बारहवां बयान कुसुम कुमारी देवकीनन्दन खत्री का उपन्यास | Barahva Bayan Kusum Kumari Devaki Nandan Khatri Ka Upanyas
Barahva Bayan Kusum Kumari Devaki Nandan Khatri
रनबीरसिंह और जसवंतसिंह को छोड़कर बालेसिंह निश्चिंत हो बैठा, मगर महारानी कुसुम कुमारी के मरने का गम अभी तक उसके दिल पर बना ही हुआ है। कामकाज में उसका जी बिलकुल नहीं लगता। इस समय भी दीवानखाने में अकेला बैठा कुछ सोच रहा है, तनोबदन की सुध कुछ भी नहीं है, उसे यह भी होश नहीं कि सुबह से बैठे शाम हो गई।
किसी की मजाल भी न थी कि ऐसी हालत में उसे टोकता या याद दिलाता कि अभी तक आपने स्नान भी नहीं किया। ऐसे मौके पर किसी आनेवाले के पैरों की चाप ने उसे चौंका दिया, सर उठाकर दरवाजे की तरफ देखा तो जसवंतसिंह!
बालेसिंह–(गुस्से में आकर) तुझे यहां आने की इजाजत किसने दी? तू यहां क्यों आया? क्या किसी पहरेवाले ने तुझे नहीं रोका? क्या तुझे अपनी जान प्यारी नहीं है?
जसंवत–मैं अपनी खुशी से यहां आया, मुझे चोबदार ने रोका और यह भी कहा कि इस समय तुम्हारे आने की खबर तक नहीं की जा सकती।
बालेसिंह–फिर इतना बड़ा हौसला तूने किस उम्मीद पर किया?
जसवंत–इस उम्मीद पर कि आप बेइंसाफी कभी न करेंगे और मेरी जबान से भारी खुशखबरी सुनकर खुश होंगे बल्कि इनाम देंगे।
बालेसिंह–(चौंककर) खुशखबरी!!
जसवंत–जी हां।
बालेसिंह–अब ऐसी कौन सी बात रह गई जिसे सुनाकर तू मुझे खुश करना चाहता है?
जसवंत–सिर्फ यही कि महारानी जीती जागती है और उसने तथा रनबीरसिंह ने आपको पूरा धोखा दिया।
बालेसिंह–कभी नहीं! तू झूठा है! मेरा पुराना खानदानी नौकर मुझसे झूठ कभी नहीं बोल सकता जो अपनी आंखों से वहां का सब हाल देख आया है!!
जसवंत–पुराना और पुश्तैनी नौकर होने ही से उसके दिल में मालिक की मुहब्बत नहीं हो सकती, मैं आज ही साबित कर सकता हूं कि वह दगाबाज और रिश्वती है और उसने कुसुम कुमारी से मिलकर आपको धोखा दिया। मैं आपको यह भी विश्वास दिला सकता हूं कि मैं पहले भी सच्चा था और अब भी सच्चा हूं, आपकी मुहब्बत और आपके साथ रहने की ख्वाहिश मेरे दिल में है। मैं उम्मीद करता हूं कि मेरी कारगुजारी देखकर आप खुश होंगे और मुझे सच्चा खैरख्वाह समझकर अपने साथ रखेंगे। यकीन कीजिए कि मेरे बराबर काम करनेवाला आपके यहां कोई भी मुलाजिम अफसर वा दोस्त नहीं होगा।
बालेसिंह–(ताज्जुब में आकर) क्या यह सब बातें तेरी सच्ची है, जो बड़ी फरफराहट से तू कह गया है?
जसवंत–बेशक मैं सच कहता हूं कि आप चाहे और मेरे साथ चलने की तकलीफ उठावे तो आज ही अपनी सच्चाई का सबूत दे दूँ और दिखला दूँ कि आपकी जान लेने के लिए क्या-क्या बंदिशे की गईं हैं जिनकी आपकी खबर तक नहीं, और इस पर भी आप मरीसा करते हैं कि आपके नौकर खैरख्वाह हैं! अगर आज मैं आपकी मदद न करता तो अपने सर पर आई बेला को कल आप किसी तरह नहीं रोक सकते और देखते-देखचे इस मजबूत इमारत का नाम निशान मिट जाता।
बालेसिंह–(कुछ घबड़ाकर) अगर तेरी बात सही है तो मैं बेशक तेरे साथ चलूंगा और अगर तू सच्चा निकला तो तुझे अपना दोस्त बल्कि भाई समझूंगा। मगर ताज्जुब इस बात का है कि जिस रनबीरसिंह के यहां तैंने परवरिश पाई उसी का दुश्मन क्यों बन बैठा!!
जसवंत–आप सच समझिए कि अगर रनबीरसिंह मुझे अपना दोस्त समझता या मानता तो मैं उसके लिए अपनी जान तक देने से न चूकना लेकिन वह मेरे साथ बुराई करता रहा। मैं नमक का खयाल करके तरह देता गया, मौका मिलने पर कभी उसकी जान का ग्राहक नहीं हुआ, पर आखिर जब वह मेरी जान ही लेने पर मस्तैद बैठा तो मैं क्या करूं? अपनी जान सभी को प्यारी होती है। वह बड़ा भारी बेईमान है। दूर न जाइए आपके यहां इतने आराम से कैद रहने पर भी उसने आपको ऐसा धोखा दिया कि आप जन्मभर याद रखिएगा।
जसवंत की चलती-फिरती और मतलब से भरी बातें बालेसिंह के दिल पर असर कर गईं और वह बड़े गौर में पड़ गया। वह जसवंत को पूरा बेईमान और नमकहराम समझे हुए था अगर इस वक्त उसके फंदे में फंस गया और खूब सोच-विचार कर उसने निश्चय कर लिया कि अगर जसवंत इन सब बातों का सबूत दे देगा जो वह कह रहा है तो जरूर उसे नेक समझकर खातिरदारी से बराबर अपने साथ रखेगा। वह जसवंत के बारे में और भी बहुत कुछ सोचता और भले-बुरे का विचार करता मगर उसकी इस आखिरी बात ने कि उसने (रनबीर ने) आपके यहां कैद रहने पर भी आपको ऐसा धोखा दिया कि जन्मभर याद रखिएगा उसे देर तक सोचने न दिया। उसने जल्दी से अपने फैले हुए खयालों को बटोरा और घबड़ाकर बोला– ‘‘आज मैं जरूर तुम्हारे साथ चलकर तुम्हारी सचाई के बारे में निश्चय करूंगा, आओ मेरे पास बैठो और कहो मेरे लिए उन लोगों ने क्या-क्या तैयारियां की हैं?’’
जसवंत–(पीस बैठकर) रनबीरसिंह और कुसुम कुमारी ने आपकी तबाही का पूरा इंतजाम कर लिया है और लड़ाई के लिए आपके खयाल से भी ज्यादे फौज ऐसी जगह इकट्ठी की है कि न आपको पता लगा है न लगेगा। जिस तरह आप निश्चिय होकर बैठे हैं अगर यकायक वह फौज आप पर चढ़ आवे तो आप क्या करें।
बालेसिंह (कुछ देर सोचकर) जसवंतसिंह मैं सच कहता हूं कि अगर तुम इन सब बातों का सबूत दे दोगे तो तुमको अपने भाई से ज्यादे मानूंगा और बेशक कहूंगा कि तुमने मेरी जान बचाई, फिर देखना कुसुम कुमारी और रनबीर की मैं क्या गत करता हूं और उनके बने बनाए खेल को किस तरह मिट्टी करता हूं। सरे बाजार दोनों को कुत्तों में नुचवाकर न मार डाला (मूंछों पर ताब देकर) तो बालेसिंह नाम नहीं!!
जसंवत–थोड़ी ही देर में आप विश्वास करेंगे कि मैं बहुत सच्चा और आपका दिली खैरख्वाह हूं।
आज जसवंत की बड़ी खातिर की गई। बालेसिंह के दिल से रंज और गम भी जाता रहा बल्कि उसे एक दूसरे ही तरह जोश पैदा हुआ। बड़ी मुश्किल से दो घंटे रात बिताने के बाद उसने जसंवत के साथ चलने की तैयारी कर ली। पहले तो बालेसिंह को खयाल हुआ कि कहीं ऐसा न हो कि जसवंत धोखा दे और बेमौके ले जाकर यहीं अपना बदला ले मगर कई बातों को सोच और अपनी ताकत और चालाकी पर भरोसा कर उसे यह खयाल छोड़ देना पड़ा।
दोनों ने काले कपड़े पहने, मुंह पर काले कपड़े की नकाब डाली कमर से खंजर और एक छोटा-सा पिस्तौल रख चुपचाप पहर रात जाते-जाते घर से बाहर निकल घोड़ो पर सवार हो जंगल की तरफ चल पड़े।
बालेसिंह को साथ लिए जसवंत उस जंगल के पास पहुंचा। जहां महारानी कुसुम कुमारी की वह फौज तैयार इकट्ठी की गई थी जिसका अफसर बीरसेन था और जहां से चिट्ठी कुसुम कुमारी से मिलने के लिए रनबीरसिंह गए थे। दोनों घोड़े एक पेड़ के साथ बांध दिए गए और बालेसिंह ने यहां से पैदल और अपने को बहुत छिपाते हुए जाकर उन बहुत बड़े-बड़े फौजी खेमों को देखा जिनके चारों तरफ बड़ी मुस्तैदी के साथ पहरा पड़ रहा था।
बालेसिंह–(धीरे से) बस आगे जाने का मौका नहीं है, मैं खूब जान गया कि यह कुसुम कुमारी के फौजी खेमे हैं क्यों देखो (हाथ से बताकर) मैं उस अदमी को बखूबी पहचानता हूं जो उस बड़े खेमे के आगे चौकी पर बैठा निगहबानी कर रहा है, जिसके आगे दो मशाल जल रहे हैं, और नंगी तलवार लिए कई सिपाही भी इधर-उधर घूम रहे हैं।
जसवंत–अगर कुछ शक हो तो अच्छी तरह देख लीजिए।
बालेसिंह–नहीं-नहीं, मैं इस फौज से खूब वाकिफ हूं! हकीकत में जसवतंसिह (गले लगाकर) तुमने मेरे साथ बड़ी नेकी की! बस अब जल्द यहां से चलो क्योंकि इसका बहुत कुछ बंदोबस्त करना होगा। अब मैं यह भी समझता हूं कि महारानी जरूर जीती होंगी।
जसवंत–एक बात तो मेरी ठीक निकली, अब इसका भी सबूत दिए देता हूं कि महारानी जीती हैं और उन्हीं के हुक्म से यह सब कार्रवाई की गई है सिर्फ दीवान के हुक्म से नहीं।
बालेसिंह–अब मुझे तुम्हारे ऊपर किसी तरह का शक नहीं है और बेशक तुम्हारी वह बात भी ठीक होगी। इस वक्त तो मुझे बस यही धुन है कि घर पहुंचते ही पहले उस नमकहराम का सर अपने हाथ से काटूं जिसने महारानी के मरने की झूठी खबर सुनाकर मुझे तबाह करना चाहा था।
जसवंत–हां जरूर उसे सजा मिलनी चाहिए जिसमें औरों को डर पैदा हो और आगे ऐसा काम करने का हौसला न पड़े।
जसवंत जानता था कि बालेसिंह का आदमी बिलकुल बेकसूर है, महारानी की चालाकी ने शहर भर को धोखे में डाला था। उसकी कौन कहे, उसने चाहा भी था कि उस बेचारे को बचा दे मगर इस समय उस हरामजादे ने यह सोचकर हां में हां मिला दी कि उसके मारे जाने ही से मेरा रोआब लोगों पर जम जाएगा और मेरे नाम से सब कांपने लगेंगे।
ये दोनों घोड़ों पर सवार हो घर की तरफ रवाना हुए मगर अपने-अपने खयालों में ऐसा डूबे थे कि तनोबदन की सुध न थी, वे बिलकुल नहीं जानते थे कि किधर जा रहे हैं और घर का रास्ता कौन है, कि एकाएक जंगली सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट सुन दोनों चौंके और सर उठाकर सामने की तरफ देखने लगे।
दूर से बहुत से मशालों की रोशनी दिखाई पड़ी जो इन्हीं की तरफ आ रही थी। ये दोनों एक झाड़ी की आड़ में होकर देखने लगे। पास आने से मालूम हुआ कि बहुत से फौजी सिपाही दो पालकियों को घेरे हुए जा रहे हैं जिनके साथ-साथ कई लौंडियां भी कदम बढ़ाए चली जा रही हैं।
जब वे लोग दूर निकल गए, दोनों आदमी झाड़ी से बाहर हुए। बालेसिंह ने कहा, ‘‘जसवंत, बेशक इसमें महारानी होंगी, मगर मालूम नहीं दूसरी पालकी में कौन है?’’
जसवंत–मैं सोचता हूं कि दूसरी पालकी में रनबीर होगा।
बालेसिंह–तुम्हारा खयाल बहुत ठीक है, मगर देखो हम लोग अपने-अपने खयालों में डूबे हुए थे कि रास्ता तक भूल गए, चलो बाईं तरफ घूमो।
दोनों बाईं तरफ घूमे और तेजी से चल पड़े!
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