अचानक एक दिन सुशांत सुप्रिय की कहानी, Achanak Ek Din Sushant Supriye Ki Kahani , Achanak Ek Din Sushant Supriye Hindi Short Story
Achanak Ek Din Sushant Supriye Ki Kahani
वह कोई अनाम-सा ठंडा दिन था, जो सिमसिमी शाम में बदल गया था। जब दफ़्तर का समय ख़त्म होने के बाद वह बाहर निकला, तब हवा चुप थी। बाहर परिसर में उगे हुए ऐंठे पेड़ चुप थे। पार्किंग में मौजूद रोज़ अपनी ही दुम से झगड़ने वाला काला कुत्ता चुप था। दिसम्बर की शाम में ठंड जैसे चू-चू कर ज़मीन की छाती पर गिरती जा रही थी और ज़मीन ठंड की केंचुल उतार फेंकने के लिए कसमसा रही थी।
चाबी लगा कर उसने कार का इंजन ऑन किया। शीशे नीचे करके उसने म्यूज़िक सिस्टम चालू कर लिया। गुलाम अली की ग़ज़ल ‘ये दिल, ये पागल दिल मेरा, क्यों बुझ गया, आवारगी …’ गाड़ी में गूँजने लगी। परिसर से बाहर निकल कर उसने गाड़ी राजपथ की ओर मोड़ ली। दफ़्तर के दमघोंटू माहौल से निजात पाने की वजह से अब वह राहत महसूस कर रहा था। शायद इसीलिए इस समय वह स्टीयरिंग-व्हील पर उतना सतर्क नहीं था। एक घंटे में उसे घर पहुँच जाना चाहिए. वहाँ पत्नी और बच्चे उसकी राह देख रहे होंगे।
दूर सामने इंडिया गेट संतरी-सा खड़ा था। गाड़ी के बैक-व्यू मिरर में सूर्यास्त के बाद का विजय चौक जैसे नॉर्थ एवेन्यू की इमारत को अपनी गोद में समेटे था। ठंडी हवा के झोंके देह में सिहरन पैदा कर रहे थे। अब ‘सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान-सा क्यूँ है’ ग़ज़ल गाड़ी में गूँज रही थी। ढलती हुई शाम के झुटपुटे में स्ट्रीट-लाइट्स जल उठी थीं। कारों की हेड-लाइट्स ऑन होने लगी थीं। उसने भी अपनी कार की सिंगल लाइट ऑन कर ली। यह वह समय था जब दिन की अंतिम रोशनी रात के पहले अँधेरे से मिलती थी।
आगे जनपथ की क्रॉसिंग पर ट्रैफ़िक लाइट ग्रीन थी। एक्सलेरेटर दबा कर उसने गाड़ी की गति तेज कर ली। ठंडी हवा के झोंके उसकी देह में झुरझुरी पैदा कर रहे थे। उसने गाड़ी के शीशे ऊपर किए. तभी आँख के कोने से उसे रेड-लाइट जम्प करके ठीक उसकी ओर तेज़ी से आती एक बड़ी एस. यू. वी गाड़ी दिखी। ब्रेक लगाने का वक़्त ही नहीं मिला। पल के सौवें हिस्से से भी कम समय में एस यू. वी गाड़ी ने बगल से उसकी गाड़ी में ज़ोरदार टक्कर मारी। भयानक आवाज़ के साथ उसकी गाड़ी ने तीन-चार कलाबाज़ियाँ खाईं और फिर उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया …
न जाने कितनी देर बाद उसे होश आया। गाड़ी के मुड़े-तुड़े ढाँचे में उसकी दबी-कुचली देह फँसी हुई थी। शरीर में जगह-जगह असहनीय दर्द हो रहा था। ज़ख़्मी सिर से ख़ून बह रहा था। कोशिश करने पर भी वह हिल नहीं पाया। उसके फेफड़ों, रीढ़ की हड्डी और कूल्हों में जैसे पीड़ा के असंख्य अजगर डँस रहे थे … उसने निगाहें हिलाईं। बाहर भारी भीड़ जमा थी। पुलिस की वर्दी में कुछ लोग शायद किसी गैस-कटर की मदद से कार के मुड़े-तुड़े फ़्रेम को काट रहे थे … उसने अपने मुँह में पसीने और ख़ून का मिला-जुला स्वाद महसूस किया। जब वे उसे उठा कर गाड़ी से बाहर निकालने लगे, तो वह असह्य दर्द से चीख़ उठा। उसके फेफड़ों, रीढ़ की हड्डी और कूल्हों में जैसे नुकीली कीलें चुभ रही थीं।
उसके चारो ओर अजनबी आवाज़ें थीं जिनके चेहरों का पता नहीं चल रहा था।
… ज़रा हाथ लगाना। ध्यान से भाई!
… सँभाल के!
… हौसला रखो। एम्बुलेंस आ गई है।
… इसकी ग़लती नहीं थी। यह तो ठीक चला रहा था। टोयोटा-
फ़ार्च्यूनर वाले ने रेड-लाइट जम्प की थी।
… वह तो बड़ी गाड़ी वाला था। उसके एयर-बैग ने उसे बचा लिया।
उसे खरोंच तक नहीं आई.
शायद सिर में लगी चोट की वजह से उसे चक्कर आ रहा था। उसका उल्टी करने जैसा मन कर रहा था … अब उसे स्ट्रेचर पर डाल कर एम्बुलेंस में चढ़ाया जा रहा था। बातचीत के टुकड़े उसके कानों में पड़ रहे थे।
… ध्यान से। आराम से भाई. लगता है इसके कूल्हों और रीढ़ की हड्डी
में गहरी चोट लगी है।
… इसके सिर में लगी चोट से अब भी ख़ून बह रहा है।
… कितना ज़्यादा ख़ून गिरा है। पता नहीं बचेगा या …
… गाड़ी की हालत तो देखो। कचूमर निकल गया है इसका।
… कितनी भयानक टक्कर रही होगी।
अब उसे एम्बुलेंस में लेटा दिया गया था। दो पुलिसवाले साथ में थे।
उसकी देह भयानक दर्द की गिरफ़्त में थी। किसी ने उसके सिर के ज़ख़्म के इर्द-गिर्द कपड़ा लपेट दिया था। उसके होठ की पपड़ी सूख गई थी। उसने अपनी जीभ से उसे चाटने की अधमरी-सी कोशिश की। ग़लत समय पर ग़लत जगह होने का था यह नतीजा। एक-आधा मिनट का अंतर हो जाता तो यह हादसा ही नहीं होता … दोबारा उसका मन उल्टी करने जैसा करने लगा। फिर उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया …
पता नहीं वह कौन-सा समय था, जब अचानक उसकी आँखें फिर से खुलीं। नाक में अस्पताल और दवाइयों की तेज गंध थी … उसके चोट लगे अंगों का एक्स-रे किया जा रहा था … उसके फेफड़ों में शूल-सा दर्द उठा। उसे साँस लेने में तकलीफ़ हो रही थी … अब उसे सर्जरी के लिए ऑपरेशन थियेटर में ले जाया जा रहा था … सफ़ेद गाउन पहने कोई डॉक्टर उसके कूल्हों के एक्स-रे को ध्यान से देख रहा था … अब उसके सिर की चोट की जाँच हो रही थी … तभी उसकी पूरी देह में पीड़ा की तेज लहर उठी और उसकी आँखों के आगे फिर से अँधेरा छा गया …
शायद वह सपना देख रहा था। यहाँ-वहाँ ख़ून बिखरा हुआ था। हवा में बारूद की गंध थी। चारो ओर लाशें पड़ी हुई थीं। वह किसी आदिम जंगल में था। ज़मीन पर सड़ रहे पत्ते पड़े थे जिनकी गंध बारूद की गंध से मिल कर असहनीय बन गई थी। वह कहाँ था? यह कैसी लड़ाई थी? … जानलेवा गंध उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी … क्या उसके कूल्हों में गोली लगी हुई थी? क्या उसकी रीढ़ की हड्डी में किसी ने ख़ंजर घोंप दिया था? जंगल में पास ही कहीं से लोगों के बोलने की आवाज़ें आ रही थीं … कौन थे वे लोग? क्या बातें कर रहे थे? पास ही कहीं रोशनी थी। अगर वह वहाँ तक जा सकता तो … उसने रोशनी की ओर घिसटने की कोशिश की …
… सिस्टर, पकड़ो इसे … हिलने मत दो …
यह किसकी आवाज़ थी? वही असहनीय गंध … ओह, यह सिरदर्द, आह यह अँधेरा … उसकी आँखें फिर मुँद गई थीं।
पता नहीं कितने समय बाद उसकी बंद आँखें फिर से खुलीं। यह रात का कौन-सा पहर था? दर्द अभी भी उसके अंगों से लिपटा हुआ था। उसने अपनी नज़रें घुमाईं। वह शायद किसी अस्पताल के कमरे में पड़ा था। उसके हाथ में ड्रिप लगा हुआ था। न चाहते हुए भी उसे कल शाम हुई दुर्घटना याद आ गई … एस. यू. वी. की उसकी कार से हुई भीषण टक्कर … उसके मुँह से चीख़ निकल गई. वह थर-थर काँपने लगा। ठंड के मौसम में उसके माथे पर पसीना छलक आया।
उसकी चीख़ सुन कर नर्स कमरे में आ गई थी। उसने बताया कि उसके रिब-केज की तीन हड्डियाँ टूट गई थीं। रीढ़ की हड्डी में भी चोट लगी हुई थी। उसके सिर की चोट में टाँके लगा दिए गए थे। डॉक्टरों ने उसके टूटे हुए कूल्हे का अॉपरेशन करके वहाँ रॉड डाल दी थी …
“घबराइए नहीं। हमने आपके मोबाइल फ़ोन से नम्बर ले कर आपकी पत्नी को फ़ोन कर दिया है। आपके घरवाले जल्दी ही आ जाएँगे ।” नर्स उससे कह रही थी। लेकिन उसकी आँखें फिर मुँदने लगीं और अँधेरे ने उसे अपने आगोश में ले लिया …
… उसे लगा जैसे वह अपने पसंदीदा थिएटर में कोई मूवी देख रहा
था। कोई डरावनी फ़िल्म थी। तभी थिएटर में भूचाल आ गया। चारो ओर भगदड़ मच गई. वह बच्चों और पत्नी का हाथ पकड़ कर डोलते हुए एग्ज़िट की ओर भाग रहा था … लेकिन भीड़ के सैलाब में उसके बीवी-बच्चे उससे अलग हो गए … टूट कर गिरे थिएटर के एक टुकड़े के नीचे वह दब गया था … मौत की गंध उसकी साँसों में थी … अब मौत कोई काली बिल्ली थी जो दबे पाँव चल कर आई थी और उसके सीने पर बैठ गई थी …
… ऐ, उठो यहाँ से … चलो, भागो …
लेकिन वह सीने पर से नहीं हट रही थी। उसके सिर में दर्द की एक गरम लहर उठी। शायद गहरे घाव पर लगे टाँकों में टीसें उठ रही थीं …
… अब वह फिर से घने जंगल में घिसट रहा था … हवा मौत की गंध से भारी थी … दूर कहीं पर मौजूद कोई अंतिम टिमटिमाती रोशनी भी एक कराह के साथ बुझ गई थी … चारो ओर जंगली जानवरों की गुर्राहटों से भरा घुप्प अँधेरा था … अब वह किसी अंधे कुएँ के तल पर पड़ा था … वह चीख़ना चाहता था पर उसके गले से कोई आवाज़ नहीं निकल रही थी … कुएँ में मौत की तीखी गंध थी … अब वह किसी कैदख़ाने में था … उसके हाथ-पैर ज़ंजीरों से बँधे हुए थे … कोई उसकी नंगी पीठ पर लगातार चाबुक मार रहा था … अब मौत उसकी छाती पर आ बैठी थी … इस बार वह किसी लकड़बग्घे की शक़्ल में मौजूद थी … उसके मुँह से सड़ रही लाश की दुर्गंध आ रही थी …
अचानक उसकी आँखें खुल गईं। उसे साँस लेने में तकलीफ़ हो रही थी। क्या यही अंत की शुरुआत थी?
अँधेरे को चीरती हुई कुछ धीमी आवाज़ें आ रही थीं …
… सिस्टर, ही इज़ सिंकिंग। क्विक्ली पुट हिम ऑन लाइफ़ सपोर्ट सिस्टम …
खिड़की के बाहर एक मृतप्राय पीला चाँद किसी पेड़ की शाखा में औंधे मुँह अटका पड़ा था … जैसे आख़री साँसें ले रहा हो … उसकी आँखें फिर से मुँदने लगी थीं … वह चीख़ना चाहता था … लेकिन सीने पर बैठे लकड़बग्घे ने अब उसकी गरदन दबोच रखी थी …
… तो इसे यूँ ख़त्म होना था … जीवन को … अपनों से दूर किसी अस्पताल के कोने में … एक गुमनाम-सी मौत … तो आज उसकी बारी थी … आह, अँधेरे का मुँह इतना काला क्यों था …
अब वह घनी धुँध में रास्ता टटोल रहा था … धुँध के उस पार से उसके बेटे पलाश और बेटी शेफ़ाली की प्यारी आवाज़ें आ रही थीं … पापा … पापा … तभी एक नारी स्वर गूँजा … अरे, यह तो उसकी पत्नी की आवाज़ थी … कहाँ हो तुम सब … वह विकल होकर उन्हें ढूँढ़ रहा था …
दूर कहीं से एक आवाज़ उसके कानों में आई …
… ओह गॉड, वी आर लूज़िंग हिम …
अब दु: स्वप्न में वह किसी गहरी खाई के मुहाने पर था … एक काले मुँह वाली रात उसके होठ चूम रही थी … ठीक उस समय, जब उसे लगा कि अब वह उस गहरी खाई में गिर जाएगा, धुँध छँट गई और उस पार उसे अपने बीवी-बच्चे दिखाई दिये … पापा, पापा, आप कैसे हो … जानू, हम आ गए …
एक झटके के साथ उसकी आँखें खुल गईं। अस्पताल के उसके बिस्तर की बगल में उसकी पत्नी नेहा खड़ी थी, दोनों बच्चों को साथ लिए। खिड़की के बाहर सूर्योदय हो रहा था और चिड़ियाँ चहचहा रही थीं … उसने स्नेहिल आँखों से अपने बीवी-बच्चों को देखा। बच्चे उससे लिपट गए थे। बीवी ने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया था और वह जान गया कि आज मौत का दिन कहीं और था। आज उसकी बारी नहीं थी। अभी जीवन शेष था …
**समाप्त**
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