एक्सीडेंट सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानी | Accident Subhadra Kumari Chauhan Ki Kahani

एक्सीडेंट सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानी (Accident Subhadra Kumari Chauhan Ki Kahani Hindi Short Story)

Accident Subhadra Kumari Chauhan

Accident subhadra Kumari chauhan ki kahani

छ: बजने में छ: मिनट। कुसुम ने जल्दी से चाय का प्याला रख दिया। वह एक ही घूंट पी पाई थी, आकर देखा बरसाती में कार खड़ी थी, पर ड्राईवर का पता न था। उसने एक-दो बार हॉर्न दिया, फिर बड़ी तेज़ी से वह मोटर लेकर चल दी। ड्राईवर एक मिनट के बाद आया, कुछ दूर तक कुसुम की कार धूल उड़ा रही थी।

इधर से कुसुम की कार बहुत तेज़ी से जा रही थी, उधर से किसी और की गाड़ी ने रास्ता काटा, परिणाम यह हुआ कि चौरस्ते पर बिजली के खम्बे से दोनों गाड़ियां टकराईं । दोनों ने बचाने का प्रयत्न किया, परंतु निष्फल। कुसुम की कार के सामने का कांच टूट गया और सामने का कुछ हिस्सा भी टूट गया। कार और वह अपना वेग खोकर मुर्दे की तरह पड़ी रह गईं। कुसुम के सिर और माथे पर चोट आई। दूसरी कार का एक मडगार्ड भर टूटा था, बाकी सब कुछ ठीक था। उस गाड़ी के दोनों व्यक्ति कार पर से उतरकर खड़े हो गए। एक पुरुष था, दूसरी स्त्री। कुसुम के चेहरे पर क्रोध का भाव था, पर पुरुष के चेहरे पर कौतूहल के साथ यह भाव था कि वह गलत रास्ते पर थी। उसने बचाना चाहा, फिर भी कुसुम ने कार लड़ा ही दी। कुसुम के सिर के बहते हुए खून को देखकर तुरंत ही पुरुष ने अपनी रुमाल उसके सिर पर कसकर बांध दी, फिर नम्रता से बोला, “आप मेरी कार पर बैठ जाईए, डॉक्टर के घर से आपके सिर पर पट्टी बंधवाने के बाद आप जहां कहेंगी, वहां पहुंचा दूंगा ।” 

“खाक पहुंचा देंगे आप!” कुसुम चिल्लाकर बोली, “मुझे छ: बजे कॉलेज पहुंच जाना था, वहां लोग मेरी प्रतीक्षा में होंगे।” 

“तो आप ही कुसुम देवी हैं, आप से मिलकर प्रसन्नता हुई।” पुरुष ने कहा।

“जी हां, मैं ही कुसुम देवी हूं, धन्यवाद, और आप की तारीफ?” शिष्टाचार के तौर पर कुसुम ने पूछा।

“मैं हूं प्राणनाथ सहगल।” पुरुष ने उत्तर दिया।

कुसुम जैसे चौंक उठी, शराबी प्राणनाथ, दुराचारी प्राणनाथ, कुसुम ने आंखें उठाकर ध्यान से प्राणनाथ की ओर देखा। प्राणनाथ के विषय में तो उसने बहुत कुछ सुना है, यह वही प्राणनाथ है या कोई और?

कुसुम के चेहरे से जैसे प्राणनाथ ने उसके अंदर के भावों को पढ़ लिया। वह बोला, “इस शहर में प्राणनाथ नाम का एक ही व्यक्ति है और वह समाज में बहुत बदनाम है, वही हूं मैं। किंतु इस समय आपको डॉक्टर के घर तक मेरे साथ चलना ही होगा। आपका खून बहुत निकल चुका है, चलिए!” 

कुसुम उसकी बातों का कोई उत्तर न देकर चुपचाप कार में जा बैठी। प्राणनाथ ने कुसुम को ले जाकर डॉक्टर के यहां पट्टी बंधवाई और फिर उसके घर छोड़ दिया। कुसुम उस दिन कॉलेज न जा सकी।

इस घटना के कुछ दिन बाद एक दिन शाम को कुसुम का भाई, जो उससे दो साल बड़ा था, बड़े गुस्से में आया और बोला, “कुसुम, तुम बड़ी हो और समझदार भी हो, प्राणनाथ कितना बदनाम है, ये तुम जानती हो। उसके साथ कार में बैठकर तुम्हें कहीं नहीं जाना चाहिए था।” 

कुसुम ने कहा, “पर भैया जिस दिन मेरी मोटर लड़ गई थी, उसी दिन मैं उसकी कार में डॉक्टर के घर गई थी, और तो मैं कभी कहीं नहीं गई।”

“खैर अब इस बात का ध्यान रखना।” उसके भाई ने कहा और बात यूं ही खतम भी हो गई ।

पर संयोग की बात उसके दूसरे ही दिन कुसुम अपनी कुछ सहेलियों के साथ पिकनिक पर गई। लौटते समय दूसरी लड़कियों को उनके मकानों पर उतारकर जब वह वापस आ रही थी, तो ठीक प्राणनाथ के बंगले के ही सामने उसकी मोटर का पेट्रोल खतम हो गया। कुसुम यह न जानती थी कि वह बंगला किसका है, उसके साथ कोई नौकर भी न था, लाचार उसे उस बंगले वाले से सहायता लेनी ही पड़ी। इसी मतलब से वह फाटक के अंदर गई। सामने ही वरदी लगाए एक चपरासी खड़ा था। अंदर से संगीत की ध्वनि आ रही थी। स्वर किसी स्त्री का था। कुसुम बंगले में इस प्रकार गई, जैसे बंगले की स्वामिनी हो! चपरासी को रोकने का साहस न हुआ। संगीत से उसने अनुमान लगाया था कि अंदर औरतें होंगी। पर अंदर पहुँचकर उसने जो कुछ देखा, उससे वह एकदम सहम सी गई। बहुत अच्छे ढंग से सजे हुए कमरे में एक तरफ प्राणनाथ बैठा शराब पीता हुआ, एक अखबार पर नजर दौड़ा रहा था और दूसरी ओर एक गायिका, जो स्पष्ट रूप से गणिका थी, गा रही थी-

‘कान्हा बाजूबंद खोल’

कुसुम को देखकर गायिका कुछ सकपकाई। कुसुम ने पहले गायिका, फिर प्राणनाथ को देखा और ठिठक गई। प्राणनाथ ने भी कुसुम को देखा। वह खड़ा हो गया और बोला, “कौन? आप हैं, कुसुम देवी। आप यहाँ कैसे?” फिर तुरंत ही उसने गायिका से कहा, “बाहर के कमरे में जाकर बैठो। चपरासी से तांगे के लिए कह दो। आने पर चली जाना।” और मनीबैग से दो दस-दस रुपए के नोट निकालकर उसे दे दिए। 

गानेवाली सलाम करके चली गई। फिर कुसुम से बोला, “आपको आज अचानक अपने घर देखकर मुझे हर्ष भी है और दुःख भी है, कुसुम देवी। पर अपने सुख-दुःख की बात एक तरफ रखकर मैं आपके हित के खयाल से कहूंगा कि आप इसके बाद मेरे घर कभी न आइए। समाज की दृष्टि में मैं बहुत बुरा आदमी हूँ और हूँ भी बुरा। प्रमाण तो आपको आते ही मिल गया है।” 

वह इतना कह जरा-सा हँसा। इस हँसी की तह में, जो प्रचंड विषाद छिपा था, वह कुसुम से छिपा न रहा। पहली बार कुसुम को लगा, जैसे प्राणनाथ सचमुच में बुरा नहीं है। पर वह बुरा बनने का प्रयत्न करता है। लोग उसकी बुराई करते हैं तो उससे उसे जैसे संतोष होता है।

कुसुम बोली, “मुझे ऐसा लगता है कि आप स्वभाव से बुरे नहीं हैं, पर जानबूझकर बुरे बनते हैं।”

मार्मिक दृष्टि से कुसुम की ओर देखते हुए प्राणनाथ बोला, “मैं बुरा हूँ। आप मुझे अच्छा न समझिए। यदि आप मुझे बुरा न समझेंगी, तो मुझे दुःख होगा।” जरा ठहरकर, “अरे हाँ, यह तो बतलाइए कि आपकी क्या खातिर की जाए? चाय लेंगी या शरबत?”

कुसुम ने कहा, “मुझे कुछ न चाहिए। अभी पिकनिक से खूब खा-पीकर आ रही हूँ, पर मेरी मोटर को शरबत चाहिए।” 

प्राणनाथ ने उसी समय उसकी मोटर में पेट्रोल डलवा दिया। कुसुम कुछ कहना चाहती थी, पर संकोचवश बोल न सकी। अंत में बहुत हिम्मत करके उसने पूछ ही लिया, “आप इन गानेवालियों को क्यों बुलाते हैं? क्या रेडियो नहीं है?”

 रेडियो की ओर उंगली उठाकर प्राणनाथ ने कहा, “रेडियो है तो, इन्हें तो मैं सिर्फ बदनाम होने के लिए बुलाता हूँ। और फिर इन गरीब स्त्रियों को बुलाता हूँ, जिनका नाचना-गाना ही पेशा है, जिनकी युवावस्था समाप्त हो चुकी है, रूप-रंग बिगड़ गया है और जिन्हें पेट भरने का और कोई चारा नहीं है।”

कुसुम ने पूछा, “और शराब क्यों पीते हैं?”

“अपने आपको मिटाने के लिए। रुपयों का और क्या करूं।” प्राणनाथ ने विरक्ति के साथ उत्तर दिया।

“मैं इन दोनों बातों को नहीं पसंद करती। आपके पास बहुत रुपया है, तो मुझे दे दीजिए। मैं उनका संचय करूंगी।” अधिकार के स्वर में कुसुम बोली। फिर आप-ही-आप शरमा गई। उसे चाहने न चाहने का अधिकार ही क्या है?

प्राणनाथ हँस पड़ा। वह बोला, “आप नहीं चाहती, तो न होगा। पर आप मेरी चिंता क्यों करती हैं? मैं तो जानबूझकर मिट रहा हूँ और मिटने में ही मुझे संतोष है।”

“पर इसका कारण क्या है ?” आग्रह के साथ कुसुम ने पूछा।

“कारण बहुत बड़ा है। जल्दी में मैं बतला न सकूंगा। आप घर जाइए, रात हो रही है। आपके घरवाले चिंतित होंगे।” कहते हुए स्वयं प्राणनाथ ने दरवाजे का परदा हटा दिया। 

कुसुम बाहर निकली। प्राणनाथ भी आया। कुसुम की कार बरसाती में ही खड़ी थी।

“इस कृपा के लिए धन्यवाद कुसुम देवी।” प्राणनाथ ने कहा। 

“मैं आपसे फिर मिलूंगी।” कहती हुई कुसुम ने मोटर चला दी।

+++

घर पहुँचकर कुसुम कई दिनों तक सोचती रही। उसे प्राणनाथ जितना बदनाम था, उतना बुरा न जान पड़ा। बात-व्यवहार में वह बिल्कुल भद्र पुरुष था। उसकी बुराई करने वालों से प्राणनाथ ही उसे अधिक शिष्ट जान पड़ा। कुसुम सोच रही थी, कोई-न-कोई बात है, इसके जीवन में कोई ऐसी घटना घटी है, जिससे वह बहुत दुःखी होकर ही अपने आपको इस प्रकार मिटा रहा है, बदनाम कर रहा है। कुसुम ने सोचा, मैं उससे पूछूंगी जरूर और एक दिन शाम को कुसुम जब घूमने निकली, तो उसकी मोटर अपने आप जैसे प्राणनाथ के बंगले की ओर मुड़ गई। बाहर चपरासी बैठा था। कुसुम को देखते ही दौड़कर उसने साहब को खबर दी। प्राणनाथ बाहर आ गया।

 कुसुम को देखते ही उसके मुरझाए हुए चेहरे पर कांति-सी आ गई। वह बोला, “आइए! अच्छा हुआ, आप आ गईं। आप उस दिन मुझसे दो बातों के न करने का वचन ले गई थीं। उस दिन से मैंने नहीं की, किंतु उन दो बातों के सहारे मेरी संध्या कट जाती थी। अब तो शाम बहुत लंबी जान पड़ती है। बैठे-बैठे अपने कृत्यों पर बिसूरने के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह जाता। मैं किसी के घर आता-जाता भी नहीं। आपसे उन्हीं दोनों बातों की पुनरावृत्ति की आज्ञा चाहता हूँ।”

कुसुम हर्ष से उछल-सी पड़ी। उसने कहा, “सच, उस दिन से आपने शराब नहीं छुई और न किसी को बुलाया, धन्यवाद। आपने मेरे अनुरोध की रक्षा की है, अब आप फिक्र न कीजिए। आपकी शाम भारी न जाएगी। मैं उसे हल्की बनाने का प्रयत्न करूंगी।”

“इसके लिए आपको धन्यवाद, पर आप आज भी तो किसी पिकनिक से नहीं आ रही हैं?”

“नहीं, चाय पिऊंगी मैं। बनवाइए!” 

प्राणनाथ ने रसोइए को बुलाकर चाय बनाने को कहा। 

कुसुम कुछ सोचकर बोली, “हाँ, मैं आपसे वह कारण पूछना चाहती हूँ। यदि आपको कोई विशेष कष्ट न हो तो बतलाइए कि आपने अपने ऊपर इतना अत्याचार क्यों किया है? बुरे न होकर भी क्यों बुरे बन रहे हैं? दुराचारी न होकर भी क्यों अपने आपको दुराचारी साबित कर रहे हैं?”

“इसकी एक कहानी है, कुसुम देवी।” एक दीर्घ निश्श्वास के साथ प्राणनाथ ने कहा, “मैंने एक स्त्री का जीवन बर्बाद किया है और बर्बाद करने के बाद अपनी जिम्मेदारी नहीं समझी। उस पर व्यर्थ का संदेह किया, उसे सताया और बड़े ही नाजुक समय में उसकी ओर से इतना उदासीन रहा, उसकी बातों को ठुकराया कि शायद वह गली-गली टुकड़े मांगने तक को विवश हो गई हो। एक घटना ने मेरे संदेह को दूर कर दिया। मैंने अपनी गलती समझी और जाना कि वह बिल्कुल निर्दोष है। उसके साथ बड़ा अन्याय किया गया है। मैं उससे क्षमा मांगने उसे लाने के लिए गया, किंतु तब तक उसका वहाँ पता ही नहीं था, कहीं भी पता नहीं लगा। न जाने वह कहाँ गई? इस खयाल से भी मैं बहुत सी औरतों के यहाँ गया हूँ कि न जाने कहाँ, किस अवस्था में मुझे रुक्मिणी मिल जाए। मैं उसका अपराधी हूँ। कमसे-कम उससे क्षमा तो मांग सकूंगा।”

कुसुम ने कहा, “बस, बहुत हो चुका। आपने अपने ऊपर काफी अत्याचार किया है। अब आप यह न कर सकेंगे। आपने एक स्त्री के साथ अत्याचार किया है। कष्ट मुझे भी हुआ है। पर आप अपने ऊपर जो अत्याचार करते हैं, उससे भी मुझे कष्ट होता है। अच्छा, मैं आपको कल अपने घर चाय के लिए निमंत्रित करती हूँ। शाम को पाँच बजे आ जायेंगे या कार भेजनी पड़ेगी।”

“वैसे तो मैं आ जाऊंगा, पर आपके घरवाले इस बात को पसंद न करेंगे। मेरा आना उन्हें अच्छा न लगेगा।”

“मेरे घर में कोई भी आपके खिलाफ नहीं है।” कुसुम ने दृढ़ता से कहा, “मेरे भैया जरा कुछ ऐसा-वैसा कह रहे थे, पर मैंने उन्हें समझा दिया है। सभी आपसे मिलना चाहते हैं। कल आप आयेंगे न?”

“जी हाँ, आऊंगा।”

“ठीक पाँच बजे।”

“ठीक, पाँच बजे।”

+++

दूसरे दिन कुसुम ने चाय के लिए बड़ी तैयारी की। बहुत तरह की मिठाइयाँ और फल इत्यादि मंगवाए। कुसुम को पहले तो प्राणनाथ पर तरस आता था, अब वह उससे कुछ प्रेम भी करने लगी। उसने अपनी कुछ सहेलियों को भी बुलाया था। कुसुम अपनी सहेलियों से अनेक बार प्राणनाथ की चर्चा सुन चुकी थी। वे सब प्राणनाथ के नाम के साथ ही घृणा का भाव व्यक्त करती थीं। कुसुम उन्हें दिखला देना चाहती थी कि जिस प्राणनाथ को वे शराबी, बदमाश और वासना का कीट समझती हैं, वास्तव में प्राणनाथ वैसा नहीं है। उसने निश्चय किया कि पहले वह प्राणनाथ का परिचय किसी को न देगी। उसके बारे में सब की राय जान लेगी, तभी बतलाएगी कि वह आदमी कौन है? उसका भाई घर में नहीं था। बूढ़े पिता बच्चों की इस पार्टी में शामिल होने वाले न थे। कुसुम ही थी, जो कुछ थी और उसकी माँ और सहेलियाँ थीं।

उसकी सहेलियाँ पहले ही आ चुकी थीं। प्राणनाथ ठीक पाँच बजे आया। प्राणनाथ बहुत गोरा और देखने में सुंदर था। कुछ देर इधर-उधर की बात करने के बाद कुसुम ने अपनी परिचारिका भामा को चाय लाने को कहा। कुसुम देख रही थी कि उसकी सहेलियों में से कोई भी प्राणनाथ से जंगली जानवर या हौवा की तरह नहीं डरती है, किंतु खुलकर स्नेह के साथ बातचीत कर रही हैं। एक-दो ने चुपके से पूछा भी कि यह कौन हैं? कुसुम ने कहा, “मेरे दूर के रिश्ते के भाई होते हैं।” 

इसी समय भामा चाय लेकर आई। एक सुंदर सी ट्रे में उसने चायदानी और प्याले वगैरह सजा रखे थे। मेज के बहुत करीब वह पहुँच न पाई थी कि एकाएक उसकी दृष्टि प्राणनाथ पर और प्राणनाथ की दृष्टि भामा पर पड़ी। एक क्षण तक दोनों ने एक-दूसरे को देखा। अचानक भामा जैसे कांप उठी। उसके हाथ से ट्रे छूटकर धरती पर गिर पड़ी। चायदानी उसके पैरों के पास गिरकर फूट गई। प्याले दूर-दूर तक कमरे में बिखर गए। भामा निर्जीव-सी वहीं धरती पर बैठ गई।

प्राणनाथ के मुँह से एक चीख के साथ निकल पड़ा, “रुक्मिणी!’ 

और वे सब अपनी-अपनी कुर्सी छोड़कर निर्जीव सी पड़ी हुई भामा की परिचर्या में लग गए।

**समाप्त**

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