधी छांव में उनके महल में आएगा, उसे पांच सौ अशर्फी इनाम दिया जाएगा।”
यह ऐलान सुनते ही राज्य के सभी लोग हैरान रह गए। उन्होंने सोचा, “आधी धूप और आधी छांव में आने का मतलब क्या है?” कोई भी ऐसा कर नहीं पाया।
दूर के एक गांव में बीरबल वेश बदलकर एक गरीब किसान के घर में रह रहे थे। जब उन्होंने यह ऐलान सुना, तो सोचा कि उन्हें गरीब किसान की मदद करनी चाहिए, जिसने उन्हें आसरा दिया है।
वे किसान से बोले, “तुम एक चारपाई सिर पर रखकर बादशाह अकबर के महल में जाओ। वे तुम्हें इनाम देंगे।”
किसान ने बीरबल की बात मानकर चारपाई सिर पर उठाई और अकबर के महल की ओर चल पड़ा।
जब वह किसान अकबर के महल में पहुंचा, तो अकबर को सूचना दी गई। अकबर ने उसे देखा और खुश होकर उसे पांच सौ अशर्फी इनाम में दी।
अकबर ने उसे पूछा, “तुम्हें ऐसा करने के लिए किसने कहा?”
किसान ने बताया, “मुझे यह तरीका मेरे घर आए एक मेहमान ने बताया। वे एक समझदार व्यक्ति थे।”
अकबर को तुरंत समझ में आ गया कि यह व्यक्ति कोई और नहीं, बीरबल थे। अकबर तुरंत किसान के साथ उसके घर पहुंचे। बीरबल से मिलकर उन्होंने क्षमा मांगी और कहा, “बीरबल, मैंने तुम्हें बहुत गलत समझा। तुम हमारे राज्य के सबसे बड़े खजाने हो। मैं गुस्से में आकर तुम्हें दरबार से बाहर कर दिया था, लेकिन अब मुझे एहसास हुआ कि तुम्हारे बिना मेरा राज्य अधूरा है। कृपया मुझे माफ कर दो और वापस दरबार में आओ।”
बीरबल वापस दरबार में आ गए और फिर से बादशाह अकबर के प्रिय बन गए।
सीख
1. गुस्से में आकर किए गए निर्णय अक्सर गलत होते हैं और बाद में हमें उनका पछतावा होता है।
2. किसी की अहमियत हमें उसके न होने पर समझ आती है। इसलिए किसी को कम नहीं आंकना चाहिए।
3. किसी भी रिश्ते को गुस्से और अहंकार से नहीं, बल्कि समझ और माफी से संजोना चाहिए।
बीरबल की खिचड़ी की कहानी
एक दिन की बात है, बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठे थे। उनका दरबार बुद्धिमान मंत्रियों, विद्वानों और दरबारियों से भरा हुआ था। अचानक, उनके मन में एक विचार आया। उन्होंने बीरबल से पूछा,
“बीरबल, क्या कोई व्यक्ति कड़ाके की ठंड में पूरी रात पानी में खड़ा रह सकता है?”
बीरबल मुस्कुराए और बोले, “जहाँपनाह, हाँ, यह संभव है। यदि किसी के पास मजबूत इच्छा शक्ति हो, तो वह ठंड में भी टिक सकता है।”
अकबर को यह सुनकर आश्चर्य हुआ। उन्होंने सोचा कि ठंडे पानी में रात भर खड़ा रहना असंभव है। इसलिए उन्होंने बीरबल को चुनौती दी, “अगर तुम किसी को ऐसा करने के लिए मना सकते हो और वह सफल हो जाता है, तो मैं उसे इनाम दूँगा। लेकिन अगर वह असफल होता है, तो तुम्हें दंड भुगतना पड़ेगा।”
बीरबल ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया।
बीरबल दरबार से निकलकर शहर की गलियों में गए। उन्होंने कई लोगों से बात की, लेकिन कोई भी इतनी ठंड में तालाब में खड़े होने के लिए तैयार नहीं हुआ। फिर, उन्हें एक गरीब व्यक्ति मिला, जो बहुत ही मेहनती और ईमानदार था, लेकिन आर्थिक तंगी से जूझ रहा था।
बीरबल ने उससे कहा, “अगर तुम पूरी रात इस ठंडे तालाब में खड़े रह सकते हो, तो बादशाह तुम्हें इनाम देंगे।”
गरीब व्यक्ति के पास कोई और विकल्प नहीं था। उसे धन की सख्त जरूरत थी, इसलिए उसने यह चुनौती स्वीकार कर ली।
रात होने पर वह व्यक्ति तालाब में उतर गया। ठंड बहुत अधिक थी, पानी बर्फ जैसा ठंडा था, लेकिन वह डटा रहा। पूरी रात वह कांपता रहा, लेकिन अपनी मेहनत और हिम्मत से उसने हार नहीं मानी। उसने तालाब से थोड़ी दूरी पर महल की जलती हुई रोशनी देखी और खुद को प्रेरित करता रहा कि सुबह होते ही उसे इनाम मिलेगा।
सुबह होते ही अकबर और उनके दरबारी तालाब के पास पहुँचे। गरीब आदमी अभी भी तालाब में खड़ा था।
अकबर ने उससे पूछा, “तुम इतनी ठंड में रात भर कैसे खड़े रहे?”
गरीब व्यक्ति ने उत्तर दिया, “जहाँपनाह, मैंने महल की जलती हुई रोशनी को देखा और उसी से मुझे हिम्मत मिली। इससे मुझे मानसिक रूप से थोड़ा सहारा मिला, और मैं रातभर खड़ा रह सका।”
अकबर को लगा कि यह व्यक्ति महल की रोशनी से गर्मी प्राप्त कर रहा था, इसलिए उन्होंने कहा, “तुमने असली ठंड सहन नहीं की। महल की रोशनी से तुम्हें थोड़ी गर्मी मिल रही थी। इसलिए तुम्हें इनाम नहीं मिलेगा।”
यह सुनकर वह गरीब व्यक्ति बहुत दुखी हो गया। उसने पूरी रात कठिनाई सहकर बिताई थी, लेकिन उसे कोई इनाम नहीं मिला।
बीरबल को यह अन्याय सहन नहीं हुआ, लेकिन उन्होंने तुरंत कुछ नहीं कहा। उन्होंने अकबर को उनकी गलती का एहसास कराने का निश्चय किया।
अगले दिन बीरबल दरबार नहीं आए। जब अकबर ने उनके बारे में पूछा, तो बताया गया कि वह अपने घर पर खिचड़ी पका रहे हैं।
यह सुनकर अकबर को आश्चर्य हुआ। उन्होंने सोचा, “बीरबल खिचड़ी बनाने में इतना समय क्यों लगा रहे हैं?”
अकबर ने खुद जाकर देखने का निश्चय किया। जब वे बीरबल के घर पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि बीरबल ने एक बहुत ऊँचा बाँस गाड़ा हुआ है। उस बाँस के ऊपरी सिरे पर एक हाँडी लटकी हुई थी। हाँडी के नीचे बहुत छोटी-सी आग जल रही थी, जो जमीन पर थी।
अकबर यह देखकर हैरान हो गए और बोले, “बीरबल, यह तुम क्या कर रहे हो? इतनी ऊँचाई पर हाँडी लटकी हुई है और आग इतनी नीचे जल रही है। इस आग से खिचड़ी कैसे पकेगी?”
बीरबल ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “जहाँपनाह, जब महल की रोशनी से उस गरीब व्यक्ति को गर्मी मिल सकती है, तो इस आग से मेरी खिचड़ी भी पक जाएगी।”
अकबर को तुरंत अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने समझ लिया कि उन्होंने गरीब आदमी के साथ अन्याय किया है।
अकबर ने तुरंत उस गरीब व्यक्ति को दरबार में बुलवाया और उसे उचित इनाम दिया। उन्होंने बीरबल की बुद्धिमत्ता की सराहना की और कहा, “बीरबल, तुमने एक बार फिर साबित कर दिया कि सच्ची बुद्धिमत्ता क्या होती है। न्याय करना एक राजा का सबसे बड़ा धर्म है, और आज तुमने मुझे अपनी गलती का एहसास कराया।”
गरीब व्यक्ति बहुत खुश हुआ और उसने बीरबल को धन्यवाद दिया।
सीख
1. मेहनत का सम्मान करें – कोई भी कार्य छोटा या तुच्छ नहीं होता। हर व्यक्ति की मेहनत की कद्र करनी चाहिए।
2. न्याय का महत्व – न्याय करना राजा का कर्तव्य होता है। बिना सही कारण के किसी को उसके अधिकार से वंचित नहीं करना चाहिए।
3. बुद्धिमत्ता की शक्ति – कभी-कभी तर्क और चतुराई से बड़ी से बड़ी समस्या हल की जा सकती है।
4. दूसरों की भावनाओं को समझें – किसी की मेहनत और संघर्ष को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
अकबर बीरबल और धोबी की कहानी
एक दिन बादशाह अकबर के दरबार में एक हलचल मच गई। दरबार के एक मंत्री ने चिल्लाते हुए कहा, “महाराज, यहाँ चोरी का मामला है! आपके ख़ज़ाने से कुछ सिक्के गायब हो गए हैं।” दरबार में हड़कंप मच गया। सिक्कों का मामला इतना गंभीर था कि जल्द ही तुरंत जांच की मांग उठी।
अकबर, जो न्यायप्रिय और विचारशील शासक थे, ने तुरंत कहा, “इस मामले की सच्चाई उजागर करनी होगी। मैं चाहता हूँ कि तुम, बीरबल, इसकी तह तक जाकर इसका निपटारा करो।” बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, “महाराज, मैं तुरंत ही इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश करता हूँ।”
जांच शुरू होने से पहले दरबार में चर्चा चल रही थी कि चोरी का अपराधी कौन हो सकता है। अजीब बात यह थी कि चोरी का सबूत उन सिक्कों के मिले थे, जो धोबी के काम के दौरान धोए गए कपड़ों में मिल गए थे। धोबी, जिसका असली नाम रघुवीर था, अपने ईमानदार और मेहनती स्वभाव के लिए अपने क्षेत्र में प्रसिद्ध था। वह रोज़ सुबह नदी किनारे जाकर कपड़े धोता, फिर उन्हें दबी हुई बेल्ट पर सुखाता और शाम को अपने छोटे से घर लौट जाता था।
जब चुराए गए सिक्कों का मामला सामने आया, तो दरबार के कुछ सदस्यों ने संदिग्ध नज़र से धोबी को देखा। कुछ ने कहा, “धोबी तो रोज़ दरबार में आता है, और उसके पास उन सिक्कों का कैसे होना संभव है?” दूसरे ने आरोप लगाया कि शायद धोबी ने कपड़ों में छुपे सिक्कों को अपने पास रख लिया है। इन आरोपों से धोबी का दिल टूट गया, पर वह अपने आप को निर्दोष साबित करने के लिए तैयार था।
अकबर ने धोबी को भी दरबार में बुलाया और कहा, “रघुवीर, मुझे बताओ कि यह सिक्के कैसे तुम्हारे धोए हुए कपड़ों में आए?”
धोबी ने भयभीत मन से कहा, “महाराज, मैं तो रोज़ ही अपने काम में लगा रहता हूँ। वह दिन जब सिक्के मिले, मैं भी सामान्य ही कपड़े धो रहा था। मैं कभी किसी भी चीज़ को चोरी करने की सोच भी नहीं सकता।”
दरबार में मौन छा गया। लेकिन बीरबल ने कहा, “महाराज, हमें इस मामले की सच्चाई जानने के लिए कुछ प्रमाण इकट्ठा करने होंगे। मैं रघुवीर से कुछ सवाल पूछता हूँ।”
बीरबल ने धोबी से विनम्रता से कहा, “रघुवीर, बताओ कि जब तुम कपड़े धोते हो तो तुम किस प्रक्रिया का पालन करते हो? क्या तुम कभी कपड़ों को पहले पानी में भिगोते हो, फिर साबुन लगाकर धोते हो, और अंत में इन्हें सूर्य की रोशनी में सुखाते हो?”
धोबी ने बड़े सरल अंदाज में उत्तर दिया, “हाँ महाराज, यही मेरी दिनचर्या है। मैं पहले कपड़ों को नदी में डालता हूँ, फिर हाथ से अच्छे से मलता हूँ, साबुन लगाता हूँ और अंत में उन्हें सूखने के लिए धूप में फेंक देता हूँ।”
बीरबल ने धोबी की बातों में कोई विसंगति न देखी, लेकिन उसने कहा, “ठीक है, अब मैं तुम्हारे काम की जाँच करने के लिए तुम्हारे घर चलना चाहता हूँ।” धोबी ने बिना कोई आपत्ति किए बीरबल को अपने घर ले जाने का निर्देश दिया।
धोबी के घर पहुंचने पर बीरबल ने देखा कि घर में साधारण सी व्यवस्था थी। एक कोना साफ-सुथरा था जहाँ धोबी अपने कपड़े सुखाने के लिए उन्हें टांगता था। लेकिन वहां कुछ कपड़ों के साथ एक पुराना पिटारा भी पड़ा हुआ था। बीरबल ने पिटारे को ध्यान से खोला तो उसमें से कुछ पुराने सिक्के निकले। उन्होंने कहा, “धोबी, ये सिक्के किसके हैं?”
धोबी ने झिझकते हुए जवाब दिया, “महाराज, ये सिक्के मेरे पुराने जमाने के हैं, जो मैंने कभी इस्तेमाल किए थे। मैंने उन्हें संभालकर रखा था ताकि अगर कभी ज़रूरत पड़े तो काम आ सकें।”
बीरबल ने पिटारे को गौर से देखा और फिर बोले, “महाराज, रघुवीर धोबी तो हमेशा ईमानदारी से काम करता आया है। लेकिन दरबार में चोरी का मामला आया है, और सिक्के भी उसी समय से मेल खाते हैं। मुझे संदेह हो रहा है कि कोई और इन सिक्कों को धोबी के कपड़ों में छुपा कर गुम कर रहा है।”
बीरबल ने विचार करते हुए कहा, “इस मामले को हल करने का उपाय यह है कि हम उस दिन की घटनाओं को पुनः जीवित करें। महाराज, मैं उस दिन के सभी गवाहों से पूछताछ करूँगा।”
अकबर ने बीरबल की बात पर भरोसा किया और कहा, “तुम ही सच्चाई की जाँच करो।”
बीरबल ने दरबार से गाँव के कुछ प्रमुख लोगों को बुलवाया और उन से पूछा कि उस दिन धोबी ने क्या किया था। गाँव वालों ने बताया कि धोबी ने सुबह ही कपड़े धोने के लिए नदी की ओर रवाना हुआ था। लेकिन उसी समय, गाँव के एक लड़के ने देखा था कि एक अजनबी व्यक्ति ने धोबी के पीछे-पीछे नदी के किनारे कुछ सिक्के गिरा दिए थे। उस अजनबी का वर्णन करते हुए गाँव वालों ने कहा कि वह बहुत चालाक दिखता था और उसके वस्त्र भी बहुत अच्छे थे।
बीरबल ने गाँव वालों की बातों को सुना और तुरंत समझ गया कि असली चोर वही अजनबी था, जिसने धोबी के कपड़ों में सिक्के छुपा दिए थे। उसने कहा, “महाराज, हमें अब उस अजनबी की खोज करनी होगी।”
बीरबल ने गाँव के अन्य लोगों से मिलकर पता लगाने का प्रयास किया। कुछ ही समय में उन्होंने उस अजनबी का पता लगा लिया, जो एक दिन में ही गाँव में आया था, लेकिन चुपके से चला गया था। उस व्यक्ति को पकड़कर लाया गया।
अकबर ने जब उस अजनबी से पूछताछ की, तो वह अपने आप को दोषी मानने लगा। उसने स्वीकार किया कि उसने जानबूझकर धोबी के पीछे सिक्के छुपा दिए थे ताकि धोबी पर आरोप लगाया जा सके और उसे बदनाम किया जा सके। अजनबी ने कबूल किया कि वह धन की लालच में फंस गया था और धोबी की ईमानदारी को निशाना बनाना चाहता था।
अकबर ने तुरंत ही अजनबी को सख्त दंड दिया और धोबी की सच्चाई को सराहा। उन्होंने कहा, “आज हमने यह साबित कर दिया कि सत्य और न्याय की जीत अवश्य होती है। रघुवीर, तुमने कभी अपना धर्म नहीं भुलाया और हमेशा ईमानदारी से काम किया है।”
धोबी की इमानदारी की कहानी पूरे दरबार में फैल गई और लोगों ने उससे प्रेरणा ली। बीरबल ने कहा, “इस घटना से हमें यह सीख मिलती है कि कभी भी किसी पर बिना प्रमाण के शक नहीं करना चाहिए। और यदि कभी कोई निर्दोष व्यक्ति पर झूठे आरोप लगाए जाएं, तो बुद्धिमत्ता और न्याय के बल पर सच्चाई सामने आ ही जाती है।”
सीख
1. सत्य और न्याय की विजय:
इस कहानी से हमें यह संदेश मिलता है कि सत्य अंततः सामने आता है। धोबी की सच्चाई को जानने के लिए बीरबल की सूझबूझ ने काम किया और अन्याय का पर्दाफाश हुआ।
2. पूर्वाग्रह से बचें:
अक्सर समाज में नीच वर्ग के लोगों को झूठे आरोपों का सामना करना पड़ता है। हमें किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन उसके कर्मों और ईमानदारी से करना चाहिए, न कि उसके सामाजिक दर्जे से।
3. समझदारी और बुद्धिमत्ता का महत्व:
बीरबल की तर्कसंगत सोच और जिज्ञासा ने पूरे मामले को सुलझा दिया। हमें भी जीवन में कठिन परिस्थितियों में धैर्य और बुद्धिमत्ता का परिचय देना चाहिए।
4. गवाहों की महत्ता:
सच को जानने के लिए गवाहों की बातों और घटनाओं की पुनः समीक्षा करना आवश्यक है। किसी भी विवाद को केवल एक पक्ष के आधार पर नहीं, बल्कि सभी सबूतों के आधार पर हल किया जाना चाहिए।
5. ईमानदारी का इनाम:
धोबी ने हमेशा अपने काम में ईमानदारी बरती, और अंततः उसकी सच्चाई सामने आई। यह हमें प्रेरणा देती है कि सच्चाई और ईमानदारी हमेशा सम्मान और सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है।
सोने का खेत अकबर बीरबल
एक दिन बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठे थे। दरबार में सभी मंत्री, अधिकारी और बीरबल उपस्थित थे। तभी एक बुजुर्ग किसान दरबार में आया। वह बहुत दुखी और परेशान था।
अकबर ने किसान से पूछा, “क्या बात है? तुम इतने उदास क्यों हो?”
किसान ने हाथ जोड़कर कहा, “महाराज, मेरे साथ बहुत बड़ा अन्याय हुआ है। मेरा पड़ोसी मेरी ज़मीन पर जबरन कब्जा करना चाहता है और कह रहा है कि वह ज़मीन उसके पूर्वजों की है। कृपया मुझे न्याय दीजिए!”
अकबर ने उस पड़ोसी को दरबार में बुलवाया। जब पड़ोसी आया तो उसने अकबर से कहा, “महाराज, यह ज़मीन मेरे पूर्वजों की थी। मेरे दादा-परदादा ने इसे मेरे लिए छोड़ा था। यह किसान झूठ बोल रहा है और मेरी ज़मीन पर कब्जा करना चाहता है।”
अकबर इस मामले को समझ नहीं पा रहे थे। उन्होंने बीरबल से कहा, “बीरबल, इस मामले की सच्चाई का पता लगाओ और न्याय करो।”
बीरबल मुस्कुराए और बोले, “महाराज, इस समस्या का हल निकालना मुश्किल नहीं है। बस हमें थोड़ा धैर्य रखना होगा।”
बीरबल ने किसान और पड़ोसी दोनों को ध्यान से देखा और कहा, “अगर यह ज़मीन तुम्हारे पूर्वजों की थी, तो ज़रूर उन्होंने इसमें कुछ मूल्यवान चीज़ें भी गाड़कर रखी होंगी। हम खुदाई करवा लेते हैं, अगर हमें कुछ मिलता है तो ज़मीन तुम्हारी होगी।”
पड़ोसी बहुत लालची था। उसने सोचा कि अगर ज़मीन में सच में कोई खजाना दबा हो, तो वह उसे भी हासिल कर सकता है। उसने तुरंत हामी भर दी, “हां महाराज, खुदाई करवाई जाए।”
अकबर ने आज्ञा दी कि खेत की खुदाई की जाए। खुदाई शुरू हुई, और कुछ देर बाद बीरबल ने वहां खड़े सभी लोगों को कहा, “देखो, हमें इस ज़मीन में कुछ खास चीज़ें ढूंढनी होंगी।
बीरबल ने मजदूरों को खुदाई करने का आदेश दिया। कुछ देर खुदाई करने के बाद उन्हें ज़मीन में एक संदूक मिला। उस संदूक को खोला गया तो उसमें कुछ पुराने सिक्के और दस्तावेज़ थे।
बीरबल ने दस्तावेज़ों को ध्यान से पढ़ा और मुस्कुराए। उन्होंने अकबर से कहा, “महाराज, यह ज़मीन सच में बहुत अनोखी है।”
अकबर ने पूछा, “क्या अनोखी बात है, बीरबल?”
बीरबल बोले, “महाराज, इस ज़मीन में सोना उगता है!”
यह सुनकर सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए। पड़ोसी की आँखें चमक उठीं। उसने जल्दी से कहा, “महाराज, यह ज़मीन मेरी ही थी, मैंने कहा था ना! यही मेरा खेत है!”
बीरबल ने मुस्कुराकर कहा, “बहुत अच्छी बात है। अब से यह खेत तुम्हारा हुआ, लेकिन एक शर्त है।”
पड़ोसी ने जल्दी से पूछा, “कौन सी शर्त?”
बीरबल बोले, “अगर यह खेत तुम्हारा है, तो तुम्हें इस खेत में हर साल सोना उगाना होगा, क्योंकि तुमने कहा कि यह तुम्हारे पूर्वजों का खेत है और वे इसमें सोना उगाते थे। यदि तुम अगले साल तक खेत से सोना नहीं उगा पाए, तो यह साबित हो जाएगा कि तुम झूठ बोल रहे थे।”
अब पड़ोसी के होश उड़ गए। उसने झिझकते हुए कहा, “मगर महाराज, खेत में सोना कैसे उग सकता है?”
बीरबल ने मुस्कुराकर कहा, “फिर तुमने झूठ क्यों बोला कि यह खेत तुम्हारे पूर्वजों का है? तुम्हें इस किसान की ज़मीन हड़पने की सजा मिलनी चाहिए।”
अब अकबर को सच्चाई समझ आ गई। उन्होंने आदेश दिया कि ज़मीन का असली मालिक किसान ही रहेगा, और पड़ोसी को झूठ बोलने और लालच करने के अपराध में दंड दिया जाएगा।
किसान बहुत खुश हुआ और उसने अकबर और बीरबल को धन्यवाद दिया।
सीख
इस कहानी से हमें कई महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिलती हैं:
1. ईमानदारी सबसे बड़ा धन है – किसान ने अपनी सच्चाई और ईमानदारी के कारण न्याय पाया, जबकि पड़ोसी का लालच उसे दंड दिला गया।
2. बुद्धिमानी से हर समस्या का हल संभव है – बीरबल ने बिना किसी हिंसा या झगड़े के अपनी चतुराई से न्याय किया।
3. लालच का परिणाम बुरा होता है – पड़ोसी का लालच ही उसकी हार का कारण बना।
4. धैर्य और समझदारी से काम लेना चाहिए – बीरबल ने धैर्य और सोच-विचार से मामले को सुलझाया।
हरा घोड़ा अकबर बीरबल की कहानी
एक दिन बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठे थे। उनके दरबार में कई मंत्री और दरबारी उपस्थित थे। अकबर को हमेशा कुछ नया और रोचक सोचने की आदत थी। वे अपने दरबारियों की बुद्धिमत्ता परखने के लिए अक्सर कठिन प्रश्न पूछते या उन्हें असंभव कार्य सौंपते।
उस दिन भी उन्होंने ऐसा ही एक प्रश्न पूछा। अकबर ने अपने दरबारियों से कहा, “क्या कोई मुझे एक हरा घोड़ा लाकर दे सकता है?”
दरबार में अचानक सन्नाटा छा गया। सभी मंत्री और दरबारी चौंक गए। हरे रंग का घोड़ा? यह तो असंभव था! घोड़े आमतौर पर सफेद, काले, भूरे, या लाल-चिट्टे होते हैं, लेकिन हरा घोड़ा कोई नहीं देख पाया था।
सभी दरबारी एक-दूसरे की ओर देखने लगे। किसी के पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं था। लेकिन तभी बीरबल मुस्कुराए और बोले, “महाराज, मैं आपके लिए हरा घोड़ा ला सकता हूँ। लेकिन इसमें कुछ शर्तें होंगी।”
अकबर को बीरबल की बुद्धिमत्ता पर पूरा भरोसा था। उन्होंने उत्सुकतापूर्वक पूछा, “बताओ बीरबल, तुम्हारी शर्तें क्या हैं?”
बीरबल ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया, “महाराज, हरा घोड़ा तो मैं अवश्य ला सकता हूँ, लेकिन उसके लिए मुझे एक विशेष प्रकार की जगह से घोड़ा लाना होगा।”
अकबर ने पूछा, “कौन सी जगह, बीरबल?”
बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, “महाराज, हरा घोड़ा केवल ऐसे स्थान पर मिलेगा, जहाँ सिर्फ हवा के घोड़े दौड़ते हैं, जहाँ सूरज की किरणें ज़मीन को छूने से पहले ही लौट जाती हैं, और जहाँ किसी भी बच्चे ने कभी रोते हुए जन्म नहीं लिया हो।”
अकबर सोच में पड़ गए। उन्होंने अपने दरबारियों की ओर देखा और फिर बीरबल से कहा, “बीरबल, यह तुम क्या कह रहे हो? ऐसी कोई जगह इस दुनिया में हो ही नहीं सकती!”
बीरबल ने मुस्कुराकर कहा, “महाराज, जब ऐसी कोई जगह नहीं हो सकती, तो हरा घोड़ा भी नहीं हो सकता!”
अकबर ठहाका मारकर हँस पड़े। उन्होंने बीरबल की हाज़िरजवाबी और चतुराई की प्रशंसा की और कहा, “बीरबल, तुम्हारी बुद्धिमानी का कोई जवाब नहीं!”
लेकिन अकबर को इतनी जल्दी हार मानने की आदत नहीं थी। उन्होंने सोचा कि इस बार बीरबल को और कठिन परिस्थिति में डालते हैं। उन्होंने कहा, “बीरबल, अगर हरा घोड़ा नहीं मिल सकता, तो तुम्हें दंड मिलना चाहिए। आखिर तुमने दावा किया था कि तुम ला सकते हो!”
बीरबल ने बड़े ही शांत स्वभाव से उत्तर दिया, “महाराज, मैं अपना दंड स्वीकार कर लूँगा, लेकिन मेरी भी एक शर्त है। जिस तरह हरे घोड़े का अस्तित्व नहीं है, वैसे ही मेरे लिए दंड भी ऐसा हो जो न तो हल्का हो और न भारी, न छोटा हो और न बड़ा, और न ही कोई इंसान उसे दे सके।”
अकबर फिर सोच में पड़ गए। उन्होंने अपने दरबारियों से सलाह ली, लेकिन ऐसा दंड देना असंभव था जो इन सभी शर्तों को पूरा करे। अंत में, अकबर को मानना पड़ा कि बीरबल ने एक बार फिर अपनी बुद्धिमत्ता से उन्हें परास्त कर दिया।
अकबर और उनके दरबारी बीरबल की इस हाज़िरजवाबी पर ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। उन्होंने स्वीकार किया कि बीरबल की बुद्धि का कोई मुकाबला नहीं कर सकता।
अकबर ने बीरबल को गले लगाकर कहा, “बीरबल, तुम सच में मेरे सबसे चतुर सलाहकार हो। मैं तुम्हारी बुद्धिमानी का हमेशा सम्मान करता हूँ।”
बीरबल ने सिर झुकाकर बादशाह का अभिवादन किया और कहा, “महाराज, हर समस्या का हल केवल तर्क और बुद्धि से संभव है। कोई भी कार्य असंभव नहीं, अगर हम सही ढंग से सोचें।”
अकबर ने बीरबल को एक कीमती इनाम देकर उनकी चतुराई का सम्मान किया।
सीख
इस कहानी से हमें कई महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिलती हैं:
1. बुद्धिमानी सबसे बड़ी ताकत है – बीरबल ने अपनी चतुराई से असंभव कार्य को भी तर्क के आधार पर हल कर दिया।
2. असंभव चीज़ों के पीछे न भागें – हमें हमेशा यथार्थवादी रहना चाहिए और तर्कपूर्ण सोच अपनानी चाहिए।
3. हाज़िरजवाबी से हर समस्या का हल संभव है – कठिन परिस्थितियों में भी अगर हम धैर्य और चतुराई से काम लें, तो हम किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं।
4. सही तर्क हमेशा जीतता है – झूठे दावों से बचने के लिए हमें तर्क और बुद्धि का उपयोग करना चाहिए।
अकबर बीरबल और नाई की कहानी
बादशाह अकबर के दरबार में कई मंत्री और सेवक थे, लेकिन उनमें सबसे खास बीरबल थे। बीरबल अपनी बुद्धिमत्ता, हाज़िरजवाबी और न्यायप्रियता के लिए जाने जाते थे। यही कारण था कि बादशाह अकबर उन्हें बेहद पसंद करते थे और हर महत्वपूर्ण निर्णय में उनकी सलाह लेते थे।
हालाँकि, अकबर के दरबार में कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें बीरबल का प्रभाव पसंद नहीं था। वे बीरबल से ईर्ष्या करते थे और किसी भी तरह उन्हें दरबार से हटाना चाहते थे। इनमें से एक व्यक्ति था बादशाह अकबर का नाई।
यह नाई कई वर्षों से अकबर की सेवा में था और हर दिन उनकी हजामत बनाता था। अकबर उस पर भरोसा करते थे और कभी-कभी उससे व्यक्तिगत बातें भी कर लिया करते थे। नाई ने यह देखा कि अकबर हर मामले में बीरबल की राय लेते हैं और उन पर बहुत अधिक भरोसा करते हैं। यह बात उसे पसंद नहीं थी। वह चाहता था कि किसी तरह बीरबल को दरबार से निकाल दिया जाए।
एक दिन, जब नाई अकबर की हजामत बना रहा था, उसने धीरे-धीरे बातों-बातों में अकबर से कहा, “महाराज, आपने कभी अपने पूर्वजों की आत्माओं के बारे में सोचा है? वे स्वर्ग में आपकी भक्ति और स्नेह की प्रतीक्षा कर रहे होंगे। क्या आपको उनके प्रति कुछ नहीं करना चाहिए?”
अकबर नाई की इस बात से प्रभावित हुए और बोले, “तो तुम क्या सुझाव देते हो?”
नाई ने चतुराई से उत्तर दिया, “महाराज, अगर कोई सच्चा भक्त किसी पवित्र व्यक्ति को स्वर्ग भेज दे, तो वह वहाँ जाकर आपके पूर्वजों से मिल सकता है और उनका संदेश ला सकता है।”
अकबर ने यह सुनकर पूछा, “लेकिन कौन इतना पुण्य आत्मा है जो स्वर्ग जा सकता है?”*
नाई ने तुरंत उत्तर दिया, “महाराज, आपके दरबार में सबसे बुद्धिमान और पवित्र व्यक्ति बीरबल हैं। अगर उन्हें स्वर्ग भेजा जाए, तो वे आपके पूर्वजों से मिलकर संदेश ला सकते हैं।”
अकबर नाई की बातों में आ गए। उन्होंने बीरबल को बुलवाया और आदेश दिया, “बीरबल, मैं चाहता हूँ कि तुम स्वर्ग जाओ और मेरे पूर्वजों से मिलकर उनका संदेश लेकर आओ।”
बीरबल समझ गए कि यह किसी की चाल है। लेकिन उन्होंने कोई विरोध नहीं किया। वे कुछ देर सोचते रहे और फिर बोले, “महाराज, मैं स्वर्ग जाने के लिए तैयार हूँ, लेकिन इसके लिए मुझे कुछ तैयारियाँ करनी होंगी।”
अकबर ने उन्हें अनुमति दे दी।
बीरबल ने सबसे पहले अपने कुछ विश्वसनीय मित्रों को बुलाया और उन्हें अपनी योजना समझाई। इसके बाद उन्होंने बादशाह से कहा, “महाराज, स्वर्ग पहुँचने के लिए मुझे जलती चिता में बैठना होगा, ताकि मेरी आत्मा शरीर छोड़कर स्वर्ग जा सके। लेकिन मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि चिता जलाने की ज़िम्मेदारी केवल उस व्यक्ति को दी जाए, जिस पर आप सबसे अधिक भरोसा करते हैं।”
अकबर ने सोचा और फिर नाई को इस कार्य के लिए चुना।
बीरबल ने एक विशाल लकड़ी की चिता तैयार करवाई और उसमें एक गुप्त सुरंग बनवाई, जिससे वे सुरक्षित बाहर निकल सकें। जब आग लगाई गई, तो बीरबल उस सुरंग के रास्ते बाहर निकल गए और कुछ महीनों तक छिपे रहे।
कुछ महीनों बाद, जब बीरबल वापस आए, तो वे साधु के वेश में दरबार पहुँचे। उन्होंने अकबर से कहा, “महाराज, मैं स्वर्ग से लौट आया हूँ। आपके पूर्वजों ने आपके लिए आशीर्वाद भेजे हैं। लेकिन उन्होंने एक संदेश भी दिया है।”
अकबर उत्सुकता से बोले, “क्या संदेश है?”*
बीरबल बोले, “महाराज, आपके पूर्वज बहुत प्रसन्न थे, लेकिन उन्होंने शिकायत की कि उन्हें वहाँ कोई नाई नहीं मिल रहा। उन्होंने कहा कि अगर कोई अच्छा नाई स्वर्ग भेज दिया जाए, तो उनका काम आसान हो जाएगा।”
अकबर ने तुरंत अपने नाई की ओर देखा। नाई का चेहरा सफेद पड़ गया। वह कांपने लगा और गिड़गिड़ाकर बोला, “महाराज, मुझे क्षमा करें! यह सब मेरी चाल थी। मैंने ही बीरबल को हटाने की साजिश रची थी।”
अकबर को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने नाई को दंड देकर दरबार से निकाल दिया और बीरबल को पुनः अपना मुख्य सलाहकार बना लिया।
सीख
इस कहानी से हमें कई महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिलती हैं:
1. बुद्धिमत्ता ही सबसे बड़ी ताकत है – बीरबल ने अपनी चतुराई और सूझबूझ से अपनी जान बचाई और षड्यंत्र को बेनकाब किया।
2. अंधविश्वास में न फँसें – अकबर ने बिना सोचे-समझे नाई की बात मान ली, जिससे वे गलत निर्णय लेने वाले थे। हमें किसी भी बात को बिना तर्क के स्वीकार नहीं करना चाहिए।
3. ईर्ष्या और द्वेष का बुरा परिणाम – नाई की जलन और चालाकी अंत में उसी के लिए घातक साबित हुई। हमें दूसरों की सफलता से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए, बल्कि अपनी मेहनत पर ध्यान देना चाहिए।
4. विश्वास हमेशा योग्य व्यक्ति पर करें – अकबर ने नाई की जगह बीरबल की बुद्धिमत्ता पर भरोसा किया और अंततः सच तक पहुँचे।
बीरबल की चतुराई की कहानी
एक दिन बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठे थे। तभी एक गरीब किसान भागता हुआ उनके पास आया और विनती करने लगा,
“जहाँपनाह! मेरी सहायता कीजिए।”
अकबर ने पूछा, “क्या बात है? क्यों इतने परेशान हो?”
किसान ने बताया, “जहाँपनाह, मैं एक अमीर साहूकार के खेत में मजदूरी करता हूँ। आज मैंने खेत में पूरे दिन काम किया। लेकिन जब मजदूरी लेने गया तो साहूकार ने मुझे आधे पैसे ही दिए और कहा कि तुमने तो केवल आधी धूप और आधी छांव में काम किया। इसलिए तुम्हें पूरे पैसे नहीं मिलेंगे। यह सरासर अन्याय है।”
अकबर ने कुछ देर सोचा और फिर बीरबल की ओर देखा। उन्होंने कहा, “बीरबल, यह मामला तुम्हारे सुपुर्द करता हूँ। देखो, कैसे न्याय करते हो।”
बीरबल मुस्कुराए और बोले, “जहाँपनाह, यह बड़ा दिलचस्प मामला है। इसका समाधान मैं कल दूँगा।”
अगले दिन बीरबल ने किसान और साहूकार को दरबार में बुलवाया। जब दोनों हाजिर हुए, तो बीरबल ने साहूकार से पूछा,”तुमने इस को आधे पैसे क्यों दिए।
साहूकार ने कहा, “मेरा किसान से सौदा तय हुआ था कि वह दिन भर धूप में रहकर काम करेगा, तो उसे पैसे दूंगा। इसलिए छांव में काम करने के पैसे मैंने काट लिए।”
बीरबल समझ गए कि साहूकार ने किसान को बातों में उलझा दिया था।
अब उन्होंने किसान को न्याय दिलाने के लिए एक अनोखा उपाय निकाला। उन्होंने अपने सेवकों से कहा कि साहूकार को एक कमरे में ले जाकर वहाँ उसे खाने के लिए कुछ दिया जाए, लेकिन उसे आधा हिस्सा सिर्फ खाने की सुगंध दी जाए, और आधा हिस्सा असली भोजन दिया जाए।
सेवक साहूकार को भोजन के लिए ले गए। जब साहूकार ने खाना शुरू किया, तो उसने शिकायत की, “यह क्या मजाक है? मुझे आधे हिस्से की केवल सुगंध दी जा रही है, असली खाना तो मुझे आधा ही मिल रहा है!”
बीरबल ने मुस्कुराकर उत्तर दिया, “जिस तरह किसान को आधी धूप और आधी छांव का बहाना बनाकर आधी मजदूरी दी गई, उसी तरह तुम्हें भी आधा भोजन असली और आधा उसकी सुगंध के रूप में दिया जा रहा है। यह न्यायसंगत है, है ना?”
साहूकार तुरंत समझ गया कि बीरबल ने उसे उसकी ही बातों में फँसा लिया है। उसने शर्मिंदा होकर अपनी गलती स्वीकार कर ली और किसान को पूरी मजदूरी दे दी।
सीख
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि न्याय हमेशा तर्क और बुद्धिमत्ता पर आधारित होना चाहिए। अगर कोई किसी के साथ अन्याय करता है, तो उसे भी वही अनुभव कराना चाहिए ताकि उसे अपनी गलती का एहसास हो। बीरबल की चतुराई और हाजिरजवाबी हमें यह सिखाती है कि न्याय केवल कानून से ही नहीं, बल्कि बुद्धिमानी से भी किया जा सकता है।