अधखिला फूल अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध का उपन्यास | Adhkhila Phool Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh Novel
Adhkhila Phool Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh Novel
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Summary
अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का उपन्यास “अधखिला फूल” सामाजिक और भावनात्मक संवेदनाओं का उत्कृष्ट चित्रण है। यह उपन्यास तत्कालीन समाज की विषमताओं और मानवीय संबंधों की जटिलताओं को बड़े ही सरल लेकिन प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करता है।
उपन्यास की कथा एक युवा नायिका के इर्द-गिर्द घूमती है, जो जीवन के कठिन संघर्षों और समाज की रूढ़िवादी मान्यताओं के बीच अपनी पहचान और स्वतंत्रता के लिए प्रयास करती है। वह अपने सपनों को पूरा करने की लालसा और सामाजिक बंधनों के बीच फंसी हुई है। यह पात्र समाज की उन महिलाओं का प्रतीक है, जिन्हें उनके अधिकारों और इच्छाओं से वंचित रखा जाता है।
कहानी का शीर्षक “अधखिला फूल” जीवन और इच्छाओं के अधूरेपन का प्रतीक है। नायिका की परिस्थितियाँ उसे पूर्ण रूप से खिलने नहीं देतीं। हरिऔध ने अपने पात्रों और उनके भावनात्मक द्वंद्व को इतनी गहराई से चित्रित किया है कि पाठक उनकी पीड़ा को स्वयं महसूस कर पाते हैं।
“अधखिला फूल” केवल एक व्यक्तिगत कथा नहीं है, बल्कि समाज में व्याप्त सामाजिक विषमताओं, पितृसत्ता, और महिलाओं की स्थिति पर भी एक तीखा प्रहार है। यह उपन्यास प्रेम, त्याग, और संघर्ष के माध्यम से एक ऐसी भावनात्मक यात्रा पर ले जाता है। पढ़िए :